Wednesday 22 October 2014

हाथ में मौली (कलावा) क्यों बांधा जाता है



क्या आप जानते हैं कि..... हमारे हिन्दू परम्पराओं के अनुसार ... हाथ में मौली (कलावा) क्यों बांधा जाता है ...?????


आपने अक्सर देखा होगा कि..... घरों और मंदिरों में पूजा के बाद पंडित जी हमारी कलाई पर लाल रंग का कलावा या मौली बांधते हैं.... और, हम में से बहुत से लोग बिना इसकी जरुरत को पहचाते हुए इसे हाथों में बंधवा लेते हैं...। सिर्फ इतना ही नहीं... बल्कि, .... आजकल पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े लोग .... मौली बांधने को एक ढकोसला मानते हैं .... और, उनका मजाक उड़ाते हैं...! हद तो ये है कि..... कुछ लोग मौली बंधवाने में अपनी आधुनिक शिक्षा का अपमान समझते हैं .... एवं, मौली बंधवाने से उन्हें ... अपनी सेक्यूलरता खतरे में नजर आने लगती है...! परन्तु , मैं आपको एक बार फिर से ये याद दिला दूँ कि..... एक पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म होने के नाते ......हमारे हिंदू सनातन धर्म की कोई भी परंपरा...... बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरता... और. हाथ में मौली धागा बांधने के पीछे भी एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है...! दरअसल.... मौली का धागा कोई...... ऐसा- वैसा धागा नहीं होता है..... बल्कि, यह कच्चे सूत से तैयार किया जाता है..... और, यह कई रंगों जैसे, लाल,काला, पीला अथवा केसरिया रंगों में होती है। मौली को लोग साधारणतया लोग हाथ की कलाई में बांधते हैं...! और, ऐसा माना जाता है कि ..... हाथ में मौली का बांधने से मनुष्य को ....... भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है...। कहा जाता है कि ....हाथ में मौली धागा बांधने से मनुष्य बुरी दृष्टि से बचा रहता है...... क्योंकि.... भगवान उसकी रक्षा करते हैं...! और, इसीलिए कहा जाता है ... क्योंकि.... हाथों में मौली धागा बांधने से ... मनुष्य के स्वास्थ्य में बरकत होती है... कारण कि, इस धागे को कलाई पर बांधने से शरीर में..... वात,पित्त तथा कफ के दोष में सामंजस्य बैठता है। तथा, ये सामंजस्य इसीलिए हो पाता हैं क्योंकि...... शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है (आपने भी देखा होगा कि .. डॉक्टर रक्तचाप एवं ह्रदय गति मापने के लिए कलाई के नस का उपयोग प्राथमिकता से करते हैं )...... इसीलिए.... वैज्ञानिकता के तहत .... हाथ में बंधा हुआ मौली धागा .... एक एक्यूप्रेशर की तरह काम करते हुए..... मनुष्य को रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाता है.. एवं, इसे बांधने वाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है। और, हाथों के इस नस और उसके एक्यूप्रेशर प्रभाव को हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों -लाखों साल पहले जान लिया था! परन्तु हरेक व्यक्ति को एक-एक कर हर बात की वैज्ञानिकता समझाना संभव हो नहीं पाता.... इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने गूढ़ से गूढ़ बातों को भी हमारी परम्परों और रीति- रिवाजों का हिस्सा बना दिया ताकि, हम जन्म-जन्मांतर तक अपने पूर्वजों के ज्ञान-विज्ञान से लाभान्वित होते रहें...! जानो,समझो और अपने आपको पहचानो हिन्दुओं हम हिन्दू उस गौरवशाली सनातन धर्म का हिस्सा हैं..... जिसके एक-एक रीति- रिवाजों में वैज्ञानिकता रची- बसी है...! जय महाकाल...!!!

*नोट : शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में , एवं विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में मौली बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों ....उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए.... और, दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।

एक भूल

जीवन में कुछ लोग ऐसे आते हैं जो अपना विशिष्ट महत्व बना लेते हैं...कभी कभी वो भावनाओं .के आधार पर कभी दिखावे के आधार पर...मैंने अपने अब तक के जीवन में किसी को अपने बहुत अधिक करीब नहीं आने दिया लेकिन नॉएडा आने के बाद एक शख्स ऐसा मिला जिससे अपने जीवन की हर बात शेयर करने की इच्छा हुई....लेकिन शायद उस व्यक्ति की प्रवत्ति अलग थी....2 दिन लगातार उसके व्यव्हार के विषय में सोचा तो लगा कि क्यों हम किसी के लिए स्वयं को परिवर्तित करे ....मित्रता स्वार्थी नहीं होती लेकिन उसकी हर एक बात से मात्र उसका स्वार्थ ही दिखता था.....मैंने भी प्रेम किया और शायद आज के समय में बिना अपेक्षा के प्रेम कोई नहीं कर सकता ....लेकिन जिससे प्रेम किया उसको भी मैं दुसरे स्थान पर रखता था फिर भी मेरी भावनाओं के साथ उस व्यक्ति ने खेला.....दोहरा चरित्र बहुत ही ख़राब होता है ...मुझे स्वयं पर गर्व होता था की मैं चेहरे से चरित्र को भांप सकता हूँ लेकिन अब पता चल रहा है की वो मेरी ग़लतफ़हमी थी ...
ये ब्लॉग लिखने से पहले मेरे मन में बहुत सी बातें थी लेकिन अभी मन में आ रहा है कि अपने करोडो के शब्दों को 2 कौड़ी के विचार पर क्यों नष्ट किया जाए .....
मेरे जीवन में अब एक ही इन्सान है जो मुझे मेरे जैसा लगता है....उसके लिए कुछ करने को जी चाहता है .....जिसके लिए बदलना अच्छा लगता है ....जिससे गुस्सा होकर फिर से मानना अच्छा लगता है....शायद मुझे उससे प्यार है या शायद एक धोखा.....


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एक सन्देश अपने अनदेखे अनजाने मित्रों के नाम....

मित्रों आप सभी का प्यार मुझे मेरे लेखन की वजह से मिला ऐसा मैं नहीं मानता ....मेरे विचार आपके विचारों से मिलते हैं इसी नाते आप सभी मुझे पसंद करते हैं ....आप सभी के मेल मुझे मिलते रहते हैं लेकिन सभी को व्यक्तिगत रूप से उत्तर दे पाना संभव नहीं...इसलिए सार्वजनिक रूप से लिख रहा हूँ...नागपुर के अविरल जी , लखनऊ के शुशांत जी,भुवनेश्वर के कार्तिकेय जी का विशेष रूप से धन्यवाद् ....आप तीनों ने मुझे बहुत शक्ति प्रदान की ...मेरे मन के भावों को समझकर एक समाधान देने का प्रयास किया ...यदि ईश्वर ने चाहा तो एक बार आप से अवश्य मिलूँगा....
मित्रों मुझे पता है मैं बदल गया हूँ , पहले राष्ट्रवाद और सिर्फ राष्ट्रवाद की बात करने वाला व्यक्ति प्रेम पर कैसे लिखने लगा उसका एक मात्र कारण है कि 2 महींने में प्रेम को मुझे बहुत करीब से समझने का अवसर मिला लेकिन अपने लक्ष्य को मैं भूला नहीं हूँ...बल्कि और भी अधिक तन्मयता के साथ प्रयासरत हूँ ....प्रेम जीवन का एक ऐसा विषय है जिसमे सिर्फ थ्योरी की क्लास चलती है.....उसी क्लास में कुछ नया सीखने का प्रयास कर रहा हूँ.....

अभी कल एक अन्य मित्र वत्सल जी का मेल आया कि मैं दोस्ती पर अपने कुछ अनुभव शेयर करूँ....
पिछले तीन दिनों में मित्रता में कुछ अलग हुआ है मेरे साथ उसी को अपने अगले ब्लॉग में लिखने का प्रयास करूँगा....

एक अंतिम बात मैं शब्द नहीं भावनाएं लिखता हूँ इस नाते उन भावनाओं का आप सभी सम्मान करेंगे यही आशा और अपेक्षा है ....
वन्दे भारती

ई-मेल  ---   rss.gaurav@gmail.com

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