Friday 27 November 2015

एक मुस्लिम लड़के का आमिर को करारा जवाब

एक ओर जहां देश में तथाकथित 'असहिष्णुता' को लेकर माहौल गरम दिख रहा है वहीं दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जिसे देश देश के माहौल से कोई समस्या नहीं है। कल कुछ सर्च करते करते अचानक मेरी नजर quora.com की एक पोस्ट पर गई। उस पोस्ट को पढ़कर मुझे लगा कि आखिर कोई कैसे यह कह सकता है कि इस देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। एक मुस्लिम लड़के ने यह पोस्ट लिखी तो काफी समय पहले थी लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में यह बिलकुल सटीक बैठती है। वर्तमान परिदृश्य के अनुसार बेहद प्रासंगिक लगने वाली वह पोस्ट अंग्रेजी भाषा में लिखी गई थी। उस पोस्ट को मैं हिन्दी भाषा में आपके सामने रख रहा हूं। इस पूरे विषय पर मेरा क्या विचार है उसे आप लेख के अंत में पाएंगे। वेबसाइट पर प्रश्न पूछा गया था कि एक भारतीय मुसलमान के तौर पर आपको किस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा है?
पोस्ट के जवाब में सैयद नासिर ने जो कुछ लिखा वह भारत की गंगा जमुनी तहजीब को बताता है। नासिर लिखता है कि मेरे साथ एक बार नहीं कई बार भेदभाव हुआ है।

रमजान के महीने में जब मेरे दोस्‍त अपने व मेरे बीच भेदभाव करते हुए कहते हैं कि तुम घर जाओ हम काम संभाल लेंगे।

रमजान की एक शाम एक गैर मुस्‍लिम दोस्‍त ने अपने व मेरे घर के बीच भेदभाव किया। उसने कहा कि आज हम प्रॉजेक्‍ट वर्क तुम्‍हारे घर पर निपटाएंगे, चूंकि रमजान है और मैं तुम्‍हारे घर पर बने लजीज व्‍यंजनों का स्‍वाद मिस नहीं करना चाहता।

जब भी शराब पीने वाले दोस्‍तों के साथ पार्टी होती है तो वह मेरे साथ भेदभाव करते और मेरे लिए सॉफ्ट ड्रिंक लाना नहीं भूलते।

जब भी हम कहीं बाहर नॉन वेज खाने का प्‍लान बनाते हैं। तो मेरे दोस्‍त रेस्‍तरांओं के बीच भेदभाव करते हैं। वे वहीं जाते हैं जहां उन्‍हें मेरे लिए हलाल फूड मिलने का यकीन होता है।

हर शुक्रवार को मुझे अपने और गैर मुस्‍लिम दोस्‍तों के बीच भेदभाव महसूसत होता है। जब मुझे नमाज के लिए जाने की इजाजत होती है और वे उस आधे घंटे के दौरान काम कर रहे होते हैं।

तफरी के दौरान भी मुझसे भेदभाव होता है। अगर माहौल है तो मुझसे उर्दू शायरी सुनाने की उम्‍मीद की जाती है।

हर बार घर जाते समय मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वापस आने पर मुझसे ढेर सारी बिरयानी लाने की उम्‍मीद की जाती है। किसी और के साथ ऐसा नहीं होता। यह भेदभाव है।

हर रोज जब दोपहर के वक्‍त वर्कप्‍लेस पर अपनी टेबल के करीब नमाज के वक्‍त मेरे साथी बाहर चले जाते हैं। जिससे कि उन पांच मिनटों के दौरान लंच की उनकी गपशप से मैं डिस्‍टर्ब न हो जाऊं।

नासिर ने आगे लिखा कि बहरहाल अगर साफ शब्‍दों में कहूं तो मुझे याद नहीं आता कि कभी मेरे साथ कहीं पर भी भेदभाव हुआ। मुझे नौकरी बिना किसी परेशानी के और प्रमोशन टैलेंट के दम पर मिला। इस्‍तीफा भी बिना किसी विवाद के दिया। मैं अपने करियर में बिना यह इस फीलिंग के साथ आगे बढ़ सकता हूं कि अपने धर्म के चलते मैंने कोई अवसर खो दिया।

नासिर लिखता है कि कुछ मुस्‍लिम दोस्‍तों ने जरूर मुझे बताया कि उन्‍हें नए शहर में किराए का मकान मिलने में तकलीफ होती है। मेरा मानना है कि ऐसा मकानमालिकों के मुस्‍लिमों को नापसंद करने की बजाय नॉन वेजिटेरियंस को मकान न देने के चलते हो सकता है। मांस मच्‍छी न खाना उनके धर्म का हिस्‍सा होगा और संभव है वह अपने घर में मांस न चाहते हों। ऐसे लोगों को दरकिनार कर आगे बढ़िए। आखिर आपका इरादा मकानमालिक की बेटी से शादी करने का तो नहीं है। संभव है आप अपने धर्म को लेकर कांशियस हो रहे हैं, जिसके चलते लगने लगा है कि सिर पर लगी टोपी की वजह से एयरपोर्ट पर ज्‍यादा तलाशी या ट्रैफिक पुलिस वाला रोक रहा है। इन्‍हें इग्‍नोर कर आगे बढ़िए। भारत में आगे बढ़ने के लिए आपके पास पर्याप्‍त मौके हैं।
सिविल सर्विस एग्‍जामिनेशन से लेकर सॉफ्टेवेयर इंडस्‍ट्री में नौकरियों तक, पर्याप्‍त व ट्रांसपेरेंट रास्‍ते हैं जहां आप अपने को साबित कर सकते हैं। उन पर ध्‍यान केंद्रित करिए बजाय यह सोचने कि मेट्रो में बैठी महिला आपको दाढ़ी के चलते देख रही थी। अपने गैर मुस्‍लिम दोस्‍तों के सवालों का जवाब दीजिए जो वह अकसर किसी दुर्भावना नहीं बल्‍कि क्‍यूरियोसिटी के चलते पूछ रहे होते हैं। मुस्‍कुराते रहिए। अपने धर्म व उसकी हीलिंग व अच्‍छाई को बढ़ावा देने की ताकत में यकीन करिए। आपका वक्‍त अच्‍छा गुजरेगा।

नासिर ने अपने जवाब के अंत में 'प्राउड एंड हैप्‍पी टू बी इंडियन। जय हिंद' लिखा है।


दोस्तों, इस उत्तर को पढ़कर मुझे ह्रदय से बहुत ही खुशी हुई। अगर हम मुस्लिम्स से यह अपेक्षा करते हैं कि वे गैर मुस्लिमों के बारे में वैसे ही विचार रखें जैसे कि नासिर के हैं तो दोस्तों हमें भी मुस्लिमों के साथ वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा कि नासिर के मुस्लिम परिचितों ने उसके साथ किया। दोस्तों, जो मुस्लिम आज इस देश में रह रहे हैं वे तुर्की या अरब से नहीं आए हैं बल्कि वे सभी यहीं के हैं लेकिन इस देश के कुछ लोग ऐसा मान कर बैठे हैं मुसलमान का मतलब गद्दार और जब उनके सामने एपीजे अब्दुल कलाम या अशफाक उल्ला खान का नाम लो तो वे बहुत आसानी से सवाल को टालते हुए इन नामों को अपवाद करार देते हैं।

दोस्तों, एक चौपाई है, जाकी रही भावना जैसी, रघु मूरति देखी तिन तैसी। बिलकुल वैसी ही स्थिति है, आप जिस रूप में जिसे देखेंगे वैसे ही वे दिखेंगे। आप एक मुसलमान में अगर लादेन देखेंगे तो वह आपको वैसा ही दिखेगा और अगर उसी मुसलमान में आप एपीजे अब्दुल कलाम को देखने की कोशिश करेंगे तो निश्चित ही आपकी अपेक्षानुसार वह व्यक्ति एपीजे कलाम बनने की कोशिश करेगा। हमारे पुराणों में आकर्षण के सिद्धान्त की बात की गई है, वही तो है यह।

और दोस्तों, अगर कोई व्यक्ति इतना गिरा हुआ है कि वह इस देश की माटी के साथ गद्दारी करने के बारे में सोच रहा है तो उसे जेल में मत डालो बल्कि चौराहे पर गोली मार दो, लेकिन उस व्यक्ति को इस्लाम से मत जोड़ो और इसके साथ इतनी हिम्मत भी रखो कि अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो भगवा कपड़े पहन कर इस देश को तोड़ने की साजिश करे तो उसे भी उतनी ही बर्बरता से मारने की हिम्मत रखो। और दोस्तों भगवा पहन कर देश तोड़ने की बात करने वाला एक बड़ा नाम तथाकथित स्वामी अग्निवेश का है। मेरा मानना है कि जो राष्ट्र और मातृभूमि को सर्वप्रथम ना माने वह भले ही दिन में 50 बार मंदिर जाता हो लेकिन उसे हिंदू नहीं कहा जा सकता। यह सिद्धान्त मेरा अपना नहीं है अपितु यह सिद्धान्त तो हमारे पूर्वज श्री रामचन्द्र जी ने दिया था। याद है ना आपको श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा था, "अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥" अभी हाल ही में हुए पेरिस हमले के बाद अपने एक मुस्लिम मित्र दानिश से मैंने पूछा कि भाई यह कैसा इस्लाम है तो दानिश ने कहा कि जो मजमूलों का कातिल है वह मुसलमान नहीं हो सकता। उसके जवाब से मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों के विचार तो एक ही हैं।
इस ब्लॉग को एक अपेक्षा के साथ लिख रहा हूं... मेरी अपेक्षा यह है कि आने वाले कुछ समय में इस देश का प्रत्येक मुसलमान जब भारत से कहीं बाहर जाए तो वह कहे कि भारत के 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ सनातनियों की सुरक्षा में रहते हैं और जब कोई सनातनी कहीं बाहर जाए तो वह कहे कि भारत के मुसलमान हमसे पहले मां भारती की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार खड़े रहते हैं तथा जब तक भारत में ईमान के पक्के ये 25 करोड़ मुसलमान हैं तब तक भारत का कोई कुछ नहीं कर सकता।

इसी अपेक्षा के साथ वन्दे भारती...

Thursday 26 November 2015

खड़गे जी, कुछ पढ़कर आओ..

अभी अभी कांग्रेस के एक बड़े नेता तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राजग के सांसदों से कहा, 'तुम, आर्य तो बाहर से आए थे, हम इस देश के हैं...' मुझे समझ नहीं आता ऐसे अज्ञानी लोग क्यों इस देश में रह रहे हैं। जिन्हें इस देश की संस्कृति, इस देश के इतिहास का ज्ञान नहीं वह क्यों लोकसभा में पहुंच जाते हैं? और इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि देश के नागरिक ऐसे कुत्सित विचारों वाले लोगों को अपना नेता चुन लेते हैं।

दोस्तों, आर्य शब्द वेदों मे वर्णित हैं यह संस्कृत का शब्द हैं, जिसका अर्थ होता हैं “श्रेष्ठ” या “नेक”। सृष्टि की आदि से वेदों के आदेशो का पालन करने वाले मनुष्य आर्य कहलाते आये हैं। अंग्रेजी और वामपंथी इतिहास में देश को तोड़ने की बड़ी साजिशें की गईं। इस देश में दो प्रकार के संप्रदाय बहुत ही पुराने समय से चल रहे हैं एक वैष्णव तथा दूसरा शैव। वैष्णव, भगवान विष्णु के पूजकों को तथा शैव, भगवान शिव के पूजकों को कहा जाता है। आर्य का अर्थ स्पष्ट रूप से वैष्णव और द्रविड़ का अर्थ शैव है। अंग्रेजों के समय मैकॉले और मैक्समूलर जैसे लोगों ने षणयंत्र रचकर यह प्रचारित किया कि आर्य बाहर से आये थे। उनका उद्देश्य था कि इस तरीके से भारत मे फूट डालो राज करो की निति के आधार पर शासन किया जाए।

ऋग्वेद में एक वेद मंत्र आता है,
अहं भूमिददामार्यायाहं वृष्टिं दाशुषे मर्त्याम् ।
अहमपो अनयं वावशाना मम देवासो अनु केतामायन् ॥
ऋग्वेद  4/26/2
अर्थात् (ईश्वर कहते हैं) मैं आर्य के लिए भूमि देता हूँ । मैं दानशील मनुष्य के लिए धन की वर्षा करता हूँ । मैं घनघोर शब्द करनेवाले बादलों को धरती पर वर्षाता हूँ । विद्वानलोग मेरे ज्ञान (उपदेश)के अनुसार चलते हैं ।
इस वेद मन्त्र में बतलाया गया है कि ईश्वर आर्य के लिए ही अर्थत अच्छे उत्तम मनुष्यों के लिए ही भूमि और धन देता है। वर्षा करता है और ज्ञान देता है।
इस पंक्ति को सामान्य तौर पर ना लें। इसका स्पष्ट अर्थ है कि ईश्वर ने यह भूमि श्रेष्ठ लोगों को दी है। खुद ही सोचिए अपनी बनाई चीज किसको दी जाती है?

'कृण्वन्तो विश्वार्यम' तो आप सबने पढ़ा ही होगा। यह ऋग्वेद के एक मंत्र का एक हिस्सा है। ऋग्वेद में कहा गया है -
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ।
अपघ्नन्तो अराव्ण: ॥
ऋग्वेद 9/63/5

अर्थात् - आत्मा को बढ़ाते हुए दिव्य गुणों से अलंकृत करते हुए तत्परता के साथ कार्य करते हुए अदानशीलता को , ईर्ष्या , द्वेष , द्रोह की भावनाओं को , शत्रुओं को परे हटते हुए सम्पूर्ण विश्व को , समस्त संसार को आर्य बनाएं। आर्य कोई धर्म या संप्रदाय नहीं है जिसे आप यह कह दें कि वेद, धर्म परिवर्तन या जाति परिवर्तन के लिए कहा  जा रहा है। कितनी सुंदर बात है कि संपूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं, सम्पूर्ण विश्व को नेक बनाएं। हमें गर्व होना चाहिए कि हम ऐसी संस्कृति के संवाहक हैं जो नेक बनाने पर जोर देती है। हमारी संस्कृति यह नहीं कहती कि दुनिया को मूर्ति पूजक बनाओ, बल्कि श्रेष्ठ बनने और बनाने को कहती है। आर्य यदि जाति होती तो लोग कहते मैं आर्य हूं लेकिन इतिहास में किसी ने यह नहीं कहा कि मैं आर्य हूं। रामायण महाभारत मे भी आर्य का सम्बोधन आया है। मगर क्या यह संबोधन क्या किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए था? या उस समय के लोग खुद को आर्य (श्रेष्ठ) कहते थे? बिल्कुल नहीं उस समय भी दूसरों के द्वारा भी “आर्यपुत्र” “आर्यमाता” “आर्यपत्नी” का संबोधन मिलता है। एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें किसी ने खुद को आर्य कहा हो।

श्रीमद्भगवद्गीता में आर्य शब्द का प्रयोग
भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन से कहा है -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकिर्तिकरमर्जुन ।।
श्री मद्भग्वद गीता 2/2

अर्थात - हे अर्जुन ! तुम को विषम स्थल में यह अज्ञान किस हेतु से प्राप्त हुआ है , क्यों कि यह न तो आर्य अर्थात् श्रेष्ठ पुरुषों का प्रिय व उन द्बारा अपनाया गया है ।न स्वर्ग देनेवाला है और न कीर्ति को करनेवाला है ।
यह सभी जानते हैं की अर्जुन मोह में पड़कर अपना कर्तव्य - कर्म भूल चुके थे और भिक्षा का अन्न खाने के लिए तैयार था । अपने धर्म को छोड़कर निन्दित कर्म करने के लिए तैयार था। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने उसे अनार्य कहा है। और आर्यों के गुण अपनाने के लिए ही उसे पूरे गीता का उपदेश दिया है। श्री कृष्ण आर्य थे - अर्जुन आर्य था। जब अर्जुन आर्य के कर्तव्य कर्म को छोड़कर उसके विपरीत कर्मों को अपनाने लगा तो श्री कृष्ण ने अर्जुन को धिक्कारा और आर्य अर्थात श्रेष्ठ बने रहने के लिए उपदेश दिया।

रामायण में भी आर्य शब्द का प्रयोग
 
वाल्मीकि रामायण में आर्य शब्द का अनेक बार प्रयोग हुआ है ।
भगवान राम के गुणों का वर्णन करने के पश्चात वाल्मीकि मुनि से नारद जी कहते हैं -
आर्यः सर्वसमश्चैव सदैव प्रिय दर्शनः ॥ 1/16
वे आर्य एवं सब में समान भाव रखनेवाले हैं । उनका दर्शन सदा ही प्रिय मालूम होता है ।
एक मनुष्य में जितने अच्छे गुण होने चाहिए उन गुणों का वर्णन भगवान श्री राम में करने के पश्चात नारद जी उन्हें आर्य कहते हैं ।

आधुनिक विद्वान आर्य शब्द का प्रयोग इन्हीं अर्थों में करते हैं । भारत के मूल निवासी जितने भी हैं वे आर्य हैं ।
महाकवि मैथिलिशरण गुप्त ने भारत - भारती में लिखा है -
जग जान ले कि न आर्य केवल नाम के ही आर्य हैं ।
वे नाम के अनुरूप ही करते सदा शुभ कार्य हैं ॥

दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या (meaning of arya) में कहा है कि “जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।”
इतने प्रमाणों के बाद भी कुछ लोग इस देश की एकात्मता को तोड़ने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि हम इस प्रकार के कुत्सित प्रयासों में फंसते जा रहे हैं। मैं मात्र इतना कहना चाहता हूं कि इस भारत माता की गोद में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति आर्य अर्थात श्रेष्ठ है क्यों कि उसने इस पतित पावनी भारत भूमि पर जन्म लिया है।

वन्दे भारती


Wednesday 25 November 2015

कुमार जी, उन्हें 'भक्त' मत कहो...


दोस्तों, हम सभी एक नाम से परिचित हैं, एक ऐसा नाम जिसने राजनीति की एक नई परिभाषा दी, जो खुद को चाणक्य कहता है, जो यह मानता है कि देश सर्वोपरि है, जो राष्ट्रवाद की उस परिभाषा का समर्थन करता है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक आधार है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं कवि कम राजनेता कुमार विश्वास की...कल मैं उनका एक कवि सम्मेलन सुन रहा था। उस कवि सम्मेलन में कवि कुमार बहुत गर्व से बोल रहे थे कि मैंने राहुल गांधी को एक नाम दिया था और उसे उस नाम (पप्पू) से अब पूरा देश पुकारता है। उसके आगे उन्होंने एक बात और कही, उन्होंने कहा कि मैंने एक विशेष वर्ग को 'भक्त' नाम दिया और उस संबोधन से पूरा देश आज उस वर्ग को संबोधित करता है। दोस्तों, व्यक्तिगत रूप से मैं उनका प्रशंसक हूं लेकिन मुझे 'भक्त' शब्द से आपत्ति है।

भक्त तो अर्जुन थे जिनके भक्ति भाव के कारण एक पेड़ के तने में भी भगवान शिव प्रतिष्ठित होकर पांडवों के सामने अर्जुन को झुकने नहीं देते। भक्त तो प्रहलाद थे जिनके लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया। भक्त तो सखुबाई थी जिसकी पुकार को सुनकर भगवान ने एक स्त्री का रूप धारण कर लिया। भक्त तो अंबरीश थे जिनके सम्मान की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने ऋषि दुर्वासा के अहंकार को तोड़ते हुए यह प्रमामित किया यदि भक्त सही हो तो भगवान उसकी सहायता अवश्य करते हैं। भक्त तो हनुमान थे जिन्होंने अपनी भक्ति के बल पर समुद्र के अहंकार को तोड़ दिया। और आप आज के इन लालची, घमंडी तथा विवेकहीन   लोगों को भक्त कहते हैं। कुमार जी, यदि यह लोग भक्त नहीं हो सकते क्यों कि भक्ति तो भगवान की की जाती है। जहां तक बात नरेन्द्र मोदी की है तो मैं स्वयं उनका समर्थक हूं, मैंने भी उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए भजपा को वोट दिया था लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यदि वे कुछ गलत करें अथवा किसी विषय पर शांत बैठे रहें तो मैं भी शांत बैठूं अथवा उनका समर्थन करूं। यदि मैं ऐसा करता हूं तो मैं उस ईश्वर का विरोध कर रहा हूं जिसने मुझे विवेक दिया, जिसने मुझे सोचने समझने की शक्ति दी। जहां पर देश की सत्ता अच्छा काम करे वहां पर उसका उत्साहवर्धन करना देश के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है, भले ही उसने उसके पक्ष में मतदान ना किया हो और जहां पर सत्ता गलत करे वहां पर आलोचना करना भी उतना ही बड़ा दायित्व है। सरकार किसी एक पार्टी की नहीं होती अपितु देश के प्रत्येक नागरिक की होती है, जब हम यह मान लेंगे तभी सरकार का समर्थन या आलोचना कर पाएंगे। 
 
मैं संघ का स्वयंसेवक हूं और संघ के संस्थापक डॉ. हेडगावार ने जिस कार्यशैली को अपनाया था वह सनातन का आधार थी। वह व्यक्ति पूजा से कोसों दूर थी। आज के तथाकथित स्वयंसेवक उस सनातन संस्कृति से कोसो दूर जाते हुए क्यों व्यक्ति पूजा को महत्व दे रहे हैं यह समझ पाना मेरे बस से बाहर है। यह वह देश है जहां यदि आप श्री राम के लिए भी यदि अपने राष्ट्र से द्रोह करते हैं तो भी आपको यह संस्कृति माफ नहीं करती। संघ तत्व पूजा में करता है , व्यक्ति पूजा में नहीं। व्यक्ति शाश्वत नहीं , समाज शाश्वत है। इसी विचार के साथ अंधभक्ति छोड़कर यदि राष्ट्र को पुनः विश्वगुरू के पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए कार्य करें तो शायद राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने का उद्देश्य जल्दी पूरा हो जाए।

इसी के साथ वन्दे भारती...




Friday 13 November 2015

आत्मपरीक्षण भाग- 2


आत्मपरीक्षण भाग- 1 से आगे...

दोस्तों, हिंदू कभी आतंकी नहीं हो सकता, हिंदुत्व कट्टर नहीं है, हिंदुत्व वीर है। जो कट्टरता की बात करे वो हिन्दू नहीं है। यह बात मैं उसी आधार पर कह रहा हूँ जिस आधार पर मैं यह कहता हूँ कि आतंकवादी मुसलमान नहीं हो सकता। बिना गीता पढ़े , बिना उसका अनुपालन किए हम स्वयं को कृष्ण के वंशज कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। गीता में स्पष्ट लिखा है कि धर्म युद्ध में निरपेक्षता का कोई स्थान नहीं है। आज आवश्यकता धर्म निरपेक्षता की नहीं धर्म परायणता की है लेकिन धर्म परायण होने के लिए धर्म का मूल चरित्र समझ लें।


धर्म को पूजा पद्धति समझ लिया तो गीता का पूरा सिद्धांत फेल हो जाएगा। आपका दायित्व की आपका धर्म है, मेरा राष्ट्र के प्रति एक पत्रकार के रूप में बिना किसी प्रतिबद्धता के विषय रखना ही धर्म है। माता पिता के प्रति उनके बेटे के रूप में उन्हें अपेक्षानुरूप सुविधाएँ एवं आत्मिक शांति देने का प्रयास करना ही मेरा धर्म है। विद्यार्थी के प्रति एक गुरु के रूप में अपने ज्ञान को बिना किसी लालच और अपेक्षा के विस्तृत करना ही मेरा धर्म है। अपने छोटे भाई के प्रति एक बड़े भाई के रूप में उसे अपने अनुभव के आधार पर सही गलत का रास्ता दिखाना ही मेरा धर्म है। परिस्थिति के अनुरूप धर्म बदल जाता है लेकिन धर्म का मूल चरित्र नहीं बदलता। धर्म की बहुत ही सुंदर व्याख्या मनुस्मृति में की गई है। मनु स्मृति में मनु कहते है:
आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

अर्थात अगर किसी मनुष्य में धार्मिक लक्षण नहीं है और उसकी गतिविधी केवल आहार ग्रहण करने, निंद्रा में,भविष्य के भय में अथवा संतान उत्पत्ति में लिप्त है, वह पशु के समान है क्योंकि धर्म ही मनुष्य और पशु में भेद करता हैं|
इसके आगे मनु धार्मिक शब्द की व्याख्या करते हैं। मनु स्मृति में मनु आगे कहते है कि

धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम ॥


धृति = प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य न छोड़ना , अपने धर्म के निर्वाह के लिए
क्षमा = बिना बदले की भावना लिए किसी को भी क्षमा करने की
दमो =  मन को नियंत्रित करके मन का स्वामी बनना
अस्तेयं = किसी और के द्वारा स्वामित्व वाली वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग नहीं करना, यह चोरी का बहुत व्यापक अर्थ है , यहाँ अगर कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति की वस्तुओं या सेवाओं का उपभोग करने की सोचता भी है तो वह धर्म विरूद्ध आचरण कर रहा हैं
शौचं = विचार, शब्द और कार्य में पवित्रता
इन्द्रियनिग्रहः= इंद्रियों को नियंत्रित कर के स्वतंत्र होना
धी = विवेक जो कि मनुष्य को सही और गलत में अंतर बताता हैं
र्विद्या = भौतिक और अध्यात्मिक ज्ञान
सत्यं = जीवन के हर क्षेत्र में सत्य का पालन करना, यहाँ मनु यह भी कहते है कि सत्य को प्रमाणित करके ही उसे सत्य माना जाए
अक्रोधो = क्रोध का अभाव क्योंकि क्रोध ही आगे हिंसा का कारण होता हैं
यह दस गुण मनुष्य को पशुओं से अलग करते हैं। यदि किसी व्यक्ति में यह गुण नहीं हैं तो वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। इन 10 गुणों का अनुपालन करने वाला व्यक्ति ही धार्मिक कहा जाता है। इस प्रकार के धर्म के प्रति परायणता परम आवश्यक है और मुझे लगता है कि किसी भी पूजा पद्दति को मानने वाला व्यक्ति इन गुणों को सांप्रदायिक या कट्टर नहीं कहेगा।

पढ़ें: हां मैं पत्रकार हूं और राष्ट्रवादी हिंदू भी...
दोस्तों,12 जुलाई 2013 को रायटर्स को दिए गए एक साक्षात्कार में नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि वह हिंदू राष्ट्रवादी हैं। उस दिन के बाद से ही मैंने सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में लिखना शुरू किया। 20 जून 2011 को मैंने फेसबुक पर विश्व गौरव राष्ट्रवादी हिन्दू नाम से अपना एक पेज बनाया था। मेरे लिए हिंदू और राष्ट्रवाद की परिकल्पना पूर्णतः स्पष्ट थी। मैं हिन्दू शब्द को एक राष्ट्रीयता मानकर कर स्वयं को हिन्दू कहता हूं। जहां तक रिलिजन की बात है तो इस शब्द में मेरा विश्वास नहीं है। रिलीजन तो विभेद पैदा करता है और धर्म विभेद समाप्त करने का। मैं धार्मिक हूं और अपेक्षा करता हूं कि यदि धर्म की इस वास्तविक परिकल्पना को तथाकथित नास्तिक ने समझ लिया तो वह स्वयं को धार्मिक ही मानेगा। फिर वह कभी यह नहीं कहेगा कि वह नास्तिक है। हम अपने विषय को स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं इसका एकमात्र कारण है संवाद की कमी। संवाद होते रहना चाहिए, संवाद के बिना यह दुनिया समाप्त हो जाएगी।

पढ़ें: कुछ सवाल जो शायद आपको भी परेशान करते होंगे...

मैं संघ के वर्गों में भी गया हूं, शारीरिक से अधिक बौद्धिक विषयों पर ध्यान दिया। विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया। विद्यार्थियों का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मिली तो विद्यार्थी नवजागृति मंच में प्रदेश प्रवक्ता, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन किया। बाबा जी भाजपा और चाचा जी सपा से जुड़े हैं इस नाते राजनीति को समझने का अवसर मिला। कई करीबी परिचित कांग्रेस और वामपंथी संगठनों से भी जुड़े हैं इस लिए उनको भी समझा। दोस्तों लेकिन इन सभी विचारधाराओं को उसी रूप में स्वीकार नहीं किया जैसी यह प्रदर्शित होती हैं। इनके बारे में पढ़ा, मैंने दीनदयाल जी के साथ मार्क्स और लेनिन को भी पढ़ा। मैनें एक लड़की से प्रेम भी किया, उसके दूर जाने के बाद आज भी शायरियां लिखता हूं लेकिन एक प्रेमी के रूप में मैंने रांझा, महिवाल को आदर्श नहीं माना। मेरे प्रेम के आदर्श श्री राम बने जिन्होंने अपने प्रेम की रक्षा के लिए समुद्र पर भी पुल बना दिया।

पढ़ें: हां, मैं भी एक लड़की से प्रेम करता हूं

दोस्तों, मैं यह नहीं कहता कि आप मेरे विचारों से पूर्णतः सहमत हों लेकिन मैं इतना जरूर चाहता हूं कि अपने विवेक का इस्तेमाल करके विषयों का विश्लेषण अवश्य करें.... विषय मात्र इतना है कि भक्ति ठीक है लेकिन अंधभक्ति उचित नहीं। दोस्तों, बस इतना याद रखना कि अगर इंग्लैंड के पास अतीत की शक्ति है, अगर जापान के पास तकनीक की शक्ति है, अगर चीन के पास श्रम की शक्ति है, अगर अमेरिका के पास डॉलर की शक्ति है तो भारत के पास मात्र परिवार और संस्कार की शक्ति है। हमने अगर अपनी इस शक्ति को खो दिया तो संभव है कि हम अमेरिका, चीन और जापान जैसे बन जाएं लेकिन इतना याद रखना आज से 100 साल के बाद आपकी उस समय की पीढ़ी के बारे में यही कहा जाएगा कि इनका देश बिलकुल चीन,अमेरिका या जापान जैसा है। कोई यह नहीं कहेगा कि इनका देश भारत है। दोस्तों, भारत को अमेरिका, जापान, चीन नहीं बल्कि भारत बनाने के लिए एक जुट हो जाओ...
वन्दे भारती




आत्मविश्लेषण भाग-1


आज पत्रकारिता के क्षेत्र के एक महान व्यक्तित्व से बातचीत हुई। उनकी बातों ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि फेसबुक या ट्विटर पर मैं जो कुछ भी लिखता हूं क्या वह उसे पढ़नें वालों तक उसी रूप में पहुंचता है। उनसे चर्चा के बाद इस विषय पर मैंने अपने कई सोशल मीडिया के मित्रों से बात की। उनमें से जो लम्बे समय से मुझसे जुड़े थे उन्होंने तो वही बातें कहीं जो मैं सोचता हूं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उन बातों को नकारात्मक रूप में ले लेते हैं। मैं क्या हूं? मैं क्या सोचता हूं? मेरे विचारों का आधार क्या है? इन बातों को मुझ से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। मैं जब भी मोदी या भाजपा के खिलाफ लिखता हूँ तो लोग उसे दिखावा करार देते थे, लोग कहते थे कि विश्व गौरव जी आप पत्रकारिता से जुड़ गए इस लिए खुद को निष्पक्ष साबित करने के लिए यह सब लिख रहे हो।

 


यहां तक कह दिया जाता है कि तुम सेक्युलर बन रहे हो। मैं कभी सेक्युलर बनने की कोशिश नहीं करता, बल्कि मेरी कोशिश रहती है कि मैं धर्मपरायण बनूं। पत्रकारिता मेरा धर्म है और उस धर्म को निभाते हुए यदि सत्ता के सिंहासन पर बैधा व्यक्ति कुछ गलत करता है तो मैं उसकी आलोचना करता हूं।
दोस्तों इस देश के अंदर जितनी भी समस्याएं चल रही हैं उन सबका एक मात्र कारण है संवाद की कमी। मैंने पहले भी लिखा है कि डायलॉग बहुत जरुरी है। मेरा मानना यह है कि यदि आप बात ही नहीं करेंगे, संवाद ही नहीं करेंगे तो आपको अपनी वास्तविकता या आपकी कार्यपद्धति के वास्तविक प्रभाव का पता कैसे चलेगा? आप एक ओर कहते हो मदरसों में आतंकवाद पढ़ाया जाता है दूसरी ओर उन्हीं मदरसों से एपीजे अब्दुल कलाम निकलते हैं।

आप कहते हो आरएसएस आतंकवादी संगठन है, उसी संगठन का एक स्वयंसेवक विदेशों में इस देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यदि इन दोनों बातों को कहने वाले लोगों के बीच में संवाद रहा होता तो शायद इस देश को और भी कई कलाम और मोदी मिल जाते। इस दुनिया में मात्र दो पक्ष होते हैं सत्य और असत्य। सत्य की ओर खड़ा व्यक्ति मदरसों से भी निकल सकता है और असत्य की ओर खड़ा होने वाला व्यक्ति अर्थात अपने पूर्वजों के नाम पर राजनीति करने वाला, उनकी कसमें खाने वाला, उन्हें एक मुद्दा बना देने वाला व्यक्ति भी संघ का एक तथाकथित स्वयंसेवक हो सकता है।



पढ़ें: नितिन गडकरी से एक सवाल

मेरे विचार एकदम स्पष्ट हैं कि यदि वास्तव में हम चाहते हैं कि भारत विश्वगुरु के पद पर पुनर्स्थापित हो तो उसके लिए हमें अपने विवेक का उपयोग करना होगा। रावण के राज्य में भी विभीषण को इतनी स्वतंत्रता थी कि वह श्री राम के भजन करते थे। किसी भी पूजा पद्धति पर आघात गलत होगा। बेहतर होगा कि सभी पूजा पद्धतियों से राष्ट्र को सर्वोपरि, मानवता को सर्वोपरि मानने वाले लोग एक ओर और अन्य किसी शक्ति में विश्वास रखने वाले लोग दूसरी ओर रहें। इस संस्कृति ने सभी को समाहित किया है अपितु इस वर्त्तमान भारत में ही हजारों तरह की संस्कृतियाँ आज भी हैं। हमें विविधताओं का देश कहा जाता है। कुछ विविधताओं को और स्वीकार करो और उन सभी में जो उचित और आवश्यक लगे उसे अपनाकर स्वयं को और मजबूत करो। हम सब में बराबर शक्ति है बस आवश्यकता है उसे पहचानने की। अगर अपनी ऊर्जा का दुरप्रयोग कर दिया जो हमारी आने वाली पीढ़ी हमें गालियां देगी। अकेला मोदी कुछ नहीं करेगा, हम सबको एक साथ मिलकर काम करना होगा। प्रत्येक पूजा पद्धति के अच्छे लोगों को काम करना होगा।

अभी एक पोस्ट के कमेंट बॉक्स में दो वर्ग बंटे हुए थे, एक कह रहा था कि हिन्दू एक हुआ है तब मोदी आए दूसरा कह रहा था अगर मुसलमानों ने वोट नहीं दिया होता तो मोदी नहीं आते।
मैंने दोनों पक्षों के लोगों को व्यक्तिगत सन्देश भेजकर पूछा कि क्या आपके मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान या जन धन योजना की 100 प्रतिशत सफलता बिना मुस्लिमों के सहयोग के हो जाएगी और क्या बिना एक भी हिंदू के सहयोग के इस देश के पूरे मुसलमान एक होकर किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकते हैं। दोनों का जवाब ना ही है। आज जब एक होने का समय है तो एक हो जाओ। जब तक एक नहीं होगे तब तक भारत को विश्व गुरु बनाने के बारे में सोचना मात्र छलावा है।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सत्ता के साथ विपक्ष भी पूर्ण रूप से साथ खड़ा हो। दोस्तों, एक बार सोच कर देखो कि अगर प्रधानमंत्री जन धन योजना या स्वच्छ भारत अभियान शुरू करते हैं और सोनिया गांधी,राहुल,मुलायम,लालू नितीश सब यह कह दें कि सभी को अकाउंट खुलवाना है या सफाई करनी है तो इन योजनाओं का पूरा होना कितना आसान हो जाएगा।





विपक्ष का काम विरोध करना नहीं होता, विपक्ष का काम सत्ता पक्ष को भटकने से बचाने का होता है। मात्र 31 प्रतिशत वाला जो कह दे वह सही,इसको आधार मानकर नहीं चलना होगा। 69 प्रतिशत के वर्ग के सहयोग की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी। मैं संघ का स्वयंसेवक हूँ, हालांकि काम की वजह से नियमित शाखा नहीं जा पाता लेकिन 14 वर्ष के स्वस्तरीय सक्रिय कार्य और संघ के वर्गों से यही सीखा है कि सत्य के साथ खड़े रहना है। संघ के वर्ग में एक बार तत्कालीन सरसंघचालक पूजनीय सुदर्शन जी ने कहा था कि यदि कांग्रेस हमारे विचारों का समर्थन करे तो हम उसके साथ हैं। डॉक्टर साहब ने भी कांग्रेस में काम किया था और जब विचार पसंद नहीं आए तो छोड़ दिया। संघ के इस विचार को मानता हूँ कि यदि कोई अच्छा कर रहा है तो उसे अंगीकार करो। मात्र इस लिए आप उसके अच्छे कामों का  विरोध शुरू कर दो क्यों कि वह आपका समर्थक नहीं है। ऐसा करना निश्चय ही गलत होगा।

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दोस्तों, इस देश का सांस्कृतिक आधार श्री राम,कृष्ण और हरिश्चंद्र हैं यदि वास्तव में आप संस्कृति के संरक्षक हो तो उनके समय में एक दूसरे के प्रति जैसा प्रेम और जैसा विश्वास था वैसा पैदा करो। इसे और आसानी से समझिए श्री राम के समय कार नहीं थी तो क्या आप संस्कृति के नाम पर कार नहीं चलाओगे? कार चलाओ लेकिन अपने मन में माता पिता के प्रति श्री राम जैसा आदर रखो। राम को अपने जीवन में उतारो और जिस दिन राम इस देश के नागरिकों के मन में उतर जाएँ उस दिन मंदिर बनाओ और दुनिया के सामने कहो कि देखो हम अपने आदर्शों, अपने पूर्वजों के आदर्शों पर चल रहे हैं। हमने राम को पढ़ा तो लेकिन समझा नहीं। हम कहते रहे कि राम कोई व्यक्ति नहीं एक चरित्र हैं लेकिन कभी इस चरित्र को जीवन में उतरने का प्रयास नहीं किया।

दोस्तों, संवाद की कमी तब महसूस होती है जब इस देश का प्रधानमंत्री यूके जाता है और वहां पर प्रेस वार्ता में एएनआई के पत्रकार को यह सोचकर प्रश्न पूछने के लिए कहता है कि यह मेरे देश का पत्रकार है, यह इस समय मेरे लिए देश की आवाज है और देश के लिए मेरी आवाज, तो यह जो भी पूछेगा देश के हित में पूछेगा लेकिन हमारे पत्रकार साहब मोदी जी के समक्ष असहिष्णुता का मुद्दा उठाते हैं। जिस स्थान पर पूरे विश्व का मीडिया हो वहां पर देश की आतंरिक स्थिति पर देश के प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर देना उन पत्रकार महोदय का कैसा दायित्व है। जितना मोदी ने असहिष्णुता के मुद्दे पर वहां बोला कि मेरे लिए हर एक घटना महत्व रखती है उतनी बात अगर यहाँ बोल देते तो शायद आधी समस्याओं का समाधान हो जाता। पत्रकार का काम देश में और देश के बाहर जनता और सत्ता के बीच सकारात्मक सोच के साथ सेतु का काम करना है। एएनआई के पत्रकार यदि भारत में मोदी जी की एक बाइट लेकर चला देते तो शायद आज तथाकथित 'असहिष्णुता' कोई मुद्दा ही ना होता।

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Sunday 1 November 2015

ऑनलाइन मायाजाल में फंसता भारत


कुछ दिन पहले की बात है, मैं स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक ब्रांच मैनेजर से मिलने के लिए बैंक गया था। बैंक में मेरी मुलाकात मेरे घर के पास रहने वाले 65 वर्षीय रामशंकर पांडेय जी से हुई। मैंने उनसे पूछा कि चाचा जी आप अपने घर से इतनी दूर क्या करने के लिए आए हो? तो उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ पैसा कहीं ट्रान्सफर करना था। इसलिए वह घर से 7 किलोमीटर दूर स्थित इस बैंक में आए थे। उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं रहता था, इसलिए मैंने उनसे कहा कि चाचा जी घर पर चलकर मैं इंटरनेट बैंकिंग चालू कर देता हूं, फिर आपको इतनी परेशानी नहीं होगी। तो वह बोले कि ऐसा मैं क्यूँ करूँ ?

तो मैंने कहा कि अब छोटे छोटे ट्रांसफर के लिए बैंक आने की और घंटों बर्बाद करने की जरूरत नहीं, और आप जब चाहे तब घर बैठे अपनी ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। हर चीज बहुत आसान हो जाएगी। मैं बहुत उत्सुक था उन्हें नेट बैंकिंग की दुनिया के बारे में विस्तार से बताने के लिए। इस पर उन्होंने पूछा अगर मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे घर से बाहर निकलने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी? मुझे बैंक जाने की भी ज़रूरत नहीं?
मैंने उत्सुकतावश कहा, हाँ आपको कही जाने की जरुरत नही पड़ेगी और आपको किराने का सामान भी घर बैठे ही डिलिवरी हो जाएगा और ऐमजॉन, फ्लिपकॉर्ट व स्नैपडील सबकुछ घर पर ही डिलिवरी करते हैं।

उन्होंने इस बात पर जो जवाब मुझे दिया वह वास्तव में एक गंभीर विषय था। मेरे जैसे व्यक्ति ने भी उस पक्ष के बारे में सोचा ही नहीं था।

उन्होंने कहा आज सुबह जब से मैं इस बैंक में आया, मै अपने चार मित्रों से मिला और मैंने उन कर्मचारियों से बातें भी की जो मुझे जानते हैं। मेरे बच्चें दूसरे शहर में नौकरी करते हैं और कभी कभार ही मुझसे मिलने आते जाते हैं, पर आज ये वो लोग हैं जिनका साथ मुझे चाहिए। मैं अपने आप को तैयार कर के बैंक में आना पसंद करता हूं, यहां जो अपनापन मुझे मिलता है उसके लिए ही मैं वक़्त निकालता हूँ।

उन्होंने एक पुरानी घटना के बारे में बताते हुए कहा कि दो साल पहले की बात है मैं बहुत बीमार हो गया था। जिस मोबाइल दुकानदार से मैं रीचार्ज करवाता हूं, वो मुझे देखने आया और मेरे पास बैठ कर मुझसे सहानुभूति जताई और उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार हूँ।
वो आदमी जो हर महीने मेरे घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर ख़ुद से भर आता था, जिसके बदले मैं उसे थोड़े बहुत पैसे दे देता था उस आदमी के लिए कमाई का यही एक जरिया था और उसे खुद को रिटायरमेंट के बाद व्यस्त रखने का तरीका भी।
कुछ दिन पहले मॉर्निंग वॉक करते समय अचानक मेरी पत्नी गिर पड़ी, मेरे किराने वाले दुकानदार की नजर उस पर गई, उसने तुरंत अपनी कार में डाल कर उसको घर पहुँचाया क्यूंकि वो जानता था कि वो कहा रहती हैं।
अगर सारी चीज़ें ऑन लाइन ही हो गई तो मानवता, अपनापन, रिश्ते - नाते सब समाप्त जाएंगे !
मैं हर वस्तु अपने घर पर ही क्यूं मगाऊं ?
मैं अपने आपको सिर्फ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यूं झोंकू ?
मैं उन लोगों को जानना चाहता हूं जिनके साथ मेरा लेन-देन का व्यवहार है, जो कि मेरी निगाहों में सिर्फ दुकानदार नहीं हैं। इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन कायम होता है !
क्या ऐमजॉन, फ्लिपकॉर्ट या स्नैपडील ये रिश्ते-नाते,प्यार, अपनापन भी दे पाएंगे ?

फिर उन्होने बड़े पते की एक बात कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी, आशा हैं आप भी इस पर चिंतन करेंगे....
उन्होने कहा कि ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों में फलता फूलता हैं जहां आबादी कम हैं और लेबर काफी मंहगी है।
अपने भारत जैसे 125 करोड़ की आबादी वाले गरीब एंव मध्यम वर्गीय बहुल देश मे इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता हैं पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे।

देश मे 80% जो व्यापार छोटे छोटे दुकानदार गली मोहल्लों मे कर रहे हैं वे सब बंद हो जाएंगे और बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाएगी। तो अधिकतर व्यापार कुछ गिने चुने लोगों के हाथों मे चला जाएगा। हमारी आदतें खराब और शरीर इतना आलसी हो जाएगा कि बहार जाकर कुछ खरीदने का मन नहीं करेगा। जब ज्यादातर धन्धे और दुकानें ही बंद हो जाएंगी तो रेट कहां से टकराएंगे तब ये ही कंपनिया जो अभी सस्ता माल दे रही है वो ही फिर मनमानी किम्मत हमसे वसूल करेंगी। हमे मजबूर होकर सबकुछ ऑनलाइन ही खरीदना पड़ेगा और ज्यादातर जनता बेकारी की ओर अग्रसर हो जाएगी।

दोस्तों एक बार इस विषय पर सोचिएगा जरूर... मैं यह नहीं कहता कि ऑनलाइन शॉपिंग ना करें लेकिन सब्जियों जैसी चीजें ऑनलाइन खरीदने का मतलब है? इसे समझना बहुत आवश्यक है...

वन्दे भारती

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

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