Tuesday 20 August 2013

ये कानून अब क्यों?- भाग.3






इंडियन सिटिजनशिप एक्ट हम और आप भारत के नागरिक हैं इस बात को प्रमाणित करने के लिए अंग्रेजों ने कुछ नियम और कायदे बनाए थे। इन नियम और कायदों को एक कानून के माध्यम से लागू किया गया था । उस कानून का नाम था इंडियन सिटिजनशिप एक्ट। अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था जिससे कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें। इसी कारण इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति (पुरुष या महिला) एक विशेष अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंग्लादेशी शरणार्थी)। लेकिन हमने इसमें आजादी के 66 सालों के बाद भी कोई संशोधन नहीं किया। इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है। ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ?
 
दुनिया के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है। आप अमेरिका जाएंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा। ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है। दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देशों को छोड़ कर हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है । कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है और उसमें ये व्यवस्था है। क्या आपको लगता है ऐसे कानून के रहते हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ?

इंडियन एडवोकेट्स एक्ट- हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वह काला टोपा लगाते थे और उस पर नकली बालों का विग लगाते थे। ये व्यवस्था आजादी के कई सालों बाद तक चलती रही थी। हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वह इसी कानून के आधार पर है। आपको पता होगा कि काला कोट गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता। इंग्लैंड में वर्ष में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं, इसका कारण मुझे आज तक समझ में नहीं आया।

भारत का मौसम गर्म है और वर्ष में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक चला जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, हम काला रंग की जगह कोई और रंग भी तो चुन सकते थे, लेकिन नहीं। हमारे देश में आजादी के पहले के जो वकील हुआ करते थे वह ज्यादा हिम्मत वाले थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया।

इंडियन ऐग्रीकल्चर प्राइस एक्ट- ये भी अंग्रेजों के जमाने का कानून है। पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले कर मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे। अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को समाप्त करने के लिए ये कानून लागू किया और किसानों को उनकी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया। अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वह किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वह तय करते थे।

आप हर वर्ष समाचारों में सुनते होंगे कि सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया। ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, मतलब किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है। इस आजाद भारत में किसानों को अपने उपजाए अनाजों का मूल्य तय करने का अधिकार आज भी नहीं है । उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है और आज दिल्ली के एसी कमरों में बैठ कर वह लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वह अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते।

1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, ये कानून अंग्रेजों ने भारत को 1000 वर्ष गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना।

ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है इसलिए यहीं विराम देता हूँ। इन कानूनों की किताब बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ कर आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स के पुस्तकालय से लिया गया हैं। अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ।

अजीब अजीब कानून है इस देश में। आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे और समाप्त भी किया था, मेरे कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाए थे वह अपने फायदे और हमारे नुकसान के लिए बनाए थे और हमें आजादी के बाद इसे समाप्त कर देना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों के गुलामी की निशानियों को हम आज भी ढो रहे हैं।

हर वर्ष स्वयं को मूर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराते है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं। स्वतंत्रता का मतलब होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था। ये स्वतंत्रता है या परतंत्रता? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है आजादी के इतने सालों में? अगर झंडा फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम आजाद हो गए थे। स्वतंत्रता का मतलब है अपनी व्यवस्था जिसमें आप गुलामी की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे गुलामी आई थी, वह तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि आजादी अभी अधूरी है, इस अधूरी आजादी को पूर्ण आजादी में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा।

हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी। जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमें कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गई, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए। भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिए और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं।

वन्दे भारती

Friday 16 August 2013

ये कानून अब क्यों?- भाग.2






इंडियन पुलिस एक्ट 1860- 1857 के पहले इस देश में अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/ क्रांति को दबाया जा सके। अंग्रेजों ने इस कानून को भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए बनाया था। पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि अगर कहीं 5 से ज्यादा लोग हों तो वह बिना पूछे और बिना बताए डंडा चला सकता है यानि लाठी चार्ज कर सकता है। साथ ही पुलिस को तो राइट टू ऑफेंस दिया गया लेकिन आम आदमी को राइट टू डिफेंस नहीं दिया गया।

ये कानून आज भी चल रहा है। यदि आपने अपने बचाव के लिए पुलिस के डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि आपने उसकी ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं कर सकते। इसी कानून का फायदा उठा कर लाला लाजपत राय पर लाठियां चलाई गई थी और लाला जी की मृत्यु हो गई थी और लाठी चलाने वाले सांडर्स का कुछ नहीं हुआ क्योंकि वह अपनी ड्यूटी कर रहा था और जब सांडर्स को कोई सजा नहीं हुई तो लालाजी के मौत का बदला भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारकर लिया था।  वही दमन और अत्याचार वाला कानून इंडियन पुलिस एक्ट आज भी इस देश में बिना फुल स्टॉप और कॉमा बदले चल रहा है।

इंडियन इनकम टैक्स एक्ट- इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि ये तो बड़ा कन्फ्यूजिंग है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है तो दूसरे ने कहा कि हाँ, इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई दिक्कत हो तो वह हमसे ही संपर्क करें। आज भी भारत के आम आदमी को छोड़िए, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं। उस समय इनकम टैक्स की दर रखी गई 97प्रतिशत यानि 100 रुपए कमाओ तो 97 रुपए टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर तरीके के टैक्स की छूट दी गई ताकि ब्रिटेन का माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके।

ब्रिटेन की संसद की इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, अगर भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वह बर्बाद हो जाएंगे या टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जाएंगे और अगर बेईमान हो गए तो हमारी गुलामी में आ जायेंगे और अगर बर्बाद हुए तो हमारी गुलामी में आने ही वाले है ।
तो ध्यान दीजिए कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है ? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो समाप्त हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें। अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97प्रतिशत और इस व्यवस्था को 1947 में समाप्त हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97प्रतिशत ही हुआ करती थी। और इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि टैक्स ज्यादा नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा हमेशा गरीब रहेगी। अगर सरकार की आमदनी बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो। अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में वैट को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं। आप सोच कर देखिए कि जिस देश में नमक आंदोलन के सामने अंग्रेज तक झुक गए उस देश में नमक पर टैक्स लग रहा है।

इंडियन फॉरेस्ट एक्ट- यह कानून 1865 में बनाया गया और 1872 में इसे लागू किया गया। इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और उनमें गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वह ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल करके वह भोजन बनाते थे। अंग्रेजों ने इस कानून को लागू करके जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया। साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वह अपराध है और उसे जेल हो जाएगी।
 
अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक नया पद बनाया और उसे नाम दिया डिस्ट्रिक फॉरेस्ट ऑफिसर। इस व्यक्ति का काम था जंगल काटने वाले लोगों को सजा देना लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गई जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता।

हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है आईटीसी जिसका पूरा नाम है इंडियन टोबैको कंपनी। इस कंपनी का असली नाम है अमेरिकन टोबैको कंपनी और ये कंपनी हर वर्ष 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए हर वर्ष 14 करोड़ पेड़ काटती है। इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के तहत सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा खराब स्थिति अब हो गई है, आप अपनी जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते।

इंडियन पीनल कोड- अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए इस कानून को सामान्य तौर पर आईपीसी के नां से जाना जाता है। यह कानून अंग्रेजों के एक अन्य गुलाम देश आयरलैण्ड के आयरिश पीनल कोड की फोटोकॉपी है। बहां भी इसे आईपीसी के नाम से ही जाना जाता है। इन दोनों में एक कॉमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है। आईपीसी की ड्राफ्टिंग मैकाले ने 1840 में की थी और इसे भारत में 1860 में लागू किया गया।
ड्राफ्टिंग करते समय ब्रिटिश संसद को मैकॉले ने एक पत्र भेजा था जिसमें उसने लिखा था कि मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पाएगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा।वह आगे लिखता है, जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा ।

हमारी न्याय व्यवस्था आज भी अंग्रेजों के उसी आईपीसी के आधार पर चल रही है। आजादी के 67 वर्ष बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है। इसका एकमात्र कारण यह आईपीसी ही है।

लैंड ऐक्वीजिशन एक्ट- इस देश में डलहौजी नाम का एक अंग्रेज आया था। उसी ने इस कानून को लागू करके किसानों से जमीनें छीनी। जो जमीन किसानों की थी वह ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गई। डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है, मैं गाँव गाँव जाता था और वहां अदालतें लगवाकर लोगों से जमीन के कागज मांगता था। और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ सब कुछ जबान के आधार पर ही होता था। ये परंपरा तो श्री राम के समय के भी पहले से चली आ रही है। आपने सुना भी होगा कि रघुकुल रीत सदा चलि आई, प्राण जाएं पर वचन न जाई।

आप आज भी देखते होंगे कि हमारे यहाँ जो शादियाँ होती हैं वह मात्र और मात्र जबानी समझौते से होती है कोई लिखित समझौता नहीं होता है, एक दिन अथवा तारीख तय हो जाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष शादी की तैयारी में लग जाते है। लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले के लड़की वालों के यहाँ पहुँच जाते है, शादी हो जाती है। उस समय किसी के पास कागज तो था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली। एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गई। इसका परिणाम हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए। डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था, अंग्रेजों के रिकॉर्ड के मुताबिक उस समय एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ जमीन थी। डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वह जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं। 1947 की आजादी के बाद ये कानून समाप्त होना चाहिए था लेकिन नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है। हम आज भी अपनी खुद की जमीन पर मात्र किरायेदार हैं।

अगर सरकार को लगा कि आपकी जमीन से होकर सड़क निकाली जाए तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे के आपकी घर और जमीन ले ली जाएगी। आज भी इस देश में किसानों की जमीन छीनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वह काम आज भारत सरकार करती है। पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वह जमीनें भेंट करते थे, अब भारत सरकार वह जमीनें छीनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है। किसी भारतीय या बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई जमीन पसंद आ गई तो सरकार एक नोटिस देकर वह जमीन किसानों से ले लेती है और वही जमीन वह कंपनी वाले महंगे दाम पर दूसरों को बेचते हैं। जिसकी जमीन है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है, जमीन की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है, जमीन वाले नहीं। एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहां पहुँच कर घड़ियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहली पार्टी वाला पहुँच कर घडियाली आंसू बहाता है लेकिन दोनों पार्टियाँ मिल के इस कानून को समाप्त करने की कवायद नहीं करतीं और 1894 का ये अंग्रेजों का बनाया कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है। इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है। जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती है।

वन्दे भारती

Monday 12 August 2013

ये कानून अब क्यों?- भाग.1


मित्रों अभी कुछ दिन पूर्व स्व. श्री राजीव जी दीक्षित का एक व्याख्यान सुन रहा था। उस व्याख्यान में उन्होंने बताया कि आजादी के 66 वर्षों के बाद भी हमारे देश में अंग्रेजों के बनाए हुए 34735 कानून चल रहे हैं। ये वह कानून थे जिनको हमें लूटने के लिए अंग्रेजों ने बनाया था। उनके उस व्याख्यान को सुनकर मुझे लगा कि आप सभी को भी पता होना चाहिए कि आखिर वह कौन से कानून हैं जिनका प्रयोग करके पहले अंग्रेजी सरकार हमें लूटती थी और आज काले अंग्रेजों की ये सरकार लूटती है।

मित्रों भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था। शब्दों पर ध्यान दीजिएगा, उस समय अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था बल्कि एक अंग्रेजी कंपनी हम पर साशन करती थी। सन् 1857 में एक क्रांति हुई जिसमें इस देश में मौजूद अधिकतर अंग्रेजों को भारत के लोगों ने मार डाला था। उस समय लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वह उन्हें मौत की नींद सुला देते थे । हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढ़ाया जाता है । विद्रोह और क्रांति में अंतर होता है लेकिन हमारे इतिहास में उस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया।

मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, आम आदमी का आन्दोलन बन गई और इसकी आग पूरे देश में फैल गई। 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था । भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया। धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया । इस देश का दुर्भाग्य देखिए कि वह रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं। यदि आप चाहेंगे तो उनके खानदान का पूरा कच्चा चिठ्ठा खोल कर रख दूंगा।

अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठूर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर लगभग 24000 लोगों का मार दिया। इस क्रांति की सारी योजना बनाने वाले बिठूर के नाना जी पेशवा से बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने ऐसा किया। उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए आवश्यक होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किए। अंग्रेजों ने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू कर दिए थे लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाए जो एक सरकार के शासन करने के लिए आवश्यक होते हैं । आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वह सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के ही हैं ।

1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33प्रतिशत था, दुनिया के कुल उत्पादन का 43प्रतिशत भारत में पैदा होता था और दुनिया की कुल कमाई में भारत का 27प्रतिशत हिस्सा था। भारत की संमृद्धता को देखकर अंग्रेजों ने अपनी संसद में बहस की। उस बहस में ये तय हुआ कि भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाए क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा।

अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया। उस कानून को नाम दिया सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी एक्ट और उस पर टैक्स तय किया गया 350 प्रतिशत। अर्थात यदि आप 100 रुपए का उत्पादन करते हैं तो आपके 350 रुपए ऐक्साइज टैक्स के नाम पर अंग्रेजी सरकार को देना होगा। उसके बाद अंग्रेजों ने दूसरा टैक्स लगाया सेल्स टैक्स। अंग्रेजों ने सेल्स टैक्स की दर 120 प्रतिशत रखी मतलब यदि आप 100 रुपए का सामान बेचोगे तो 120 रुपए सेल्स टैक्स के रूप में देना होगा।

इसके बाद एक और टैक्स आया इनकम टैक्स और उसकी दर थी 97 प्रतिशत। यदि आप 100 रुपए कमाते हैं तो 97 रुपए अंग्रेजों को दे दो। ऐसे ही रोड टैक्स, टोल टैक्स, मुंशिपल कार्पोरेशन टैक्स, ऑक्टरॉय टैक्स, हाउस टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स और कई नामों से 23 प्रकार के टैक्स लगाए। रिकार्ड के मुताबिक अंग्रेजों 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर भारत से करीब 300 लाख करोड़ रुपए लूटा। इन्हीं कानूनों के कारण ही विश्व व्यापार में जो हमारी हिस्सेदारी 33प्रतिशत से घटकर 5प्रतिशत रह गई। हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए। गरीबी-बेरोजगारी से भुखमरी पैदा हुई और आपने पढ़ा भी होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं थे बल्कि अंग्रेजों के खराब कानून से पैदा हुए अकाल थे, और इन कानूनों की वजह से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे। हमारी गरीबी का कारण ऐतिहासिक है कोई प्राकृतिक,अध्यात्मिक या सामाजिक कारण नहीं है। हमारे देश पर शासन करने के लिए अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाए, सब का जिक्र करना तो मुश्किल है लेकिन कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ ।

इंडियन ऐजुकेशन एक्ट- यह कानून 1858 में बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग टी.बी. मैकोले ने की थी। इस कानून की ड्राफ्टिंग करने से पहले उसके पहले उसने भारत की शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था जी. डब्ल्यू. लिटनर और दूसरा था थॉमस मुनरो। इन दोनों ने अलग अलग क्षेत्रों का अलग-अलग समय पर सर्वेक्षण किया था। सन् 1823 के आसपास उत्तर भारत का सर्वेक्षण करने वाले लिटनर ने लिखा है कि भारत में 97प्रतिशत साक्षरता है। दक्षिण भारत का सर्वेक्षण करने वाले मुनरो ने लिखा है कि भारत में 100 प्रतिशत साक्षरता है। मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को यदि हमेशा-हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षाव्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी। ऐसा करने से ही इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब वह इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में  काम करेंगे। मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल करता था कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।

अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो समाज के तरफ से उनको मिलने वाली सहायता भी स्वतः गैरकानूनी हो गई। 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे। इन सभी गुरुकुलों में 18 विषय पढाए जाते थे। इन गुरुकुलों की सबसे विशेष बात ये थी कि ये गुरुकुल राजा, महाराजा नहीं चलाते थे अपितु इन्हें समाज के लोग मिल कर चलाते थे। इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।

इन्हें गैरकानूनी घोषित करके सारे गुरुकुलों को समाप्त कर दिया गया। अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को कानूनी घोषित करके कोलकाता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था। इसी कानून के तहत भारत में कोलकाता यूनिवर्सिटी बनाई गई, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गई, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गई।

मैकाले ने अपने पिता को एक पत्र लिखा था जिसका कुछ अंश निम्न है:
'इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे तो इस देश से अंग्रेज भले ही चले जाएँ लेकिन अंग्रेजियत नहीं जाएगी।'

इस पत्र का सच आज हमारी आंखों के सामने है। उस एक्ट की महिमा देखिए कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, हम अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा। लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी मात्र 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं बल्कि दरिद्र भाषा है । इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वह भी अंग्रेजी में नहीं थी और और तो और ईशा मसीह भी अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वह हमारी बंग्ला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वह भाषा विलुप्त हो गई । संयुक्त राष्ट्र संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है अपितु वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है बह कभी उन्नति नहीं कर सकता और यही मैकोले की रणनीति थी।
वन्दे भारती

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

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