Sunday 17 May 2015

मोदी सरकार का एक साल और मेरे विचार

16 मई 2014 सुबह 09 बजे अपने हॉस्टल के सामने नॉएडा में के जब मैंने
पहला पटाखा मोदी जी के नाम का फोड़ा था तब
शहरी कॉलोनियों की मनहूसियत में पहला आदमी जो
दौड़ कर मेरे पास आया था वो था एक सामने बन रहे
अपार्टमेंट में काम करता मज़दूर , आते ही पूछा था उसने "
कौन जीता , मोड़ी मोड़ी ? " , मैंने कहाँ " हाँ मोड़ी ही
जीता" , मुझसे आगे बिना बात किये ही वो भागकर फिर
बिल्डिंग में गया और चिल्ला चिल्लाकर बोला "मोड़ी
मोड़ी" , एक पल के लिए मेरी ख़ुशी फीकी पड़ गयी थी
उसकी ख़ुशी के सामने , मेरे लिए तो जश्न मनाने के सैकड़ों
बहाने थे , इकॉनमी के सुधरने की चाहत थी, टैक्स कम हो
जाने का लालच था , हिंदुत्व का उद्भव और जेहादियों के
संहार की आशा थी, भारत का मस्तक विश्व पटल पर ऊंचा
होने की उम्मीदें थीं , पर उसके पास क्या था ? क्यों जश्न
मना रहा था वो ? ऐसा तो कोई लालच सीधा मुझे समझ
नहीं आया और शायद इसीलिये जब बाजार से मिठाई
लाया तो अपने भावी पत्रकार मित्रों के साथ साथ मिठाई को उन
मजदूरों में भी बाँटा क्योंकि उनकी ख़ुशी सही
मायने में निस्वार्थ थी !!
खैर, आज एक साल बाद हम कहाँ हैं इसका सही एहसास करने
के लिए हमें थोड़ा फ्लेशबैक में जाना पड़ेगा , याद करिये जब
मनमोहन सिंह ने संसद में जवानों की शहादत के मुद्दे पर कहा
था की " ऐसे छोटे मोटे मुद्दों को संसद में लाकर उसका समय
बर्बाद नहीं करना चाहिए ? " , याद है संयुक्त राष्ट्र में
हमारा विदेश मंत्री किसी और देश के प्रमुख की स्पीच पढ़
डालता था ?
याद है मनमोहन सिंह ने मुसलमानों का
आव्हान किया था की देश के संसाधनों पर पहला हक़
उनका है ?
याद है जब सलमान खुर्शीद ने भारतीय सैनिकों
के सर मांगने की बजाये पाकिस्तानियों को बिरयानी
की दावत दी थी ?
याद है वो ज़ीरो लोस थ्योरी ?
याद है वो अरबों के घोटाले ?
याद है वो चीन कीहिमाकत ?
याद है वो विदेशी फंड से संचालित एनजीओ का देश विरोधी कार्यक्रम ? भूल गए क्या ? अच्छे दिनों में
याददाश्त कमज़ोर तो नहीं हो गयी ?
मोदी ने क्या किया है ये हम सबके सामने है और पूरे साल
उसी पर लिखा है पर उन्हें और क्या करना है , आज इस पर
लिखना चाहता हूँ , देश के तमाम प्रकार के लोग मोदी जी
से कुछ चाहते हैं , उन तमाम तरह के लोगों का एक छोटा सा
हिस्सा मेरे अंदर भी है और उसी को आगे शब्दों में प्रकट कर
दस में से नंबर भी दूंगा !!
एक हिन्दू के रूप में
==
पहले तो हम हिन्दुओं को इस गलतफहमी से बाहर आना
चाहिए की मोदी कोई हिन्दू ह्रदय सम्राट हैं , गुजरात से
मोदी जी को करीब से जानने वाले इसे समझेंगे , वे बेहद
चतुराई और बारीकी से हिन्दुओं की भावनाओं को
उत्सर्जित करने की क्षमता रखते हैं और उसका सही जगह और
सही समय पर दोहन करते हैं , जिसमे कोई बुराई भी नहीं या
ऐसा करने से उनकी नियत भी ख़राब नहीं कही जा सकती
बशर्ते वे सिर्फ इसी स्तर पर ना रहकर हिन्दुओं के कई
स्थापित मुद्दों को सुलझाने का प्रयास भी दिखाएँ , कम
से कम मंशा तो दिखाएँ !! जब पहली बार भारत के
प्रधानमंत्री को पशुपतिनाथ के मंदिर के बाहर रुद्राक्ष
की माला पहने और सर पर तिलक लगा देखा था तो मन
प्रफुल्लित हो उठा था , जब पहली बार प्रधानमंत्री
निवास में इफ्तार पार्टी की जगह संक्रांति मिलन रखा
गया तब भी दिल को सुकून पहुंचा था , वैदिक विज्ञान पर रिसर्च की पहल और भारत के इतिहास को मार्क्सवादी
रंग से साफ़ करने की जोरदार मुहीम भी सराहनीय है , पर
मुद्दे इन्ही सतही भंगिमाओं से सुलझ जाते तो क्या बात
थी , आप एक चर्च में चोरी की घटना पर एसआईटी बिठा दें
और पूरी ट्रेन की बोगी जलाने के कुत्सित प्रयास पर चुप बैठे
रहें ये हज़म नहीं होता ? आप पुणे के एक अल्पसंख्यक के मरने पर
हायतौबा मचा दें और केरल बंगाल में मरते हिन्दुओं पर कुछ
ना करें, ना बोलें ? ये सब घटनाएं मोदी जी पर अविश्वास
नहीं तो कम से कम दिमाग में अस्थिरता तो पैदा करती
ही है, इसमें अड़चन ये भी है की हिन्दू भाजपा के ऊपर बूढ़े माँ
बाप की तरह आश्रित हैं , आज की परिस्थिति में उन्हें अपने
मुद्दों को और हठ के साथ मनवाना होगा वर्ना सरकारें
आएँगी और अपने मतलब साध कर गर्त में जाती जाएंगी !! !!
लेकिन इन सबके बीच ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती जैसे व्यक्ति की अजमेर स्थित दरगाह पर चादर भेजकर  तुष्टिकरण की राजनीति को नया आयाम दिया।
यदि वो चादर असफाक उल्ला खान की शहादत स्थल पर भेजी गयी होती तो मेरा सर फक्र से ऊँचा हो जाता।
खैर एक हिन्दू के नाते दस में से छह अंक देना चाहूंगा !!

एक अल्पसंख्यक के रूप में
===
चाहे ईसाई हो या मुस्लिम उनके लिए मोदी का कुछ भी
करना या उन्हें बार बार चीख चीख कर शर्मिंदगी से भरी
भावना के साथ ये कहना की संविधान ही मेरा धर्म ग्रन्थ
है चुनावी राजनीति में कोई फर्क नहीं डालने वाला , कहते
हैं ना की जैसे चलनी में पानी इकट्ठे करने जैसा !! ज्यादातर
ईसाई पूरी शक्ति के साथ मिशनरियों के धर्म परिवर्तन
मुहीम का खुलेआम समर्थन करते है, उन्हें पता है मोदी और
उनकी विचारधारा हमेशा इसके आड़े आएगी इसलिए वे पूरी
शक्ति के साथ कभी मोदी को सत्ता में वापस नहीं आने
देंगे !! ज्यादातर मुस्लिम दिन रात गज़वा ए हिन्द का
ख्वाब देखते है , अंतर सिर्फ इतना है की कुछ सिर्फ ख्वाब
देखते हैं और बाहर शालीन और सेक्युलर बने रहते हैं , जबकि कुछ
खुलेआम देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं , सपने
सबके एक हैं , यहाँ भी मोदी हर मुस्लिम को अपनी
योजनाओं से करोड़पति भी कर दे तो भी उसके वो सपने
नहीं बदलने वाले , मुस्लिमों के कल्याण और उन्हें
राष्ट्रवादी धारा से जोड़ने के लिए सरकारी योजनाओं
की नहीं , समुदाय के राष्ट्रवादी सोच वाले नेताओं को
ऊपर लाने , मदरसों पर प्रतिबन्ध और नसबंदी की ज़रुरत है जो
उन्हें कोई सरकार देने की हिम्मत नहीं रखती , इस वर्ग के
लोग लगातार "बरातियों" की तरह आप पर सेक्युलर रहने और
उनके हित में काम करने का दबाव मचाएंगे, रोना भी रोयेंगे ,
देश को बदनाम करने तक से पीछे नहीं हटेंगे पर आपके कितना
भी करने पर वोट वहीँ देंगे जहाँ देते आये हैं .... भाजपा उनके
लिए जान भी हाज़िर कर दे तो भी शून्य बटे सन्नाटा ही
रहेगा ,इसलिए अपनी शक्ति उन्हें खुश करने की बजाये देश की
सांस्कृतिक रीढ़ को मजबूत करने लगाएं तो बेहतर होगा ,
कारवां बनेगा तो ये भी जुड़ ही जायेंगे !! दस में से तीन अंक
दूंगा !!

एक गरीब / किसान के रूप में
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गरीबों के लिए इतनी योजनाएं लाने के बाद भी आपकी
छवि "नव धनाढ्य" की बनी है ,ऐसा व्यक्ति जो अचानक
आये धन से अपनी लाइफस्टाइल में आमूलचूल परिवर्तन कर दे
या जिससे अचानक मिला वैभव सम्भले नहीं , इसमें मैं आपकी
कोई गलती की बजाये कांग्रेस की प्रोपेगेंडा मशीनरी
की सफलता मानूंगा , ये मशीनरी 65 साल में कितनी
मारक और परिपक्व हो चुकी है इसका अंदाज़ा आप हाल के
सूटबूट वाली सरकार के सफल जुमले से समझ सकते हैं, ये छवि
सबसे गंभीरता से ली जानी चाहिए क्योंकि ये सबसे
खतरनाक वर्ग है , ये वर्ग दिमाग से नहीं दिल से सोचता है
और एक स्थापित छवि को जल्दी मिटने नहीं देता पर इसमें
फायदा ये भी है की राहुल गांधी की छवि जो "पप्पू" की
बनी हुई है वो भी जल्दी मिटने वाली नहीं , राहुल की ये
छवि मोदी की छवि को होते नुकसान को बेअसर करने में
सहायक होगी !! दस में से छह अंक !!

एक निष्पक्ष भाजपा समर्थक / कार्यकर्ता के रूप में
==
एक वो राजा की कहानी याद आती है जिसे वरदान
मिला था की वो जिसे छु लेगा वो सोने का हो
जायेगा , बदकिस्मती से उसने अपने पत्नी बच्चों को ही छु
लिया , सब सोने के हो गए , मूरत बन गए !! आपके ज्यादातर
सांसदों को भी आपने छु लिया है लगता है , सब मूरत बने हुए हैं
, ज़मीन पर भी और संसद में भी , एक साल पहले जो अभूतपूर्व
वरदान आपको मिला था वो आपके लिए ही मुसीबत
सिद्ध होगा , आप विदेश यात्रायें करें कोई परेशानी नहीं
पर कभी ओचक गाँवों के दौरे भी बनायें , देखें आपकी
योजनाएं आपके सांसद और कार्यकर्ता लोगों तक पहुंचा रहे
या नहीं , देखें उनमे कितना भ्र्ष्टाचार है और कितनी
पारदर्शिता है ? मानता हूँ की प्रधानमंत्री की
जिम्मेदारियां बेहद व्यापक और विस्तृत हैं पर जनतंत्र में
"छवि" एक बहुत महत्वपूर्ण रोल अदा करती है !! स्वच्छ भारत
मिशन में आपके नेताओं का कोई खास सहयोग नहीं रहा ,
रहा भी तो पारम्परिक दिखावपूर्ण खानापूर्ति , ये
डीएनए से जुड़ा प्रश्न है और इस प्रकार की वैचारिक
क्रांति कार्यकर्ताओं और नेताओं में कैसे आये उसके लिए
सोचना होगा !! इसके अलावा पार्टी में कोई असंतुष्ट भी
है तो उसे अपनी बात रखने के मौके क्यों नहीं मिलते ? मैं ये
मानता हूँ की कोई भी पार्टीनिष्ठ परन्तु असंतुष्ट नेता
मीडिया में जाकर अपनी बात रखने को सबसे आखिरी और
असहाय स्थिति से जनित उपाय मानता होगा , क्यों ऐसे
लोगों को लांछन लगाकर जवाब देना ही उचित समझा
गया ? क्यों विनम्रतापूर्वक उनकी आलोचना
शिरोधार्य नहीं रखी गयी ? आखिर ये पार्टी सिर्फ
मोदी और अमित शाह ने तो बनायीं नहीं ? दस में से सात
अंक देना चाहूंगा !!

एक भारतीय के रूप में
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आपने हरदम हमारा सीना चौड़ा किया है , पूरे विश्व के
अख़बारों में जब भारत का नाम पहले पन्ने पर आता है तो बहुत
अच्छा लगता है , कोयले और स्पेक्ट्रम में ईमानदारी से
नीलामी करवाने और लाखों करोड़ों रूपए सरकारी
खजाने में लाने के लिए आपका बारम्बार आभार ,आपकी
विदेश नीति आज़ादी के बाद सफलतम विदेश नीति में
गिनी जा सकती है , पहले ही साल में गरीबों और
सामान्य लोगों के लिए जनधन योजना , बीमा योजना ,
सुकन्या योजना , स्वच्छ भारत मिशन , शौचालय मुहीम ,
सब्सिडी जमा करने की पहल , उद्योग धंधे वालों को
सरकारी लालफीताशाही से मुक्ति जैसे कदम आपकी
प्रशासनिक श्रेष्ठता के रूप में बरसों बरस जाने जायेंगे !! पर
भ्र्ष्टाचार पर कोई जोरदार हमला नहीं हुआ , बल्कि
लोगों में ऐसा विश्वास ही और प्रबल हुआ के भाजपा
कॉंग्रेस एक दूसरे के विरुद्ध कभी कोई फैसला नहीं लेंगे ,
केंद्रीय योजनाओं में भारी भ्र्ष्टाचार है पर कोई
आक्रामक मुहीम उसे रोकने दिखाई नहीं दी , लोकपाल
कानून है पर लोकपाल की नियुक्ति में इतनी सुस्ती आपकी
नियत पर संदेह का कारण बन सकती है , लोगों में ये भी
धारणा बनी है है की काला धन आएगा भी की नहीं या
आएगा तो ना जाने कब आएगा ? ये आपकी भीषण गलती
ही कही जाएगी की आपने इतने बड़े तकनीकी मुद्दे को
"लोकलुभावन" बनने दिया और SIT बनाने के बाद अब उसपर
कोई गंभीर फॉलो अप नहीं दिखता !! पर ये बात भी सही
है की अभी एक ही साल हुआ है और चार साल में काफी कुछ
किया जा सकता है इसलिए आज भी एक भारतीय के रूप में
आप मेरे सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं , दस में से नौ अंक देना
चाहूंगा !!
कुल अंक 50
प्राप्तांक  31

Sunday 10 May 2015

माँ....बहुत याद आती है आपकी

मां.... एक दिन के लिए नहीं। हर क्षण के लिए।
इस उम्र में हर दिन कुछ न कुछ संघर्ष किया है। प्रकार बदले, पैमाने बदले, संघर्ष नहीं बदला।
मैं उन नौ महीनों की कल्पना ही कर सकता हूं जब मैं बिना संघर्ष तुम्हारी कोख में आया और रत्तीभर संघर्ष नहीं करना पड़ता था। तुम्हारी कोख में सबसे सुरक्षित था मैं। संघर्ष का दूर-दूर तक नाता नहीं था।
उसके बाद बाहर की दुनिया देखी और संघर्ष शुरू हो गया। आंखे खोलने का संघर्ष, सांस लेने का संघर्ष, खाने-पीने का संघर्ष..... और दिनों दिन संघर्ष का दायरा बढ़ता गया..बढ़ता गया।
निश्चित ही उस संघर्ष से मैं हार मान लेता... लेकिन आप कब मुझे हारते देख पातीं।
सब कुछ सिखा दिया। मैं गलती करता गया,,,,, आप सिखाती गईं।
हर संघर्ष में जीतना सिखाती गईं।
अक्षर सिखाए....शब्द सिखाए.... बोलना सिखाया।
पीना... खाना... चलना और दौड़ना सिखाया।
रुठना, मनाना, गुस्सा करना, जिद करना और प्यार करना भी सिखा दिया।
.... इस दुनिया में खड़े रहना और जूझना सिखा दिया।
फिर आपकी आदत लग गई,मेरा डर समाप्त हो गया क्यों कि पता था कि जब कभी मैं गिरने वाला हुआ आप मुझे संभाल लोगी।मुझे जीतने की आदत आपसे लगी।और जब मैं इस लायक हुआ कि दुनिया की साथ चलूँ तब आप मुझे छोड़ कर चली गईं। और तब मुझे बताया गया कि आपको श्री राम जी ने बुला लिया है और मेरा विश्वास श्री राम जी पर अटल हुआ।जीवन के यथार्थ सत्य के भाग में जब मेरा गमन हुआ जीवन के उस भाग में, मैं गिरने वाला हुआ तो मुझे किसी ने नहीं संभाला लेकिन फिर मेरे जीवन को संभाला श्री राम जी ने।
माँ,

मैं हँसता तो हूँ लेकिन खुश रही रहता क्यों कि आप मेरे साथ नहीं हो।

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...