Friday 26 December 2014

तुम ना तब मिली ना अब ...

(मेरी जीवन की सत्य घटनाओं पर आधारित मेरे द्वारा लिखे जा रहे उपन्यास का एक अंश)
"और इस बार कालेज के सर्व श्रेष्ठ छात्र का पुरस्कार दिया जाता है ......." कालेज प्रागण कि अंतिम  लाइन कि पहली  सीट पर बैठा मै अपना नाम सुन कर जैसे नीद से जग गया था , आज कालेज के वार्षिक उत्सव  का आखरी दिन था, और मेरा कालेज के आखिरी साल में .......
तालियो कि गूंज के बीच पता ही नही चला कि मै कब मंच पर पहुच गया था ,  मैं चेहरो में उन दो आँखों को ढूंढ रहा था जो जब मै मंच पर होता था तो मजाकिया इशारे करते हुए मेरा मजाक बनया करती थी,मैं तुम्हारे इशारों को देखकर हर बार भ्रम में पड़ जाता था कि कहीं मैं कुछ गलत तो नहीं बोल रहा लेकिन मंच से नीचे आकर जब दोस्तों से अपनी तारीफें सुनता था तो तुम पर गुस्सा भी आता था और प्यार भी ....
और सर्वश्रेष्ठ छात्र कि ट्राफी मेरे हाथ में थी , सबकी नजरे मुझ पर थी ,और इन हजारो जाने अनजाने चेहरों में तुमको ढूंढ रहा था उस  दिन संचालक जी चाह रहे  थे कि मै दो शब्द बोलू , पर मै तो तुम से बोलना चाह रहा था कि देखो तुम्हारा डफर आज कालेज का सर्वश्रेष्ट छात्र बन गया है , 9 में 5 पुरस्कार मिले है तुम्हारे पागल  को .?
उस दिन तुम नहीं दिखी मै हंस रहा था लेकिन खुश नहीं था फिर कॉलेज के बाहर तुम मिली और  तुमने जब मुझे बताया कि तुम अपने मामा जी के घर जा रही हो 
हमेशा के लिए और अब तुम कभी बात नहीं कर पाओगी  , जंहा तुम आगे कि पढ़ाई करोगी, मुझे ऐसा लगा कि शायद सब कुछ खो चुका हूँ
मुझ से हर दिन बात बेबात पर लड़ने वाली तुम मुझ से कभी न बात कि बात कर रही थी , जिसने मेरे सीने पर हर रोज अनगिनत प्यार भरे मुक्के मारे थे वो कभी न मिलने कि बात कर रही थी ,
उस दिन मैं घर वापस नहीं जाना चाह रहा था मै बस तुम्हारे साथ एक डूबती शाम बिताना चाहता था , और जो कुछ भी इन दिनों मेरे सीने में पला है...ज़िंदगी के उस बेमानीपन को बयां कर देना चाहता था
लेकिन मै ये भी जानता था कि हमारे बीच बचा ऐसा कुछ भी नहीं जिसे बयां किया जाना जरुरी हो. .....रिश्तों के बीच रात के उतर आने में महज अब पलके झपकाने भर की बात रह गई थी .....मुझे नहीं पता कि क्यों मुझे ऐसा लगा कि तुम मेरे बारे में पता करने कि कोसिस करोगी और ये दिखाने के लिए कि देखो मैं तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं मै १२ में फेल हो गया ....और वो भी उस सब्जेक्ट में जिसमे 100 /100 मिलता था ....

क्या बचपना था वो ....तुमने कभी दुबारा मेरी तरफ नहीं नहीं देखा.....कुछ साल याद रखने के बाद एक बार फिर वही कंडीशन आई फिर मैंने तुम्हें भीड़ में ढूँढा .6 सालों के बाद लखनऊ से दूर नॉएडा में अपने कॉलेज में किस ऑफ़ लव  विषय पर डिबेट कम्पटीशन में मुझे बोलना था ...विषय ऐसा था जिस पर पक्ष एवं विपक्ष दोनों ही तरफ से बहुत कुछ बोला जा सकता था ....लेकिन दो बातों ने मुझे निर्णय करने में सहायता की कि मुझे किस तरफ से बोलना है एक तो मेरे घर के संस्कार और दूसरा तुम ....
उस दिन पोर्डियम पर बोलते हुए मेरी निगाहें बस तुम्हे ढूंढ रही थी तुम मेरे सामने थी लेकिन मेरी हिम्मत नहीं थी कि मैं तुम्हें देखूं क्यों कि मुझे पता था अगर मैं तुम्हें देखकर बोलता तो निश्चित ही मेरे मुह से निकल ही जाता कि देखो मैं वही सोचता भी हूँ जैसे तुम्हारे साथ रहता हूँ ...मैं सबके सामने कह ही देता कि मैं जिससे प्यार करता हूँ उसे हाथ भी नहीं लगाया ....लेकिन फिर भी उस दिन पहली बार मैं वो बोला जो मेरे दिल में था ,कोई दिखावा नहीं कुछ भी नहीं .....मै बिना तुम्हे देखे उस दिन वो बोल रहा था जो प्यार को लेकर मैं सोचता हूँ और जो मैं तुम्हे समझाना चाहता था ....मैं उस दिन भाषण नहीं दे रहा था मैं बस तुमसे अपने दिल की बात कह रहा था .....
अपने जीवन में पहली बार अपने मन की बात कर रहा था ...

जीवन के इन दोनों हिस्सों में एक बात कॉमन थी "तुम" तब भी नहीं मिली और
"तुम" अब भी नहीं मिली....
लेकिन सुकून इस बात का है कि "तुम " आज मेरे प्यार को याद करती हो ....
और यकीन इस बात का है कि 
"तुम " मेरी चाहत को याद करोगी .....

Wednesday 17 December 2014

पेशावर में घटी ह्रदय विदारक घटना पर विरोध स्वरुप कुछ पंक्तियाँ।

पेशावर में घटी ह्रदय विदारक घटना पर विरोध स्वरुप कुछ पंक्तियाँ।
दूध पिलाते थे नागों को
भारत पर चढ़ जाने को
आतंकी पैदा करते थे
दहशत को फ़ैलाने को
पाकिस्तान तेरी करनी का
फल बच्चों ने भोगा है
दोहरे चेहरे वाले जालिम
उतरा तेरा चोगा है
इसी बेल को पाल पास कर
तूने कितना बड़ा किया
हर आतंकी को अपनाया
अपना अड्डा खड़ा किया
आज तुझे ही डस डाला
तेरे ही पाले साँपों ने
पैरों तले कुचल डाला
तेरे आतंकी बापों ने
देख जरा उस पीड़ा को
जो हर ह्रदय में उठती है
सूंघ जरा उस बदबू को
जो मरे शवों से उठती है
यूँ ही लोग मरे थे जब
तुमने मुम्बई दहलाया था
गोली की आवाजों से जब
अक्षरधाम गुंजाया था
संसद पर हमला हो या
कई बारों के बम के विस्फोट
अफज़ल गुरु कसाब भेजकर
कितनी गहरी दी है चोट
फिर भी तेरे दुःख में जालिम
तेरे साथ खड़े हैं हम
आतंकवाद से लड़ जाने को
खुलकर आज अड़े हैं हम
बात समझ आ पाई हो तो
अब ये दहशत बंद करो
भाड़े के आतंकी रोको
अब ये वहशत बंद करो
वरना एक दिन तुम डूबोगे
सारे मारे जाओगे
अपनी करनी के कारण तुम
जीवन भर पछताओगे।।

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...