वर्तमान समय में परिस्थियाँ कुछ ऐसी हैं कि यदि किसी को जरा सी ताकत मिल जाती है तो वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है। वह ये भूल जाता है कि यदि उसे ईश्वर ने अन्य से कुछ भी अतरिक्त दिया है तो निश्चित ही कुछ अच्छा करने के लिए दिया है। मुझे एक अंग्रेजी फ़िल्म का वाक्य याद आता है कि 'आपके पास आई प्रत्येक शक्ति कुछ जिम्मेदारियां भी साथ लाती है।' सत्ता,ताकत,पद,वैभव,पैसा,प्रतिष्ठा यदि मिल रही है तो इसका अर्थ ये है कि ईश्वर ने अपने हिस्से की कुछ जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए आपको चुना है। कुछ भी मिल जाए लेकिन हमें विनम्रता नहीं छोड़नी चाहिए। और मित्रों विनम्रता यदि सीखनी है तो विश्व के सर्वाधिक वीर व्यक्ति से सीखो।
हमारे इतिहास में एक प्रसंग आता है जब लक्ष्मण जी मूर्क्षित हो जाते हैं तो श्री राम चंद्र जी हनुमान जी से संजीवनी बूटी लाने को कहते हैं। हनुमान जी उन्हें अपने सहयोगियों में सर्वाधिक शक्तिशाली लगे होंगे इसी नाते इतनी बड़ी जिम्मेदारी श्री रामचंद्र जी ने हनुमान जी को सौंपी। एक भाई अपने छोटे भाई के जीवन की रक्षा के लिए स्वयं से अधिक विश्वास किसी पर नहीं कर सकता तो एक बार सोच कर देखिए कि हनुमान पर कितना भरोसा रहा होगा श्री रामचन्द्र जी को। आपको ज्ञात होगा कि लक्ष्मण जी को तभी बचाया जा सकता था जब संजीवनी बूटी सूर्योदय से पहले लाई जाए।उस समय के सबसे बड़े वीर हनुमान जी की विनम्रता देखिए। उस हनुमान की विनम्रता जिसने बचपन में सूर्य देव को अपने मुख में रख लिया था।
क्या विनती की हनुमान ने सूर्य देव से....
हे सूरज बस इतना याद रहे कि संकट एक सूरज वंश पे है,
लंका के नीच रावण द्वारा आघात दिनेश वंश पे है।
इसलिए छिपे रहना भगवन जब तक न जड़ी पहुंचा दूं मैं,
बस तभी प्रकट होना दिनकर जब संकट निशा मिटा दूं मैं।
मेरे आने से पहले यदि किरणों का चमत्कार होगा,
तो सूर्यवंश में सूर्य देव निश्चित ही अंधकार होगा।
आशा है स्वल्प प्रार्थना यह, सच्चे जी से स्वीकारोगे,
लक्ष्मण की क्षतिग्रस्त अवस्था को होकर करुणार्ध निहारोगे।
ये थी विनम्रता की पराकाष्ठा ऐसी विनम्रता आज प्रत्येक मनुष्य में होनी चाहिए...लेकिन हनुमान जी की प्रार्थना यहीं समाप्त नहीं हुई...इस विनम्र प्रार्थना के बाद सूर्य देव के समक्ष हनुमान बोलता है...वो हनुमान जिसने उन्हें अपने मुंह में बन्द कर लिया था।
कैसे देते हैं अपना परिचय वीर हनुमान...
अन्यथा क्षमा करना दिनकर, अंजनी तनय से पाला है,
बचपन से जान रहे हो तुम हनुमत कितना मतवाला है।
मुख में तुमको धर रखने का फिर वही क्रूर साधन होगा,
बंदी मोचन तब होगा,जब लक्ष्मण का दुःख भंजन होगा।
ये विनम्रता हमें अपने हनुमान से सीखने की आवश्यकता है। आपकी शक्ति की सार्थकता तभी है जब आप विनम्र रहें। और मित्रों सूर्य देव को धमकी देने के बाद यहीं पर बात समाप्त नहीं होती। फिर हनुमान कहते हैं ये तो राम का काम है। इसमें तो आपका सहयोग होना ही चाहिए और फिर वो उनसे अपने साथ आने को कहते हैं। क्या कहते हैं हनुमान...
हे मित्र देव इस याचक की याचना न अस्विकार करो
राघव के दिल की पीड़ा का मिलकर अब संहार करो
उनके जीवन का तमस नहीं अब मुझसे देखा जाता है
मेरी इस अभिलाषा में बस एक दीप्ति निर्माण करो।
ये सब सामान्य बातें नहीं हैं। हमें आवश्यकता है कि हम हनुमान का अनुसरण करें। हनुमान की तरह ही कार्यपद्धति अपनाएं और राष्ट्रहित में एकजुट होकर कार्य करें।
वंदे भारती
हमारे इतिहास में एक प्रसंग आता है जब लक्ष्मण जी मूर्क्षित हो जाते हैं तो श्री राम चंद्र जी हनुमान जी से संजीवनी बूटी लाने को कहते हैं। हनुमान जी उन्हें अपने सहयोगियों में सर्वाधिक शक्तिशाली लगे होंगे इसी नाते इतनी बड़ी जिम्मेदारी श्री रामचंद्र जी ने हनुमान जी को सौंपी। एक भाई अपने छोटे भाई के जीवन की रक्षा के लिए स्वयं से अधिक विश्वास किसी पर नहीं कर सकता तो एक बार सोच कर देखिए कि हनुमान पर कितना भरोसा रहा होगा श्री रामचन्द्र जी को। आपको ज्ञात होगा कि लक्ष्मण जी को तभी बचाया जा सकता था जब संजीवनी बूटी सूर्योदय से पहले लाई जाए।उस समय के सबसे बड़े वीर हनुमान जी की विनम्रता देखिए। उस हनुमान की विनम्रता जिसने बचपन में सूर्य देव को अपने मुख में रख लिया था।
क्या विनती की हनुमान ने सूर्य देव से....
हे सूरज बस इतना याद रहे कि संकट एक सूरज वंश पे है,
लंका के नीच रावण द्वारा आघात दिनेश वंश पे है।
इसलिए छिपे रहना भगवन जब तक न जड़ी पहुंचा दूं मैं,
बस तभी प्रकट होना दिनकर जब संकट निशा मिटा दूं मैं।
मेरे आने से पहले यदि किरणों का चमत्कार होगा,
तो सूर्यवंश में सूर्य देव निश्चित ही अंधकार होगा।
आशा है स्वल्प प्रार्थना यह, सच्चे जी से स्वीकारोगे,
लक्ष्मण की क्षतिग्रस्त अवस्था को होकर करुणार्ध निहारोगे।
ये थी विनम्रता की पराकाष्ठा ऐसी विनम्रता आज प्रत्येक मनुष्य में होनी चाहिए...लेकिन हनुमान जी की प्रार्थना यहीं समाप्त नहीं हुई...इस विनम्र प्रार्थना के बाद सूर्य देव के समक्ष हनुमान बोलता है...वो हनुमान जिसने उन्हें अपने मुंह में बन्द कर लिया था।
कैसे देते हैं अपना परिचय वीर हनुमान...
अन्यथा क्षमा करना दिनकर, अंजनी तनय से पाला है,
बचपन से जान रहे हो तुम हनुमत कितना मतवाला है।
मुख में तुमको धर रखने का फिर वही क्रूर साधन होगा,
बंदी मोचन तब होगा,जब लक्ष्मण का दुःख भंजन होगा।
ये विनम्रता हमें अपने हनुमान से सीखने की आवश्यकता है। आपकी शक्ति की सार्थकता तभी है जब आप विनम्र रहें। और मित्रों सूर्य देव को धमकी देने के बाद यहीं पर बात समाप्त नहीं होती। फिर हनुमान कहते हैं ये तो राम का काम है। इसमें तो आपका सहयोग होना ही चाहिए और फिर वो उनसे अपने साथ आने को कहते हैं। क्या कहते हैं हनुमान...
हे मित्र देव इस याचक की याचना न अस्विकार करो
राघव के दिल की पीड़ा का मिलकर अब संहार करो
उनके जीवन का तमस नहीं अब मुझसे देखा जाता है
मेरी इस अभिलाषा में बस एक दीप्ति निर्माण करो।
ये सब सामान्य बातें नहीं हैं। हमें आवश्यकता है कि हम हनुमान का अनुसरण करें। हनुमान की तरह ही कार्यपद्धति अपनाएं और राष्ट्रहित में एकजुट होकर कार्य करें।
वंदे भारती