Tuesday 27 May 2014

मैं मुस्लिम विरोधी नहीं हूँ


विश्व गौरव
मुस्लिम कत्तई बुरे नहीं है.. मेरे भी कुछ अच्छे दोस्त है.. कही न कही कोई कमी रही उसे हमें विचार करना चाहिए.. मगर के प्रश्न ये की मुस्लिमो के अन्दर इतना ही प्यार था तो भारत विभाजन की नीव क्यों रखी गयी... ?



मुस्लिम इतने ही प्रेमी जीव है तो भारत, पाकिस्तान और बाग्लादेश में सामान अनुपात में हिन्दू और मुस्लिम रहते थे, आज ये अनुपात पाकिस्तान और बाग्लादेश में क्यों नहीं बचा रहा जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक है?

रेल को रफ़्तार में चलने के लिए दोनों पटरी को मजबूत होना जरूरी है और यही भारत में है जो मुस्लिम फल-फूल रहे है वरन ये जीव प्रेमी कौम जिस देश में बहुसंख्यक हुई है वहां इसने अल्पसंख्को का भक्षण किया है..

इसका मूल कारण है मदरसे की शिक्षा जहाँ यही पढाया जाता है कि इसे मारो तो ख़ुदा जन्नत देगा, जन्नत में मजे के लिए 72 हूर मिलेगी, और भारत के नेता वोट के लिए 72 हूरो के पास जाने वाले पढाई पर रोक लगा ही नहीं सकते वास्तव में दक्षिण एशिया के मुस्लिम दोयम दर्जे के मुस्लिम है जो आज तक दकियानूसी में जी रहे है.. (एक मुस्लिम मित्र के अनुसार )

वास्तव में जिन्ह मुस्लिमो में उच्च शिक्षा पायी है वो देशहित की भावना के साथ रह रहे है, मेरे फेसबुक अकाउंट और मेरे रियल लाइफ में ऐसे उच्च विचारो वाले मुस्लिम है, मुझे उनका मित्र होने का गर्व भी है.. जो एक सच्चे मुस्लिम होने के साथ साथ सच्चे भारतीय भी है..

क्यूँ है अनुच्छेद ४४

विश्व गौरव
भारत के अतिरिक्त संसार में ऐसा कोई देश नहीं है, जहां अलग-अलग सम्प्रदायों व वर्गों के लिए अलग-अलग कानून विद्यमान हों। अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों में पूर्णतया समान नागरिक संहिता लागू है, जहां बड़ी संख्या में मुसलमान व अन्य अल्पसंख्यक वर्गों के लोग रहते हैं। अनेक प्रगतिशील मुस्लिम देशों यथा मिस्र, सीरिया, तुर्की, मोरक्को, इंडोनेशिया व मलेशिया, यहां तक कि पाकिस्तान में भी बहुपत्नीवाद, मौखिक तलाक तथा पुरुष-प्रधान उत्तराधिकार आदि के मामलों में भेदभावपूर्ण व दमनकारी कानून बदल दिए गए हैं और उनको उदार व मानवीय बनाया गया है।

पाकिस्तान जैसे कट्टर इस्लामिक देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 20 दिसम्बर, 2003 के महत्वपूर्ण निर्णय में मुस्लिम लड़कियों को अपनी मर्जी से विवाह करने की स्वतंत्रता प्रदान की है किन्तु हमारे देश में अल्पसंख्यकों के संरक्षण के नाम पर आज भी महिलाओं को अन्याय, दमन व पीड़ा सहनी पड़ रही है। और संविधान के अनुच्छेद 44 का प्रावधान कि सभी के लिए निजी कानून एक जैसे होंगे। अपने अपने अमलीजमा पहनाये जाने का इंतजार कर रहा है..

Wednesday 21 May 2014

हिन्दू आतंकवाद का सच: तथ्यों के साथ विश्लेषण

यदि रंग से आतंकवाद का निर्धारण
 होता है तो मैं आतंकवादी हूँ 
विश्व गौरव

भारत में जब कभी तुष्टीकरण के खिलाफ कोई आवाज उठती है तो उसे साम्प्रदायिक कहा जाता है, जब कभी देश के गौरवशाली संघर्ष पूर्ण इतिहास को याद दिलाने का प्रयास किया जाता है तो उसे भगवाकरण करने की साजिश बताया जाता है, आतंकवाद के मुद्दे पर जब देश को जाग्रत करने का अभियान चलाया जाता है तो हिन्दू आतंकवाद के नाम पर नयी पैंतरेबाजी शुरू हो जाती है।
आपको ध्यान रहे कि नये-नये शिगूफे छोड़ने में माहिर ये वही लोग हैं जो इस देश के इतिहास में गुरु तेग बहादुर और चन्द्रशेखर आजाद को भी आतंकवादी पढ़ाये जाने वाले पाठयक्रम की वकालत करते हैं, इनको रात-दिन केवल एक ही खतरा सताता रहता है कि कहीं यह देश आत्म विस्मृति से जागकर खड़ा हो गया तो इनकी दुकान में ताला लग जायेगा।वस्तुत: आज कल हिन्दू आतंकवाद वास्तविकता पर पर्दा डालने वाली शक्तियों के द्वारा हिन्दुत्व प्रेमियों के लिए एक विशेष गाली के रूप में प्रयोग किया गया एक नया ब्राण्ड है।
वैसे भी राजनीति में हर आम चुनाव आते ही कुछ लोगों और दलों को विशेष प्रकार के नवीन ब्राण्ड की खास जरूरत होती है। कभी गरीबी हटाओ का नारा दिया गया, कभी राष्ट्र की एकता अखण्डता का नारा दिया गया, कभी साम्प्रदायिक ताकतों को मिटाने का नारा दिया गया। इसमें से कौन से नारे के अनुरूप आचरण किया गया तथा देश का कितना भला हुआ यह तो इतिहास के पन्ने ही जानते हैं, फिर इस नये ब्राण्ड से देश का कौन सा भला होगा यह तो समय बतायेगा। आम चुनाव के पहले अपनी-अपनी पीठ थपथपाने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वास्तविक अपराधी न छूट जाए और हम अपनी खुन्नस ही निकालते रहें।
वैसे तो न्याय का एक नैसर्गिक नियम है कि एक भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए भले ही अपराधी क्यों न छूट जाए। सरकारों के तीन ही मुख्य काम है कानून बनाना, कानून का पालन कराना और न्याय दिलाना। देश की जनता हर आम चुनाव में इन तीनों बातों का आकलन जरूर करती है, न्याय और अन्याय की भाषा को समझती है, धर्म और अधर्म की राह पर चलने वालों को पहचानती है तथा अत्याचारी और विद्वेष पूर्ण ही नहीं मनगढ़ंत प्रलापों को भी बखूबी समझती है।
क्या धर्म रक्षा के लिए कुछ करना आतंकवाद है 
वैसे तो हिन्दुत्व पर आक्रमण कोई नयी बात नहीं है। चूंकि हिन्दुत्व ही भारत की पहचान है इसीलिये सन् 637 में पहला जेहादी हमला भारत पर हुआ तथा 570 साल के संघर्ष के बाद सन् 1207 में दिल्ली में मुगल सत्ता स्थापित हो गयी किन्तु 500 साल भी टिक नहीं पायी। फिर भी न जाने कितने मंदिर टूटे, पृथ्वीराज चौहान की आंखे निकाल ली गयी, भाई मतिदास का सिर आरे से चिरवाया गया, भाई सतीदास के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये, भाई दयालदास को खौलते तेल की कढ़ाई में डाल दिया गया, गुरू तेगबहादुर का सिर कलम कर दिया गया, गुरुपुत्रों को जिन्दा दीवालों में चुनवाया गया, वीर हकीकत राय का बलिदान हुआ, बन्दा बैरागी की बोटी-बोटी नुचवायी गयी लेकिन जेहाद हारा और भारत विजयी हुआ। भारत में अगर हिन्दुत्व को अपमानित करने के प्रयास होते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होता है। कश्मीर से तीन लाख हिन्दू निकाले जाते हैं और देश के कुछ नेता कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं समझते। दुनिया में बसे हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों के विरोध में बोलने के लिये जिनके पास दो शब्द भी नहीं है, उन्हें अरब देशों पर बहुत चिंता होने लगती है। उन्हीं को हिन्दू आंतकवाद भी जहरीले नाग की तरह दिखता है और पुलिस द्वारा जब आजमगढ़ के किसी आतंकवादी को पकड़ा जाता है तो वे गहरा दु:ख व्यक्त करते हैं। दूसरी ओर वहीं पर इकट्ठा होकर कुछ तथाकथित देशभक्त आधुनिक भारत में 565 रियासतों के एकीकरण के अग्रदूत लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को आतंकवादी कहने की हिम्मत जुटा लेते हैं और वही नेता सुनते रहते हैं, एक शब्द भी बोलने की आवश्यकता नहीं समझते। ऐसे ही लोग जामिया नगर मुठभेड़ में शहीद पुलिस अधिकारी की वर्दी पर कीचड़ उछालने से नहीं हिचकते।
वस्तुत: हिन्दू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योंकि जिस हिन्दू दर्शन में प्रकृति की पूजा करना, चींटी को आटा खिलाना और नाग को भी दूध पिलाना शामिल है वहां पर पला और बढ़ा कोई व्यक्ति क्या इस आतंकवाद की राह पर जा सकता है? यह एक गहन विचार का प्रश्न है। दुनिया के देशों में भारत ही आतंकवाद के दंश को झेलने वाला प्रमुख देश है। हमारा दुर्भाग्य है कि इस देश के प्रधानमंत्री केन्द्र सरकार के समर्थक या विरोधी के आधार पर अपनी जुबान खोलते हैं, न कि देश की इज्जत बचाने के लिये।
22 नवम्बर 2008 को राज्य पुलिस प्रमुखों की बैठक में बोलते हुये उन्होंने कहा कि देश के लिये वामपंथी आतंकवाद यानी नकसलवाद सबसे बड़ी समस्या है। यह सत्य उनके मुंह से तब निकला जब वामपंथी परमाणु करार के कारण उनकी सरकार से अलग हो गये। जब पश्चिम बंगाल के चुनाव आये तो प्रधानमंत्री जी को समझ में आया कि वामपंथी हमारे वहां पर दुश्मन हैं, चार साल तक गलबहियां डालने से पहले देश के हित में अगर विचार किया होता तो वामपंथी और मुस्लिम लीग केन्द्रीय सत्ता का हिस्सा कभी भी नहीं बन सकते थे और न ही प्रख्यात योग गुरु रामदेव के बारे में अनर्गल आरोप वामपंथी वृंदा करात के मुंह से निकल पाते।
वास्तव में इस देश को हिन्दू आतंकवाद से नहीं, खतरा तो उन शक्तियों से है जो कभी मानवाधिकारवादी चोला पहनकर, कभी लेखक या पत्रकार बनकर, कभी धर्मनिरपेक्ष नेता बनने का बहाना बनाकर देश विरोधी तत्वों की पैरवी करते हैं। चंद वोटों का लालच या चंद नोटों की चाहत उनकी कार्यशैली का हिस्सा बन चुकी है। देश में संसाधनों पर पहला हक किसी गरीब का नहीं, मुसलमानों का है, देश के मुखिया के मुंह से यह शब्दावली उसी कार्यशैली का हिस्सा है।
इस देश में दीपावली के ठीक एक दिन पहले शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार किया जा सकता है लेकिन न्यायालय की अवमानना करने पर इमाम बुखारी को चेतावनी भी नहीं दी जा सकती। संत आशाराम बापू के अपमान का कुचक्र रचा जा सकता है लेकिन होली के एक दिन पूर्व कोयम्बटूर बम विस्फोट में 58 निर्दोषों की हत्या के मुख्य आरोपी अब्दुल नसीर मदनी को बाइज्जत रिहा कर दिया जाता है।
क्या ये भगवा आतंकियों का काम था 
संसद हमले के आरोप में न्यायालय से सजा प्राप्त अफजल को फांसी से बचाने के प्रयास करने वाले लोग अमरनाथ श्राइन बोर्ड को किराये पर दी गयी भूमि हड़प सकते हैं, वीर सावरकर की सम्मान पट्टिका को उखाड़ देते हैं, आतंकवादियों की पैरवी करने की घोषणा करने वाले जामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के विरुध्द एक भी शब्द न बोलने की हिम्मत जुटा सकने वाले लोग दीपावली के दिन भी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का खाना छीन सकते हैं। कितना आश्चर्य होता है कि इन्हीं के एक मित्र और सरकार के सहयोगी राजठाकरे सौ खून माफी का पुरस्कार महाराष्ट्र सरकार से प्राप्त करके नफरत के बीज बो रहे हैं, वह भी इन्हें दिखायी नहीं देता। इन्हें न तो असम के विस्फोट दिखते है और न ही बांग्लादेशी घुसपैठिये। इन्हें महाराष्ट्र में मालेगांव विस्फोट को आरोपियों पर मकोका की आवश्यकता दिखायी देती है लेकिन उत्तर प्रदेश में उप्रकोका तथा गुजरात में गुजकोका की आवश्यकता नहीं दिखायी देती। गृहमंत्री को पोटा जैसा कानून पसंद नहीं, ऐसा बयान जारी होता है। पसंद है हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों पर किसी भी तरह का लांछन या आरोप। इसी आरोप के तहत गांधी हत्या में संघ का नाम घसीटा था। इसी तरह देश में आपात स्थिति और 1975 में संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था। लेकिन जिन संगठनों पर ब्रिटेन सरकार और बीबीसी रेडियो तक कोई सन्देह नहीं कर सकता उन्हें कटघरे में खड़ा न करने वाले इस देश को कौन सा संदेश देना चाहते हैं?
उत्तराखंड में पीड़ितों को राहत सामग्री
देते स्वयंसेवक :क्या ये आतंकवाद है 
विदेशी पैसे के बल पर चलने वाले कुछ इलेक्ट्रानिक चैनलों और समाचार पत्रों को उड़ीसा दिखाई देता है लेकिन संत लक्ष्मणानन्द सरस्वती को छोड़कर। गुजरात भी दिखाई देता है लेकिन गोधरा को छोड़कर। देश भी दिखाई देता है लेकिन हिन्दुओं को छोड़कर। अब तो देश की जनता को सोचना ही पड़ेगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि असत्य, अन्याय और दमन के सामने झुकना कायरता है तथा अपराध करने वाले के साथ ही अपराध और अन्याय सहने वाला भी उसी पाप का भागी है। आज की आवश्यकता है कि हम कम से कम उसके भागीदार तो न बनें।

Tuesday 20 May 2014

युवा की शक्ति वायु जैसी

विश्व गौरव 
विश्व गौरव त्रिपाठी

३ मार्च १९३१ को भगत सिंह ने अपनी माँ से कहा " लाश लेने आप मत आना कही आप रो पड़ी तो लोग कहेंगे भगत सिंह की माँ रो रही है"  ऐसे थे हमारे देश के सपूत परन्तु आज का सपूत फिल्म और शराब के पैसे ना देने पर अपनी माँ का ही खून बहा रहे है | जबकि आज के दौर में जब हमारा देश भ्रस्ताचार, नस्लवाद, आतंकवाद, परिवारवाद जैसे समस्याओ से जूझ रहा है हमारी युवा सक्ति क्रिकेट, फिल्म और कैरिएर से उपर उठ कर देखना ही नहीं चाहता भूल गया है की इस देश के प्रति अपनी मात्रभूमि प्रति भी उसका कुछ दायित्व है अतः आज जरूरत है युवा को जागरूक होने की और जिन्हें ये घटनाक्रम नहीं पता उन्हें भी जगाने की जरूरत है | क्योकि लोकतंत्र जो लोगो का तंत्र कहा जाता था आज लोकतंत्र का अर्थ भ्रष्ट लोगो का , भ्रष्ट लोगो द्वारा,भ्रष्ट लोगो के लिए शासन मात्र अर्थात यह परिवारवाद तथा इसके पोषक तत्वों का तंत्र बन कर रह गया है
राजस्थान में युवाओं की एक रैली 


हमारे देश के नेता देश को दिन प्रतिदिन खोखला करते जा रहे है अतः हमे ही तो जागना होगा और इस अंग्रेजियत और सफ़ेद पोश रुपी विष बेल को समाप्त करना होगा ताकि जो नई फसल आये वो  निष्ठावान इमानदार रस्त्रप्रेमी रस्त्राहित चाहने वाले लोग उच्च पदों पर आसीन हो तो देश के समुचित विकास और  समाज के लिए संजीवनी साबित होगी और हमारा प्रयास सफल कहा जा सकेगा | वास्तव में युवा में रस्त्रप्रेम तो दीखता है १५ अगस्त और २६ जनवरी को परन्तु रस्त्राहित के लिए सोचने का वक्त कंहा है क्योकि बहुरास्ट्रीय कंपनियों की नौकरी युवा को २४ घंटे का गुलाम बनाती जा रहीं है उसके पास अपने परिवार के लिए बच्चो के लिए समय ही नहीं रहा तो देश को क्या देगा इसीलिए बच्चे भी उसी संस्कृति में पल बढ़ रहे है ये ही छोटी छोटी बाते जो हम नज़रअंदाज करते है एक बार फिर गुलामी की तरफ का रास्ता बना रही है  | जब तक इस देश का युवा खड़ा नहीं होगा तब तक ये देश पहले बाहरी लूटते  रहे और अब अपने ही लूट रहे है इस लूट को रोको और अपने देश को संसार के मानचित्र पर एक बार फिर चमकता हुवा देखो यही हमारा ही नहीं हम सब जागरूक युवाओ का सपना होना चाहिए | वन्दे मातरम् ||

Monday 19 May 2014

नाथूराम गोडसे- आतंकवादी या क्रन्तिकारी

नाथूराम गोडसे- आतंकवादी या क्रन्तिकारी 


vishva gaurav
मित्रों आज गूगल पर कुछ ढूंढते हुए मेरी नजर एक लेख पर पड़ी . उस लेख का शीर्षक था "स्वतंत्रता के बाद का पहला आतंकवादी".उस लेख ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया.गाँधी की सच्चाई मैं कई जगह पढ़ चूका था लेकिन इसके बावजूद मै यह सोचने पर मजबूर हो गया की भारत की वर्त्तमान स्थिति को देखने के बाद भी कोई व्यक्ति गाँधी को सही कैसे ठहराया जा सकता है.कोई कुछ भी कहे लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है की देश को विभाजित करने वाले व्यक्ति को आज भी हम रास्ट्रपिता कैसे कह सकते हैं.हो सकता है मेरी ये बातें कुछ तथाकथित सेकुलरों को बुरी लगें लेकिन मेरी कलम दरबारों की शोभा बढाने के लिए नहीं है.मेरे लिए नाथूराम हुतात्मा ही हैं.

मैं उन सेकुलर मित्रों को  अपने विचारों को मानने के लिए बाध्य तो नहीं कर सकता लेकिन नाथूराम जी का अंतिम शब्द जो उन्होंने अदालत में कहे थे  वह आपके सामने उनके ही शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद वो  शब्द आपको उस समय की स्तिथि का एहसास दिला सकें.
{इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली
कौन था सही ?
हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते }

नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति
प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है .में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे .या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया .गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी .उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई .नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक
धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई  सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के  सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा  मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने  कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया .
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया ..............में अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे

जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना

नाथूराम जी कोर्ट में 
मित्रों नाथूराम जी नाम सुनते ही सबसे पहले संघ का नाम ध्यान में आता है की वह संघ से जुड़े हुए थे लेकिन संघ का कोई भी दायित्व उनके पास नहीं था. संघ से जुड़े लोग जरुर ये मानते और कहते हैं की गाँधी की हत्या रस्ट्र हित में थी लेकिन संघ यह कभी नहीं कहता.हो सकता है नाथूराम जी संघ की शाखाओं में आए हों लेकिन एक सत्य ये भी है की वो कहते थे कि संघ क्रांति नहीं कर सकता.कई बार तो उन्होंने संघ की शाखाओं का विरोध भी किया.
मेरा आज का लेख हुतात्मा श्री नाथूराम जी गोडसे को समर्पित है.मेरे लिए वो वन्दनीय हैं आज के तथाकथित गाँधियों की समाप्ति के लिए और गोद्सों की आवश्यकता है.
वन्दे भारती  

Sunday 18 May 2014

संघ ने भरी हुंकार और आ गयी मोदी सरकार

संघ ने भरी हुंकार और आ गयी मोदी सरकार

विश्व गौरव


रास्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक ऐसा संगठन जो स्वयं को गैरराजनीतिक कहता है, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव के प्रचार और नतीजों को देखकर स्पष्ट रूप से लगता है की संघ ने यह समझ लिया है कि बिना राजनीति में हस्तक्षेप किए भारत को परम वैभव पर ले जाने का लक्ष्य पूर्ण नहीं हो सकता। संघ का कहना है कि संघ कुछ भी नहीं करेगा तथा स्वयंसेवक सबकुछ करेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि संघ तो मात्र एक उत्प्रेरक का कार्य करेगा, जिस प्रकार एक उत्प्रेरक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में एकाएक गति ला देता है ठीक उसी प्रकार संघ(प्रचारक) एक उत्प्रेरक का कार्य करता है। लोकसभा चुनाव के प्रचार के समय संघ के स्वयंसेवकों ने जिस प्रकार से सोशल मीडिया पर खुल कर नरेन्द्र मोदी का प्रचार किया उस से एक बात तो स्पष्ट हो गयी की संघ भले ही खुल कर नमो नमो ना करे लेकिन अपनी ताकत (स्वयंसेवक) एवं विचार के आधार पर संघ देश की राजनीति को नयी दिशा दे सकता है। राष्ट्रीय स्व्यंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि श्एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे बात सही भी है। जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिको को एक सूत्र मे बाधा गया है तो धर्म के नाम पर कानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सांप्रदायिक  होने की संज्ञा दी जाती है। 
संघ स्वयंसेवकों के साथ नरेन्द्र मोदी
संघ ने देश की आवश्यकता को समझते हुए केंद्रीय प्रचार समिति की कमान सौंपने के साथ-साथ मोदी के पीएम पद के उम्मीदवार के नाम पर भी अंतिम मुहर लगा दी। साथ ही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को साफ संकेत दे दिया कि मोदी के नाम पर लिया गया फैसला अंतिम है। 
संघ के एलान के बाद वरिष्ठ नेता माने, फिर संघ ने अपने स्वयंसेवकों को मोदी के दिल्ली फतह के मिशन में लगा दिया। हजारों स्वयंसेवकों ने देश के हर राज्य में भाजपा के लिए वोट मांगे और अंततः मोदी को दिल्ली की गद्दी तक पहुंचा दिया। संघ के अब तक के इतिहास में पहली बार संघ का इतना अधिक हस्तक्षेप राजनीति में देखने को मिला इसी के कारण भाजपा विरोधियों ने पहली बार इस चुनाव में खुल कर संघ को घेरने का प्रयास किया। यहाँ तक कि बेनी प्रसाद वर्मा ने तो संघ को गुंडों की पार्टी तक कह दिया लेकिन संघ ने इन सारी बातों का कोई जवाब नहीं दिया और जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए और फर्जी की बयानबाजी में न पडते हुए देश को स्थिर सरकार देने का कार्य किया ।
एक कार्यक्रम में संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ मोदी और गडकरी 

2004 के दौर में जब भारतीय जनता पार्टी का ‘इंडिया शाइनिंग’ प्लान फेल हुआ था, तब कहा गया था कि भाजपा ‘रियल वोटर’ तक नहीं पहुंच पाई लेकिन इस बार ‘मोदी मैनेजमेंटश और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काम ने आम और खास, दोनों में जगह बनाई। इसे चुनाव प्रचार की रणनीति की सफलता मानें या जनमानस के बदले मनमिजाज का नतीजा, इसमें करीब दस करोड़ नए मतदाताओं की भूमिका निर्णायक रही। इन नए मतदाताओं को रिझाने का कार्य सोशल मीडिया पर कार्य कर रहे संघ के युवा क्रांतिकारियों ने किया किसी भी पोस्ट पर विरोधियों को प्रमाणों के साथ जवाब देने का कार्य इन्ही क्रांतिकारियों के द्वारा किया गया 
संघ खुद को हमेशा ट्रिपल एम से दूर रखता है अर्थात मंच,माला,माइक और इस बार बार भी संघ ने जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए भारतीय राजनीति में इतिहास रचने का कार्य किया संघ के वरिष्ठ प्रचारकों की माने तो उन्होंने भाजपा को वैचारिक आधार पर समर्थन दिया है एवं भाजपा अपने प्रमुख मुद्दे श्री राम मंदिर निर्माण के लिए संकल्परत है। मंदिर निर्माण के लिए भाजपा कितनी सजग है यह तो समय ही बताएगा लेकिन एक बात तो तय है की इस बार भारत की जनता ने जाति धर्म से ऊपर उठकर विकास पर विश्वास दिखाया है ।

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...