Monday 20 September 2021

UP में सच दिखाने की सजा FIR क्यों है? CM योगी आदित्यनाथ के नाम एक पत्रकार का खुला पत्र

 प्रिय योगी आदित्यनाथ जी,
देश में बीते साल जब कोरोना का कहर शुरू हुआ तो सरकार ने बेहद संजीदगी से प्रवासी मजदूरों को मुफ्त में राशन पैकेट और भोजन पैकेट उपलब्ध कराने शुरू किए। फिर जब काम-धंधे रुक गए तो सरकार ने गरीबों को मुफ्त राशन देने की घोषणा कर दी। दुनिया में मुफ्त में राशन वितरण की यह सबसे बड़ी योजना थी। एक भारतीय के तौर पर मेरे लिए ये गर्व का विषय था कि अचानक आई महामारी को लेकर तमाम अव्यवस्थाओं के बीच सरकार कम से कम भूख मिटाने का इंतजाम कर रही है।

इस बीच अचानक पता लगा कि गरीबों के हक पर डाका जा रहा है। सरकारी राशन की दुकानों पर कोटेदार गरीबों के राशन में घटतौली कर रहे हैं। खबर हुई तो कुछ कोटेदारों पर ऐक्शन भी हो गया। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसका संज्ञान लिया। कई फोन आए, लोगों ने बधाइयां दीं, सुकून था कि प्रदेश के अंतिम व्यक्ति को मिलने वाले हक में थोड़ा योगदान मेरा और मेरे संस्थान का भी है।

पढ़ें: एनबीटी के 'ऑपरेशन भूख' का बड़ा असर: सीएम योगी बोले- कतई न होने पाए गरीबों के राशन में कटौती

फिर कोरोना की दूसरी लहर आई, फिर वैसी शिकायतें थीं, लोगों का कहना था कि हमें एकबार फिर से 'ऑपरेशन भूख' को रिएक्टिवेट करना चाहिए। हमने किया।

देखें वीडियो:
https://www.facebook.com/watch/?v=921599678683156


कोटेदारों ने खोली गोदाम की पोल
इसबार कोटेदारों ने साफ कहा कि उन्हें राशन गोदाम से ही कम मिलता है, बोरियों का वजन नहीं दिया जाता, अतिरिक्त वसूली भी होती है। अफसरों से बात की गई तो उन्होंने जांच कराने की बात कही। लेकिन कार्रवाई फिर से कोटेदारों पर हो गई और मामले को खत्म करा दिया गया। हमारे पास लगातार फोन आ रहे थे कि व्यवस्थाएं नहीं सुधरीं। अफसर छोटी मछलियों पर कार्रवाई करके खानापूर्ति कर देते हैं और बड़ी मछलियां आराम से भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगाती रहती हैं। खैर, हमारी टीम बुलाकी अड्डे के पास स्थित FCI के गोदाम पहुंची। यहीं से कोटेदारों को राशन दिया जाता है। वहां जाने से पहले हमने अपने कुछ कोटेदारों को फोन किया और पूछा कि क्या वे वहां आ सकते हैं। किसी ने समय मांगा तो किसी ने मना कर दिया। इसबीच अलका नाम की एक कोटेदार के रिश्तेदार रजनीश ने कहा कि वह आज राशन लेने जा रहे हैं। मैंने उनको गोदाम पर मिलने को कहा।

जब दबाव काम नहीं आया तो मैडम धमकाने लगीं
गोदाम पर मार्केटिंग इंस्पेक्टर शशि सिंह मौजूद नहीं थीं, एक कथित कर्मचारी जिसका नाम मोनू था, वो कोटेदारों को राशन दे रहा था। पहले तो हमने चुपचाप उसके काम और बातचीत की रिकॉर्डिंग की, फिर उसे अपना परिचय देने के बाद उसका परिचय पूछा। वो भड़क गया और कई लोगों से फोन कराकर दबाव डलवाने लगा। इसबीच उसने शशि सिंह से बात कराई, शशि सिंह ने मेरा परिचय पूछने के बाद फो न काट दिया। इसके बाद शशि सिंह ने अपने कई 'रिश्तेदार' पत्रकारों से फोन कराया, लेकिन मेरा साफ स्टैंड था कि मैं अपनी खबर के बीच में किसी को नहीं आने दूंगा।

कुछ देर के बाद शशि सिंह आईं और जब उनसे पूछा गया उनकी अनुपस्थिति में एक आउटसोर्सिंग वाला कर्मचारी कैसे बिना वेरिफिकेशन के राशन कैसे बांट सकता है तो वह भड़क गईं और एफआईआर की धमकी देने लगीं। बाद में विभिन्न धाराओं में मेरे साथ मेरे सहयोगी आशीष सुमित मिश्रा पर FIR हुई और मुख्य आरोपी रजनीश नामक शख्स को बनाया गया। इसकी वजह थी कि वह कैमरे पर वहां की व्यवस्थाओं को नंगा कर रहा था, सच बोल रहा था।

अब मैं कुछ टेक्निकल चीजें समझाता हूं।
1. उत्तर प्रदेश में एक कोटेदार को प्रति क्विंटल 70 रुपये मानदेय मिलता है, राशन बंटवाने के लिए।
2. डोर स्टेप डिलिवरी खत्म होने के बाद सरकार कोटेदारों को लगभग 18 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से अतरिक्त धन दे रही है, गोदाम से कोटे तक लाने के लिए।
यानी कोटेदार को कुल 70+18= 88 रुपये सरकार की ओर से मिलता है।
3. कोटेदार को राशन तौलवाने का पैसा गोदाम पर अलग से देना पड़ता है, उसे खुद गोदाम जाकर राशन लदवाना पड़ता है और इतनी महंगाई में वह कम से कम 35-40 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से राशन को अपने कोटे तक लेकर आता है। अब एक गणित समझिए:

मान लीजिए किसी कोटेदार के पास 200 क्विंटल राशन आ रहा है, इसका मतलब है कि उसे सरकार की ओर से 17,600 रुपये मिल रहा है।
इसके बाद उसके खर्च जोड़िए
गोदाम से कोटे तक राशन लाने का खर्च: 200x40= 8000
दुकान का किराया= 4000 (औसतन)
सहयोगी का खर्च= 8000 (औसतन)
बिजली का बिल= 1000 (औसतन)
स्टेशनरी (पेन, डायरी, बिल)= 1000 (औसतन)
अतिरिक्त खर्चे (राशन लेने जाना, उतरवाना)=1000
कुल= 23000 रुपये
यानी क्या कोटेदार 5400 रुपये अपनी जेब से भरेगा? नहीं वो भ्रष्टाचार करेगा। क्योंकि सिस्टम ऐसा बना हुआ है। और ये जो गणित मैंने समझाया है, ये हर अधिकारी को पता है, इसलिए कठोर कार्रवाई नहीं होती।

कैसे रुकेगा भ्रष्टाचार
सबसे आसान तरीका ये है कि सरकारी राशन की दुकानों को सरकार सीधे तौर पर अपने अंडर में ले ले और वहां बाकायदा कर्मचारी तैनात करके राशन का वितरण कराए। ऐसे मामलों में जवाबदेही उस सरकारी कर्मचारी की तय होगी।
दूसरा रास्ता यह है कि दिल्ली, हरियाणा जैसे अन्य राज्यों की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में कम से कम मानदेय इतना किया जाए कि इन कोटेदारों को गलत करने की जरूरत ना पड़े। फिर गोदाम से लेकर दुकान तक, कड़ाई से व्यवस्था का पालन कराया जाए।  

हो सकता है कि ये कोटेदारों के पक्ष की बात हो, लेकिन असल में ये बात सीधे तौर पर सूबे के गरीबों से जुड़ी हुई है। पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान एक पेपर हुआ करता था 'मीडिया रिसर्च'। उसमें खबर के पीछे छिपी खबर निकालना बताया जाता था। मैं जो भी स्टोरी करता हूं, उसकी तह में जाकर पता करता हूं कि असल मसला फंस कहां रहा है। इस मामले में भी वही है। मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं। बेहद संजीदगी के साथ अपना काम करता रहूंगा।

मामले में भले ही FIR हुई हो, लेकिन उससे मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं अपना काम कर रहा हूं और व्यवस्था अपना काम करेगी। बस दो छोटे से सवाल हैं
1. एक बच्ची को लगातार अश्लील वीडियो कॉल आते हैं, 4 दिन तक पिता थाने के चक्कर लगाता रहता है, लेकिन एक FIR दर्ज नहीं करती।
दुकान से लूट हो जाती है, दुकानदार से मारपीट होती है, पुलिस कहती है कि 151 में मुकदमा कराना है तो कराओ, लूट का नहीं लिखेंगे। इसके बाद पीड़ित आपको पत्र लिखता है।
किसी के साथ राजधानी के बड़े चौराहे पर मोबाइल लूट होती है, लेकिन पुलिस 3 दिन तक FIR नहीं दर्ज करती।
इतनी संजीदा UP पुलिस कुछ ही घंटों में बिना एक बार भी मेरा पक्ष जाने FIR कैसे दर्ज कर लेती है। क्या इसलिए क्योंकि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को दबाने की कोशिश में सब हिस्सेदार हैं।

2. ये तेजी अच्छी है, FIR का मतलब होता है- First Information Report यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट। सूचना मिलते ही पुलिस का नैतिक दायित्व है कि FIR दर्ज करे, लेकिन हर मामले में ही ऐसा करे। बाकी मामलों में ऐसा क्यों नहीं होता?

एक राष्टवादी सरकार से मेरी अपेक्षा क्या थी?
FIR हो गई थी, कोई बात नहीं थी। लेकिन 3 दिन बीत जाने के बाद भी एक कामचोर अफसर कुर्सी पर बैठा है, मामले में उच्चस्तरीय जांच क्यों नहीं हुई? हम तो सरकार की मदद कर रहे हैं, बता रहे हैं कि किस तरह से व्यवस्था को खराब किया गया है, किस तरह से अफसरों ने गड़बड़ की है, सरकार को तो हमारा सहयोग करना चाहिए। और हम अपेक्षा भी यही करते हैं।

Wednesday 15 September 2021

लखनऊ के पत्रकार साथियों के नाम Open Letter

 नमस्ते,
मुझे बताया गया कि लखनऊ की मीडिया के एक वॉट्सऐप ग्रुप में हाल ही में मेरे ऊपर हुई एफआईआर को लेकर कुछ चर्चा हो रही है। उसमें इस पूरे मामले को लेकर कुछ भ्रम जैसी स्थिति है। इसलिए मैं चाहता हूं कि मेरी बात भी लखनऊ के सभी जूनियर-सीनियर पत्रकार मित्रों तक पहुंचे।
सबसे पहले तो अपने बारे में बता दूं, क्योंकि डिजिटल में काम करने की वजह से फील्ड में अधिक नहीं रह पाता और इसी वजह से आप सभी से परिचय भी नहीं हो पाया। मेरा नाम विश्व गौरव है और मैं लखनऊ का ही रहने वाला हूं। 2010 में लखनऊ से ही बहुत छोटे स्तर पर पत्रकारिता की शुरुआत की थी। फिर 2013 में दिल्ली गया और 2017 तक वहीं पत्रकारिता की। फिलहाल लखनऊ में हूं और नवभारत टाइम्स ऑनलाइन में काम कर रहा हूं। वैसे तो सामान्य तौर पर डिजिटल में डेस्क पर काम करने वाले लोग स्टोरीज नहीं करते, लेकिन मैंने शुरुआत से ही इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की।
अब आते हैं इस मामले पर।

हमने बीते साल 'ऑपरेशन भूख' नाम से एक सीरीज चलाई थी। काफी प्रभावी सीरीज रही थी।


डीटेल में आप उसके बारे में यहां जान सकते हैं। मुझे जानकारी मिली थी कि सरकारी राशन की दुकानों पर कोटेदार गरीबों के राशन में घटतौली कर रहे हैं। खबर हुई तो कुछ कोटेदारों पर ऐक्शन भी हो गया। फिर कुछ कोटेदारों ने मुझसे मिलकर अपनी समस्याएं बताईं, ऊपर दिए गए लिंक पर आप देख सकते हैं कि उनके पक्ष को भी शामिल करते हुए हमने स्टोरीज कीं। इसके बाद अभी 2-3 महीने पहले हमने फिर से अपनी वही पुरानी सीरीज शुरू की, जिसमें फिर से लोगों को राशन कम दिया जा रहा था। कोटेदारों ने ऑन कैमरा बताया कि उन्हें गोदाम से राशन कम मिलता है।
यहां देखें:




जिसके बाद जिला प्रशासन ने कोटेदारों पर कार्रवाई करके खानापूर्ति कर ली। फिर इस महीने मेरे पास कई कोटेदारों के फोन आए कि गोदाम से राशन कम मिल रहा है और अवैध वसूली हो रही है। उनका कहना था कि डोरस्टेप डिलिवरी खत्म होने के बाद व्यवस्था और खराब हो गई है। जिसके बाद हमारी टीम बुलाकी अड्डे के पास स्थित FCI के गोदाम पहुंची। यहीं से कोटेदारों को राशन दिया जाता है। वहां जाने से पहले हमने अपने कुछ कोटेदारों को फोन किया और पूछा कि क्या वे वहां आ सकते हैं। किसी ने समय मांगा तो किसी ने मना कर दिया। इसबीच अलका नाम की एक कोटेदार के रिश्तेदार रजनीश ने कहा कि वह आज राशन लेने जा रहे हैं। मैंने उनको गोदाम पर मिलने को कहा।

गोदाम पर मार्केटिंग इंस्पेक्टर शशि सिंह मौजूद नहीं थीं, एक कथित कर्मचारी जिसका नाम मोनू था, वो कोटेदारों को राशन दे रहा था। पहले तो हमने चुपचाप उसके काम और बातचीत की रिकॉर्डिंग की, फिर उसे अपना परिचय देने के बाद उसका परिचय पूछा। वो भड़क गया और कई लोगों से फोन कराकर दबाव डलवाने लगा। इसबीच उसने शशि सिंह से बात कराई, शशि सिंह ने मेरा परिचय पूछने के बाद फो न काट दिया। इसके बाद शशि सिंह ने अपने कई 'रिश्तेदार' पत्रकारों से फोन कराया, लेकिन मेरा साफ स्टैंड था कि मैं अपनी खबर के बीच में किसी को नहीं आने दूंगा।

कुछ देर के बाद शशि सिंह आईं और जब उनसे पूछा गया उनकी अनुपस्थिति में एक आउटसोर्सिंग वाला कर्मचारी कैसे बिना वेरिफिकेशन के राशन कैसे बांट सकता है तो वह भड़क गईं और एफआईआर की धमकी देने लगीं। बाद में विभिन्न धाराओं में मेरे साथ मेरे सहयोगी आशीष सुमित मिश्रा पर FIR हुई और मुख्य आरोपी रजनीश नामक शख्स को बनाया गया। इसकी वजह थी कि वह कैमरे पर वहां की व्यवस्थाओं को नंगा कर रहा था, सच बोल रहा था।

शशि सिंह का कहना था कि उनके पास महिलाबाद का भी चार्ज है, और वो वहां गई थीं, लेकिन मेरे सूत्रों ने बताया कि वो उसदिन वहां भी नहीं थीं। रही बात उनके बयान की, तो वीडियो में उन्होंने जो बोला है, उसके बाद मेरा जवाब यही था कि 'आपने जो कह दिया, मैं कोटेदारों के आरोपों के साथ उसे भी चला दूंगा।'

साथियो, हम में से कई 'सिस्टम' वाले या फिर ऐक्सिडेंटल पत्रकार होंगे, लेकिन मैंने बहुत कुछ छोड़कर इसे चुना है। आज तक और आगे भी कोई मुझपर किसी तरह की दलाली प्रमाणित नहीं कर सकता। पूरी जिम्मेदारी के साथ अपने सिद्धांतों पर अडिग रहकर पत्रकारिता करता हूं। सिलिंडर पर मिलने वाली सब्सिडी से लेकर किसी तरह की 'गैरजरूरी' सरकारी सुविधा नहीं ली। कई वर्तमान मंत्री निजी तौर पर काफी पहले से संपर्क में हैं, कई जूनियर इन मंत्रियों के PRO हैं, कई पुराने निजी संबंधों वाले परिचित विभिन्न राजनीतिक दलों में बड़ी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता शुरू करने से लेकर आज तक किसी राजनीतिक दल के कार्यालय से लेकर सचिवालय तक में एक चाय तक नहीं पी। पत्रकारिता के इतने बड़े ब्रैंड से जुड़ने के बाद कभी उन लोगों से मिलने नहीं गया। बात की, तो भी बेहद प्रोफेशनल होकर। लोग कहने लगे कि तुम बदल गए हो लेकिन शायद ये बदलाव मेरी जिम्मेदारी के साथ स्वतः ही आ गया था।

मुझे नहीं पता कि मेरी बातों को आप किस तरह से लेंगे, लेकिन मैं बस अंत में इतना कहना चाहता हूं कि मेरी किसी से लड़ाई नहीं है, मुझे किसी से लड़ना भी नहीं है लेकिन ये धर्म युद्ध है और जो इस युद्ध में सत्य के साथ नहीं है, वो निश्चित ही असत्य/अधर्म के साथ है।
बाकी फैसला आप सभी पर है...

आपका
विश्व गौरव

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

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