एक ओर जहां देश में तथाकथित 'असहिष्णुता' को लेकर माहौल गरम दिख रहा है वहीं दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जिसे देश देश के माहौल से कोई समस्या नहीं है। कल कुछ सर्च करते करते अचानक मेरी नजर quora.com की एक पोस्ट पर गई। उस पोस्ट को पढ़कर मुझे लगा कि आखिर कोई कैसे यह कह सकता है कि इस देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। एक मुस्लिम लड़के ने यह पोस्ट लिखी तो काफी समय पहले थी लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में यह बिलकुल सटीक बैठती है। वर्तमान परिदृश्य के अनुसार बेहद प्रासंगिक लगने वाली वह पोस्ट अंग्रेजी भाषा में लिखी गई थी। उस पोस्ट को मैं हिन्दी भाषा में आपके सामने रख रहा हूं। इस पूरे विषय पर मेरा क्या विचार है उसे आप लेख के अंत में पाएंगे। वेबसाइट पर प्रश्न पूछा गया था कि एक भारतीय मुसलमान के तौर पर आपको किस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा है?
पोस्ट के जवाब में सैयद नासिर ने जो कुछ लिखा वह भारत की गंगा जमुनी तहजीब को बताता है। नासिर लिखता है कि मेरे साथ एक बार नहीं कई बार भेदभाव हुआ है।
रमजान के महीने में जब मेरे दोस्त अपने व मेरे बीच भेदभाव करते हुए कहते हैं कि तुम घर जाओ हम काम संभाल लेंगे।
रमजान की एक शाम एक गैर मुस्लिम दोस्त ने अपने व मेरे घर के बीच भेदभाव किया। उसने कहा कि आज हम प्रॉजेक्ट वर्क तुम्हारे घर पर निपटाएंगे, चूंकि रमजान है और मैं तुम्हारे घर पर बने लजीज व्यंजनों का स्वाद मिस नहीं करना चाहता।
जब भी शराब पीने वाले दोस्तों के साथ पार्टी होती है तो वह मेरे साथ भेदभाव करते और मेरे लिए सॉफ्ट ड्रिंक लाना नहीं भूलते।
जब भी हम कहीं बाहर नॉन वेज खाने का प्लान बनाते हैं। तो मेरे दोस्त रेस्तरांओं के बीच भेदभाव करते हैं। वे वहीं जाते हैं जहां उन्हें मेरे लिए हलाल फूड मिलने का यकीन होता है।
हर शुक्रवार को मुझे अपने और गैर मुस्लिम दोस्तों के बीच भेदभाव महसूसत होता है। जब मुझे नमाज के लिए जाने की इजाजत होती है और वे उस आधे घंटे के दौरान काम कर रहे होते हैं।
तफरी के दौरान भी मुझसे भेदभाव होता है। अगर माहौल है तो मुझसे उर्दू शायरी सुनाने की उम्मीद की जाती है।
हर बार घर जाते समय मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वापस आने पर मुझसे ढेर सारी बिरयानी लाने की उम्मीद की जाती है। किसी और के साथ ऐसा नहीं होता। यह भेदभाव है।
हर रोज जब दोपहर के वक्त वर्कप्लेस पर अपनी टेबल के करीब नमाज के वक्त मेरे साथी बाहर चले जाते हैं। जिससे कि उन पांच मिनटों के दौरान लंच की उनकी गपशप से मैं डिस्टर्ब न हो जाऊं।
नासिर ने आगे लिखा कि बहरहाल अगर साफ शब्दों में कहूं तो मुझे याद नहीं आता कि कभी मेरे साथ कहीं पर भी भेदभाव हुआ। मुझे नौकरी बिना किसी परेशानी के और प्रमोशन टैलेंट के दम पर मिला। इस्तीफा भी बिना किसी विवाद के दिया। मैं अपने करियर में बिना यह इस फीलिंग के साथ आगे बढ़ सकता हूं कि अपने धर्म के चलते मैंने कोई अवसर खो दिया।
नासिर लिखता है कि कुछ मुस्लिम दोस्तों ने जरूर मुझे बताया कि उन्हें नए शहर में किराए का मकान मिलने में तकलीफ होती है। मेरा मानना है कि ऐसा मकानमालिकों के मुस्लिमों को नापसंद करने की बजाय नॉन वेजिटेरियंस को मकान न देने के चलते हो सकता है। मांस मच्छी न खाना उनके धर्म का हिस्सा होगा और संभव है वह अपने घर में मांस न चाहते हों। ऐसे लोगों को दरकिनार कर आगे बढ़िए। आखिर आपका इरादा मकानमालिक की बेटी से शादी करने का तो नहीं है। संभव है आप अपने धर्म को लेकर कांशियस हो रहे हैं, जिसके चलते लगने लगा है कि सिर पर लगी टोपी की वजह से एयरपोर्ट पर ज्यादा तलाशी या ट्रैफिक पुलिस वाला रोक रहा है। इन्हें इग्नोर कर आगे बढ़िए। भारत में आगे बढ़ने के लिए आपके पास पर्याप्त मौके हैं।
सिविल सर्विस एग्जामिनेशन से लेकर सॉफ्टेवेयर इंडस्ट्री में नौकरियों तक, पर्याप्त व ट्रांसपेरेंट रास्ते हैं जहां आप अपने को साबित कर सकते हैं। उन पर ध्यान केंद्रित करिए बजाय यह सोचने कि मेट्रो में बैठी महिला आपको दाढ़ी के चलते देख रही थी। अपने गैर मुस्लिम दोस्तों के सवालों का जवाब दीजिए जो वह अकसर किसी दुर्भावना नहीं बल्कि क्यूरियोसिटी के चलते पूछ रहे होते हैं। मुस्कुराते रहिए। अपने धर्म व उसकी हीलिंग व अच्छाई को बढ़ावा देने की ताकत में यकीन करिए। आपका वक्त अच्छा गुजरेगा।
नासिर ने अपने जवाब के अंत में 'प्राउड एंड हैप्पी टू बी इंडियन। जय हिंद' लिखा है।
दोस्तों, इस उत्तर को पढ़कर मुझे ह्रदय से बहुत ही खुशी हुई। अगर हम मुस्लिम्स से यह अपेक्षा करते हैं कि वे गैर मुस्लिमों के बारे में वैसे ही विचार रखें जैसे कि नासिर के हैं तो दोस्तों हमें भी मुस्लिमों के साथ वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा कि नासिर के मुस्लिम परिचितों ने उसके साथ किया। दोस्तों, जो मुस्लिम आज इस देश में रह रहे हैं वे तुर्की या अरब से नहीं आए हैं बल्कि वे सभी यहीं के हैं लेकिन इस देश के कुछ लोग ऐसा मान कर बैठे हैं मुसलमान का मतलब गद्दार और जब उनके सामने एपीजे अब्दुल कलाम या अशफाक उल्ला खान का नाम लो तो वे बहुत आसानी से सवाल को टालते हुए इन नामों को अपवाद करार देते हैं।
दोस्तों, एक चौपाई है, जाकी रही भावना जैसी, रघु मूरति देखी तिन तैसी। बिलकुल वैसी ही स्थिति है, आप जिस रूप में जिसे देखेंगे वैसे ही वे दिखेंगे। आप एक मुसलमान में अगर लादेन देखेंगे तो वह आपको वैसा ही दिखेगा और अगर उसी मुसलमान में आप एपीजे अब्दुल कलाम को देखने की कोशिश करेंगे तो निश्चित ही आपकी अपेक्षानुसार वह व्यक्ति एपीजे कलाम बनने की कोशिश करेगा। हमारे पुराणों में आकर्षण के सिद्धान्त की बात की गई है, वही तो है यह।
और दोस्तों, अगर कोई व्यक्ति इतना गिरा हुआ है कि वह इस देश की माटी के साथ गद्दारी करने के बारे में सोच रहा है तो उसे जेल में मत डालो बल्कि चौराहे पर गोली मार दो, लेकिन उस व्यक्ति को इस्लाम से मत जोड़ो और इसके साथ इतनी हिम्मत भी रखो कि अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो भगवा कपड़े पहन कर इस देश को तोड़ने की साजिश करे तो उसे भी उतनी ही बर्बरता से मारने की हिम्मत रखो। और दोस्तों भगवा पहन कर देश तोड़ने की बात करने वाला एक बड़ा नाम तथाकथित स्वामी अग्निवेश का है। मेरा मानना है कि जो राष्ट्र और मातृभूमि को सर्वप्रथम ना माने वह भले ही दिन में 50 बार मंदिर जाता हो लेकिन उसे हिंदू नहीं कहा जा सकता। यह सिद्धान्त मेरा अपना नहीं है अपितु यह सिद्धान्त तो हमारे पूर्वज श्री रामचन्द्र जी ने दिया था। याद है ना आपको श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा था, "अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥" अभी हाल ही में हुए पेरिस हमले के बाद अपने एक मुस्लिम मित्र दानिश से मैंने पूछा कि भाई यह कैसा इस्लाम है तो दानिश ने कहा कि जो मजमूलों का कातिल है वह मुसलमान नहीं हो सकता। उसके जवाब से मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों के विचार तो एक ही हैं।
इस ब्लॉग को एक अपेक्षा के साथ लिख रहा हूं... मेरी अपेक्षा यह है कि आने वाले कुछ समय में इस देश का प्रत्येक मुसलमान जब भारत से कहीं बाहर जाए तो वह कहे कि भारत के 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ सनातनियों की सुरक्षा में रहते हैं और जब कोई सनातनी कहीं बाहर जाए तो वह कहे कि भारत के मुसलमान हमसे पहले मां भारती की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार खड़े रहते हैं तथा जब तक भारत में ईमान के पक्के ये 25 करोड़ मुसलमान हैं तब तक भारत का कोई कुछ नहीं कर सकता।
इसी अपेक्षा के साथ वन्दे भारती...
पोस्ट के जवाब में सैयद नासिर ने जो कुछ लिखा वह भारत की गंगा जमुनी तहजीब को बताता है। नासिर लिखता है कि मेरे साथ एक बार नहीं कई बार भेदभाव हुआ है।
रमजान के महीने में जब मेरे दोस्त अपने व मेरे बीच भेदभाव करते हुए कहते हैं कि तुम घर जाओ हम काम संभाल लेंगे।
रमजान की एक शाम एक गैर मुस्लिम दोस्त ने अपने व मेरे घर के बीच भेदभाव किया। उसने कहा कि आज हम प्रॉजेक्ट वर्क तुम्हारे घर पर निपटाएंगे, चूंकि रमजान है और मैं तुम्हारे घर पर बने लजीज व्यंजनों का स्वाद मिस नहीं करना चाहता।
जब भी शराब पीने वाले दोस्तों के साथ पार्टी होती है तो वह मेरे साथ भेदभाव करते और मेरे लिए सॉफ्ट ड्रिंक लाना नहीं भूलते।
जब भी हम कहीं बाहर नॉन वेज खाने का प्लान बनाते हैं। तो मेरे दोस्त रेस्तरांओं के बीच भेदभाव करते हैं। वे वहीं जाते हैं जहां उन्हें मेरे लिए हलाल फूड मिलने का यकीन होता है।
हर शुक्रवार को मुझे अपने और गैर मुस्लिम दोस्तों के बीच भेदभाव महसूसत होता है। जब मुझे नमाज के लिए जाने की इजाजत होती है और वे उस आधे घंटे के दौरान काम कर रहे होते हैं।
तफरी के दौरान भी मुझसे भेदभाव होता है। अगर माहौल है तो मुझसे उर्दू शायरी सुनाने की उम्मीद की जाती है।
हर बार घर जाते समय मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वापस आने पर मुझसे ढेर सारी बिरयानी लाने की उम्मीद की जाती है। किसी और के साथ ऐसा नहीं होता। यह भेदभाव है।
हर रोज जब दोपहर के वक्त वर्कप्लेस पर अपनी टेबल के करीब नमाज के वक्त मेरे साथी बाहर चले जाते हैं। जिससे कि उन पांच मिनटों के दौरान लंच की उनकी गपशप से मैं डिस्टर्ब न हो जाऊं।
नासिर ने आगे लिखा कि बहरहाल अगर साफ शब्दों में कहूं तो मुझे याद नहीं आता कि कभी मेरे साथ कहीं पर भी भेदभाव हुआ। मुझे नौकरी बिना किसी परेशानी के और प्रमोशन टैलेंट के दम पर मिला। इस्तीफा भी बिना किसी विवाद के दिया। मैं अपने करियर में बिना यह इस फीलिंग के साथ आगे बढ़ सकता हूं कि अपने धर्म के चलते मैंने कोई अवसर खो दिया।
नासिर लिखता है कि कुछ मुस्लिम दोस्तों ने जरूर मुझे बताया कि उन्हें नए शहर में किराए का मकान मिलने में तकलीफ होती है। मेरा मानना है कि ऐसा मकानमालिकों के मुस्लिमों को नापसंद करने की बजाय नॉन वेजिटेरियंस को मकान न देने के चलते हो सकता है। मांस मच्छी न खाना उनके धर्म का हिस्सा होगा और संभव है वह अपने घर में मांस न चाहते हों। ऐसे लोगों को दरकिनार कर आगे बढ़िए। आखिर आपका इरादा मकानमालिक की बेटी से शादी करने का तो नहीं है। संभव है आप अपने धर्म को लेकर कांशियस हो रहे हैं, जिसके चलते लगने लगा है कि सिर पर लगी टोपी की वजह से एयरपोर्ट पर ज्यादा तलाशी या ट्रैफिक पुलिस वाला रोक रहा है। इन्हें इग्नोर कर आगे बढ़िए। भारत में आगे बढ़ने के लिए आपके पास पर्याप्त मौके हैं।
सिविल सर्विस एग्जामिनेशन से लेकर सॉफ्टेवेयर इंडस्ट्री में नौकरियों तक, पर्याप्त व ट्रांसपेरेंट रास्ते हैं जहां आप अपने को साबित कर सकते हैं। उन पर ध्यान केंद्रित करिए बजाय यह सोचने कि मेट्रो में बैठी महिला आपको दाढ़ी के चलते देख रही थी। अपने गैर मुस्लिम दोस्तों के सवालों का जवाब दीजिए जो वह अकसर किसी दुर्भावना नहीं बल्कि क्यूरियोसिटी के चलते पूछ रहे होते हैं। मुस्कुराते रहिए। अपने धर्म व उसकी हीलिंग व अच्छाई को बढ़ावा देने की ताकत में यकीन करिए। आपका वक्त अच्छा गुजरेगा।
नासिर ने अपने जवाब के अंत में 'प्राउड एंड हैप्पी टू बी इंडियन। जय हिंद' लिखा है।
दोस्तों, इस उत्तर को पढ़कर मुझे ह्रदय से बहुत ही खुशी हुई। अगर हम मुस्लिम्स से यह अपेक्षा करते हैं कि वे गैर मुस्लिमों के बारे में वैसे ही विचार रखें जैसे कि नासिर के हैं तो दोस्तों हमें भी मुस्लिमों के साथ वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा कि नासिर के मुस्लिम परिचितों ने उसके साथ किया। दोस्तों, जो मुस्लिम आज इस देश में रह रहे हैं वे तुर्की या अरब से नहीं आए हैं बल्कि वे सभी यहीं के हैं लेकिन इस देश के कुछ लोग ऐसा मान कर बैठे हैं मुसलमान का मतलब गद्दार और जब उनके सामने एपीजे अब्दुल कलाम या अशफाक उल्ला खान का नाम लो तो वे बहुत आसानी से सवाल को टालते हुए इन नामों को अपवाद करार देते हैं।
दोस्तों, एक चौपाई है, जाकी रही भावना जैसी, रघु मूरति देखी तिन तैसी। बिलकुल वैसी ही स्थिति है, आप जिस रूप में जिसे देखेंगे वैसे ही वे दिखेंगे। आप एक मुसलमान में अगर लादेन देखेंगे तो वह आपको वैसा ही दिखेगा और अगर उसी मुसलमान में आप एपीजे अब्दुल कलाम को देखने की कोशिश करेंगे तो निश्चित ही आपकी अपेक्षानुसार वह व्यक्ति एपीजे कलाम बनने की कोशिश करेगा। हमारे पुराणों में आकर्षण के सिद्धान्त की बात की गई है, वही तो है यह।
और दोस्तों, अगर कोई व्यक्ति इतना गिरा हुआ है कि वह इस देश की माटी के साथ गद्दारी करने के बारे में सोच रहा है तो उसे जेल में मत डालो बल्कि चौराहे पर गोली मार दो, लेकिन उस व्यक्ति को इस्लाम से मत जोड़ो और इसके साथ इतनी हिम्मत भी रखो कि अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो भगवा कपड़े पहन कर इस देश को तोड़ने की साजिश करे तो उसे भी उतनी ही बर्बरता से मारने की हिम्मत रखो। और दोस्तों भगवा पहन कर देश तोड़ने की बात करने वाला एक बड़ा नाम तथाकथित स्वामी अग्निवेश का है। मेरा मानना है कि जो राष्ट्र और मातृभूमि को सर्वप्रथम ना माने वह भले ही दिन में 50 बार मंदिर जाता हो लेकिन उसे हिंदू नहीं कहा जा सकता। यह सिद्धान्त मेरा अपना नहीं है अपितु यह सिद्धान्त तो हमारे पूर्वज श्री रामचन्द्र जी ने दिया था। याद है ना आपको श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा था, "अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥" अभी हाल ही में हुए पेरिस हमले के बाद अपने एक मुस्लिम मित्र दानिश से मैंने पूछा कि भाई यह कैसा इस्लाम है तो दानिश ने कहा कि जो मजमूलों का कातिल है वह मुसलमान नहीं हो सकता। उसके जवाब से मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों के विचार तो एक ही हैं।
इस ब्लॉग को एक अपेक्षा के साथ लिख रहा हूं... मेरी अपेक्षा यह है कि आने वाले कुछ समय में इस देश का प्रत्येक मुसलमान जब भारत से कहीं बाहर जाए तो वह कहे कि भारत के 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ सनातनियों की सुरक्षा में रहते हैं और जब कोई सनातनी कहीं बाहर जाए तो वह कहे कि भारत के मुसलमान हमसे पहले मां भारती की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार खड़े रहते हैं तथा जब तक भारत में ईमान के पक्के ये 25 करोड़ मुसलमान हैं तब तक भारत का कोई कुछ नहीं कर सकता।
इसी अपेक्षा के साथ वन्दे भारती...