Sunday 30 August 2015

28 अगस्त की वो रात....


28 अगस्त की रात एमफिल की कक्षाओं के लिए शिवगंगा एक्सप्रेस से वाराणसी जा रहा था। सुबह से शाम तक काम करने के बाद काफी थकावट हो रही थी..इस लिए 10 बजे तक सो गया। नींद ने पूरी तरह से मुझ पर पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया था। लगभग 11 बजे के पास मेरी आंख खुली तो ट्रेन का माहौल एकदम शांत था। अधिकतर यात्री या तो सो रहे थे या फिर चुपचाप लेटे थे। मेरे सामने वाली सीट पर दो लड़के बैठे थे। जिनमें से एक की उम्र लगभग 23 साल और दूसरे की उम्र 17 के आस पास रही होगी। आंख खुलने के बाद वॉट्सऐप पर आए हुए संदेश देखे लेकिन नींद हावी थी इसलिए किसी को रिप्लाई नहीं किया। अगले दिन शाम को आकर
ऑफिस ज्वाइन करना था इस लिए सोचा कि मैं ठीक तरह से आराम कर लूं और इसी उद्देश्य के साथ सो गया।

पढ़ें- वो सात दिन---कुछ खोया और कुछ सीखा

मेरी सुन्दर नींद में अचानक से खलल पड़ी जब कोई गाना सुनाई दिया। बिना आंख खोले सोचा कि इतनी रात में कौन बेवकूफ ट्रेन में गाना बजा रहा है। फिर जब गाने के शब्दों पर ध्यान दिया तो पता लगा कि वो एक बर्थडे
सांग था। मैं उस धुन को सुनकर उठकर बैठ गया। मैंने देखा कि जो बड़ा लड़का था वो छोटे लड़के को ब्रिटानिया केक का पैकेट खोलकर खिलाने जा रहा था और मोबाइल पर वह धुन बज रही थी। मुझे उठा हुआ देखकर वो बड़ा लड़का मुझसे बोला कि सर, माफी चाहता हूं इतनी रात में डिस्टर्ब कर दिया। मैं कुछ बोलता इससे पहले ही वह बोला कि सर हम दोनों भाई हैं और अब तक दिल्ली में साथ में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन अब मेरा सिलेक्शन भारतीय सेना में हो गया है इसलिए अपने छोटे भाई को गृहनगर बनारस में छोड़कर 3 दिन बाद ट्रेनिंग पर निकलना है। और सेना से जुड़ने के बाद नहीं पता कि कभी भाई का जन्म दिन मना पाऊंगा या नहीं। इतना सुनते ही मेरे मुंह से अनायास ही निकला कि आज क्या डेट है? तो उसने जवाब दिया, 29 अगस्त...डेट सुनकर मैंने उस लड़के के हाथ से केक लिया और उसके छोटे भाई को खिलाते हुए बस इतना ही कहा कि इसी दिन मैंने भी किसी के साथ उसका आखिरी जन्मदिन मनाया था.....

Saturday 29 August 2015

अरे कूल डू़ड !! धिक्कार है तुम पर...

अभी अभी मेरे watsapp के एक ग्रुप में एक मैसेज आया।
किसी भी अनजान चीज को हाथ न लगाएं उसमे राखी हो सकती है।
पिछले कुछ वर्षों से देख रहा हूं कि सोशल मीडिया पर एक प्रचलन चला है, या यूं कहें एक षड़यंत्र चला है, वह यह कि जैसे ही कोई त्यौहार आने वाला होता है कुछ लोग उस त्यौहार को ऐसे पेश करते हैं जैसे वो उनके ऊपर बोझ हो।

 अरे कूल डू़ड !! तुम्हारे लिए अपनी बहन बोझ बन रही है क्या जो तुम राखी का मजाक बना कर बैठे हो। तुम कैसे अपनी माँ बहन की रक्षा करोगे। राखी एक रक्षा सूत्र है अगर तुम भूल रहे हो तो याद दिलाऊं राजस्थान में औरतों अपनी रक्षा के लिए जौहर कर आग में कूद जाती थीं। रानी पद्मिनी के साथ 36000 औरतों ने जौहर किया था । एक महिला की रक्षा तुम्हें मजाक लगती है ? महोदय, देवी की रक्षा नहीं करोगे तो इस धरती से मानव जीवन समाप्त हो जाएगा।

मित्रों इस प्रकार के संदेश मात्र रक्षाबंधन पर ही नहीं आते। हर त्यौहार पर इस प्रकार के मैसेज आ ही जाते हैं। अभी पिछले वर्ष दशहरे पर एक अतिमूर्खतापूर्ण संदेश पढ़ा। संदेश था
रावण सीता जी को उठा ले गया है और राम जी लंका पर चढ़ाई करने जा रहे हैं उसके लिय बंदरो की आवश्यकता है जो भी मैसेज पढ़े तुरंत निकल जाये ||

वाह !!! आज सीता अपहरण हमारे लिए मजाक का विषय हो गया है। जोरू का गुलाम बनना गर्व का विषय राम का सैनिक बनना मजाक हो रहा है !!!

एक अन्य पोस्ट देखी कि रावण को कोर्ट ले जाया गया वहां कहा गया कि गीता पर हाथ रख कसम खाओ तब रावण कहता है कि सीता पर हाथ रखा उसमे इतना बवाल हो गया गीता पर रखा तो……||
यह बड़े शर्म की बात है कि अग्नि परीक्षा देने के बाद भी आज ये समाज सीता माता के चरित्र पर सवाल उठाने को मजाक समझते है। कभी घर पर बैठी माँ से पूछो पिताजी कहां कहां हाथ लगाते हैं अगर नहीं पूछ सकते तो तुम्हें किसने अधिकार दिया एक आदर्श प्रस्तुत करने वाली माता सीता पर हाथ रखने को मजाक बनाने का ????

हम राखी और सीता अपहरण पर मजाक करते हैं ऐसा करके हमारी वजह से समाज की क्या मानसिकता बनती है, कभी विचार किया है। लोग लड़की की रक्षा से कतराते हैं क्यों की राखी को हमने मजाक बना दिया है हमने सीता माता जैसी पवित्र माँ का मजाक बना दिया है।आज हमने समाज में महिला का मजाक बना दिया है उसकी रक्षा और उसकी अस्मिता एक जोक बनकर हमारा हास्य कर रही है इससे पता चलता है हम कितने धार्मिक हैं।


इस बार फिर रक्षाबंधन पर अपनी बहन के पास नहीं जा पा रहा हूं......

Friday 28 August 2015

अब बस करो ओवैसी, नहीं तो.....

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अभी अभी अरविंद केजरीवाल जी के ट्वीट से खबर मिली कि एनडीएमसी ने औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखने का निर्णय लिया है। बहुत खुशी हुई यह जानकर कि इतिहास की गलतियों को सुधारने का प्रयास जारी है, लेकिन इससे अधिक खुशी का विषय ये था राष्ट्रीय अस्मिता के संरक्षण में आम आदमी पार्टी भी सहयोग कर रही है। मैं इस विषय पर चिंतन कर ही रहा था कि अचानक मेरी नजर असीवुद्दीन ओवैसी के ट्वीट पर पड़ी।


उस ट्वीट को देखकर समझ में आया कि क्यों इस देश में आतंकवाद को एक मजहब से जोड़कर देखा जाता है। इन जैसे लोगों की वजह से ही पूज्य कलाम और अश्फाक जैसे लोगों को भूलकर आतंकवाद को इस्लाम से जोड़कर देखा जाने लगता है।

अरे ओवैसी साहब अब बहुत हो चुका, अब देश के टुकड़े करने की कोशिश मत करो। और तुम क्या बता रहे हो औरंगजेब का इतिहास मैं बताता हूं कौन था औरंगजेब...
हिन्दुस्थान के इतिहास का सबसे जालिम शासक :
जिसने अपने पिता को कैद किया
जिसने अपने सगे भाइयों और भतीजों की बेरहमी से ह्त्या की
जिसने गुरु तेग बहादुर का सर कटवाया
जिसने गुरु गोविन्द सिंह के बच्चो को जिंदा दीवार में चुनवाया
जिसने सैकड़ों मंदिरों को तुड़वा कर भारत को अरब बनाने की कोशिश की
जिसने हिन्दू त्योहारों को सार्वजनिक तौर पर मनाने पर प्रतिबन्ध लगाया
जिसने 10 नवंबर सन 1675 को गुरू तेग बहादुर जी के भाई दयाल सिंह को इस्‍लाम कबूल न करने पर चांदनी चौक पर खौलते कड़ाह में डाल दिया गया ।
जिसने अपनी प्रजा पर बे-इन्तहा जुल्म किए और अपने शासन क्षेत्र में गैर-मुस्लिमों के लिए मुनादी करावा दी थी कि या तो आप इस्लाम कबूल कर लें या फिर मरने के लिए तैयार रहें।
औरंगजेब एक तुर्क था। उसके काल में ही उत्तर भारत का तेजी से इस्लामिकरण हुआ। अधिकतर ब्राह्मणों को या तो मुसलमान बनना पड़ा या उन्होंने प्रदेश को छोड़कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के गांवों में शरण ली।

प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी सेना को सन् 1669 में जारी अपने एक हुक्मनामे पर हिंदुओं के सभी मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस दौरान सोमनाथ मंदिर, वाराणसी का मंदिर, मथुरा का केशव राय मंदिर के अलावा कई हिंदू देवी-देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिए गए थे।

अरे ओवैसी तुम क्या बताओगे कि औरंगजेब कौन था। बहुत खुशनसीब हो कि तुम और तुम्हारा छोटा भाई खुलेआम कहते हो कि तुम इस देश की संस्कृति को नष्ट करने का भरसक प्रयास करने वाले औरंगजेब के वंशज हो और फिर भी जीवित हो। अभी भी समय है सुधर जाओ और इस पतित पावनी भारत मां के लिए वैसे ही मुसलमान बनो जैसे कलाम थे। वो कलाम जिसने जब ये दुनिया छोड़ी तो देश का प्रत्येक व्यक्ति रोया था। वो भी जो आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ते हैं।
वन्दे भारती

Thursday 27 August 2015

भारत vs इंडिया- एक विश्लेषण



वर्तमान समय में भारत, इंडिया मे खोता जा रहा हैं। मेरे इस लेख पर बहुत से तथाकथित बुद्धिजीवी मुझे ज्ञान की बाते बतायेंगे। आप सभी पाठकों से निवेदन हैं की इस लेख को लिखने की आवश्यकता मुझे क्यों पडी उसे समझने का प्रयास करें। भारत को इंडिया से अलग करके देखने की मेरी कोशिश कइयों को नागवार लगेगी, और कई इसे मेरी सनक कह कर खारिज कर देंगे। लेकिन भारत इंडिया नही हैं यह कहने वाला मै अकेले नहीं हूं। अंग्रजों द्वारा लागू की गई शिक्षा पद्धति एवं कुछ मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारत एवं इंडिया को एक दिखाने का प्रयास किया। मेरे कुछ सामान्य से प्रश्न उन बुद्धिजीवीयों से हैं जो भारत को इंडिया कहते हैं- 

जब कोई उनसे हिन्दी मे पूछता है आप किस देश मे रहते हैं? तो सामान्य सा उत्तर आता हैं, 'मैं भारत या हिन्दुस्तान में 
रहता हूं' लेकिन जब उसी व्यक्ति से अंगेजी मे पूछा जाता हैं  In which country do you live? तो वहीं बडे शौक से कहते हैं I live in india । पूरे विश्व के अंदर किसी एक देश का नाम कोई बता सकता है जिसको दो अलग अलग भाषाओं मे अलग अलग नाम से बुलाया जाता हो। जब भारतीय क्रिक्रेट टीम क्रिक्रेट खेलती है तो टीवी पर नीचे लिख कर आता हैं इंडिया। क्या किसी अन्य देश के साथ ऐसा होता है क्या कोई अन्य देश अपने गुलामी को अपने सर का ताज बना कर चलता है। 


सामान्य अंग्रेजी में कक्षा 4 में हमें नाउन की परिभाषा पढाई जाती हैं एव नाउन के सिद्धातों के अनुसार प्रापर नाउन का कभी ट्रांसलेशन नहीं होता उदाहरण के तौर पर यदि मेरा नाम विश्व गौरव हैं तो क्या अंग्रेजी मे मुझे 'world pride' या 'world dignity' कहा जायेगा? नहीं न.... अंग्रेजी की थोड़ी बहुत व्याकरण का ज्ञान मुझे भी है और उसके अनुसार प्रापर नाउन का अंग्रेजी में ट्रासलेशन करना व्याकरण के साथ खिलवाड करने जैसा है। हो सकता हैं बहुत से बु़द्धिजीवी यह बोलें कि आर्यावत, भारत, विश्वगुरू, हिन्दुस्तान, सोने की चिडिया की तरह ही इंडिया भी इस देश का नाम हैं लेकिन यदि नाम हैं तो व्याकरण के साथ ऐसा भद्दा मजाक क्यूं क्या संविधान में लिखी एक लाईन INDIA THAT IS BHARAT के लिए हम बचपन में पढ़ी हुई व्याकरण को भूल सकतें हैं ? आज के संदर्भ में भारत को पहचानना बहुत आसान हैं। भारत के लोग गावों और शहर की गरीब बस्तियों मे रहते हैं, यह भी हो सकता है कि वो उसी अटटालिकाओं मे रहतें हो लेकिन उनके मन में आज भी भारतीय संस्कति, भारतीय आचार-विचार, भारतीय संस्कार कहे-अनकहे रूप में दिख ही जाते हैं। भारत के लोग हमारी पंरम्परा का पालन करते हैं, उसमें गर्व महसूस करते हैं, ये लोग जमीन से जुडे़ हुए लोग हैं जो स्वयं में अपने देश को देखते हैं। ये लोग स्वयं को 1/125 करोड़ भारत समझते हैं। ये लोग इतनी झमता रखते हैं, कि विश्व पटल पर भारत का प्रतिनिधित्व कर सकें। उसी भारत के एक निवासी के रूप में भगवा वेशधारी स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो धर्म सम्मेलन में इंडिया को नहीं भारत को प्रस्तुत किया था। 

वर्तमान समय में यदि चर्चा इंडिया के विषय में की जाए तो ध्यान मे आता है कि इंडिया, भारत का शोषण करता हैं। भारत इंडिया का उपनिवेश बन के रह गया हैं। इंडिया अमीर हैं, उसके पास बेसुमार धन-दौलत, चल-अचल सम्पत्ति है इनके बच्चे इंग्लिस मीडियम मिशीनरी स्कूलों में पढ़ते हैं तथा बडे़ होकर अमेरिका, इग्लैड, जर्मनी, आस्टेलिया में पढ़ने जाते हैं । ये भारतवासियों को हेय दृष्टि से देखते हैं। भारत में इनकों कुछ भी अच्छा नही लगता ये अंग्रेजी बोलना पंसद करते हैं। भारतीय भाषायों को बोलने मे इन्हें शर्म महसूस होती है। इंडिया के लोग अपनी पंरम्परा के पालन मे हीन भावना महसूस करते हैं। उनको भारत के इतिहास का कोई ज्ञान नहीं है, वे विदेशी सभ्यता, संस्कति को अपनाने मे गर्व महसूस करते हैं। इन्हें भारतीय कला,साहित्य, संस्कृति और विज्ञान नित्कृष्ट लगते हैं । मुझे डर इस बात का है कि भारत के अंदर एक ऐसी जड़ विहीन पीढ़ी अस्तित्व में आ रही हैं जो न यहां की होगी न वहां की। 

क्या है इंडिया और क्या है भारत

भारत में गॅाव हैं, गली हैं, चैबारा हैं। इंडिया में सिटी हैं, मॅाल हैं, पंचतारा हैं। 
भारत में काका हैं, बाबा हैं, दादी हैं। इंडिया में अंकल, आंटी कि आबादी हैं। 
भारत मे मटके है, दोने हैं, पत्तल हैं। इंडिया में पॅालिथीन हैं, वॅाटर हैं और वॅाईन हैं। 
भारत में दूध हैं, दही हैं, लस्सी हैं। इंडिया मे खतरनाक कोक, विस्की और पेप्सी हैं। 
भारत में मंदिर हैं, मंडप हैं, पंडाल है। इंडिया में पब है, डिस्कों हैं और हॅाल हैं। 
भारत मे आदर हैं, प्रेम हैं, सत्कार हैं। इंडिया मे स्वार्थ हैं, नफरत हैं और दुत्कार हैं। 
भारत सीधा हैं, सरल हैं, सहज हैं। इंडिया धुर्त हैं, चालाक हैं, कुटील हैं। 
भारत में संतोष हैं, सुख हैं, चैन हैं। इंडिया बदहबास, दुखी और बेचैन हैं। 
क्यूं कि---------- 
भारत को देवों ने वीरों ने रचाया हैं। इंडिया को लालची अंग्रेजो ने बसाया हैं। (मांइड इट से साभार) 

राष्टीयता, एकात्मता एवं भारतीय अर्थव्यवस्था को तोड़ने के लिए किया गया अंग्रेजो का प्रयास आज विकराल परिणामों के साथ भलीभूत होता दिख रहा हैं एवं इन सभी के लिए पूर्णरूप से मैकाले शिक्षा पद्धति जिम्मेदार हैं अब वास्तव में आवश्यकता हैं कि भारत को भारत कि शिक्षा दी जाए। जिससे कि भारत का बेटा अमेरिका और इंग्लैड के सामने हाथ फैला कर ना खड़ा हो। 

इस बात का गर्व मुझे भी है कि नासा के अंदर 46 प्रतिशत भारतीय काम करते हैं लेकिन एक पीड़ा यह भी हैं कि वह अपनी प्रतिभा को भारत से नाकार दिए जाने के बाद वहां जा कर वह सम्मान पाते हैं जो उन्हे भारत में मिलना चाहिए था। और यही पीडा जन्म देती हैं शिक्षा पद्धति में बदलाव के लिए किए जा रहे आंदोलन को। 

Wednesday 26 August 2015

अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.3

अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2 से आगे

पाकिस्तान में की नौकरी
डोभाल ने सात साल लाहौर में मुसलमान बनकर गुजारे और तरह-तरह का भेष बदलकर जासूसी की है। उन्होंने इस्लामाबाद में नौकरी भी की है। अजित डोभाल ने न केवल पाकिस्तान की जमीन पर सालों गुजारे बल्कि वो चीन और बांग्लादेश की सीमा के उस पार मौजूद आतंकवादी संगठनों और घुसपैठियों की नाक में नकेल डालने में भी कामयाब रहे हैं। यही नहीं डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी संभालीं और फिर करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का लीड किया।

ओबामा की भारत यात्रा


वैसे बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को आमंत्रित करने की सलाह उन्होंने ही मोदी को दी थी। कहते हैं कि उन्होने ही अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बात कर राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा तय करवाई। उन्हें जानने वाले लोग बताते हैं कि राजग के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र को खबरों में बने रहना अच्छा लगता था जबकि डोभाल चुपचाप काम करने में विश्वास करते हैं। शायद इसकी एक वजह उनकी आईबी की जासूस पृष्ठभूमि भी है।

विदेश दौरों में खास रोल 
डोभाल ने चाइना, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, जापान आदि मोदीजी के अनेकों सफल विदेश दौरों पर अपना रोल बखूबी निभाया। चाहे डिफेंस मिनिस्टर हो चाहे होम मिनिस्टर हो, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो, सबको इन पर काफी भरोसा है। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मामला हो या विदेश नीति से संबंध का कोई मसला या रक्षा सौदों की बात हो। हर जगह उनकी सलाह ली जा रही हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों के मामले में तो उनकी भूमिका और भी अहम है। अमेरिका के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर बात करनी हो या यूरोपीय देशों से काला धन लाने की मुहिम हो, हर जगह उनकी सलाह ली जा रही है।


इजराइल से समझौता 
जो रक्षा खरीद दशकों से नहीं हो पायी थी, उन्हें उनके आते ही हरी झंडी मिलनी शुरु हो गई है। इजरायल से रक्षा संबंधी उपकरणों की 525 मिलियन डॉलर का सौदा वर्षों से लटका चला आ रहा था। अक्टूबर में डोभाल की वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोसेफ कोहेन के साथ मुलाकात हुई व तीसरे ही दिन ही इसे खरीद की स्वीकृति जारी कर दी गई। माना जाता है कि वे शुरु से ही इजरायल के साथ रक्षा क्षेत्र में घनिष्ठ रिश्ते बनाए जाने के समर्थक रहे हैं। डोभाल को फाइलों पर नोटिंग कर उसे एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में या फिर विभागों में चक्कर खिलवाते रहने का शौक नहीं है। वे फैसले लेने में जरा भी देर नहीं करते हैं।

दिमाग से ज्यादा तेज काम करता है मुंह
उनके बारे में आईबी में एक चुटकुला काफी चर्चित रहा। वहां के लोग बताते हैं कि उनका मुंह उनके दिमाग से भी कहीं ज्यादा तेजी से काम करता है। यही वजह है कि जब वे बोलते हैं तो अक्सर तमाम शब्द मुंह में ही छूट जाते हैं क्योंकि दिमाग जो सोच रहा होता है, जुबान उससे पहले ही उसे कह देने के लिए बैचेन रहती है। उनकी एक खासियत यह भी है कि वे आमतौर पर आला अफसरों की तरह सरकारी प्रोटोकाल निभाने में विश्वास नहीं रखते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी से करीबी
श्री अजित डोभाल भारत में हिम्मत और जासूसी की दुनिया का एक चेहरा बन गये हैं । वो आज नरेंद्र मोदी की सरकार में रुतबे और रसूख की एक नई पहचान बन चुके हैं । देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की प्रधानमंत्री मोदी से ये करीबियत ही उनकी अहमियत को बयान कर देती है। अजीत डोभाल ने सीमापार पलने वाले आतंकवाद को करीब से देखा है और आज भी आतंकवाद के खिलाफ उनका रुख बेहद सख्त माना जाता है। कहते हैं ऊपरवाले ने इनमें देश के दुश्मनों की खातिर दया का एक भी पुर्जा नहीं बनाया है।

पढ़ें-
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.1
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2

अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2

अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.1 से आगे

पंजाब में कराया चुनाव
डोभाल ने वर्ष 1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाई थी। डोभाल की कामयाबी की लिस्ट में आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब में चुनाव कराना भी शामिल रहा है। 90 के दशक में आतंकवाद की आग में झुलसते कश्मीर में डोभाल ने आतंकवादियों और आम कश्मीरियों दोनों के साथ संवाद कायम कर लिया था। उन्होंनें अपने अनथक प्रयासों से कश्मीर में माइंड सेट चेंज करने वाला बहुत बड़ा काम किया जिससे आतंकवाद की धारा ही मुड़ गयी थी।


इखवान ए मुस्लेमीन में डाली फूट
खूँखार आतंकवादी कूका पैरी का ब्रैनवॉश कर अजीत डोभाल ने उसी के संगठन इखवान ए मुस्लेमीन को आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार कर दिया था। कूका की सूचना पर बहुत से पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गये। उसका एक परिणाम ये हुआ कि आतंकवादी संगठनों में अफरा-तफरी मचनी शुरू हो गई और वे एक दूसरे को शक की नजर से देखने लगे। इस तरह डोभाल ने उनकी कमर तोड़ डाली। इस सफल अंडर कवर ऑपरेशन के बाद ही कश्मीर में राजनीतिक भी राह निकली थी और कश्मीर में 1996 में केंद्र सरकार चुनाव करवाने में कामयाब रही थी।आतंकवादी कूका पैरी ने भी अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव में हिस्सा लिया था और वो विधायक चुना गया था। लेकिन 2003 में एक आतंकवादी हमले में वो मारा गया। लेकिन कहा जाता है कि डोभाल ने ही उसे उड़ा दिया था। अपनी ऐसी ही साफ समझ की बदौलत अजित डोभाल ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को भी एक बड़े संकट से उभारा था।

कंधार हाईजैकिंग में भूमिका
24 दिसंबर 1999 को नेपाल से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट आईसी 814 जिसमें 176 भारतीय सवार थे, को आतंकवादी हाईजैक कर अफगानिस्तान के शहर कंधार ले जाने में कामयाब रहे थे। कंधार में हाईजैकिंग का ये पूरा ड्रामा करीब सात दिनों तक चला। ऐसे मुश्किल हालात के बीच अजित डोभाल ने सरकार और आतंकवादियों के बीच बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी और सरकार महज तीन आतंकवादियों की रिहाई के बदले 176 भारतीयों को सुरक्षित देश वापस लाने में कामयाब रही थी। जबकि आतंकवादी अपने 40 साथियों की रिहाई की मांग कर रहे थे। पश्चिम बंगाल के बर्धमान में जब बम फटे तो खुद अजित डोभाल घटना स्थल का जायजा लेने बर्धमान पहुंचे थे। ऐसा पहली बार हुआ कि देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मौका ए वारदात पर स्वयं पहुँचा। यही नहीं पश्चिम बंगाल की सरकार के साथ बात करके साफ-साफ उनको ये समझाया कि देखिए ये पश्चिम बंगाल का इश्यू नहीं है, ये बर्धमान का इश्यू नहीं है, ये एक जिला दो जिला या तीन जिला की इश्यू नहीं है। ये पूरे देश का इश्यू है।

ISIS के खिलाफ चले ऑपरेशन के मॉस्टर माइंड
जून महीने में 46 भारतीय नर्सों को ईराक में आतंकी संगठन ISIS ने बंधक बनाया था। तब परदे के पीछे नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए जो ऑपरेशन चला उसके मास्टर माइंड थे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल। हाल ही में 4 जून को मणिपुर के चंदेल गांव में उग्रवादियों के हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। डोभाल ने पूर्वोत्तर भारत में सेना पर हुए हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई और भारतीय सेना ने सीमा पार करके म्यांमार की सेना और एनएससीएन खाप्लांग गुट के बागियों के सहयोग से ऑपरेशन चलाया, जिसमें करीब 30 उग्रवादी मारे गए। अपनी रणनीति को अंजाम देने के लिए डोभाल ने पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश जाने का प्लान भी टाल दिया था। अजित डोभाल ने अंडर कवर ऑपरेशन के तहत मुंबई अडंरवर्ल्ड में दाउद इब्राहीम को मारने के लिए डॉन छोटा राजन को इस्तेमाल किया था। रॉ के पूर्व अफसर आर के यादव बताते हैं कि कराची में दाउद पर छोटा राजन के आदमी विक्की मल्होत्रा ने जो अटैक किया था। वो दाउद को खत्म करने के लिए डोभाल का ही आपरेशन था।

क्या है अजीत डोभाल की सोच
* नेपोलियन कहता था-मरना एक बार है। चाहे तलवार से मरो या एटम बम से। एटमी युद्ध हुआ भी तो हम इतने बच जाएंगे कि दुनिया में पहचान बना लें। लेकिन पाकिस्तान एक देश के रूप में खत्म ही हो जाएगा।
* आप (पाकिस्तान) हम पर सौ पत्थर फेंकोगे तो शायद 90 पत्थरों से हम खुद को बचा लें। लेकिन 10 फिर भी हमें लगेंगे। आप इसी का फायदा उठा रहे हैं। हमें आक्रामक होना होगा। उन्हें साफ कर देना चाहिए कि आप एक और 26/11 करोगे तो बलूचिस्तान खो दोगे।

पढ़ें-
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.1
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.3

अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.1

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और डोभाल
अजित डोभाल का झुकाव हिंदुत्ववादी विचारधारा की ओर माना जाता है। वो उस विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के फाउंडर अध्यक्ष भी रहे हैं जिसे RSS के थिंक टैंक के तौर पर जाना जाता हैं। साल 2010 में बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर हरिद्वार में जो पहला अधिवेशन बुलाया था उसमें अजीत डोभाल को खास तौर से बुलाया गया था।अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में अहम पदों पर रहे। अजित डोभाल लालकृष्ण आडवाणी के भी काफी करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि अगर 2009 में बीजेपी चुनाव जीतती और आडवाणी प्रधानमंत्री बनते तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी अजित डोभाल को सौंपी जानी तय थी। यानी बीजेपी और आरएसएस से उनके पुराने एवं नजदीकी संबंध रहे हैं।

अडवानी और डोभाल के संबन्ध
आईबी के पूर्व प्रमुख अरूण भगत का खुले तौर पर बयान था कि RSS से उनका संबंध तो निश्चित रूप से है। क्योंकि विवेकानंद फाउंडेशन उन्हीं का बनाया हुआ है। वे आडवाणी के गृहमंत्री रहते हुए उनके काफी करीब आ गये थे। जब विपक्ष में रहते हुए आडवणी ने विदेशी खातों के बारे में एक दस्तावेज जारी किया तो उसे तैयार करने में उनकी काफी अहम भूमिका रही थी। तब पत्रकार अक्सर मजाक में कहा करते थे कि जब आडवाणी प्रधानमंत्री बनेंगे तो डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया जाएगा। वे तो प्रधानमंत्री नहीं बने पर बाद में संघ परिवार के दूसरे शेर मोदीजी ने सत्ता संभाली और अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिए गए।

तोड़ दी आतंकियों की कमर
आमतौर पर कांग्रेस शासन काल में आईबी के निदेशक रहे हर अधिकारी को रिटायर होने पर राज्यपाल बना दिया जाता था। इनमें टीवी राजेश्वर, श्यामल दत्ता, एम के नारायणन आदि शामिल है। परन्तु अजीत डोभाल के साथ ऐसा नहीं हुआ। इसकी मूल वजह यही रही कि कांग्रेसी उन्हें भाजपा का आदमी समझते थे। लेकिन RSS, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से अजित डोभाल की नजदीकियों से भी कही ज्यादा अहम उनकी काबीलियत और देशभक्ति है। डोभाल आतंकी संगठनों में घुसकर उनकी कमर तोड़ने वाले अधिकारियों में गिने जाते रहे हैं और मूलतः आपरेशंस में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं।

आइए जानते हैं भारत माँ के सपूत और संघ की विचारधारा से प्रभावित श्री डोभाल की गौरवशाली गाथा: -
1968 बैच के IPS ऑफिसर अजीत डोभाल ने तैनाती के चार साल बाद ही इंटेलीजेंस ब्यूरो ज्वाइन कर लिया था। 46 साल की अपनी नौकरी में महज 7 साल ही उन्होंने पुलिस की वर्दी पहनी। क्योंकि डोभाल के जीवन का 37 वर्ष देश के लिए जासूसी करते गुजरा है।

और जीत लिया इंदिरा गांधी का भी दिल
देश के लिए जान की बाजी लगा देने का जज्बा लिए जब एक जासूस अपने मिशन पर निकलता है तो उसके पीछे छूट जाता है उसका परिवार और पूरा समाज। डोभाल ने भी जब इंटेलीजेंस ब्यूरो में काम शुरु किया तो उनका ये काम ही उनकी जिंदगी का जुनून बन गया और 70 के दशक में डोभाल का यही जुनून उन्हें पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम तक खींच लाया था। इनकी कुछ ही समय पहले शादी हुई थी। वे फैमिली छोड़कर चले गए। 70 के दशक में मिजोरम भारत विरोध का अड्डा बना हुआ था। जहां अलगाववादी नेता लालडेंगा अलग देश की मांग कर रहा था और इसीलिए उसके संगठन मिजो नेशनल आर्मी ने लंबे वक्त से सरकार के खिलाफ खूनी संघर्ष छेड़ रखा था। डोभाल ने जान पर खेलकर एक अंडर कवर ऑपरेशन चलाया और मिजो नेशनल आर्मी की कमर तोड़ दी। बाद में लाल डेंगा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अजित डोभाल ने उसके ही संगठन में घुसकर उसके 7 में से 6 टॉप कमांडरों को उसके ही खिलाफ भड़का दिया था। मजबूरन साल 1986 में लाल डेंगा को भारत सरकार के साथ समझौता करने के लिए मजूबर होना पडा था। मिजो नेशनल आर्मी को शिकस्त देकर डोभाल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी दिल जीत लिया था। यही वजह है कि उन्हें महज 6 साल के करियर के बाद ही इंडियन पुलिस मेडल से सम्मानित भी किया था जबकि ये पुरस्कार 17 साल की नौकरी के बाद ही दिया जाता है ।


रिक्शा चालक बने डोभाल
यही नहीं राष्ट्रपति वेंकटरमन ने अजीत डोभाल को 1988 में कीर्तिचक्र से सम्मानित किया तो ये भी एक नई मिसाल बन गई। अजीत डोभाल पहले ऐसे शख्स थे जिन्हें सेना में दिए जाने वाले कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में आतंकवादियों को मार गिराने के ठीक चार साल बाद 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर भी चलाया गया था। जब स्वर्ण मंदिर में छिपे चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए एक बार फिर सुरक्षा बलों ने धावा बोला था। मंदिर में खालिस्तान समर्थक सुरजीत सिंह पनेटा के आतंकी घुस गए थे। तब डोभाल इलाके में रिक्शा चालक बनकर पहुंचे। उन्होंने खुद को ऐसे पेश किया कि वो पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट हैं । आतंकी डोभाल के जाल में फंस गए। डोभाल स्वर्ण मंदिर के अंदर पहुंचे और आतंकियों की संख्या, उनके हथियार और बाकी चीजों का मुआयना किया। उन्होंने पनेटा को नकली विस्फोटक भी दिया। लौटकर पंजाब पुलिस को नक्शा बनाकर दिया, जिसकी मदद से ऑपरेशन चला और कई आतंकी मारे गये। और बाकी आतंकियों ने समर्पण कर दिया।

पढ़े-
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.3

Tuesday 25 August 2015

इस रक्षाबंधन ये गिफ्ट चाहती हैं हमारी बहनें

इस सप्ताह भारतीय संस्कृति का एक बड़ा त्योहार मनाया जाएगा। एक ऐसा त्योहार जिसमें एक भाई अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है। मूलतः ये त्योहार हमें अपने कर्तव्य अथवा दायित्व की स्मृति दिलाने के लिए नहीं मनाया जाता अपितु भारतीय संस्कृति की उत्सवधर्मिता को प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है। इस रक्षाबंधन पर मैं आपसे 3 संकल्प चाहता हूं। ये यंकल्प शायद आपके लिए विशेष महत्व न रखते हों परन्तु राष्ट्रीय एकात्मता के संरक्षण के लिए परम आवश्यक हैं।  मित्रों पिछले कई लेखों में मैंने जिक्र किया कि किस प्रकार से विदेशी षणयंत्र के माध्यम से वैलेन्टाइंस डे, फ्रेंडशिप डे, रोज डे, मदर्स डे जैसे तथाकथित वैश्विक त्योहारों के द्वारा इस देश का धन विदेश जा रहा है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह धन न केवल इन त्योहारों के द्वारा भारत के बाहर जा रहा है बल्कि इन षणयंत्रओं का कुचक्र अब हमारे उत्सवों में भी सेंध लगाने लगा है।


अभी मैंने टीवी पर एक विज्ञापन देखा जिसमें भाई अपनी बहन के लिए अपनी पॉकेट मनी बचाकर कैडबरी चॉकलेट लाता है और बहन उस चॉकलेट को देखकर ऐसे खुश होती है जैसे कि वह इसी चॉकलेट के लिए भाई को राखी बांधती थी। मित्रों मुझे याद है जब बचपन में मेरी बहन मुझे राखी बांधने के लिए आती थी तो मेरे पिता जी मुझे कुछ रुपए देते थे और फिर मैं वो रुपए अपनी बहन को देता था। अब जब मैं थोड़ा बहुत अपनी परंपराओं को समझने लगा हूं तब मुझे उस परंपरा का रहस्य समझ में आया। और उस गूढ़ रहस्य को जानने के बाद एक बार फिर मैं इस देश के विचारों और परंपराओं को लेकर गर्वित हो उठा। मित्रों जब हमारा देश अर्थ यानी लक्ष्मी के फेर में फंसने लगा तब यह परंपरा शुरु हुई। और इस परंपरा के द्वारा अर्थ को सर्वोपरि मानने के विचार को समाप्त करने का प्रयास किया गया।

मित्रों इस रक्षाबंधन के पुनीत पर्व पर आपसे कुछ अपेक्षाओं के साथ इस लेख को लिख रहा हूं। मेरी अपेक्षा यह है कि आप इस राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। जिन संकल्पों की मैं आपसे अपेक्षा रखता हूं मात्र उन तीन संकल्पों को लेकर आप महसूस करेंगें की सांस्कृतिक संरक्षण में आपका अभूतपूर्व योगदान है।
प्रथम संकल्प यह कि अब से आप किसी भी रक्षाबंधन पर अपनी बहन को कोई विदेशी वस्तु गिफ्ट नहीं करेंगे।
दूसरा संकल्प यह कि इस रक्षाबंधन पर संकल्प लीजिए कि जो आपको रक्षासूत्र बांध रही है उसके साथ साथ इस देश की प्रत्येक बेटी की रक्षा करेंगे।
और अंतिम संकल्प संघ की एक परंपरा से जुड़ा हुआ है कि आपने जिस पतित पावनी धरती पर जन्म लिया है उस धरती की रक्षा को सर्वोपरि मानेंगे।

लेख को बहुत अधिक विस्तार न देते हुए आपसे अपेक्षा करता हूं कि इन संकल्पों की गंभीरता को समझकर अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण मनोयोग से निर्वहन करेंगे।
वन्दे भारती

Saturday 22 August 2015

ओज के एक 'बड़े' कवि के नाम सन्देश



युवावस्था में कदम रखते के बाद जब सामाजिक परिवेश को समझने की सोच विकसित हुई तो सबसे पहले अपने घर के परिवेश को समझा। घर का परिवेश थोड़ा सा साहित्यिक था इस नाते साहित्य की ओर रुझान होना स्वाभाविक था। मेरे बाबा जी मुझे श्री अटल बिहारी बाजपेई की कविताएं पढ़कर सुनाते थे जिन्हें सुनकर स्वतः मन में राष्ट्रवाद का भाव पुष्पित एवं पल्लवित होने लगता था। जब थोड़ा और बड़ा हुआ तो अपने चाचा जी श्री जगदीप शुक्ला'अंचल' को सुना, ओज के सबसे बड़े कवि उस समय तक मेरे लिए मेरे चाचा जी ही थे। फिर धीरे धीरे भारत के अन्य बड़े कवियों को भी सुनना शुरू किया। जिनमें डॉ. हरिओम पवांर, श्री गजेन्द्र सोलंकी, श्री विनीत चौहान, श्री अभय सिंह निर्भीक इत्यादि शामिल थे। इनकी कविताओं को सुनकर मन में देश के लिए कुछ करने का भाव स्थायित्व लेने लगता था। शायद इनमें से किसी भी कवि को ये न पता हो कि ये वो लोग हैं जिन्होंने मेरे परिवार के संस्कारों को उद्देश्य बनाया।


जब भी परेशानी की स्थिति में आता अथवा मन अशांत होता तो यूट्यूब पर इन कवियों को सुन लेता था लेकिन अभी कुछ माह पहले एक ऑडियो रिकार्डिंग मेरे ब्लॉग पर आई जिसमें बुखारी को खुले आम दुत्कारा गया था। उस ऑडियो को सुनकर लगा कि अब कविता पूर्णरूप से स्वतंत्र हो गई है। उस कवि के विषय में पता किया तो पता चला कि वह इटावा के गौरव चौहान हैं। मैनें अब यूट्यूब पर गौरव चौहान को सुनना शुरू कर दिया था। इसी बीच यूट्यूब पर दो अन्य महानुभावों के विषय में पता लगा। एक इमरान प्रतापगढ़ी एवं दूसरी सुश्री कविता तिवारी....

इन तीनों की एक एक कविता मैंने 50-50 से भी अधिक बार सुनीं। अब मैं आता हूं उस विषय पर जिसके लिए मैंने इतनी भूमिका बनाई। मित्रों इनमें से कविता जी के विषय में कुछ भी नहीं कह सकता। उनके लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। मां भारती की रक्षा के लिए, अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए अगर इस देश की नारी ने बोलना शुरू किया है तो निश्चित रूप से मन में एक विश्वास पैदा होता है कि भारत पुनः विश्वगुरू बनने के पथ पर अग्रसर है। आज आवश्यकता है कि इस देश की प्रत्येक नारी के मन में विदुषी जैसा उद्देश्य हो। अब विषय आता है इमरान प्रतापगढ़ी का...उसके लिए मैं अपने शब्द व्यर्थ बर्बाद नहीं करना चाहता क्यों कि मेरा मानना है कि करोड़ो के शब्दों को ऐसे मजहबी लोगों पर नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।

आज कल एक परंपरा प्रचलन में है कि आप जिस क्षेत्र से जुड़े हैं उसके किसी अन्य व्यक्ति के विषय पर नहीं बोलते जैसे यदि कोई चैनल कुछ गलत दिखा रहा है तो उस चैनल की गलत रिपोर्ट के विरोध में कोई अन्य चैनल नहीं दिखाता।लेकिन  जब मैनें गौरव चौहान को सुना तो लगा कि कवि ऐसे होने चाहिए, जब और ज्यादा सुना तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि मनमोहन से लेकर मोदी तक को सच का आइना दिखाने वाला एक ऐसा कवि जिसकी कविताएँ 12 घंटे में देश से विदेश पहुंच जाती हैं उसने इमरान प्रतापगढ़ी पर कभी कुछ क्यों नहीं लिखा। क्या इस लिए कि दोनों का व्यवसाय एक ही है। माफ करिएगा लेकिन जिस देश का साहित्य व्यवसाय हो जाए उस देश का पतन सुनिश्चित है।

गौरव भाई आप बड़े कवि हैं और मैं एक छोटा सा पत्रकार लेकिन अपने दायित्व का निर्वाहन करते हुए आपसे निवेदन करता हूं कि अपनी लेखनी का रुख एक बार उस व्यक्ति की ओर भी मोड़े जो खुले आम इस देश में शरियत और ओवैसी का समर्थन करता है। यदि अपना घर साफ होगा तभी हम देश स्वच्छ करने के विषय में सोच पाएंगे। माना कि इस देश में संवैधानिक आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है परंतु स्वतंत्रता एवं स्वच्छन्दता का अंतर बनाए रखना बहुत आवश्यक है।

वन्दे भारती...

मेरा लक्ष्य मात्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना नही था...



प्रिय फेसबुकियों ,व्हाट्स एप या अन्य पेज एडमिन्स जो लोग fb या अन्य सोशल साइट्स
त्याग रहे हैं या कुछ मित्र सोच रहे हैं मोदी को पी एम बनवा दिया अब कोई काम नहीं उनके लिए ...

मित्रों बस ये बता दो कि जिन विषयों पर मैं आज लिख रहा हूं क्या आप वो नहीं चाहते...
● श्रीराम जन्म भूमि आज भी प्रतीक्षारत है ,
याद है ना मन्दिर वहीं बनायेंगे कसम राम की खाते हैं....

● देश में गौ हत्या बंद करवानी है

● हुतात्म नाथूराम गोडसे जी की अस्थियाँ आज भी रखी है किसी राष्ट्रवादी के इंतज़ार में

● भाई राजीव दीक्षित जी के पूर्ण स्वदेशी के लक्ष्य को पूर्ण करना है...

● गांधी परिवार की पोल खुलना अभी बाकी है

● मातृभाषा हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित करवाना अभी बाकी है

● दामिनी दीदी को न्याय मिलना अभी बाकी है

● पाकिस्तान से हेमराज के कटे सर का बदला लेना अभी बाकी है...

● अभी काला धन देश में आना बाकी है ...

● जो अमरीका और चीन का दबदबा है मार्किट में अभी उसको भारतीय रंग - रूप में ढलना बाकी है,

● देश में राम को काल्पनिक पात्र से मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम में बदलना अभी बाकी है..

● ताजमहल तथा अन्य तथाकथित इमारतों का सत्य अभी लोगो के सामने लाना बाकी है...


मुझे मोदी पर भरोसा है किन्तु पूरा देश मात्र मोदी के भरोसे छोड़ देना गवारा नही मुझ पागल को ,

मेरे पास और शब्द नहीं कुछ भी कहने को आप साथ दोगे तो ठीक वरना अकेले तो चलूँगा ही ...!
।।जय जय श्री राम।।
वन्दे भारती

Friday 21 August 2015

ये आपको शोभा नहीं देता मोदी जी...



कल शाम एक स्वयंसेवक,  के आवास पर भोजन के लिए जाना हुआ। भोजन के पश्चात टीवी पर समाचार देखने लगा। उस समय मोदी और लालू के विषय पर समाचार चल रहे थे। उन समाचारों में अचानक एक तस्वीर सामने आई..वो तस्वीर थी मोदी के हाल ही के साउदी अरब के दौरे की...इस तस्वीर में मोदी अपने मोबाइल से शहजादों के साथ सेल्फी ले रहे थे।



मित्रों अब मैं अपने मूल विषय पर आता हूं। इस फोटो में मेरी नजर मोदी के मोबाइल पर गई...उनका मोबाइल फोन ऐपल कंपनी का था। शायद आपका ध्यान इस विषय पर न गया हो लेकिन मुझे इस बात से बहुत पीड़ा हुई कि देश का प्रधान एक विदेशी कंपनी का मोबाइल प्रयोग कर रहा है। ये बहुत ही छोटा और सामान्य विषय लग सकता है लेकिन इस विषय की गंभीरता को समझने का प्रयास करिए । जब हमारे देश का प्रधान विदेशी वस्तुओं के बिना नहीं रह सकता तो क्या भाजपा या केन्द्र सरकार को सामान्य व्यक्ति से यह अपेक्षा करनी चाहिए। इस विषय को मात्र मैं उस फोटो के कारण नहीं उठा रहा हूं अपितु पर्याप्त शोध के बाद इस विषय पर लेखन कर रहा हूं।

मित्रों मुझे भी अच्छा लगता है कि मैं भी सैमसंग का फोन प्रयोग करूं और करता भी था लेकिन एक दिन जब मैं दैनिक जागरण में कार्यरत अपने एक मित्र से स्वदेशी की बात कर रहा था तो उन्होंने कहा कि पहले आप तो विदेशी मोबाइल का प्रयोग करना बंद करो...उसकी बात सुनकर मुझे खुद पर शर्म आ गई। मुझे लगा कि जब मैं स्वयं ऐसा नहीं कर रहा तो दूसरों को ऐसा करने के लिए कैसे कह सकता हूं।

आज की स्थिति ये है कि मैं यथासंभव प्रयास करता हूं कि भारत में निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करूं। आज मैं माइक्रोमैक्स और स्पाइस का मोबाइल प्रयोग करता हूं जबकि मुझे इसमें वो सुविधाएं नहीं मिलती जो सैमसंग या ऐपल में होती हैं लेकिन फिर भी करता हूं ताकि कोई मुझ पर प्रश्नचिन्ह न लगा पाए।

मोदी जी आप बहुतों के आदर्श हैं..आपके कपड़ो को देखकर बहुत से युवा वैसे ही कपड़े पहनने लगते हैं तो एक बार सोच कर देखिए कि आपके इस कदम से एक विदेशी कंपनी का कितना लाभ होगा। पिछले माह मेरे जन्मदिवस पर मेरे एक मित्र ने ब्लैकबेरी का मोबाइल उपहार स्वरूप भेजा। यदि वह मित्र मेरे सामने होता तो निश्चित ही मैं यह उपहार स्वीकार नहीं करता लेकिन मजबूरी में उपयोग कर रहा हूं....निश्चय ही इसके वैकल्पिक मार्ग हो सकते हैं लेकिन अगर मैं उनका प्रयोग नहीं करता तो शायद कोई फर्क न पड़े क्यों कि मैं इस देश का 125 करोड़वां हिस्सा हूं। लेकिन आप तो इस देश के प्रधान हैं आप से मैं और ये देश ऐसी अपेक्षा नहीं करता।

अपने विवेक और अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि यदि इस देश का प्रत्येक व्यक्ति स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने लगे तो भारत को परम वैभव पर ले जाने की संकल्पना को साकार होने से कोई नहीं रोक सकता। यह बात मैं अपने अध्ययन के आधार पर कह रहा हूं। मेरा ऐसा मानना है कि यदि अंग्रेज इस देश से गए तो उसकी आधारशिला अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय के स्वदेशी आंदोलन से ही रखी गई थी।

अंत में इंदु जी की कविता की पंक्तियां उधार लेना चाहूंगा उन कलम के सिपाहियों के लिए जिन्होनें मुझसे पहले इस विषय को उठाना जरूरी नहीं समझा...

सच लिखना मुश्किल नहीं
सच पढ़ना बेहद कठिन
सच कहना भी मुश्किल नहीं
पर सच सुनना
उससे भी कठिन !
बस इसी खातिर
लिखा जाता रहा झूठ
कहा जाता रहा झूठ
अपनी सहूलियतों के लिए
ज़िंदगी के दुर्गम रास्तों पर
आसानी से चलता रहा झूठ
सच है कि सब झूठ है और
झूठ है कि सब सच !
सिवा इसके कि शब्दों के
वर्ण हैं सच
शब्दों के मायने ….बचे अब शेष नहीं ….!!!

परिवर्तन की अपेक्षा के साथ----
विश्व गौरव

Thursday 20 August 2015

कुछ सवाल जो शायद आपके मन में भी आते होंगे...

मेरे वाट्सअप पर कल एक संदेश आया। उस संदेश में किसी डॉ. सुनील कुमार यादव ने हिन्दुत्व या यूं कहें हमारी संस्कृति से संबन्धित कुछ प्रश्न पूछे थे। इस प्रकार के प्रश्न उन सभी के मन में उठते होंगे जिन्होनें कभी इस देश की संस्कृति को समझने का प्रयास ही नहीं किया। फिर भी राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए डॉ. साहब के उन प्रश्नों के उत्तर दे रहा हूं।

1:- सभी देवी देवताओं ने भारत मे ही जन्म क्यों लिया, क्यों किसी भी देवी देवता को भारत के बाहर कोई नही जानता ?

जिनको आप देवता कह रहे हैं वो मूल रूप से हमारे पूर्वज हैं। उनके अन्दर देवत्व अर्थात अच्छाई की अधिकता थी इस लिए उन्हें देवता माना। यदि वह देवत्व हम स्वयं में प्रतिस्थापित कर लें तो हमें भी देवता माना जाएगा। संभवतः आपने 'अहं ब्रह्मास्मि' तो सुना ही होगा। हम चाहें तो स्वयं में देवत्व को जगा लें अथवा असुरत्व जगा लें। और जहां तक प्रश्न है कि सभी ने भारत में ही जन्म क्यों लिया तो महोदय जिस समय की हम बात करते हैं, वह समय जिसमें राम ने जन्म लिया था अर्थात त्रेतायुग, वह समय आज से 864000 वर्ष से अधिक पुराना है। उस समय विश्व के किस देश में मानव प्रजाति निवास करती थी प्रमाण सहित मुझे बताएं।


2:- जितने भी देवी देवताओं की सवारियां हैं उनमें सिर्फ वही जानवर क्यों हैं जो कि भारत मे पाए जाते हैं, ऐसे जानवर क्यों नही जो कि सिर्फ कुछ ही देशों मे पाए जाते है जैसे कि कंगारु, जिराफ आदि !!

अल्पज्ञान अंधकार की जड़ है। महोदय ये जो जानवरों की सवारी की बात की जाती हैं वो एक प्रतिरूप हैं यह बताने के लिए जिन्हें हम जानवर कहते हैं उन्हें समाप्त नहीं करना है क्यों कि वो हमारे देवी देवताओं के वाहन हैं। इस बात के माध्यम से ही हमारे मन में वह भाव आया है जिसकी वजह से हम खड़े खड़े किसी जानवर को नहीं मारते।

3:- सभी देवी देवता हमेशा राज घरानों में ही जन्म क्यों लेते थे ? क्यों किसी भी देवी देवता ने किसी गरीब या शुद्र के यहां जन्म नहीं लिया !

महोदय कृष्ण जी का जन्म किस राजघराने में हुआ था मुझे भी बताएं। और एक भ्रम अपने मस्तिष्क से निकाल दें कि देव जन्म लेते हैं। मूल रूप से देव पवन, अग्नि, वरूण हैं। अब मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए कि इन देवों का जन्म कौन से राज घरानों में हुआ है।


4:- पौराणीक कथाओं  में सभी देवी देवताओं की दिन चर्या का वर्णन है जैसे कि कब पार्वती जी ने चंदन से स्नान किया, गणेश के लिये लड्डु बनाये, गणेश ने लड्डु खाये आदि, लेकिन जैसे ही ग्रंथो कि स्क्रीप्ट खत्म हो गयी भगवानों कि दिन चर्या भी खत्म तो क्या सभी देवी देवताओं का देहांत हो गया ??

आप अपने पुत्र को किसी विषय का उदाहरण देते हैं तो एक विशिष्ट दिवस की बात करते हैं ना, यथा जब मैं छोटा था तो पैदल 12 किलोमीटर पढ़ने जाता था या फिर कोई अन्य....ऐसे प्रसंगों की चर्चा एक सकारात्मक संदेश देने के लिए की जाती है न कि साहित्य संपदा को बढ़ाने के लिए।

5:- ग्रंथो के अनुसार पुराने समय मे सभी देवी देवताओं का पृथ्वी पर आना जाना लगा रहता था जैसे कि किसी को वरदान देने या किसी पापी का सर्व नाश करने लेकिन अब ऐसा क्या हुआ जो देवी देवताओं ने प्रथ्वी पर आना बंद ही कर दिया !!

महोदय देवता सत्य के प्रतीकात्मक विचार हैं। और किसने कहा वो धरती पर नहीं आते। वो तो धरती पर ही रहते हैं हमारे आपके अंदर विद्यमान रहते हैं। उनको देखने की हमारी क्षमता नहीं है लेकिन महसूस कर सकते हैं। और यदि आप देवताओं को महसूस करना चाहते हैं तो जब आप किसी परेशानी में हों और कोई आकर आपकी मदद करे तो समझ लेना कि देवता आपके पास हैं। और यदि साक्षात दर्शन चाहते हैं तो एक काम करिए स्वामी रामकृष्ण परमहंस बनो स्वतः उसी प्रकार से आप भी देवताओं का साक्षात्कार करने लगोगे। विषय पर ध्यान दीजिएगा स्वामी रामकृष्ण परमहंस का अर्थ है स्वयं में उतनी क्षमता विकसित करना कि सामने वाले में स्वामी विवेकानंद जैसे चरित्र का निर्माण कर सको।

6:- जब भी कोई पापी पाप फैलाता था तो उसका नाश करने के लिये खुद भगवान किसी राजा के यहां जन्म लेते थे फिर 30-35 की उम्र तक जवान होने के बाद वो पापी का नाश करते थे, ऐसा क्यों? पाप का नाश जब भगवान खुद ही कर रहे हैं तो 30-35 साल का टाइम क्यों भगवान सीधे कुछ क्यों नही करते जिस प्रकार उन्होने अपने भक्तों का उत्तराखण्ड में नाश किया ?

मित्र कंश का वध श्री कृष्ण ने किस उम्र में किया था। ताड़का का वध श्री राम ने किस उम्र में किया था। आपका यह प्रश्न मूर्खता से परिपूर्ण है। जैसा मैंने पहले ही कहा कि जिनको आप देवता कह रहे हैं वो हमारे पूर्वज हैं , और सबसे विशेष बात उनका मानव जीवन जिसकी एक परंपरा है जिसे कोई नहीं बदल सकता और इस परंपरा के स्थायित्व की सुंदरता देखिए कि जब त्रेतायुग में राम के रूप में वह बाली का धोखे से वध करते हैं तो उसका परिणाम कृष्ण के रूप में उन्हें द्वापर युग में भुगतना पड़ता है और एक गरड़िए के हाथों उनकी मृत्यु होती है। और रही बात उत्तराखण्ड में अपने भक्तों का नाश करने की तो यदि अपनी संस्कृति का आपको थोड़ा सा भी ज्ञान होगा तो आपको पता होगा देवभूमि में जिसकी मृत्यु होती है वह स्वर्ग या नर्क नहीं अपितु सीधे वैकुंठ जाता है।

(7) अगर हिन्दू धर्म कई हज़ार साल पुराना है,तो फिर भारत के बाहर इसका प्रसार क्यों नहीं हुआ और एक भारत से बाहर के धर्म “इस्लाम” को इतनी मान्यता कैसे हासिल हुई कि वो आपके अपने पुरातन धर्म से ज़्यादा अनुयायी कैसे बना सका?

पहली बात हिन्दू कोई धर्म नहीं है। सनातन धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी सनातनियों को मानना ज़रूरी है। हिन्दू एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर।

(8) अगर हिन्दू धर्म के अनुसार एक जीवित पत्नी के रहते, दूसरा विवाह अनुचित है, तो फिर राम के पिता दशरथ ने चार विवाह किस नीति अनुसार किए।

इस विषय की विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ें।
 दशरथ के तीन विवाहों का सत्य

(9)शिव के लिंग (पेनिस) की पूजा क्यों करते हैं? क्या उनके शरीर में कोई और चीज़ पूजा के क़ाबिल नहीं?

इस विषय की विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ें।
शिवलिंग रहस्य

आशा है कि आपको अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे.....और यदि अभी भी नहीं समझ आया है तो माफ कीजिएगा आपके मन में जिज्ञासा न होकर विरोध का भाव है जो उचित नहीं।

Wednesday 19 August 2015

नाग पंचमी क्यों, सांप पंचमी क्यों नहीं ?

नागपंचमी को सांप पंचमी क्यों नहीं कहा जा सकता? क्या कभी आपके मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा....
आज नाग पंचमी के पावन पर्व पर इसी विषय पर बात करें तो कैसा रहेगा...

सरीसृप प्रजाति के प्राणी को पूजा जाता है,वह सर्प है किन्तु नाग तो एक जाति है जिनके संबंध में विभिन्न मतानुसार अलग-अलग मान्यताएं है-यक्षों की एक समकालीन जाति सर्प चिन्ह वाले नागों की थी,यह भी दक्षिण भारत में पनपी थी। नागों ने लंका के कुछ भागों पर ही नहीं,वरन प्राचीन मलाबार पर अधिकार जमा रखा था।



रामायण में सुरसा को नागों की माता और समुद्र को उनका अधिष्ठान बताया गया है। महेंद्र और मैनाक पर्वतों की गुफाओं में भी नाग निवास करते थे। हनुमानजी द्वारा समुद्र लांघने की घटना को नागों ने प्रत्यक्ष देखा था।
नागों की स्त्रियां अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी। प्राचीन काल में विषकन्याओं का चलन भी कुछ ज्यादा ही था। इनसे शारीरिक संपर्क करने पर व्यक्ति की मौत हो जाती थी। ऐसी विषकन्याओं को राजा अपने राजमहल में शत्रुओं पर विजय पाने तथा षड्यंत्र का पता लगाने हेतु भी रखा करते थे। रावण ने नागों की राजधानी भोगवती नगरी पर आक्रमण करके वासुकि,तक्षक,शंक और जटी नामक प्रमुख नागों को परास्त किया था।

नागपंचमी मनाने के संबंध में एक मत यह भी है कि अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने तपस्या में लीन ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य श्रृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर शाप दिया कि यही सर्प सात दिनों के पश्चात तुम्हें जीवित होकर डस लेगा,ठीक सात दिनों के पश्चात उसी तक्षक सर्प ने जीवित होकर राजा को डसा। तब क्रोधित होकर राजा परीक्षित के बेटे जन्मजय ने विशाल "सर्प यज्ञ" किया जिसमे सर्पो की आहुतियां दी।
इस यज्ञ को रुकवाने हेतु महर्षि आस्तिक आगे आए। उनका आगे आने का  कारण यह था कि महर्षि आस्तिक के पिता आर्य और माता नागवंशी थी। इसी नाते से वे यज्ञ होते देख न देख सके।सर्प यज्ञ रुकवाने,लड़ाई को ख़त्म करने पुनः अच्छे सबंधों को बनाने हेतु आर्यो ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में 'सर्प पूजा' को एक त्योहार के रूप में मनाने की शुरुआत की।
नागवंश से ताल्लुक रखने पर उसे नागपंचमी कहा जाने लगा होगा। मास्को के लेखक ग्रीम वागर्द लोविन ने प्राचीन 'भारत का इतिहास' में नाग राजवंशों के बारे में बताया कि मगध के प्रभुत्व के सुधार करने के लिए अजातशत्रु का उत्तराअधिकारी उदय (461-ईपू )राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र ले गया,जो प्राचीन भारत प्रमुख बन गया। अवंति शक्ति को बाद में राजा शिशुनाग के राज्यकाल में ध्वस्त किया गया था। एक अन्य राज शिशुनाग वंश का था। शिशु नाग वंश का स्थान नंद वंश (345 ईपू)ने लिया।

नाग वंश का राज्य मथुरा,विदिशा,कांतिपुरी,(कुतवार )व् पदमावती (पवैया )तक विस्तृत था। नागों ने अपने शासन काल के दौरान जो सिक्के चलाए थे उसमे सर्प के चित्र अंकित थे। इससे भी यह तथ्य प्रमाणित होता है कि नागवंशीय राजा सर्प पूजक थे। शायद इसी पूजा की प्रथा को निरंतर रखने हेतु श्रावण शुक्ल की पंचमी को नागपंचमी का चलन रखा गया होगा। कुछ लोग नागदा नामक ग्रामों को नागदा से भी जोड़ते है। यहां नाग-नागिन की प्रतिमाएं और चबूतरे बने हुए हैं  इन्हे भिलट बाबा के नाम से भी पुकारा है। उज्जैन में नागचंद्रेश्वर का मंदिर नागपंचमी के दिन खुलता है व सर्प उद्यान भी है। खरगोन में नागलवाड़ी क्षेत्र में नागपंचमी के दिन मेला व बड़ा भंडारा होता है।सर्प कृषि मित्र है व सर्प दूध नहीं पीते हैं,उनकी पूजा करना व रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

नागपंचमी का त्योहार यूँ तो हर वर्ष देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है लेकिन उत्तरप्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इस त्योहार पर राज्य में गुडि़या को पीटने की अनोखी परम्परा है।
नागपंचमी को महिलाएँ घर के पुराने कपडों से गुड़िया बनाकर चौराहे पर डालती हैं और बच्चे उन्हें कोड़ो और डंडों से पीटकर खुश होते हैं। इस परम्परा की शुरूआत के बारे में एक कथा प्रचलित है।

तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में ब्याही गई। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।

क्या सचमुच आप तिरंगे का ही सम्मान करते हैं?

मित्रों अभी अभी स्वतंत्रता दिवस बीता....हम स्वतन्त्र देश भारत के नागरिक हैं परन्तु आज भी परतंत्रता, गुलामी की मानसिकता से भरे हैं, तभी तो हम आज भी अपने राष्ट्रीय पर्वों पर ब्रिटिश शासन के गुणगान करने वाले गीत “जन गण मन” को बड़ी शान से गाते हैं । इस तथा कथित राष्ट्रगान से जुड़े कुछ तत्थ्य आपके सामने रख रहा हूँ………

भारतीय जनमानस ब्रिटिश शासन के खिलाफ था । देश की आजादी के लिये क्रांतिवीर कदम-कदम पर ब्रिटिश शासन को चुनौती दे रहे थे । ब्रिटिश शासन हिल चुका था, घबडा गया था । सन 1905 में बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन में पूरे देश का जनामानस अंग्रेजों के विरोध में उठ खडा हुआ । उस वक्त तक भारत की राजधानी बंगाल का प्रसिद्ध नगर कलकत्ता थी । अंग्रेजों ने अपनी जान बचाने के लिए 1911 में कलकत्ता को राजधानी न रखकर दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया । पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे । अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि भारत के लोगों का कुछ ध्यान बटे और विद्रोह शांत हो जाये ।

इंग्लैंड में उस समय शासन कर रहे किंग जार्ज पंचम ने 1911 में भारत का दौरा किया । अंग्रेजो ने अपने किंग को खुश करने के लिये एक स्वागत गीत लिखने के लिये रवीन्द्र नाथ टैगोर पर दबाव डाला । रवीन्द्र नाथ टैगोर का परिवार अंग्रेजों के प्रगाढ़ मित्रों में गिना जाता था । रवीन्द्र नाथ टैगोर के परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे । उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे । रवीन्द्र नाथ टैगोर के परिवारिक सदस्यों ने अपना बहुत सा पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा रखा था । रवीन्द्र नाथ टैगोर भी अंग्रेजो के प्रति बहुत सहानुभूति रखते थे ।

रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अंग्रेजों के बहुत दबाव और अपनी अंग्रेजों के प्रति सहानुभूति के कारण एक गीत “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता” लिखा । इस गीत की सभी पंक्तियों और शब्दों में किंग जार्ज का ही गुणगान है । इस गीत के भावार्थ को निष्पक्ष हो कर समझने पर ही पता लगेगा कि यह गीत वास्तव में अंग्रेजो और किंग जार्ज पंचम के गुणगान करने के लिये लिखा गया था । इस गीत के भावार्थ को समझने पर ही हम जान सकेगे कि यह गीत अंग्रेजों की चाटुकारिता के लिये था |

जन गण मन अधिनायक जय हे ,
भारत भाग्य विधाता ,
पंजाब, सिन्धु , गुजरात , मराठा , द्राविड , उत्कल बंग ,
विन्ध्य हिमाँचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मांगे
गाए सब जय गाथा
जन गन मंगल दायक जय हे ,
भारत भाग्य विधाता ,
जय हे जय हे जय हे ,
जय जय जय जय हे .

रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित इस गीत का अर्थ कुछ इस प्रकार से है ……

“भारत के नागरिक, भारत की जनता आपको ह्रदय से भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है । हे अधिनायक (Superhero) तुम ही भारत के भाग्य विधाता हो । तुम्हारी जय हो! जय हो! जय हो! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त, पंजाब, सिंध, गुजरात, महाराष्ट्र (मराठा), दक्षिण भारत (द्रविड़), उड़ीसा (उत्कल), बंगाल (बंग) आदि तथा भारत के पर्वत विन्ध्याचल और हिमालय एवं भारत की नदियाँ यमुना और गंगा सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है । प्रातःकाल जागने पर हम तुम्हारा ही ध्यान करते है और तुम्हारा ही आशीष चाहते है । तुम्हारी ही यश गाथा हम हमेशा गाते है । हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो-किंग जार्ज ) तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो । ”

किंग जार्ज पंचम जब भारत आये तब ये गीत उनके स्वागत में गाया गया । किंग जार्ज जब इंग्लैंड वापस गये तब उन्होंने इस गीत “जन गण मन” का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया । अंग्रेजी अनुवाद जब किंग जार्ज ने सुना तो कहा कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की । किंग जार्ज बहुत खुश हुआ । उसने आदेश दिया कि जिस व्यक्ति ने ये गीत उनके सम्मान में लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये । रवीन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए । किंग जार्ज उस समय नोबल पुरस्कार समिति के अध्यक्ष भी थे । उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया । जब रवीन्द्र नाथ टैगोर को इस नोबल पुरस्कार के विषय में पता चला तो उन्होंने इसे लेने से इन्कार कर दिया । इस इन्कार का कारण था भारत में इस गीत के लिखे जाने पर भारत की जनता द्वारा रवीन्द्र नाथ टैगोर की भर्त्सना और गाँधी जी के द्वारा रवीन्द्र नाथ टैगोर को मिली फटकार । रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किंग जार्ज से कहा की आप यदि मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मेरे द्वारा रचित पुस्तक गीतांजलि पर दें लेकिन इस गीत के नाम पर न दें और साथ ही यही प्रचारित भी करें क़ि मुझे नोबेल पुरस्कार मेरी गीतांजलि नामक पुस्तक पर मिला है । किंग जार्ज ने रवीन्द्र नाथ टैगोर की बात मान कर उन्हें सन 1913 में उनकी गीतांजलि नामक पुस्तक पर नोबल पुरस्कार दे दिया ।

रवीन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों से मित्रता और सहानुभूति सन 1919 तक कायम रही पर जब जलिया वाला हत्या कांड हुआ तब गाँधी जी ने रवीन्द्र नाथ टैगोर को फटकारते हुए एक पत्र लिखा, उसमे गाँधी जी ने कहा क़ि इतने जघन्य नरसंहार के बाद भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरा, कब खुलेगी तुम्हारी आँखे, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? बाद में गाँधी जी स्वयं रवीन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और उनको बहुत फटकारा उन्होंने कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अन्ध भक्ति में डूबे हुए हो ? कब तक ऐसे ही डूबे रहोगे, कब तक ऐसे ही चाटुकारिता करते रहोगे ? तब जाकर रवीन्द्र नाथ टैगोर की आँखे खुली और उन्होंने इस हत्या काण्ड का विरोध किया और अपनी “सर” की उपाधि अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दी ।

यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है कि सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वह सब अंग्रेजी सरकार के पक्ष में लिखा और 1919 के बाद उनके लेख कुछ-कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे । रवीन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे । अपने बहनोई को उन्होंने 1919 में एक पत्र लिखा, इसमें उन्होंने लिखा कि ये ‘जन गण मन’ नामक गीत अंग्रेजो ने मुझ पर दबाव डाल कर जबरदस्ती लिखवाया है । इसके शब्दों का अर्थ भारतीय जनमानस को ठेस पहुंचाने वाला है । भविष्य में इस गीत को न गाया जाये वही अच्छा है । लेकिन अंत में उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि इस पत्र को अभी किसी को न दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ परन्तु मेरी मृत्यु के उपरांत इस पत्र को अवश्य सार्वजनिक कर दें ।

7 अगस्त 1941 को रवीन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि इस जन गन मन गीत को न गाया जाये ।

1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी । लेकिन वह दो खेमो में बंटी हुई थी । जिसमे एक खेमे के नेता थे बाल गंगाधर तिलक और दूसरे खेमे के मोती लाल नेहरु । मतभेद था सरकार बनाने को लेकर । मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ मिलकर संयुक्त सरकार (Coalition Government) बनायें । जबकि बाल गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है । इस मतभेद के कारण लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और मोती लाल नेहरु अलग-अलग हो गये और कांग्रेस दो खेमों में बंट गई, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक गरम दल के नेता कहलाने लगे उनके साथ सभी क्रांतिकारी विचारधारा के लोग थे तथा मोती लाल नेहरु नरम दल के नेता कहलाने लगे, उनके साथ वही लोग थे जो अंग्रेजो की दया-कृपा पर निर्भर थे । यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि गांधी जी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो सामाजिक परिदृश्य में किसी तरफ नहीं थे, परन्तु मानसिक और हृदयात्मक लगाव मोती लाल नेहरु से था, यह बात अलग है कि गाँधी जी का दोनों पक्ष बहुत सम्मान करते थे ।

कांग्रेस के नरम दल के समर्थक अंग्रेजो के साथ रहते थे । उनके साथ रहना, उनकी खुशामद करना, उनकी बैठकों में शामिल होना, वे हर समय अंग्रेजो के दबाव में रहते थे । अंग्रेजों को वन्देमातरम से बहुत चिढ होती थी । नरम दल के समर्थक अंग्रेजों को खुश करने के लिये रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित “जन गण मन” गाया करते थे और गरम दल वाले अंग्रेजों और नरम दल के समर्थकों को मुंहतोड जवाब देने के लिये बकिंम चन्द्र चैटर्जी द्वारा रचित “वन्दे मातरम” गाया करते थे ।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को वन्देमातरम गीत पसंद नहीं था । अंग्रेजों के कहने पर नरम दल के समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया कि मुसलमानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें मूर्ति पूजा करने को कहा गया है । उस समय तक मुस्लिम लीग भी अस्तित्व में आ चुकी थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे । मोहम्मद अली जिन्ना ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया । मोहम्मद अली जिन्ना अंग्रेजों के इशारों पर चलने वालो में गिने जाते थे, उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नही गाना चाहिये ।

सन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा में राष्ट्र गान के मुद्दे पर लम्बी बहस हुई । संविधान सभा के 319 सांसदों (इसमे मुस्लिम सांसद भी थे) में से 318 सांसदों ने बंकिम चन्द्र चैटर्जी द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर अपनी सहमति जताई । बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना जिनका नाम “पंडित जवाहर लाल नेहरु” था । जवाहर लाल नेहरु का तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए । जब कि वास्तविकता यह थी कि वन्देमातरम गीत से मुसलमानों को कोई आपत्ति नहीं थी बल्कि मुसलमानों ने तो इसे राष्ट्र गान बनाने के पक्ष में संविधान सभा में मतदान किया था । वंदे मातरम गीत से अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी । अंग्रेजों का जवाहर लाल नेहरू पर इस गीत को राष्ट्र गान न रखने का दबाव बढता जा रहा था । अंग्रेजों की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू इस मसले को गाँधी जी के पास ले गये क्योंकि जवाहर लाल नेहरू ये जानते थे कि गाँधी जी उनकी बात का विरोध नहीं करेगे और यदि करेगे भी तो अंतिम फैसला उन्ही (जवाहर लाल नेहरू) के हक में ही देगे ।

गाँधी जी भी जन गन मन गीत को राष्ट्र गान बनाने के पक्ष में नहीं थे । पर जवाहर लाला नेहरू पर अगाध प्रेम के कारण उन्होंने नेहरू से कहा कि मै जन गण मन को राष्ट्र गान नहीं बनाना चाहता और तुम वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये । गाँधी जी ने तीसरे विकल्प में झंडा गान “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा” (रचइता श्याम लाल गुप्त “पार्षद”) को रखा । लेकिन नेहरु उस पर भी तैयार नहीं हुए । नेहरु का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है ।

गाँधी जी के राजी न होने के कारण नेहरु ने इस मुद्दे को टाल दिया परन्तु गाँधी जी की मृत्यु के बाद नेहरु ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया । भारत का जनमानस नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया वह भी वन्देमातरम गीत के सिर्फ़ पहले छंद को, पूरे गीत को नहीं । लेकिन कभी इसे किसी भी राष्ट्रीय पर्व पर गया नहीं गया । नेहरु कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि उनके आका अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे । जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था ।

बीबीसी ने उस वक्त एक सर्वे किया, उसने पूरे संसार में जितने भी भारतीय मूल के लोग रहते थे, उनसे पूछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत भारतीय राष्ट्रगान के रूप में ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों का कथन था कि मुझे वन्देमातरम गीत भारतीय राष्ट्रगान के रूप में ज्यादा पसंद है । बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ होती है कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दूसरे नंबर पर वन्देमातरम था । कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है ।

यह है इतिहास वन्दे मातरम का और जन गण मन को राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान बनाए जाने का । अब ये हम भारतीयों को तय करना है कि हमको क्या गाना चाहिये, और किसे अपनाना चाहिये ।

वन्देमातरम……………………………

Tuesday 18 August 2015

संघ की मूल अनुभूति...


राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जिसे आर.एस.एस (R.S.S.) जाना जाता है ।मुझे नही लगता कि किसी को संघ की पहचान बताने की जरूरत है। आज यह कहना ही उचित होगा कि इसके आलोचक ही इसकी मुख्य पहचान है। जब आलोचक संघ की कटु आलोचना करते नज़र आते है तब तब संघ और मजबूत होता हुआ दिखाई पड़ता है। छद्म धर्मनिरपेक्षवादी लोगों को यही लगता है कि भारत उन्ही के भरोसे चल रहा होता है किन्‍तु जानकर भी पागलो की भांति हरकत करते है जैसे उन्‍हे पता ही न हो कि संघ की वास्‍तविक गतिविधि क्‍या है ?

संघ के बारे थोड़ा बताना चाहूँगा उन धर्मनिरपेक्ष बंदरो को जो अपने आकाओ के इसारे पर नाचने की हमेशा नाटक करते रहते है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्‍थापना सन् 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्‍थान पर डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर जी ने की थी। संघ के 5 स्‍वयंसेवको के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5 स्‍वयंसेवक आज करोड़ो स्‍वयंसेवको के रूप में हमारे समाने है। संघ की विचार धारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है। कुछ लोग संघ की सोच को राष्ट्र विरोधी मानते है क्‍योकि उनका काम ही है यह मानना, नही मानेगे तो उनकी राजनीतिक गतिविधि खत्‍म हो जाती है।



राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि 'एक देश में दो दप्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' बात सही भी है। जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र मे बाधा गया है तो धर्म के नाम पर कानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सामप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है। अगर देश के समस्‍त नागरिको के लिये एक नियम की बात करना साम्प्रदायिकता है तो मेरी नज़र में इस साम्प्रदायिकता से बड़ी देशभक्ति और नही हो सकती है।



संघ ने हमेशा कई मोर्चो पर अपने आपको स्‍थापित किया है। राष्ट्रीय आपदा के समय संघ का स्यंवसेवक यह नहीं देखता‍ कि आपदा मे फंसा हुआ व्‍यक्ति किस पूजा पद्धति को मानने वाला है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है कि आपदा मे फसा हुआ अमुख भारत माता का बेटा है। गुजरात में आए भूकम्प और सुनामी जैसी घटनाओं के समय सबसे आगे अगर किसी ने निःस्वार्थ भाव से कार्य किया तो वह संघ का स्‍वयंसेवक था। संघ के प्रकल्पों ने देश को नई गति दी है। दीन दयाल शोध संस्थान ने गांवों को स्वावलंबी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। संघ के इस संस्‍थान ने अपनी योजना के अंतगत करीब 80 गांवों में यह लक्ष्य हासिल कर लिया और करीब 500 गांवों तक विस्‍तार किया जाना है। दीन दयाल शोध संस्थान के इस प्रकल्प में संघ के हजारों स्‍वयंसेवक बिना कोई वेतन लिए मिशन मानकर अपने अभियान मे लगे हैं। सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र में संघ के विभिन्‍न अनुसांगिक संगठनों राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मजदूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित ऐसे संगठन कार्यरत है जो करीब 1 लाख प्रकल्‍पों को चला रहे है।



संघ की प्रार्थना भी भारत माता की शान को चार चाँद लगता है, संघ की प्रार्थना की एक एक लाईन राष्‍ट्र के प्रति अपनी सच्‍ची श्रद्धा प्रस्‍तुत करती है। संघ को गाली देने से संघ का कुछ बिगड़ने वाला नही है अप‍ितु गंदे लोगो की जुब़ान की गन्‍दगी ही परिलक्षित होती है।


Friday 14 August 2015

क्या करें ऐसी आजादी का...

" हुआ हुक्म जब फांसी का तो भगत सिंह यूँ मुस्काया
बोला माँ अब गले लगा लो मुद्दत में मौक़ा आया
तख़्ते फाँसी कूंच पेजब क़दमों की आहट आती थी
तो दीवारें भी झूम-झूम कर वंदेमातरम् गाती थीं
चूम के फाँसी का फन्दा जब इंक़लाब वो बोला था
काँप उठी थी वसुंधरा अंग्रेज़ी शासन डोला था
आख़िर बोला यही वसीयत ऐ रखवाले करता हूँ
माँ की लाज बचा लेना अब तुम्हे हवाले करता हूँ
आओ तुमको इंक़लाब की ताक़त मैं दिखलाता हूँ
छोड़ दिए तुमने जो पन्ने उनकी याद दिलाता हूँ ।"
-शहनाज हिन्दुस्तानी


एक बार फिर देश तैयार है 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस की एक और वर्षगांठ मनाने के लिए। हम सिर्फ यह कह-सुन कर आपस में खुश हो लेते हैं कि हम आजाद हैं, लेकिन सच में हम कितना आजाद हैं, यह तो हमारा दिल ही जानता है। यही वजह है कि आजादी का आंदोलन देख चुकी हमारी बुजुर्ग पीढ़ी बड़े सहज भाव में कहती सुनाई देती है कि इससे तो अंग्रेजों का राज अच्छा था।



वस्तुत: हमारी आजादी आधी अधूरी ही है। इसकी वजह ये है कि हम 15 अगस्त 1947 को अग्रेजों की दासता से तो मुक्त हो गए, मगर जैसी शासन व्यवस्था है, उसमें अब हम अपनों की ही दासता में जीने को विवश हैं। आज हम किस बात पर गर्व करें, सत्ता के सिंहासन के पैर की जूती बन चुकी व्यवस्था पर या अंग्रेजों द्वारा भारत को बर्बाद करने के लिए बनाए गए कानूनों पर जो आज भी हमारे गले में लटके हुए हैं, या इस बात पर कि इस देश का युवा को 14 नवंबर और 30 जनवरी तो याद है लेकिन 27 सितंबर नहीं।

मित्रों आज एक बार फिर रोने का मन कर रहा है। बहुत से लोग अधिकारों की बात करते हुए दिख जाते हैं। हमारे संविधान ने हमको बहुत से अधिकार दे रखे हैं, जैसे.....
1. किसी के भी मुंह पर कालिख फेंकने की आजादी
2. किसी के भी ऊपर जूता फेंकने की आजादी
3. किसी को भी गलियां देने की आजादी
4. कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा फहराने देने की आजादी
5. आतंकवादियों को अपने दामाद की तरह पूरी सुरक्षा और इज्ज़त के साथ रखने की आज़ादी
6. सरबजीत जैसे देशभक्त को आतंकवादी बताने और अफजल गुरु जैसे आतंकवादी को फांसी नहीं होने देने की आजादी
7. शांति और अहिंसक तरीकों से आन्दोलन करने वालो को बिना कारण के जेलों में ठूंसने की आजादी
8. अरबों रुपयों का भ्रष्टाचार करके सीना तान के खड़े रहने की आजादी
9. भारत के साधू संतो और भगवानों का अपमान करने की आजादी
10. सिख जैसी देशभक्त कौम पर गंदे गंदे चुटकुले बनाने की आजादी
11. सरकारी दफ्तरों मैं काम नहीं करने और आराम से रिश्वत लेकर काम करने की आजादी
ऐसी बहुत सी आजादी हमें हमारे संविधान ने दे रखी हैं।
क्या हमारे महान क्रांतिकारियों ने ऐसे भारत के लिए कुर्बानियाँ दी थी ???

दरअसल, अब हम एक ऐसी परंतत्रता में जी रहे हैं, जिसके खिलाफ अब दोबारा संघर्ष की जरूरत है। हमें अगर पूरी आजादी चाहिए, तो हमें एक और स्वाधीनता संग्राम के लिये तैयार हो जाना चाहिये। यह स्वाधीनता संग्राम जमाखोरों, कालाबाजारियों के खिलाफ होना चाहिए। यह संग्राम भ्रष्टाचारियों से लड़ा जाना चाहिए। यह संग्राम चोर, उचक्कों, लुटेरों और ठगों के खिलाफ छेड़ा जाना चाहिये। यह संग्राम देश को खोखला कर रहे सत्ता व स्वार्थलोलुप नेताओ के विरुद्ध लड़ा जाना चाहिए।
हर भारतीय की इच्छा है कि आजादी केवल किताबों और शब्दों में ही नहीं, बल्कि धरातल पर भी दिखनी चाहिये। हमें भगत सिंह के सपनों का भारत चाहिए। हमें देश के महान क्रांतिकारियों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है। विडंबना यह है कि हम आजादी के पर्व पर इन तथ्यों पर जरा भी चिंतन नहीं करते। हम सिर्फ इस दिन रस्म अदायगी करते हैं। सुबह झंडा फहरा कर और बड़े-बड़े भाषण देकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और दूसरे ही दिन पुराने ढर्ऱे वाली आपाधापी में व्यस्त हो जाते हैं।

देश तो बनता है संस्कृति ,परंपराओं और देश के निवासियों की असंदिग्ध निष्ठा से, पर देश के निवासियों में सर्वप्रथम निष्ठा तो जाति धर्म के प्रति प्रतीत होती है। सांस इस देश में भरते है गुणगान विदेश का करते हैं। ये कैसा राष्ट्र प्रेम है? इस मनोदशा को बदलना होगा समृद्धशाली और सामर्थ्यवान भारत की रचना करनी होगी। स्वतंत्र भारत के 69 सालों के बाद भी गौरवमयी इतिहास पर खून के धब्बे आज भी विराजमान हैं, कुछ कराहते हैं, आज भी जीवनयापन के साथ आत्मसम्मान के लिये संघर्षरत हैं, जिनकी कराह देश की नींद में दाखिल है परंतु सत्ताधीशों की नींद नहीं टूट रही है।

महोदय अब मत करिए कुछ ऐसा कि खुद से भी नजर मिला पाओ। देश के लिए सिर्फ एक दिन ही नहीं है, हर दिन, हर पल है देश के लिए और देशवासियों के लिए...
अपने अधिकार ही नहीं कर्तव्यों को भी समझें
देश को तोड़ने वाले तत्त्वों से बचें और आजादी की उड़ान भरें अपने आजाद विचारों के साथ...
वन्दे भारती

Wednesday 12 August 2015

भगवान को कैसे देखें...


एक बार अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि भगवान मै आपके विराट स्वरूप का दर्शन करना चाहता हूँ | 
श्री कृष्ण ने कहा -
इन पंच तत्वों से बनी आँखो से केवल पंचतत्व की बनी चीज ही देख सकते हो | इन आँखो से मिट्टी देख सकते हो ,हाँड़ माँस से बनी चीजें देख सकते हो , इनसे भगवान को नही देख सकते | भगवान चमड़े की आँखो का विषय नही है, भगवान का शरीर सच्चिदानंद है दिव्य है। इसी लिए भगवान ने कहा ----दिब्यं ददामि ते चक्छुः " अर्थात् मै तुम्हे दिब्य दृष्टि दूँगा | तब तुम मेरे दिव्य स्वरुप को देख सकोगे |
क्या आपने कभी ठंडक देखी ? क्या आपने कभी गर्मी देखी ? क्या आपने कभी प्यार देखा ?? अच्छा आप बताइये ज्ञान को देखा ? सबका उत्तर है नही | तो फिर जब आप इन चीजों को नही देख पाये तो भगवान को देख लोगे ???

भगवान ने अपना स्वरुप जब अर्जुन को दिखाया तो वे देख पाये , माँ यसोदा को जब दिखाया तो वे देख सकीं |
अतः भगवान को देखने के लिए एक योग्यता चाहिए "प्रेमांजना छुरित भक्ति विलोचनेना संतः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति" अर्थात जिनकी आखों में भगवान के प्रति शुद्ध प्रेम का अंजन(काजल) लगा है वे शुद्ध भक्त भगवान का दर्शन हर क्षण करते हैं। शुद्ध भक्त प्रकृति के तीन गुणों से ऊपर दिव्य गुण में स्थित होते हैं।
तो अगर भगवान को देखना है तो इस योग्य बनिए। हरे कृष्ण महामंत्र का जप कलियुग में भगवद प्राप्ति का सर्वोत्तम एवं सरल साधन है। इसका जप करने से हमारे ह्रदय में भगवान के प्रति सुप्तावस्था में पड़ा प्रेम जागृत होता है और हमे परम पद की ओर ले जाता है।
प्रतिदिन कम से कम १० मिनट जरूर जप करें।
नशा, मांसाहार, अवैध सम्बन्ध, जुआ, इन सब कुकर्मों से दूर रहे।
हरे कृष्ण।

सावन,भारतीय संस्कृति और एक रहस्य


यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?




भारतीय : सीता को ही हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर
प्रश्नचिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?

इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !

भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?

इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिए।

भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?

इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, एम् टेक किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.

भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में जानते नहीं कुछ भी. अगर जानते होते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिवजी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?

इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.

भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है : विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं – भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ?

इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !

भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले “भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें”. तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ? विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो !
तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष ! भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ !
तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास ! भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया ! ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.

इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ? 

भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है ..:P किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए……अब आगे सुनो फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ???? मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने.
और सुनो – तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है कृष्ण जी को (विष्णु अवतार).
लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !
हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग ! और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न ! कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग ! दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं……

अब मुद्दे पर आते हैं……..इन सबका मतलब क्या हुआ ???

विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का
रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं !
और शिव जी?
शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है,
मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !

इंडियन : ओके ओके, समझा !

भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !और उस समय पशु क्या खाते हैं ?

इंडियन : क्या ?

भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में (जब शिवरात्रि होती है !!) दूध नहीं पीना चाहिए. इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे ! इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था ! समझे कुछ ?
इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !

भारतीय : हम्म….लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी). एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है ! तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?

इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी होगी.

भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !
जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें ! -

Thursday 6 August 2015

अच्छा तो मैं भी नक्सली हूं.... लेकिन ऐसा नक्सली होने पर गर्व है...

कुछ दिन पहले अपने एक छोटे भाई प्रीतम दुबे के साथ राष्ट्रीय एकात्मता के विषय पर चर्चा हो रही थी, तो उसने किसी विषय पर बोला कि हमारे संविधान में ऐसा लिखा है...तो मेरे मुंह से अचानक निकला कि मैं संविधान को नहीं मानता। मेरे मुंह से संविधान के विषय में ऐसा पहली बार निकला था। उस रात मेरे लिए चिंतन का विषय यही था कि मेरे मुंह से संविधान को लेकर ऐसी बात क्यों निकली। इसका मतलब यह नहीं कि मैं हमेशा से संविधान का पूर्ण रूप से समर्थन करता था। मैं पहले भी संविधान का विरोध करता रहा हूं लेकिन वो विरोध इस लिए होता था क्यों कि मैनें संविधान की बहुत सी धाराओं  तथा कानूनों के विषय में विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए उन कानूनों के पीछे के मूल उद्देश्यों को मैं समझता था इस नाते मैं संविधान का विरोध करता था लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा कि संविधान को पूर्ण रूप से नकारना उचित होगा।

उस दिन प्रीतम से बात करते हुए जब मेरे मुंह से निकला कि मैं संविधान को नहीं मानता तो मेरे स्वयं के वाक्य ने मुझे चिंतन की स्थिति में ले जाकर खड़ा कर दिया और ऐसा इस लिए हुआ क्यों कि ये विचार मेरे मूल विचार नहीं थे। ऐसा लगा कि किसी और के विचार मुझ पर हावी हो रहे हैं। फिर जब इस विषय पर सकारात्मक चिंतन किया तो समझ आया कि मैं इतना कमजोर नहीं कि किसी और के विचार मुझ पर हावी हो जाएं। ये वाक्य जो मेरे मुंह से निकला था उसे यह मानकर सत्य मान लिया कि ये ईश्वर की सोच है और मुझे चलाने वाले, मुझे जन्म देने वाले परमपिता परमेश्वर ने मेरे मन में ये विचार डाला।

आज ऑफिस में बैठे समय कुछ लिख रहा था तभी अचानक मेरी नजर बाबा सत्यनारायण मौर्य की एक कविता पर पड़ी। कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार थीं...

भारत माँ के सब बेटे हैं, सबको माँ का प्यार मिले।
एक रहे कानून व्यवस्था, सबको सम अधिकार मिले॥
जाति भाषा पंथ भेद तो, रूप रंग खुशबू भाई
इन बातों को लेकर ना, इस धरती पर हथियार चले॥
समरस भावों से भारत माँ, पुत्रों तुम्हें निहारती।
वन्दे मातरम् गाकर लो, भारत माँ की आरती॥ 

इन पंक्तियों को पढ़कर मुझे समझ आया कि सांस्कृतिक आधार पर हमें संविधान की नहीं अपितु सम विधान की आवश्यकता है। ऐसी व्यवस्था जो सभी के लिए समान हो अर्थात भेदभाव रहित व्यवस्था।

इस विषय पर एक अन्य मित्र से चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि नक्सली भी संविधान नहीं मानते तो तुममें और उनमें क्या अंतर है? यदि नक्सली इस विषय को लेकर नक्सली कहे जाते हैं तो मुझे भी नक्सली कहलाने में गर्व होगा।

मित्रों एक बार सोच कर देखिए कि जब ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया तो उसने ऐसा नहीं किया कि अमुख पेड़ से प्राप्त ऑक्सीजन का प्रयोग केवल महिलाएं करेंगी तथा अमुख पेड़ से पुरुष.... इस नदी से प्राप्त जल का प्रयोग केवल 14 वर्ष तक के बच्चे कर सकते हैं।लिखने को ऐसे बहुत से विषय हैं लेकिन इसे संकेत समझ कर एक बार आप भी चिंतन करें कि क्या हम स्वयं को भगवान से भी ऊपर समझने लगे हैं? जब ईश्वर ने कोई भेदभाव नहीं किया तो हम क्यों कर रहे हैं?

आज इसी प्रश्न के साथ......

वन्दे भारती

Wednesday 5 August 2015

राम मंदिर कब बनेगा?


कल शाम कुछ वामपंथी मित्रों के साथ बैठा हुआ था, उन सभी के साथ चर्चा का विषय था मोदी सरकार का एक साल...जैसा कि वामपंथी परंपरा रही है कि जब उनके पास मूल तथ्य या तार्किक विषय नहीं रहता है तो वो विषय से चर्चा से भटका देते हैं। ऐसा ही कुछ कल भी हुआ, एक मित्र ने कहा कि तुम्हारे राम का मंदिर कब बनेगा?
उनके इस प्रश्न को सुनकर मैं समझ गया कि अब उनके पास कोई तर्क नहीं बचा है...लेकिन उनके प्रश्न ने मुझे ब्लॉग लिखने का एक विषय दे दिया..मैं इस ब्लॉग के माध्यम से राम मंदिर के विषय में अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूं।

प्रश्न था कि तुम्हारे राम का मंदिर कब बनेगा?
मेरे राम का मंदिर तो बना हुआ है, मेरे राम मेरे मन में बसते हैं और मेरे राम का मंदिर पूर्ण रूप से पूर्ण भव्यता के साथ बना हुआ है। जहां तक बात है अयोध्या के राम मंदिर की तो वो मेरे राम का नहीं हमारे राम का मंदिर है। राम जिस दिन मेरे तुम्हारे से हटकर अपने हो गए उसी दिन भव्य राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा। दिस राम की मैं वन्दना करता हूं वो राष्ट्रदेव राम हैं। वो राष्ट्रदेव राम एक ऐसे चेतन तत्व हैं जो दुनिया के कण कण में समाए हुए हैं। राम मंदिर के भव्य निर्माण से पहले हमें यह समझना होगा कि राम कौन हैं, राम कोई और नहीं हम स्वयं हैं। जब हमारी आखों के सामने कुछ गलत हो रहा हो और हम उसके खिलाफ संघर्ष करें तो समझ लेना कि राम आ गए और जब हम उसका विरोध न करें तो समझ लेना हम पर रावण हावी हो रहा है।
जब हमारे यहां किसी बच्चे का जन्म होता है तो यही कहा जाता है कि राम को कौशल्या ने जन्म दिया है न कि ये कहा जाता है विश्व गौरव या फलाने ने जन्म लिया है। राम किसी उपन्यास के पात्र नहीं हैं, यदि वह किसी उपन्यास के पात्र होते तो यह नाम कब का मिट गया होता। राम राष्ट्र की संस्कृति के आधार हैं, और इसी लिए जब भारत में किसी का विवाह होता है तो महिलाएं जो गीत गाती हैं उसमें यही कहती हैं कि राम और सीता का विवाह हो रहा है।
हमारे यहां कहा भी गया है कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।




दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर आधारित हैं।
श्री राम के रूप को लेकर संटों में मटभेद हो सकते हैं कोई सगुण राम को मानता है तो कोई निर्गुण राम को, कोई प्रेम मार्गी है तो कोई अन्य किसी रूप में लेकिन सभी के राम का चरित्र एक जैसा ही है।
हमारे राम का मंदिर मुझे या नरेन्द्र मोदी को नहीं बनाना है वो मंदिर हमें बनाना पड़ेगा। 6 दिसंबर को जब हमारा स्वाभिमान जागा और ढ़ांचा गिराया गया तो एक प्रश्न उठा कि प्रेम की प्रतिमूर्ति श्री राम के मंदिर निर्माण के लिए आन्दोलन की आवश्यकता क्यों पड़ी?

इस बात का उत्तर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने बहुत पहले ही दे दिया था। उन्होंने कहा था कि
"शस्त्र नहीं हैं वहाँ.. शास्त्र सिर धुनते और रोते हैं,
ऋषियों को भी सिद्धि तभी मिलती है
जब पहरे पर स्वयं धनुर्धर राम खड़े होते हैं."
मेरे एक पूर्वज ने कहा था कि जो कायर होते हैं उनके देवता भी कायर होते हैं। इसी कारण राम मंदिर टूट गया। जब हमने कायरता धारण की तो बाबर ने हमारे राम का मंदिर तोड़ दिया तब श्री राम भी कुछ नहीं कर पाए और जब हमने कायरता का परित्याग किया तो ढ़ांचा गिर गया। हमने भक्ति योग को तो ध्यान में रखा लेकिन शक्ति का प्रयोग करना भूल गए।
घर में बैठकर राम की पूजा करने से धरती स्वर्ग नहीं बनेगी, धरती को स्वर्ग बनाने के लिए हमें राम के चरित्र को स्वयं में उतारना पड़ेगा। बिना शक्ति के भक्ति का कोई महत्व नहीं रहता।

कुछ लोग कहते हैं कि एक नहीं बनेगा तो क्या हो जाएगा, आज तक 3000 से अधिक मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया गया लेकिन हम उन 3000 मंदिरों के लिए आंदोलन नहीं कर रहे। हमारी आस्था के आधार मंदिरों में 3 प्रमुख मंदिर आते हैं, एक- अयोध्या का राम मंदिर दूसरा काशी का बाबा विश्वनाथ का मंदिर तथा तीसरा मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि। और इन मंदिरों के लिए नियमित संघर्ष चल रहा है।

मित्रों मेरे कुछ मित्र कहते हैं कि बाबरी ढ़ांचा गिराकर राष्ट्रवादियों ने मुस्लिमों का अपमान हुआ है। मैं उनसे मात्र एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि हम हजारों सालों से रावण का पुतला जलाते हैं तो उससे नाराज होकर क्या ब्राह्मणों ने कभी कहा कि इससे हमारा अपमान हो रहा है। इस देश का सच्चा मुस्लिम कभी स्वयं को बाबर की औलाद नहीं मान सकता।

राम मंदिर निर्माण के लिए एकजुट हों और सभी मुस्लिम भाइयों से निवेदन है कि राम मंदिर को किसी मजहब से न जोड़ें । राम सिर्फ हिन्दुओं के न होकर इस देश की अस्मिता के आधार हैं।

भगवान राम सिर्फ हिन्दुओं के आस्था के कारण ही भगवान नहीं हैं बल्कि वे अपने कर्मों की वजह से पूजे जाते हैं और, पुरुषोत्तम कहलाते हैं-

  • भगवान राम द्वारा सीता को यह वचन दिया जाना कि मैं अपने जीवन में सिर्फ एक ही विवाह करूँगा, और तुम मेरी एकमात्र पत्नी रहोगी यह दर्शाता है कि वे बहुविवाह के विरोधी थे जो कि उस समय बहुत ही आम बात थी ( आज भी हिन्दुओं में भगवान् राम की तरह एक विवाह की ही मान्यता है)। 
  • जंगल में निषादराज से गले मिलकर भगवान राम ने उंच-नीच की भावना पर कुठाराघात किया और हमें यह सन्देश दिया कि जाति अथवा धन आधारित विभेद नहीं होना चाहिए !, सबरी जो कि एक अछूत जाति से थी उसके हाथों के जूते बेर खा कर उन्होंने जाति या वर्ण व्यवस्था को कर्म  आधारित प्रमाणित कर दिया और हमें यह सन्देश दिया कि मोल व्यक्तियों और उसकी भावनाओं का होता है ना कि उसके कुल या जाति का !
  • जंगल में ही अहिल्या को शापमुक्त कर उन्होंने यह सन्देश दिया कि अनजाने में हुए गलती गलती नहीं कहलाती है और, बेहतर भविष्य के लिए उसे माफ़ कर देना ही उचित है !, बाली वध का सार यह है कि अगर आपका मित्र सही है तो किसी भी हालत में आपको आपके मित्र की सहायता करनी चाहिए और, येन-केन-प्रकारेण पृथ्वी पर से दुष्टों का संहार जरुरी है ताकि सज्जन चैन से जी सकें !, 
  • सीता जी के अपहरण के पश्चात् पहले समुद्र से विनय पूर्वक रास्ता मांगना फिर उस पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार को उत्तेजित होना यह दर्शाता है कि शक्तिसंपन्न होने के बाद भी लोगों को अपनी मर्यादा नहीं भुलानी चाहिए.!, समुद्र को मात्र एक बाण से सुखा देने कि क्षमता होने के वाबजूद भी समुद्र पर राम सेतु का बनाना हमें यह सिखाता है कि अगर कम बन जाए तो बिना वजह शक्ति प्रदर्शन अनुचित है और, अपने से कमजोर को ताकत के बल पर अपना पसंदीदा काम करवाना सर्वथा अनुचित है !
  • रावण वध के पश्चात् लक्ष्मण को उसके पास शिक्षा ग्रहण करने को भेजना हमें सिखाता है कि ज्ञान जिस से भी मिले जरुर ग्रहण करना चाहिए और, मनुष्य ये कभी भी नहीं समझना चाहिए कि वो सम्पूर्ण है !, 
  • सीता की अग्नि परीक्षा पर भगवन राम कहते हैं कि ""आज ये सीता की अग्नि परीक्षा अंतिम अग्नि परीक्षा है और, दुनिया में फिर किसी नारी को ऐसी प्रताड़ना नहीं दी जाएगी, मनुष्य को अपनी अर्धागिनी पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि माता सीता उतने वर्ष रावण जैसे व्यक्ति के पास रह कर भी पवित्र ही थी !, ठीक उसी प्रकार आधुनिक नारी को भी घर में अथवा बाहर अकेला छोड़ देने के बाद उसकी बातों और उसकी पवित्रता पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि, नारी वो शक्ति है जो रावण जैसे नराधम के पार अकेली रह कर भी अपनी लाज की रक्षा करने में सक्षम है !, यदि अग्नि परीक्षा नहीं हुई होती तो नारी की सच्चाई संदिग्ध ही जाती और, वो विश्वास का मामला होता परन्तु अग्नि परीक्षा ने यह साबित कर दिया कि नारी पर शक करने का कोई कारण नहीं है खास कर जब वो आपकी अर्धांगिनी हो !
     
  • एक धोबी के कहने पर भगवान् राम द्वारा माता सीता का परित्याग भगवान राम का राजधर्म था जहाँ उन्होंने माता सीता का परित्याग कर यह सन्देश दिया कि राजा की अपनी कोई ख़ुशी अथवा गम नहीं होना चाहिए !, अगर राज्य का एक भी व्यक्ति भले ही वो एक धोबी जैसा निर्धन, निर्बल ही क्यों ना हो उसका मत भी महत्वपूर्ण है और, उसके राय भी महत्वपूर्ण हैं !, कोई भी काम सर्वसम्मति के करना चाहिए और, सर्वसम्मति बनाने के लिए अगर राजा को अपनी निजी खुशी को यदि बलिदान भी करना पड़े तो राजा को कर देना चाहिए क्योंकि राजा बनने के व्यक्ति खुद का या परिवार का नहीं रह जाता है बल्कि वो राज्य का हो जाता है ! प्रजा की ख़ुशी में ही राजा की ख़ुशी होनी चाहिए और, प्रजा के दुःख में ही राजा का भी दुःख निहित है ! 


भगवान राम के हर काम में हमारे लिए अहम् सन्देश है...! तो कहने का मूल तात्पर्य यह है कि राम के चरित्र को अपनाओ तभी राम राज्य आएगा और उस चरित्र को अपनाने के लिए राम मंदिर का भव्य निर्माण परम आवश्यक है वो भी प्रत्येक नागरिक के सहयोग से।

वन्दे मातरम

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...