Saturday 31 October 2015

सोशल मीडिया का सच: एक विश्लेषण


दोस्तों, आज एक अजब दौर आ गया है। व्यक्तिगत बातों से लेकर सामाजिक चिंतन तक सब कुछ सोशल मीडिया पर ही हो रहा है। आज ट्विटर, फेसबुक और वाट्सऐप अपने प्रचंड क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है...

जिसने चार दिन पहले सोशल मीडिया चलाना शुरू किया है उससे लेकर कल तक सड़क पर लाठियां खाने वाला व्यक्ति भी सोशल मीडिया पर ही क्रांति करना चाहता है...
कोई बेडरूम में लेटे-लेटे गौहत्या करने वालों को सबक सिखाने  की बातें कर रहा है तो किसी के इरादे सोफे पर बैठे बैठे महंगाई बेरोजगारी या बांग्लादेशियों को उखाड़ फेंकने के हो रहे हैं। हंसी तो इस बात पर आती है कि सप्ताह में एक दिन नहाने वाले लोग स्वच्छता अभियान की खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं।

अपने बिस्तर से उठकर एक गिलास पानी लेने पर नोबेल पुरस्कार की उम्मीद रखने वाले बता रहे हैं कि मां-बाप की सेवा कैसे करनी चाहिए। इतना ही नहीं जिन्होंने आजतक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वे लोग बता रहे हैं कि भारत रत्न किसे मिलना चाहिए। जिन्हें गली में होने वाले क्रिकेट में इसी शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल कोई भी मारे पर अगर नाली में गई तो निकालना तुझे ही पड़ेगा वे आज कोहली को समझाते पाए जाते कि उसे कैसे खेलना है।

कुछ लोग वास्तव में बधाई के पात्र हैं जिन्होंने देश में महिलाओं की कम जनसंख्या को देखते हुए लड़कियों के नाम से नकली आईडी बनाकर जनसंख्या अनुपात को बराबर कर दिया है। जिन्हें अपने गोत्र का नहीं पता है वे लोग आज हिन्दुत्व के लिए जान देने की बातें कर रहे हैं। जो नौजवान एक बालतोड़ हो जाने पर रो-रो कर पूरे मोहल्ले में
हल्ला मचा देते हैं वे सोशल मीडिया पर देश के लिए सर कटा लेने की बात करते दिखेंगे। आप कितने भी तर्कों के साथ अपना विषय रखें लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो सकारात्मक सोच ही नहीं सकते। आज भाजपा समर्थक अंधभक्त, आप समर्थक उल्लू तथा कांग्रेस समर्थक आतंकवादियों के समर्थक और सोनिया के चमचे करार दिए जाते हैं।

कॉपी पेस्ट करनेवालों के तो कहने ही क्या! किसी की भी पोस्ट चेंप कर एसे व्यवहार करेंगे जैसे साहित्य की गंगा उसके घर से ही बहती है और वो भी 'अवश्य पढ़े ' तथा 'मार्केट में नया है' की सूचना के साथ। टैगियों की तो बात ही निराली है। इन्हें ऐसा लगता है कि जब तक ये गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब तक लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि सुबह हो चुकी है । जिनकी वजह से शादियों में गुलाबजामुन वाले स्टॉल पर एक आदमी खड़ा रखना जरूरी होता है वे लोग आम बजट पर टिप्पणी करते हुए पाए जाते हैं। कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुए दस किलोमीटर तक भागने वाले पाकिस्तान को धमका रहे होते हैं कि "अब भी वक्त है सुधर जाओ"।

दोस्तों, मैं यह नहीं कहता कि सोशल मीडिया पर लिखना नहीं चाहिए या लोगों को जागरुक नहीं करना चाहिए लेकिन मैं इतना जरूर चाहता हूं ये बातें सिर्फ लाइक और कमेंट पाने  तक ही सीमित ना रह जाएं। दोस्तों मैं 2010 से फेसबुक चला रहा हूं। उस समय मेरी एक एक पोस्ट पर 500-700 लाइक और 100-150 शेयर आते थे। लेकिन दोस्तों मैं उनमें से नहीं था कि सिर्फ फेसबुक तक ही सीमित रहता। दोस्तों मैं बस यह चाहता हूं कि कितने भी लाइक कमेंट बटोर लो लेकिन जब इस देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए 5 अप्रैल 2011 की तरह कोई 75 साल का युवा आंदोलनरत हो तो भले ही उसके साथ खड़े होने के लिए आप जंतर मंतर ना पहुंच पाना लेकिन दोस्तों मेरी तरह जहां भी रहना वहीं पर आंदोलन करते हुए लाठियां खाने से कभी पीछे मत हटना। दोस्तों, 16 दिसंबर 2012 जैसी घटना के बाद अगर दामिनी जैसी देश की कोई बेटी पुकारे तो अपने सारे लाइक कमेंट्स को छोड़ कर सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोगों से उस बेटी के साथ हुई दुष्टता का हिसाब मांगने पहुंच जाना।

वंदे भारती

Friday 30 October 2015

यही तो है घोर कलियुग...




दोस्तों अभी कुछ दिन पहले विजयादशमी का पर्व बीता। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया था। रावण दहन का अर्थ है कि हम हमारे अंदर की बुराइयों का अंत कर भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चलने की कोशिश करें लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ और ही दिख रहा है मेरे पास कई संदेश आए जिसमें यह जताने का प्रयास किया गया कि अगर हम आज रावण भी बन जाएं तो बेहतर हैं। मेरे पास एक संदेश आया कि रावण में अहंकार लेकिन पश्चाताप भी था, रावण में वासना के साथ संयम भी था, रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी साथ ही बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था। इस प्रकार से रावण की महिमा मंडित किया जाना मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैंने सोचा कि इस विषय पर कुछ लिखा जाए।

मेरे एक मित्र ने संदेश भेजा कि सीता जीवित मिली यह निश्चित रूप से श्रीराम की ताकत थी, परन्तु वह पवित्र मिली यह रावण की मर्यादा थी। क्या शानदार विश्लेषण था उनका। किसी ने कहा है कि अधूरा ज्ञान विनाश की जड़ होता है। बिना अध्ययन के इस प्रकार के विषयों को समाज में फैलाना एक राष्ट्रीय अपराध है। रावण ने सीता को बलपूर्वक इसलिए हाथ नहीं लगाया क्योंकि उसे कुबेर के पुत्र नलकुबेर ने श्राप दिया था कि यदि रावण ने किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध अनैतिक कामेच्छा से छुआ या अपने महल में रखा तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। रावण ने कुबेर की पत्नी के साथ बलात्कार किया था । इसी डर के कारण रावण ने ना तो सीता को कभी बलपूर्वक छूने का प्रयास किया और न ही अपने महल में रखा। इतना ही नहीं रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपने वाक्जाल में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

कुछ लोग तो रावण जैसा भाई बनने तक की सलाह दे देते हैं। उनका मानना है कि बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का हरण किया और अपनी बहन के लिए अपने पूरे कुल की कुर्बानी दे दी। जबकि यह सत्य नहीं है। रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का अपहरण नहीं किया बल्कि इसलिए किया क्योंकि वह कामांध था। उसने अपने पूरे जीवनकाल में 70 से भी ज्यादा स्त्रियों के साथ बलात्कार किया था जिनमें कुबेर की पत्नी आख़िरी थी। जब शूर्पणखा ने रावण के सामने सीता की सुंदरता का वर्णन किया, तो उसके मन में सीता को प्राप्त करने की लालसा जाग उठी। इसलिए रावण ने सीता का हरण किया। और रावण की बहन शूर्पणखा ने यूं ही रावण के समक्ष सीता के विषय में नहीं बताया था अपितु इसके पीछे भी एक रहस्य था। शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।  वह कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का भी वध कर दिया। इस कारण से श्री राम और लक्ष्मण की वीरता को देखते हुए उसने रावण से अपना बदला लेने के लिए यह खेल खेला।

कुछ लोगों का मानना है कि रावण अजेय योद्धा था। वह अपने जीवन में कभी किसी से नहीं हारा। जबकि ये बात पूरी तरह से गलत है। रावण राम के अलावा पाताल लोक के राजा बलि, महिष्मति के राजा कार्तवीर्य अर्जुन, वानरराज बालि और भगवान शिव से पराजित हो चुका था। वह कोई शिव भक्त नहीं था बल्कि उसे पता था कि जिनसे जिनसे वह पराजित हुआ है उनमें एकमात्र शिव ही ऐसे हैं जो अजर अमर हैं इस नाते वह शिव जी का सम्मान करता था। इस सम्मान को यदि डर का नाम दिया जाए तो भी गलत नहीं होगा। वह जब बैजनाथ का शिवलिंग लेकर जा रहा था, तब उसे लघुशंका आई, उसने ब्राह्मण के रुप में आए विष्णु को शिवलिंग थमा दिया और खुद निवृत्त होने चला गया। विष्णु ने शिवलिंग वहीं जमीन पर रख दिया। जब रावण आया और उसने शिवलिंग को उठाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं हिल सका तो रावण ने गुस्से में शिवलिंग पर मुठ्ठी से प्रहार कर दिया, जिससे शिवलिंग आधे से ज्यादा जमीन में धंस गया। मैं मानता हूं कि रावण विद्वान था, लेकिन उसने अपने ज्ञान को कभी व्यवहारिक जीवन में नहीं उतारा। लाखों ऋषियों का वध किया, कई यज्ञों का ध्वंस किया और महिलाओं का अपहरण करके उनका बलात्कार किया। रावण ने रंभा नामक अप्सरा से भी बलात्कार किया था। रावण ने वेदवती नाम की एक ब्राह्मणी के रूप से प्रभावित होकर उनसे भी बलात्कार करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने किसी प्रकार से स्वयं को बचाकर आत्मदाह कर लिया। हो सकता है कि आप कहें कि यदि रावण शिव भक्त नहीं था तो शिव जी ने रावण को सोने की लंका क्यों दी लेकिन दोस्तों यह सत्य नहीं है। सत्य यह है कि लंका का निर्माण देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। उसमें सबसे पहले राक्षस ही निवास करते थे। भगवान विष्णु के भय से जब राक्षस पाताल चले तो लंका सूनी हो गई। रावण के बड़े भाई (सौतेले) ने अपनी तपस्या से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने उसे लोकपाल बना दिया और सोने की लंका में निवास करने के लिए कहा। जब रावण विश्व विजय पर निकला तो उसने कुबेर से सोने की लंका व पुष्पक विमान भी छीन लिया और उसकी पत्नी से बलात्कार किया। फिर रावण ने वहां राक्षसों का राज्य स्थापित किया।
मित्रों इस प्रकार की बातें वे लोग करते हैं जिन्होंने कभी रामायण पढ़ने की कोशिश तक नहीं की। उनकी सम्पूर्ण रामायण मात्र स्व. रामानन्द सागर के धारावाहिक और चचा की विचारधारा वाली पाठ्यपुस्तकों तक ही सीमित है और जो थोड़ी बहुत रही सही कसर थी वह वामपंथी तथाकथित इतिहासकारों ने पूरी कर दी। इसी का परिणाम है कि स्थिति ऐसी बन गई कि लोगों को रावण बनने का प्रवचन दिया जाने लगा, नमस्ते के स्थान पर कई लोग जय लंकेश कहा जाने लगा। हम कहते हैं कि राम एक चरित्र हैं तो उसी प्रकार रावण एक दुष्चरित्र है इसलिए लाखों साल से हिन्दू रावण और बुराई को पर्यायवाची मानते आये हैं किन्तु आज कुछ बुद्धि भ्रष्ट लोगों को प्रभु श्रीराम के निर्मल चरित्र के स्थान पर रावण अधिक प्रेरणास्पद लगता है। आपसे निवेदन है कि इस दुष्चक्र में आप न फंसें। राम बनें, राम का जन्म रावण यानी बुराई को अच्छा ठहराने के लिए नहीं अपितु रावण का संहार करने के लिए हुआ था।

वन्दे भारती


Friday 23 October 2015

कलराज जी, 'अच्छे दिन' जाने वाले हैं...



इस देश की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। आज संवेदनहीनता और असहिष्णुता की पराकाष्ठा को पार करते हुए कांग्रेस के एक नेता जयराम रमेश ने गोमांस के मुद्दे पर कहा कि किसी को लोगों पर यह नहीं थोपना चाहिए कि वे क्या खाएं और क्या न खाएं। रमेश ने कहा, 'आप इस पर नियम-कायदे नहीं बना सकते। आप यह नहीं कह सकते कि आप गोमांस नहीं खा सकते। कल आप कहेंगे कि 'दाल मखनी' नहीं खा सकते, आप 'मटर पनीर' नहीं खा सकते। क्या बकवास है यह सब? भारत किस तरफ जा रहा है?'

ऐसे हैं हमारे देश के नेता। जयराम रमेश वो नेता हैं जिनको इस देश की जनता ने केन्द्रीय मंत्री स्वीकार किया। रमेश जी भारत की चिंता मुझे भी है। मैं भी दिनरात यही सोचता रहता हूं कि भारत किस ओर जा रहा है। इस देश के लोगों को एकजुट करने के लिए जैसे ही कोई खड़ा होता है आप जैसे लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत की अस्मिता का चीरहरण करने लगते हैं। अरे रमेश जी आप कहते हैं कि बीफ खाना एक निजी मुद्दा है। बस आप इतना बता दो कि आपकी मां के साथ कोई दुर्व्यवहार करे, दुराचार करे तो क्या यह दुराचार करने वाले का निजी मुद्दा है? क्या आप दुराचार करने वाले व्यक्ति को भी अपने इसी सिद्धान्त के आधार पर स्वतंत्रता देंगे। नहीं दे सकते, क्यों कि उसे झेलने वाली आपकी मां है। और नेताजी यदि आपने उस दुराचारी को स्वतंत्रता दे भी दी तो भी इस देश के युवा आपकी मां के लिए खड़े रहेंगे क्यों कि यह वह देश है जिसमें मां को ईश्वर से भी ऊपर माना गया है।

स्वतंत्रता और स्वच्छन्दता के अंतर को समझिए। मैं आपको याद दिला दूं कि इस देश का आधार इस देश की संस्कृति है और इस देश की संस्कृति में गाय को पूज्यनीय माना गया है। इसे हिंदू मुसलमान से मत जोड़िए। मेरा यह क्रोध मात्र कांग्रेस के जयराम रमेश जी से ही संबन्धित नहीं है अपितु आज इस देश की तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय नेता ने भी बहुत सुन्दर बात कही, केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ने कहा कि "यदि लोग बीफ खाते हैं तो आप उन्हें कैसे रोक सकते हैं?"
सही कहा कलराज जी इस देश में जब आप जैसे दोगले लोगों को हम मंत्री बनने से नहीं रोक पाए तो बीफ खाने वालों को कैसे रोकेंगे। मुझे आपसे ज्यादा गुस्सा तो स्वयं पर आ रहा है। जब भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले लखनऊ में भाजपा का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर था, उस समय आपको लखनऊ पूर्वी विधानसभा प्रत्याशी बनाया गया था और आपके चुनाव प्रचार के लिए आपकी विधानसभा में रहने वाले अपने मित्र नितिन मित्तल के कहने पर आपके चुनाव प्रचार में मैं भी गया था। लगातार 16 दिन तक अपने 18 मित्रों की टीम के साथ मैं उस विधानसभा में जाकर बिना कुछखाए पिए आपका प्रचार करता था। नितिन हमेशा मुझसे यही कहता था कि विश्व गौरव कलराज जी, अटल जी के समकक्ष हैं, यदि कलराज जी हार गए तो अटल जी हार जाएंगे। काश उस समय आपका यह घिनौना चेहरा मेरे सामने आ गया होता तो मैं आपके विरोध में प्रचार करता।

आपके चुनाव में तन, मन और धन से लगने वाले उस नितिन ने गौ संरक्षण हेतु काऊ मिल्क पार्टी जैसा देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर दिया और आप उसको शाबासी देने के स्थान पर अप्रत्यक्ष रुप से उसके विरोध में खड़े हो गए। किसी ने सच ही कहा है कि सत्ता बड़े बड़े मठाधीशों को मानसिक रूप से विकलांग बना देती है। ऐसे विषयों पर मीडिया को तो मसाला  मिल गया लेकिन उस विचार का क्या जो देश की एकता, अखंडता और एकात्मता का संरक्षण करेगा।

आप दोनों बड़े नेता हैं, लाखों फॉलोवर्स हैं आपके लेकिन इतिहास आपको माफ नहीं करेगा....रही बात मेरी तो मुझे इस बात की चिंता नहीं कि देश ऐसे चल रहा है....मुझे चिंता इस बात की है कि कहीं देश यूं ही ना चलता रहे....

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Thursday 22 October 2015

संघ क्यों है और क्यों रहेगा?

दोस्तों, आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 90 साल का हो चुका है। 1925 में दशहरे के दिन, उस दिन की सार्थकता को प्रमाणित करते हुए डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। सांप्रदायिक,हिंदूवादी, फासीवादी और इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते हुए भी संघ अपने उद्देश्य से नहीं भटका। मैं इस लेख को इस लिए नहीं लिख रहा क्यों कि मैं एक स्वयंसेवक हूं अपितु अपने पत्रकारिता धर्म को निभाते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ देश के सामने उस संगठन के बारे में लिख रहा हूं जिसकी तुलना आईएसआईएस से करके आतंकवादी करार दिया जाता है।

दोस्तों, स्वतंत्रता के बाद संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नजर रखी। यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार। उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे। विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे।

1962 में हुए युद्ध के समय सेना की मदद के लिए देशभर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा। स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी। संघ ने सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता भी की। जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा। परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए। निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा- 'यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया।'

आज जिस कश्मीर के लिए हम पाकिस्तान से वार्ता कर रहे हैं। वह कश्मीर कभी यह कहता था कि हम भारत के साथ नहीं आएंगे। कश्मीर के महाराजा हरिसिंह विलय का फैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के भेस में पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार तो- हम क्या करें वाली मुद्रा में- मुंह बिचकाए बैठी थी। उस समय सरदार पटेल और संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर की इच्छा शक्ति के कारण कश्मीर का भारत में विलय हुआ।

1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था। शास्त्रीजी ने कानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके। घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था।

इतना ही नहीं दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी। 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई। संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया। संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे। गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला। हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा
आज़ाद हुआ।

भारत का काला अध्याय कहे जाने वाले 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताजा है। सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन चलाना शुरू किया। आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं, नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला। जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही मदद से चल सकी थीं।

1955 में बना भारतीय मजदूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मजदूर संगठन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था। कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मजदूर संघ ने ही शुरू किया था। आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मजदूर संगठन है। जहां बड़ी संख्या में जमींदार थे उस राजस्थान में खुद सीपीएम को यह कहना पड़ा था कि भैरों सिंह शेखावत राजस्थान में प्रगतिशील शक्तियों के नेता हैं। संघ के स्वयंसेवक शेखावत बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी बने।

भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच जैसे संगठनों की स्थापना संघ के स्वयंसेवकों ने संघ से प्रेरित होकर ही की। विद्या भारती आज 20 हजार से ज्यादा स्कूल चलाता है, लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाएं चलाता है। केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त इन सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और 1 लाख से अधिक शिक्षक पढ़ाते हैं। संख्या बल से भी बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैं। अकेला सेवा भारती देश भर के दूरदराज़ के और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाख से ज्यादा काम कर रहा है। लगभग 35 हजार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं। उदाहरण के तौर पर सेवा भारती ने जम्मू और कश्मीर से आतंकवाद से अनाथ हुए 57 बच्चों को गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू बच्चे हैं।

1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक- संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है। भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में संघ के स्वयंसेवकों ने संघ की विचारधारा का मूर्त रूप प्रस्तुत किया।

दोस्तों संघ एक संगठन है, जिसमें विभिन्न प्रकार के लोग जुड़े हैं। संभव है कि संघ के किसी स्वयंसेवक की व्यक्तिगत विचारधारा से आपकी सहमति ना हो लेकिन संघ की मूल विचारधारा से असहमति का विषय किसी के मन में नहीं आ सकता। सैकड़ों आरोपों के बावजूद यदि संघ आज खड़ा है तो उसका एकमात्र कारण है कि संघ ने कभी बांटने की कोशिश नहीं की। राष्ट्रीय एकात्मता के आधारभूत स्तंभ के रूप में संघ आज भी खड़ा है। मित्रों, जब तक संघ का मूल विचार संघ के स्वयंसेवकों के मन में स्थापित रहेगा तब तक संघ इस धरती पर रहेगा और जिस दिन संघ के स्वयंसेवक ने राजनीति में 'अनावश्यक' हस्तक्षेप शुरू कर दिया उस दिन संघ समाप्त हो जाएगा।

वंदे भारती

Wednesday 21 October 2015

ऐसे शरियत की भारत को जरूरत नहीं

मित्रों, अभी अभी एक खबर देखी कि मुंबई के वरली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक हाजी अली दरगाह में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। इस खबर को पड़कर मेरी इच्छा हुई कि इस दरगाह के विषय में जाना जाए, लेकिन कुछ खास जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी लेकिन वर्तमान समय में जो मामला चल रहा है उसके विषय में पूर्ण जानकारी अवश्य मिल गई।

सोमवार को हाजी अली दरगाह के ट्रस्टियों ने मीटिंग में फैसला लेकर मुंबई हाईकोर्ट को एक पत्र के जरिए यह जानकारी दी है कि वे दरगाह में किसी महिला को घुसने नहीं देंगे। इससे पहले कुछ महिलाओं तथा महिला संगठनों ने इस बात की याचिका दाखिल की थी कि इस दरगाह में महिलाओं के प्रतिबंधित प्रवेश को तत्काल बहाल किया जाए। हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली महिलाओं के वकील राजू मोरे ने अदालत में दलील दी थी कि अन्य दरगाहों या धार्मिक स्थलों पर महिलाओं की एंट्री बैन नहीं है फिर हाजी अली दरगाह में पाबंदी क्यों है।

जस्टिस वी.एम.कानडे की खंडपीठ को हाजी अली दरगाह के कमिटी मेंबर्स ने जो पत्र दिया है। उसमें कहा गया है कि मुस्लिम संत के मजार के करीब महिलाओं का प्रवेश महापाप है। दरगाह कमिटी ने अदालत को बताया कि उसने इस संबंध में निर्णय लेने का जो आदेश दिया था उसके तहत दरगाह के ट्रस्टियों की दोबारा मीटिंग बुलाई गई थी। जिसमें एक बार फिर से सर्वसम्मति से महिलाओं को दरगाह के गर्भगृह में प्रवेश नहीं देने का निर्णय लिया गया है। दरगाह के ट्रस्ट ने अपनी बात के समर्थन में हाईकोर्ट के समक्ष एक दलील और पेश की है। जिसमें कहा गया है कि संविधान के कानून और विशेषकर अनुच्छेद 26 के तहत ट्रस्ट को अपने धार्मिक मामलों को अपने मूलभूत अधिकारों के तहत चलाने की आजादी मिली हुई है। और इसमें किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप अनुचित है।
मित्रों , किस देश में जी रहे हैं हम और कैसे लोगों के साथ। जिस देश में अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा होती है, जिस देश में नारी को पूज्या माना गया है, जिस देश में ऐसे मंदिर हैं जहां बिना पत्नी के आप ईश्वर के दर्शन नहीं कर सकते, जिस देश में बिना विवाह के मोक्ष की कल्पना नहीं की जाती है, उस देश के अन्दर आज भी ऐसे लोग हैं जो नारी को सजदा तक नहीं करने देते।

मेरे इस विषय को हिंदू- मुसलमान से जोड़कर ना पढ़ें। मैं मानता हूं कि हिंदुओं में भी कुछ लोग नारियों को पुरुष के बराबर नहीं समझते। वे लोग लड़कियों को पढ़ने से या अन्य कई कामों से रोकते हैं लेकिन हमें यह विचार करना होगा कि क्या यह हमारी मूल संस्कृति थी। इस देश के अन्दर गार्गी जैसी विद्युषी हुई है जो याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देती है। यह देश रानी लक्ष्मीबाई, रानी चेन्नमा, बेगम हजरत महल का देश है, यहां पर ऐसे लोगों का कोई स्थान नहीं जो लिंग भेद को बढ़ावा दे रहे हैं।

कल शाम की ही बात है कि एक चैनल की डीबेट में एक मोहतरमा शरियत कानून की वकालत कर रही थीं। मुझे समझ नहीं आता कि ऐसे लोगों को हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर क्यों बरदाश्त कर रहे हैं। क्यों उन्हें यह मौका दिया जाता है कि वे भेदभाव करने वाले कानून को लागू करके देश तोड़ने वालों का समर्थन करें।
यदि मेरे इस विषय का किसी के पास कोई जवाब है तो कृपया बताएं...
वन्दे भारती

Thursday 15 October 2015

अगर वह हार गया तो समझ लेना....

मित्रों हमारा अभियान आगे बढ़ रहा है,कुछ हमारा साथ देने के लिए आगे आ रहे हैं तो कुछ हमें अपने साथ लेना चाहते हैं। आज शाम मेरे पास एक राजनीतिक संगठन से फ़ोन आया। बात कर रहे व्यक्ति ने मुझसे कहा कि विश्व गौरव जी आप नितिन जी से बात करके इस अभियान को हमारे बैनर पर चलाइए,हमारे पास बहुत से कार्यकर्ता हैं, मीडिया का सपोर्ट भी मिलेगा। आप सब लोग बस हमारे साथ आ जाइए। मैं समझ गया कि अब हमारे उद्देश्य को पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता क्यों कि जब झूठे वादे और कसमों के आधार पर सत्ता के सिंघासन पर बैठने वाली राजनीतिक पार्टियां आपका सहयोग मांगने लगें तो समझ जाइए कि आपकी मेहनत रंग ला रही है।मैंने उन नेता जी को तो मना कर दिया लेकिन सोचा कि अपने भाई और #मिल्कपार्टी अभियान के सूत्रधार श्री नितिन मित्तल जी के लिए कुछ लिखूं। आज का ये ब्लॉग उस दिन के लिए लिख रहा हूँ जब हमारा ये आंदोलन सफल हो जाएगा। बहुत से लालच दिए जाएंगे, बहुत से लोग इस आंदोलन के कर्णधारों से जुड़कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहेंगे लेकिन बस इतना निवेदन है कि उनके जाल में मत फंसना...

सबसे पहले नितिन को आगाह करते हुए कुछ पक्तियां आप सभी को समर्पित करता हूँ।

एक बार फिर जीवन का रथ मुड़ा राष्ट्रहित पथ पर
राजनीति ने डोरे डाले फिर सेवा के व्रत पर
लक्ष्मण रेखा बड़ी क्षीण है, बड़ी क्रूर है काई
कदम कदम पर फिसलाएगी रेशम सी चिकनाई
काजल के पथ पर चढ़ना और चढ़ कर पार उतरना
बहुत कठिन है निष्कलंक रहकर ये सब करना।


मित्रों, बड़ी लड़ाई है, थोड़ी मुश्किल है लेकिन आसान काम करना होता तो ईश्वर इस काम के लिए नितिन जैसे संघर्षशील व्यक्ति को नहीं चुनता। छोटा काम तो कोई भी कर सकता है। अगर किसी एक जगह पर मिल्क पार्टी करनी होती तो लखनऊ या दिल्ली जैसे स्थानों पर हजारों विद्यार्थी तो नितिन के एक इशारे पर वैसे ही खड़े हो जाते और शानदार पार्टी करा देते। ये आंदोलन एक निर्णायक आंदोलन सिद्ध होगा। मैं खुद को इस लायक नहीं समझता कि नितिन या मुस्लिम गौ भक्त भाई दानिश आजाद के बराबर खुद को कह सकूँ। लेकिन मैं बस इतना जानता हूँ कि कभी प्रेम पर, कभी राजनीति पर,कभी सिद्धांतों पर, कभी संस्कृति,कभी शायरियां लिखने वाली मेरी कलम अब अगले कुछ समय में सिर्फ गाय माता के लिए लिखेगी।
अपने दोस्तों में, परिवार में, ऑफिस में मुझे सिर्फ इस आंदोलन की चर्चा करनी है वो सिर्फ इस लिए कि गौ हत्या बंद हो। अलगे कुछ महीने के बाद अगर देश की संसद गौ हत्या निषेध क़ानून लागू करे, अगर 2017 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में कोई राजनीतिक पार्टी अपने घोषणा पत्र में यह लिखे कि हम गौ संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए कानून लाएंगे तो समझ लेना कि देश जीत गया, मैं यानी विश्व गौरव जीत गया।

मित्रों, आज वो समय चल रहा है जब इस देश के लोग ये बात मान चुके हैं कि इस देश में गौ हत्या निषेध जैसा कोई कानून नहीं आ सकता, यह वो समय है जब इस देश का युवा गौ हत्या जैसे विषयों पर बात करने को साम्प्रदायिकता समझता है। ऐसे समय में इस आंदोलन को मिल रहा समर्थन व्यक्तिगत रूप से मुझे शक्ति दे रहा है।

मैं पेशे से एक समाचार संस्थान में पत्रकार हूं। दिन के 9 घंटे मैं ऑफिस को देता हूं फिर कुछ समय अन्य व्यक्तिगत कामों को देकर सो जाता हूं। आज से 20 दिन पहले मेरे पूज्य गुरुदेव एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण भगत जी के निर्देशानुसार एक पुस्तक लिखनी  शुरू की थी लेकिन गौ रक्षा के इस आंदोलन के मद्देनजर अपने सभी कामों को छोड़कर सिर्फ यही काम कर रहा हूं। ऑफिस में 9 घंटे देने के बाद पिछले 6 दिनों से सिर्फ 4-5 घंटे की नींद ले रहा हूं ताकि मेरी मां यह न कहे कि मेरा बेटा इतना कमजोर है कि अपनी जीवनदायिनी के लिए कुछ समय भी नहीं दे सकता।

दोस्तों, इस विषय पर नितिन से मेरी बात हुई तो मैंने उससे कहा कि क्या देश आपका साथ देगा? तो उसने कहा कि पूरा देश मेरे लिए एकजुट हो या ना हो लेकिन अपनी मां के लिए कौन बेटा नहीं खड़ा होगा? मैंने बस इतना ही कहा कि अगर अब देश नहीं खड़ा हुआ तो मैं दुबारा सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद को आधार मानकर कुछ नहीं लिखूंगा और ना ही अपने छोटे भाइयों से ऐसे विषय पर लिखने के लिए कहूंगा। किसी मंच से राष्ट्रवाद की बातें नहीं करूंगा। मैं यह मान लूंगा कि जिस देश के बेटे अपनी मां के लिए एकजुट नहीं हो सकते, वो मेरे जैसे एक छोटे से कलमकार के लिखने से क्या बदलेंगे।

दोस्तों, दिन में रोटी पर, बोटी पर और एक कुतिया पर मर मिटने वाले कुत्ते भी गली में किसी चोर के आ जाने पर एकजुट हो जाते हैं हमारे यहां तो हमारी मां को बेचने के लिए, हमारी मां को काटने के लिए लोग तैयार खड़े हैं। एक अंतिम बात- आज इस देश का 5 फुट 7 इंच का एक नौजवान गौ माता के लिए अपना सब कुछ छोड़कर खड़ा हुआ है। अगर आज आपने उसका साथ नहीं दिया तो आज मैं विश्व गौरव पूरी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि अगले 50 सालों तक कोई नितिन मित्तल हमारी गौ मां के लिए संघर्ष करने के लिए नहीं खड़ा होगा। उसको हारने मत देना दोस्तों..... अपनी मां को हारने मत देना....

सकारात्मक सहयोग की अपेक्षा के साथ...
विश्व गौरव

Tuesday 13 October 2015

क्या आप नहीं देंगे इस आंदोलन का साथ


मित्रों आजकल गौहत्या, बीफ पार्टी, पोर्क पार्टी त्यादि विषयों की चर्चाएं जोरों पर हैं। जब इस देश में जब बीफ पार्टी होती है तो कुछ लोग पोर्क पार्टी करने लगते हैं। वे सब यह भूल जाते हैं कि हमारी संस्कृति यह नहीं कहती कि यदि कोई गलत करे तो उसका विरोध करने के लिए हम गलत तरीका अपनाएं। गाय किसी एक धर्म विशेष की है ऐसा नहीं है, गाय का दूध तो प्रत्येक मनुष्य के लिए लाभकारी होता है। ऐसे में गाय को लेकर हिंदू- मुस्लिम करना गलत होगा। हमने तय किया है कि हम सकारात्मकता के साथ इस विषय को उठाएंगे और इसकी शुरुआत लखनऊ से होगी। हम देश के विभिन्न हिस्सों में काऊ मिल्क पार्टी का आयोजन करेंगे. उन पार्टीज में हम गाय के दूध तथा गाय से प्राप्त अन्य उत्पादों के लाभ समाज को बताएंगे। देश में हुए पिछले कुछ आंदोलनों से एक बात तय हो गई है कि आप चुनिंदा लोग कुछ भी कर सकते हैं। हम अपने इस प्रयास में सोशल मीडिया का सहारा लेंगे और आप देखना आपके छोटे से प्रयास से कुछ बड़ा होगा। मैं वादा तो नहीं करता लेकिन इतना जरूर कहता हूं कि अगर हम सब एक होकर कोई लक्ष्य निर्धारित करेंगे तो उस लक्ष्य तक पहुंचने में हमें कोई भी बुरी ताकत नहीं रोक सकती। मुझे आप सब पर विश्वास है और मुझे यह भी पता है कि हमारा यह आंदोलन अवश्य सफल होगा। इस आंदोलन के सफल होने के बाद हम गर्व से कह सकेंगे कि किसी विषय का विरोध सकारात्मक तरीके से भी किया जा सकता है।

मित्रों मैं बहुत ही स्वार्थी किस्म का व्यक्ति हूं। मैं इस आंदोलन से सिर्फ इस लिए जुड़ा हूं कि आज से 20 साल के बाद मेरी बहन का बेटा जब मुझसे पूछे कि मामा जी आज से 20 साल पहले गाय माता को बचाने के लिए आंदोलन चल रहा था तब आप कहां थे? तो मैं उससे नजर मिला कर यह कह सकूं कि बेटा मैं उन गौ भक्तों के साथ मिलकर सोशल मीडिया पर एक क्रांति लाने के लिए प्रयास कर रहा था। मैं उसे बता सकूंगा कि बेटा इस देश के युवाओं ने मेरे साथ, मेरे कंधे से कंधा मिलाकर इस क्रांति में सहयोग किया था।

दोस्तों, आज गौ माता की रक्षा के लिए इस देश के कुछ युवा एकजुट होकर मिल्क पार्टी करना चाहते हैं। उनमें से कई लोगों से मेरी बात हुई, वो सभी लोग बस एक ही बात कह रहे थे कि विश्व गौरव भाई आप देखना इस देश के युवा हमारा साथ देंगे, इस देश के युवा गाय माता से बहुत प्रेम करते हैं लेकिन राजनीति उन्हें एक नहीं होने दे रही। उन्होंने कहा कि इस देश को राजनेता हिन्दू- मुस्लिम में बांट कर देश तोड़ना चाहते हैं लेकिन इस देश का युवा ऐसा नहीं होने देंगे। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि भाई आप देखना 17 अक्टूबर को जब लखनऊ से इस आंदोलन की शुरुआत करेंगे, उस दिन फेसबुक और ट्विटर पर #milkparty टॉप ट्रेंड में चल रहा होगा। मैं नहीं जानता कि ऐसा होगा या नहीं लेकिन मैं यह बात पूरे विश्वास से अवश्य कह सकता हूं कि इस आंदोलन के साथ ईश्वर है और जिस आंदोलन के साथ ईश्वर हो उस आंदोलन को सफल होने से कौन रोक सकता है। मैं आज बस आपसे इतना ही निवेदन करना चाहता हूं कि इन युवाओं का साथ जरूर देना, अगर आज आप इनके साथ नहीं खड़े हुए तो अगले 200 सालों तक कोई युवा गौ संरक्षण के लिए आगे नहीं आएगा।

इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लखनऊ के नितिन मित्तल अपना सब कुछ छोड़कर गौ माता की सेवा के लिए लगने वाले हैं। मैं इस ऊर्जावान युवा को हारते हुए नहीं देख सकता। ये आंदोलन नितिन का व्यक्तिगत आंदोलन नहीं है यह आंदोलन इस देश के प्रत्येक नागरिक का आदोलन है। यह आंदोलन है इस देश की अस्मिता, एकात्मता एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए। इन लोगों को हारने मत देना क्यों कि अगर ये लोग हार गए तो एक बार फिर यह प्रमाणित हो जाएगा कि देश ने राजनीति की गंदी सोच को देश ने स्वीकार कर लिया है। अगर ये लोग हार गए तो तुष्टीकरण की जीत हो जाएगी।
हमारी सरकार से स्पष्ट मांग है कि गौ हत्या पर सख्त कानून बने और गौ संरक्षण के लिए सरकार की ओर से योजनाएं शुरू करके प्रोत्साहन दिया जाए।

इस आदोंलन को सफल बनाने के लिए फेसबुक या ट्विटर पर कोई भी पोस्ट डालें तो उसके साथ #milkparty अवश्य जोड़े।
फेसबुक पर COW MILK PARTY के पेज को लाइक करने के लिए यहां क्लिक करें

हमें ओवैसी और आजम खान जैसे लोगों को यह एहसास दिलाना है कि भारत मां अभी बांझ नहीं हुई हैं। वह अभी भी वीरों को जन्म देती है।
अगले लेख में... मनुष्य जाति के लिए कितनी लाभदायक हैं गौ माता

जय गौ माता    वन्दे भारती






Sunday 11 October 2015

अरे मामा जी, प्रणाम!


कक्षा 6 में एक कहानी पढ़ी थी, कहानी आज के परिदृश्य में बिलकुल प्रासंगिक लगती है। कहानी कुछ इस तरह थी कि एक सज्जन बनारस पहुँचे। वह स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता हुआ आया और मामाजी ! मामाजी का संबोधन करते हुए लपक कर चरण छूते हुए बोला, 'मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे ? मुन्ना ? वे सोचने लगे। हाँ, मुन्ना। भूल गये आप मामाजी!'




सज्जन थोड़े संतुष्ट हुए और सोचने लगे कि चलो अनजाना ही सही कोई तो मिल गया जो बनारस घुमाएगा। अपनी किस्मत पर मन ही मन प्रसन्न होते हुए सोचने लगे कि शायद इसे कोई गलतफहमी हुई है लेकिन कोई बात नहीं, कोई ना हो इससे बेहतर है कि कोई तो हो। वह यह सोच ही रहे थे कि वह लड़का फिर से बोला, 'मामा जी, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये। मैं आजकल यहीं हूँ।' प्रसन्नतापूर्वक मामाजी अपने भांजे के साथ बनारस घूमने लगे। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुँचे गंगाघाट और बोले कि सोच रहा हूँ, नहा लूँ !
इतना सुनते ही मुन्ना बोला, ' बिलकुल नहाइए मामा जी। बनारस आए हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है ?' भांजे का अश्वासन मिलते ही मामाजी ने गंगा जी में हर-हर गंगे बोलते हुए डुबकी लगाई और उसके बाद जैसे ही बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब ! लड़का... मुन्ना भी गायब!


मुन्ना... ए मुन्ना ! बोलते हुए वह नदी से बाहर निकले। मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वह तौलिया लपेट कर खड़े हैं और लोगों से पूछ रहे हैं कि क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है ? किसी ने पूछा- कौन मुन्ना ? तो वह सज्जन बोले-वही जिसके हम मामा हैं। वह तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला। ठीक उसी प्रकार... भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के रुप में हमारी यही स्थिति है ! चुनाव के मौसम में हर कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है और कहता है, 'मुझे नहीं पहचाना? मैं चुनाव का उम्मीदवार। होने वाला विधायक'

आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया। समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं — क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया ? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं। 5 साल बाद अगले चुनावी स्टेशन पर पहुंचते पहुंचते सारी पुरानी बातें भूलकर आपको लगता है कि पुराना वाला भांजा बुरा था, यह अच्छा होगा, लेकिन स्थिति जस की तस ही रहती है।

अपने विवेक के आधार पर मतदान करें। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत से भांजे मिलेंगे लेकिन अगर फिर से उनके चक्कर में फंसे तो याद रखिएगा ये भांजे आपके पास बनारस से घर जाने के पैसे भी नहीं छोड़ेंगे।


Wednesday 7 October 2015

कहां हो कवि कुमार?


कुछ समय पहले देश में व्यवस्था परिवर्तन के लिए एक आंदोलन का आगाज एक बुजुर्ग के द्वारा किया गया। आंदोलन को सफलता तो नहीं मिली लेकिन इस आंदोलन से एक राजनीतिक पार्टी का जन्म अवश्य हो गया। मुझे ध्यान है कि इस पार्टी  के दो सबसे बड़े चेहरे अरविंद केजरीवाल और कवि से राजनेता बने डॉ. कुमार विश्वास कहते थे कि देश के राजनेता बेवजह का वेतन ले रहे हैं। और तो और अरंविद केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया था कि इस देश तथा देशवासियों के हित को ध्यान में रखते हुए सत्ता में आने के बाद वह तथा उनकी पार्टी के विधायक जनता के द्वारा दिए गए टैक्सेज का दुरुप्रयोग नहीं करेंगे। उन्होंने कहा था कि वे राजनेता नहीं जनता के सेवक बनकर रहेंगे। साथ ही प्रचलित सुरक्षा को न लेते हुए जनता के साथ मिलकर जनता का कार्य करेंगे। मैं कुछ विषयों पर आम आदमी पार्टी के विरोध में हमेशा से रहा, लेकिन इन विषयों को लेकर मेरे विचार आम आदमी पार्टी से मेल खाते दिखाई देते थे। एक बार मैं कुमार विश्वास की एक रैली में उनके द्वारा दिए गए भाषण को सुन रहा था, उस भाषण में उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारे प्रत्याशियों को दिल्ली की जनता चुनाव लड़वाएगी। मुझे भी यह बात ठीक ही लगी कि जो जनता का प्रतिनिधित्व करने जा रहा है उनके चुनाव खर्च का वहन सम्मिलित रूप से जनता ही उठाए। क्यों कि मेरा मानना है कि यदि उद्योगपतियों के द्वारा पोषित लोग चुनाव लड़ेंगे तो निश्चित ही चुनाव जीतने के बाद वे जनता को लूट कर उन उद्योगपतियों का कर्ज चुकाएंगे ही, या फिर जनता के अधिकारों का हनन करते हुए उन उद्योगपतियों को गैरवाजिब लाभ पहुंचाएंगे।
इसके बाद डॉ. विश्वास ने कहा कि भारत मां की गोद इतनी बांझ नहीं हुई है कि इस पूरी दिल्ली से देश के लिए समर्पित 70 ईमानदार लोग भी न मिल सकें। आम आदमी पार्टी की ओर से जब चुनावी टिकटों की घोषणा की गई तो मुझे लगा कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली के 70 सबसे ईमानदार लोग मिल ही गए। मैं अपने ह्दय की बात आप सभी से बांट रहा हूं, हलांकि मुझे लग रहा था कि ये प्रत्याशी उन पुराने राजनेताओं के सामने नहीं टिक पाएंगे लेकिन मन में बिलकुल भी शंका नहीं थी कि ये 70 लोग कभी स्वयं को देश से ऊपर समझेंगे या कभी स्वार्थ के वशीभूत हो जाएंगे।

 कुछ समय बीता और जुलाई का महीना शुरू हो गया, ये महीना शुरू होते ही शुरू हो गई आप के विधायकों की एक मांग। वेतन में बढ़ोतरी की इस मांग से मेरा मन थोड़ा सा द्रवित हो गया। मैं मानता हूं कि उन विधायकों में बहुत से ऐसे लोग भी हैं तो विधायक बनने से पहले अच्छा खासा वेतन पाते थे लेकिन आज कम वेतन पा रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है द्वारका से विधायक आदर्श शास्त्री का। आदर्श शास्त्री आम आदमी पार्टी में आने से पहले ऐपल कंपनी की साउथ एशिया सेल्स यूनिट के हेड थे। शास्त्री इन दिनों 'आप' सरकार की वाई-फाई योजना पर काम कर रहे हैं। नौकरी छोड़ने के समय उन्हें वेतन के रूप में 1.25 करोड़ रुपए मिलते थे। वेतन बढ़ोतरी की मांग के समर्थन में उन्होंने कहा, 'यह बेहद जरूरी है कि एक विधायक के सामने आने वाले रोजमर्रा की चुनौतियों को समझा जाए। मैं स्वागत करता हूं कि कोई आए और मेरा जीवन जी कर देखे कि क्या वह इतनी कम सैलरी में गुजारा कर पाता है, जितनी हम विधायकों को इस समय मिल रही है। आम आदमी पार्टी का जन्म साफ-सुथरी राजनीति के लिए हुआ है, ऐसे में जरूरी है कि हमारी भी जरूरतों को समझा जाए।' शास्त्री की तरह ही आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता और ग्रेटर कैलाश से विधायक सौरभ भारद्वाज राजनीति में आने से पहले एक अमेरिकी कंपनी में प्रॉजेक्ट मैनेजर के पद पर थे। नौकरी छोड़ने तक उन्हें 17 लाख रुपए सालाना वेतन मिलता था।

अब मैं आता हूं अपने मूल विषय पर, दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों का चुनाव इसी लिए किया था क्यों कि ये लोग कहीं न कहीं दूसरों से बेहतर दिखते थे। यही वे लोग थे जो अपने भाषण में कहते थे कि दोस्तों, देखो मैं देश को बदलने के लिए, राजनीति को बदलने के लिए इतने लाख की नौकरी छोड़ कर आया हूं। वो कहते थे मेरा लक्ष्य पैसा कमाना नहीं बल्कि सेवा है। वो बड़ी बड़ी कंपनियों का नाम लेकर देश सेवा का दंभ भरते थे। लेकिन आज ऐसा क्या हुआ कि उन्हें वेतन में बढ़ेत्तरी की मांग करनी  पड़ रही है। क्या देश प्रेम समाप्त हो गया? या फिर राजनीति की जिस गंदगी को साफ करने का वो दावा करते थे उसी में स्वयं भी फंस गए। और मैं कवि कुमार से कहना चाहता हूं कि मां भारती की कोख अभी इतनी बांझ नहीं हुई है कि ऐसे वीरों को जन्म देना बंद कर दिया हो जो राजनीति की परिभाषा को बदलने का जज्बा रखते हों। यदि आप के विधायक इतनी सैलरी से अपना खर्च न चला पा रहे हों तो इनसे कहिए कि जाएं और फिर से नौकरी कर लें। दिल्ली चलाने के लिए बहुत से युवा हैं जो वास्तविक रूप से ईमानदार भी हैं।

 और ये कोई बड़ी बात नहीं कि आप कई लाख की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए। ऐसे विषय तो मन, इच्छा एवं समर्पण से जुड़े होते हैं। मैं भी अपने 20 कमरों के घर को छोड़कर 1 कमरे के मकान में रहने लगा हूं। मैं भी अपनी दादी के हाथ की रोटियों से दूर होटल की रोटियां खाने लगा हूं। कई लाख की नौकरी मैं भी कर सकता था, टॉपर था लेकिन यहां बस उतना ही मिलता है जितने में जी सकूं और तो और पिछले ढ़ाई साल में मैंने सिर्फ 26 घंटे अपने परिवार के साथ बिताएं हैं लेकिन मुझे इस बात का कोई दुःख नहीं है क्यों ये रास्ता मैंने स्वयं चुना है।









Tuesday 6 October 2015

क्या फर्क पड़ता है अगर उनका नाम चाँद मियां था

पिछले दो साल में एक विषय बहुत ही चर्चा में रहा। हमारे एक तथाकथित धर्म के रक्षक या यूँ कहें ठेकेदार ने शिरडी के साईं बाबा के विषय में कुछ कहा। इस विषय पर बहुत से टीवी चैनल्स की डिबेट में जाना हुआ।एक बार उसी समय मन में आया कि इन तथाकथित हिंदूवादियों पर अपनी लेखनी चलाऊँ लेकिन फिर सोचा अपनी आस्था को प्रमाणित करने की आवश्यकता क्या है।

मित्रों सोचा कि आखिर क्यों हिंदुत्व की ऐसी स्थिति है तो ओस प्रश्न का उत्तर स्वतः मिल गया। क्या फर्क पड़ता है यदि उस व्यक्ति का नाम चाँद मियां था। क्या फर्क पड़ता है कि वो मांस खाते थे। महाराष्ट्र के 50 प्रतिशत से अधिक ब्राह्मण मांस खाते हैं। अभी हाल ही के मामले को देख लीजिए महाराष्ट्र के एक हिन्दू राजनीतिक परिवार की ओर से मांस बैन का विरोध किया गया।
वहां मांस की सुलभ उपलब्धता थी तो वो खाते होंगे। इस बात से समस्या क्या है। हिंदुत्व की बात होती है तो सबसे पहले संघ का नाम आता है, लेकिन संघ ने कभी भी साईं पूजा का विरोध नहीं किया। हिंदूवादी चैनल की बात आती है तो सुदर्शन न्यूज़ का नाम आता है। और साईं बाबा का सबसे बड़ा समर्थक सुदर्शन न्यूज़ है जो सुबह शिर्डी की आरती दिखाता है।
सोशल मीडिया पर कुछ समय से मैं देख रहा हूँ कि पोस्ट की जाती है साईं मुसलमान था इस लिए पूजन मत करो। अरे भाई मेरे कट्टर हिन्दू भाई आप ही कहते हो ना कि यहाँ का हर मुसलमान कनवर्टेड है तो वो भी अपने ही परिवार की पीढ़ी से निकले हैं ना। और दूसरा विषय यदि कोई साईं पूजक उनका पूजन करता है तो वह किसी मजार अथवा मस्जिद में नहीं अपितु मंदिर में जाता है। एक मूर्ती का पूजन करता है। व्यक्ति में ईश्वर के स्वरुप को देखना ही तो हमारी संस्कृति का आधार है। उनके कर्मों के आधार पर उनका पूजन किया जाता है।
राम और कृष्ण की भांति ही वह भी हमारे पूर्वज हैं। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि अब मत बांटो, अब मत तोड़ो सनातन को, बहुत हो गया। सनातन अजर अमर है। इसका अंत नहीं हो सकता। हिंदुत्व समाप्त हो सकता है सनातन नहीं। सनातन को तोड़ोगे तो हिंदुत्व समाप्त हो जाएगा।
बिना किसी विषय का उद्देश्य समझे कॉपी पेस्ट कर देने से हिंदुत्व मजबूत नहीं होगा। मैं साईं बाबा का पूजक हूँ। आओ और देखो शिर्डी में होने वाले सेवा कार्यों को। सेवा ही सिखाता है ना हिंदुत्व। मुझे गर्व है कि विप्रः पूज्यते की संस्कृति के संवाहक के दायित्व का निर्वहन करने के लिए ईश्वर ने मेरा जन्म इस परम पवित्र मोक्षदायिनी भारत माता की गोद में होना सुनिश्चित किया। आप भी विरोध करने से वेदों की ऋचाओं का अध्ययन करो। गीता के सार को समझो, राम को समझो उनके चरित्र को समझो और फिर उसे साईं बाबा से मिलाओ। गीता में दिए गए श्री कृष्ण के उपदेशों का सार और साईं वचन को एक बार साथ में पढ़ कर देखो।
जो श्री कृष्ण सिखाना चाहते हैं उसी के एक माध्यम में रूप में यदि साईं बाबा ने कार्य किया तो उनका विरोध क्यों.....

Monday 5 October 2015

जीवन का आधार है आत्मबल

बिना आत्मबल के जीवन में कुछ भी करना संभव नहीं है। हम अपने जीवन में बहुत कुछ नहीं पा पाते और उनके लिए स्वयं की कमियों को दोष न देकर अन्य लोगों को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। वास्तव में हमारी सभी समस्याओं की जड़ यही है कि हम दूसरों को अपनी गलतियों के लिए कोसना शुरू कर देते हैं। असफल होने का एक अन्य कारण जो मुझे समझ आता है वो ये कि हम सामान्य तौर पर स्वयं को समझने से अधिक समय दूसरों को समझने में लगा देते हैं लेकिन ऐसा करने से परिणाम शून्य आता है। एक बार सोच कर देखिए कि क्या हम किसी को समझ सकते हैं। ये संभव ही नहीं है कि हम किसी को समझ लें। 

एक उदाहरण से समझिए कि जिस माँ ने हमें जन्म दिया है, जिस पिता ने हमें पाला है जिसने हमें उँगली पकड़कर चलना सिखाया क्या वो माँ पिता हमें अपने पूरे जीवन में समझ पाते हैं। जिनका रक्त हमारी शिराओं में बह रहा है वो भी हमें नहीं समझ पाते और हम किसी के साथ कुछ समय व्यतीत करके ये मान लेते हैं कि हम उसे पूरी तरह से समझ चुके हैं अथवा समझ सकते हैं।
कुछ ऐसी ही गलती मैं भी अपने जीवन में कर चुका हूँ। लेकिन इसमें किसी की गलती नहीं थी,ये कहीं न कहीं मेरी कमी थी कि मैं उस व्यक्ति को समझ नहीं पाया। जब उसने मुझे अपने मन की भावना बताई तो मुझे पता चला कि उसकी अपेक्षाओं को मैं पूर्ण नहीं कर पाया। आप अपनी भावनाओं को कभी किसी के सामने अभिव्यक्त नहीं कर सकते। ऐसी अवस्था में यदि हम इसमें उसकी गलती दे दें तो निश्चित ही हम गलत कर रहे हैं। हमको आवश्यकता है स्वयं को पहचानने की, स्वयं की क्षमताओं को पहचानने की और उन्हें पहचान कर मूर्त रूप देकर हम निश्चय ही अधिक संतुष्ट रह सकते हैं।

आज से यदि कभी भी मन में किसी के लिए कोई गलत विचार आपके मन में आए तो बस मेरा एक तरीका अपनाइएगा। स्वयं से इस बात का चिंतन करिएगा कि आपने जिस व्यक्ति से जुड़कर उसके लिए जो कुछ किया है उससे आप आत्मसंतुष्ट हैं अथवा नहीं। यदि आपको लगे कि आप अपने द्वारा किए गए कार्यों से संतुष्ट हैं तो इस बात से चिंतित मत होइएगा कि सामने वाला व्यक्ति क्या कह रहा है या क्या सोच रहा है।
मित्रों यदि रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ हो तो भी एक अच्छा जूता पहनकर उस पर चला जा सकता है..
लेकिन यदि एक अच्छे जूते के अंदर एक भी कंकड़ हो तो एक अच्छी सड़क पर भी कुछ कदम भी चलना मुश्किल है।

अर्थात बाहर की चुनौतियों से नहीं हम अपनी अंदर की कमजोरियों से हारते हैं। स्वयं से कभी मत हारिएगा। अपने आपमें कभी नकारात्मक परिवर्तन मत लाइएगा। सकारात्मक सोच और उसका अनुसरण ही आपके जीवन का आधार है। मैं कोई बहुत बड़ा ज्ञानी नहीं हूँ लेकिन अपने अनुभवों के आधार ये आपसे साझा कर रहा हूँ।

वंदे भारती

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...