Saturday 28 March 2015

मेरे होने की वजह तुम हो....

अपने परिवार एवं उस लड़की को समर्पित जिसने मुझे सही रास्ते पर ला दिया
“इंडियाज डॉटर को बनाना नारीत्व का अपमान है” विषय पर दिल्ली के सत्यवती कॉलेज में आयोजित वाद विवाद प्रतियोगिता में सदन के समक्ष अपना विषय रखने के बाद अपने जीवन में कुछ बातें पहली बार समझ में आयीं....हमेशा कि तरह मैंने अपना विषय रखने के लिए कुछ नोट्स बनाए लेकिन हमेशा कि तरह ही मैं बस वो बोल पाया जो दिल में आया....
आज मुझे एहसास हुआ कि आखिर मेरी इस स्थिति में अहम् योगदान किस-किसका है....
मुझे याद है बचपन में जब मैं 5 साल का था तब मेरे घर में गाय थी मुझे मेरी माँ कहती थी कि बेटा गाय हमारी माता है जाओ और उसके पैर छुवो...बिना गौ माता के चरण स्पर्श के मुझे कुछ भी खाने को नही दिया जाता था....मेरे घर में मात्र रविवार को मुझे टीवी देखने दी जाती थी जब सुबह श्री कृष्णा आता था....उस समय एक कार्यक्रम आता था चित्रहार....मेरी बुआ जी उस कार्यक्रम की बहुत शौक़ीन थी लेकिन मुझे कभी गाने नहीं सुनने दिए गये ....मुझे फ़िल्में नहीं देखने दी जाती थी....कभी कभी चोरी छुपे मैं दूसरों के घर पर फिल्म देखने चला जाता था लेकिन यदि घर पर पता लग जाता था तो मार भी पड़ती थी....मैंने 15 साल कि उम्र तक कोई फिल्म पूरी नहीं देखी....उस समय बहुत बुरा लगता था जब मेरे घर पर मेरे बाबा जी मुझे विभिन्न धारावाहिक एवं फ़िल्में देखने से मना करते थे लेकिन आज मुझे लगता है कि यदि मेरे पिता जी ने भी मुझे फिल्मे दिखाई होती तो मैं भी आज के समय के यो-यो टाइप कूल डूड्स कि तरह कमर के नीचे से जींस पहनकर और गर्दन पर टैटू गुदवाकर घूम रहा होता....
जब मैं छोटा था तो माँ ने सिखाया था कि किसी लड़की के अगर, पैर लग जाए तो तुरंत उसके पैर छूना, क्योंकि लड़की देवी, का रूप होती है ! जब माँ दोनों नवरात्रों में कन्यायों को बुलाकर, उनके पैर पूजती थी तो उसकी सिखाई बात अन्दर तक चली जाती थी ! पड़ोस की सब औरतें हमारे लिए चाची, ताई, बुआ और दादी, हुआ करती थीं ! शिशु मंदिर में पढने गए तो वहां भी सब लड़कियां, बहनें थीं जो राखी भी बांधती थीं ! बड़े हुए तो घर में दूरदर्शन पर रामायण जैसा धारावाहिक देखने, को मिलता था, ना कि चिकनी चमेली और फेविकोल ! बाबा जी रोज शाम को धर्म, अध्यात्म और नैतिकता की चर्चा, करते थे जिससे संस्कार मन में बैठते चले गए ! मर्यादा का पाठ घर में हर रोज ही पढाया जाता था ! परिणाम ये हुआ कि स्त्री का सम्मान जीवन का भाग बन गया, जिसके लिए अलग से कुछ सोचने की जरुरत नही पड़ती थी ! शाखा में मिले संस्कारों ने घर के संस्कारों को और प्रगाढ़ किया ! कई बार पूछते थे घर पर कि इतने नियम कायदे क्यों तो, जवाब मिलता था कि ये मर्यादाएं हैं जिनका पालन करना ही, होगा क्योंकि हम भारत में रहते हैं, इंग्लैण्ड में नहीं ! सच में यही भारत था, जहाँ संस्कार कूट कूट कर भरा जाता था , बचपन से ! इसका गाँव या शहर से नहीं बल्कि मूल्यों के, होने या ना होने से सम्बन्ध है ! पर अब हम वहां आ गए हैं, जहाँ ना भारत की बात की जा सकती है और ना मर्यादा की, और जो ऐसा करता है, वो पिछड़ा, दकियानूसी, रूढ़िवादी और जाहिल है ! स्वागत है आपका इंडिया में जहाँ मर्यादायों की नहीं, नंगई की बात की जाती है...
ये सब पढ़कर बिलकुल भी ये मत सोचियेगा कि मैं बचपन से आज तक ऐसा ही रहा....कक्षा 12 के बाद मेरे जीवन में बहुत सी लड़कियां आयीं शायद  इस लिए कि मैं लखनऊ कि चकाचौंध में अपने संस्कारों को भूल गया था....लेकिन एक बार फिर मुझे संभाला गया....निर्देशित रूप से नहीं....जी हाँ बिना रोक टोक के अचानक से मझे स्वयं से लगा कि मैं वो क्यों बनूँ जैसे दुसरे हैं....ऐसा तब हुआ जब मुझे प्यार हुआ....वो प्यार जो सिर्फ एक एहसास होता है....मुझे नहीं पता कि वो मेरे विषय में क्या सोचती है लेकिन उसके प्रति पता नहीं कैसे मेरे मन में ऐसा समर्पण आया कि किसी और के विषय में सोचने की इच्छा ही नहीं हुई....प्रत्येक लड़की में अपनी बहन के स्वरुप को देखकर अपनी मानसिकता को एक बार फिर अपने संस्कारों से जोड़ दिया ....
मेरे परिवार के संस्कारों को अनजाने में ही सही लेकिन उन्हें ठीक प्रकार से पुष्पित और पल्लवित करने में तुम्हारा भी अहम् योगदान रहा है......

मुझे पता है मैंने अपने जीवन में कुछ अक्षम्य गलतियाँ की हैं लेकिन आज मैं जो कुछ भी बोलता हूँ उसको पहले स्वयं पर लागू करता हूँ ......एक बार फिर से मुझे ऐसा विशिष्ट जीवन देने वाले पूज्य परिवार के सभी सदस्यों एवं मेरी क्वीन को धन्यवाद् ...

तेरे जाने का असर कुछ इस कदर हुआ मुझ पर 
कि तुझे ढूंढते ढूंढते खुद को पा लिया।

Sunday 22 March 2015

तो शायद निर्णय कुछ और होता.....



कॉलेज की तरफ से जामिया मीलिया इस्लामिया में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की वाद विवाद प्रतियोगिता में कॉलेज का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला तो मन में बस एक ही प्रश्न था कि विषय क्या होगा? हालाँकि किसी भी विषय पर बोलना मुश्किल नहीं था लेकिन यदि विषय मन का मिल जाए तो बात ही कुछ और होती है....खैर कुछ समय के बाद विषय भी पता चल गया ,विषय था – ‘नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों के संरक्षण के लिए सेंसरशिप आवश्यक है’....मेरी इच्छा थी कि मैं विषय के विपक्ष में बोलूं लेकिन कॉलेज के द्वारा चयनित दुसरे प्रतिभागी कि इच्छानुरूप मेरा विपक्ष में बोलना तय हुआ..मुझे ख़ुशी थी कि एक राष्ट्रीय मंच से मैं कुछ बोलूँगा लेकिन उससे ज्यादा ख़ुशी थी कि श्रोताओं में वो व्यक्ति भी होगा जिसके उपस्थित होने मात्र से ही मुझमें ऊर्जा प्रवाह बढ़ जाता है....मेरी क्वीन (काल्पनिक नाम) मेरी नजरों के सामने होगी यह सोचकर ही मैं अपने वक्तव्य के लिए तैयारी करने लगा...पिछले 5 सालों में पहली बार मैं भाषण के लिए तैयारी कर रहा था ...रात भर अनेकों वक्ताओं को सुना ...2 दिनों कि मेहनत के बाद 7 पेज के नोट्स तैयार किए....शायद ये अपने लिए नहीं,कॉलेज के लिए नहीं ,बस एक इन्सान को इम्प्रेस करने के लिए कर रहा था....
लेकिन हमेशा मन का चाहा कहाँ होता है....प्रतियोगिता से पहले वाली रात मेरी क्वीन ने बताया कि वो नहीं आ सकती शायद तबियत ख़राब थी उसकी या सच में तबियत ख़राब थी .....मुझे पता था अब मैं मन से नहीं बोल पाउँगा लेकिन अपने नोट्स के साथ अगले दिन सुबह 8 बजे मैं जामिया मिलिया इस्लामिया के परिसर में था....मैं बार बार अपने नोट्स पलट कर देख रहा था पता नहीं क्यों एक अजीब सा डर था मन में....ये बात मैं किसी से भी नहीं कह सकता था...शायद इस लिए क्यों कि मुझे लगता था कि शायद कोई समझ ही ना पाए....खैर शाम 5 बजे मेरे कॉलेज का नंबर आया ...मैं अब मंच पर था और नीचे मेरे गुरुदेव....मंच पर पहुँचते ही मेरे चेहरे पर हसीं तो थी लेकिन मैं खुश नहीं था ....मेरा दिमाग एकदम खाली हो चूका था ....मेरा दिल बस यही कह रहा था कि काश मेरी क्वीन यहाँ होती ये जानते हुए कि ये संभव नहीं था...मेरे विपक्षी वक्ता के वक्तव्य के बाद जब मैंने बोलना शुरू किया तो बस वही बोला जो मन में आया....ये पहला मौका था जब मैं हताशा में बोल रहा था...5 मिनट पूरे होने के बाद जब मैं मंच से नीचे आया तो अचानक से एक बात की ख़ुशी हुई कि चलो कुछ रटा रटाया नहीं बोला....
मैं अपनी मुहब्बत का शिकवा उससे कैसे कँरु, मुहब्बत तो मैंने की है वो तो बेकसूर हो !

अगले दिन ना चाहते हुए भी मै जामिया में था....अपने लिए नहीं किसी और के लिए....हां अपनी क्वीन के लिए...शाम को जब विजेताओं की घोषणा होने का समय आया तो मुझे पता था कि वाद विवाद में कॉलेज का कोई स्थान नहीं आने वाला...क्यों कि ये पुरुस्कार टीम (पक्ष + विपक्ष) को जाने वाला था ,और ना मैं मन से बोल पाया था और ना ही मेरे विपक्षी वक्ता....मैंने पहली बार अपने विपक्षी वक्ता रुपेश को नर्वस देखा था...हम दोनों ना एक दुसरे से संतुष्ट थे और ना खुद से ....लेकिन अचानक घोषणा हुई कि तृतीय पुरस्कार हमारे कॉलेज को गया है ....बिना उम्मीद के जब कुछ मिलता है तो ज्यादा ख़ुशी होती है....मंच पर ndtv के वरिष्ठ पत्रकार अभिज्ञान प्रकाश थे...पुरस्कार लेकर मैं नीचे आया ....परिसर को उस प्रतियोगिता में पहली बार कोई पुरस्कार मिला था....नीचे कुछ परिचित और कुछ अपरिचित मित्र बधाई दे रहे थे....मेरे चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट थी....अपनी सीट पर बैठ कर जैसे ही मैंने अपना नेट ऑन किया तुरंत मेरी नजर watsapp पर आए संदेशों पर गई ....क्वीन का बधाई सन्देश था.....वो वहीं पर थी और ये सन्देश मुझे खुश करने के लिए पर्याप्त था...

मैं उससे नहीं कह पाया कि अगर एक दिन पहले भी वो वहां होती तो मैं ज्यादा अच्छा बोलता....उसका उस दिन वहां ना होना शायद मेरे किसी बुरे कर्म का नतीजा था....
वो कहते हैं सोच लेना था प्यार करने से पहले। अब उनको कौन समझाए सोच कर तो साजिश की जाती हैं प्यार नहीं...!!
  जीवन में कुछ शाश्वत सत्य ऐसे होते हैं जिनकी अनुभूति हम नहीं करना चाहते , क्यों की हम जानते हैं की उनकी अनुभूति से पीड़ा होगी.....लेकिन समय की वीरता के आगे हमारी एक नहीं चलती और नपुंसकों की भांति खड़े होकर एक नया अनुभव हम प्राप्त करते हैं ....  
झूठ अगर ये हैं की तुम मेरे हो, तो यकीन मानो सच मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता.....

Friday 20 March 2015

आखिर क्यों होते हैं बलात्कार...

अभी हाल ही में एक विदेशी महिला के निर्देशन में एक डॉक्युमेंट्री बनाई गई। उस विषय पर बहुत से तथाकथित बुद्धिजीवियों ने और राष्ट्रवादियों ने अपने विचार रखे। उनका कहना है कि ऐसी फिल्मों पर रोक लगा देनी चाहिए क्यों कि इससे विश्वस्तर पर भारत की छवि खराब होती है। मेरा एक सीधा और सरल सा प्रश्न है कि क्या जो उस बेटी के साथ हुआ उससे भारत की छवि नहीं खराब हुई और जब इस देश के लोगों को ऐसा करने में शर्म नहीं है तो उसे देखने में कैसी शर्म? मुझे तो लगता है कि इस डॉक्यूमेंट्री को तो डीडी नेशनल पर दिखाना चाहिए ताकि आजकल के जो युवा जोश में आकर महिलाओं और लड़कियों को रेप के लिए दोषी ठहराते हैं उन्हें भी पता चले कि वो किसी रेपिस्ट की तरह सोचते हैं।

कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी ऐसे विषयों पर कुतर्क करते हैं कि बलात्कार टॉप,स्कर्ट और जींस की वजह से होते हैं तो फिर आखिर क्यों नकाब में लिपटी महिला का बलात्कार हो जाता है। वो फिर कहते हैं कि बलात्कार  के लिए वक्ष दिखाने वाली ही खुद जिम्मेदार है तो फिर कभी दो साल की तो कभी छ : साल की मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार क्यों होता है।
वे फिर आगे कहते हैं कि ज्यादा बाहर घूमना ठीक नहीं है  क्यों कि अपरिचित लोग ही ऐसा करते हैं लेकिन मैं देखता हूं कि समाचार पत्रों में खबरें आती हैं कि कभी पिता ,कभी  ससुर , तो कभी चचेरे भाई तक लड़की की अस्मत को तार तार कर देते हैं।
उनका अगला तर्क आता है कि ज्यादा आधुनिक होंगे तो बलात्कार होंगे ही तो फिर आदिवासी और गाँव की महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़  क्यों होता रहता है।

मेरा मानना है कि बलात्कार एकमात्र कारण कुत्सित भावना और घटिया संस्कार हैं। वो संस्कार जो ना खून का , ना धागे का, ना शर्म का , ना उम्र का ख्याल करते हैं। उनके लिए नारी का मतलब, बस देह तक सिमटा होता है।

जब बात आती है सामूहिक बलात्कार की तो हमारे मीडिया के मित्र इसे पाशविक कृत्य करार देते हैं लेकिन मित्रों यह पाशविक कृत्य नहीं हो सकता क्यों कि पशु कभी सामूहिक बलात्कार नहीं करते।
बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि एक आदमी को बहुत सारे  लोग पत्थर मार रहे थे , तो किसी ने कहा कि जिसने कभी कोई गलती न की हो वो पत्थर मारे, तब कोई नहीं आगे आ सका। जब पिछले वर्ष बलात्कार के खिलाफ चल रहे आंदोलन में पुरुषों को नारेबाजी करते हुए देखा तो ये कहानी याद आ गई। मेरे मन में आया कि मैं भी कह दूं कि जिस व्यक्ति ने कभी सोच में भी किसी स्त्री के विषय में गलत न सोचा हो वो ही इसका विरोध करने आगे आए। रास्ते पे चलते हुए , बस में या ट्रेन में , मंदिरों की भीड़ में हमें बहुत से ऐसे पुरुष दिख जाते है जो महिलाओं को इस तरह देखते हैं जैसे  नजरों से ही बलात्कार कर रहे हों।
अभी तक इस लेख को पढ़कर संभवतः आपको ऐसा लगा हो कि मैं पाश्चात्य सभ्यता का समर्थक हूं लेकिन नहीं मैं पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण का पूर्ण रूप से विरोध करता हूं। मैं मानता हूं कि व्यक्ति को आधिनिक होना चाहिए लेकिन मेरे लिए आधुनिकीकरण का पैमाना नग्नता नहीं है। सामाजिक भटकाव के कारण आज बलात्कार बढ़ रहे हैं और इस सामाजिक भटकाव के पीछे एक बड़ा कारण आज के विज्ञापन हैं।
मित्रों भारत में लगभग सभी उत्पादों के विज्ञापनों का एक ही उद्देश्य है 'लड़की पटवाना':
क्रीम लगाओ लड़की पटाओ
 पाउडर लगाओ लड़की पटाओ
 डीयोडरंट लगाओ लड़की पटाओ
 फेयर एंड हैंडसम लगाओ लड़की पटाओ
 कोक पेप्सी पियो लड़की
 दिमाग की बत्ती जलाओ लड़की पटाओ
 मंजन करो और ताज़ा साँसों से लड़की पटाओ
एंटी डेनड्रफ शैम्पू लगाओ लड़की पटाओ कोई भी चिप्स खाओ लड़की पटाओ
फोन में फ्री स्कीम का रीचार्ज कराओ और लड़की पटाओ
हद तो तब हो गयी जब पुरुषों के अंतर्वस्त्रों से भी लड़की पट रही है। इनके विज्ञापनों में खास बात ये है कि आपको कुछ करना नही है सिर्फ इन चीजों को इस्तेमाल करो लड़की खुद आपके पास चल कर आएगी। आखिर क्या हो गया है हमारे मीडिया और समाज को ? क्या जीवन का एक ही उद्देश्य है लड़की पटाओ ?
आखिर हमारे घर में भी तो लडकियां हैं और हमें पता है कि हम समाज में उनसे कैसा व्यवहार चाहते हैं, फिर क्यों हम ऐसे विज्ञापनों का समर्थन करते हैं और फिर क्यों हम ऐसे उत्पाद खरीदते हैं जो कि ऐसे विज्ञापन देकर हमारे समाज और संस्कृति को खत्म कर रहे हैं। हमें ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिए, फिर चाहे वो उत्पाद स्वदेशी ही क्यों ना हों।

सनी लियोनी जैसी वेश्या को भारत में जब अतिथि बना कर लाया जाएगा तो माँ बहिन बेटियों का सामूहिक बलात्कार होना स्वाभाविक है। पश्चिमी सभ्यता का परित्याग ही भारत को बचा सकता है। जो लोग टीवी और फिल्मों के माध्यम से नग्नता फैलाते है वो तो सुरक्षा लेकर घूमते हैं और इनकी नग्नता फैलाने की सजा बेचारी हमारी आम माँ बहन बेटियों को भुगतनी पड़ती है। बलात्कारी उन माँ बहिनों मे ही सनी लिओन ढूंढते रहते है और मौका पाते ही बलात्कार कर देते हैं।

Wednesday 18 March 2015

नारी और हमारे समाज की विकृत मानसिकता

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का सर्वाधिक योगदान है तो वो नारी का है। ये दुर्भाग्य है हमारा कि हमारे देश में ये सब हो रहा है, आखिर क्यों एक लड़की की इज्जत सरेआम नीलाम कर दी जाती है? क्यों ये देश जो विश्वगुरू के नाम से जाना जाता था आज अपनी ही परंपराओं से मँह चुराता हुआ दिख रहा है? आधुनिक इंडियन समाज का एक अजीब है किंतु शाश्वत सत्य है कि लोग फुटपाथ की नग्न भिखारिन का तन ढकने के लिए तो एक कपड़े का टुकड़ा तक नहीं खरीद कर दे सकते पर किसी बिस्तर पर स्त्री को निर्वस्त्र करने के लिए हजारों रुपए लुटा देते हैं।

हम श्री रामचरित मानस का पाठ तो आज भी करते हैं लेकिन उस श्री राम के चरित्र को समझ नहीं पाए। मैं इतिहास से जोड़कर बताता हूं कि राम क्या हैं ? सीता जी का हरण करने के बाद रावण सीता जी को समझा समझा कर हार गया था पर सीता जी ने रावण की तरफ एक बार देखा तक नहीं था। रावण की पत्नी मंदोदरी से रावण की ये दशा देखी नहीं गई तो मंदोदरी ने एक उपाय बताया। उसने रावण से कहा कि तुम तो मायावी हो कोई भी रूप रख सकते हो, तो तुम राम बन के सीता के पास जाओ तब वो तुम्हें जरूर देखेगी। रावण ने उत्तर दिया कि मैं ऐसा कई बार कर चुका हूं मंदोदरी लेकिन राम बनने के बाद मैं स्वयं सीता को नहीं देख सका क्योंकि मैं जब-जब राम बनता हूँ मुझे पराई नारी अपनी माता और अपनी पुत्री सी दिखती है। हमें समझना होगा कि राम कोई व्यक्ति नहीं एक विचार हैं। हमारा नैतिक पतन उसी दिन से शुरू हो गया था जब हम मंदिरों में राम को ढूढ़ंने निकल पड़े थे। आज के समाज में व्यक्तिवादिता का प्रभाव इस प्रकार से हो गया है कि हम अपने मूल चरित्र को भूलते जा रहे हैं। आधुनिकता की आँधी में हम इस कदर बहे जा रहे हैं कि अपनी संस्कृति को ताक पर रखकर नग्नता को ही आधुनिकता समझने लगे हैं। इस तथाकथित आधुनिकता के नाम पर हमने राम के चरित्र को भूलकर रावण के चरित्र का प्रतिपादन शुरू कर दिया है।

लड़खड़ायी बुढ़िया को उठाने भरे बाजार मे कोई न झुका
और गोरी का झुमका क्या गिरा, बाजार घुटनों पर आ गया
ये जुमला कोई सामान्य जुमला नहीं है अपितु यह जुमला वर्तमान समाज के सच को प्रदर्शित कर रहा है।आज के समाज की स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है। एक बार महसूस करके देखिए क्या आज का पुरुष, महिला को भोग्या की दृष्टि से नहीं देखता?

आप सड़कों की बात करते हो दोस्तों !
ये "बेटियां" तो गर्भ में भी महफूज नही हैं।
एक जमाना था जब युवा देश के लिए मर मिटने को तैयार रहते थे । आज के युवा की स्थिति कैसी हो गई है कुछ उदाहरण देखिए। आज के युवा से पूछो कि उदास क्यों हो? तो अगला रोते हुये बोलेगा, यार तेरी भाभी नाराज हो गई । इस वाक्य की गहराईयों में जाकर देखिए कि आखिर इस देश के युवाओं का आधार क्या बन रहा है। उनसे पूछो  अरे ये बालो पर क्या लगा रहा है? तो  उत्तर मिलेगा यार सिर के कुछ बाल सफेद होने लगे हैं, ये T.V. पर देखा तो मँगा लिया। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि जिस चीज का प्रयोग वो कर रहे हैं उसका शरीर पर प्रभाव अथवा बालों पर क्या दुष्प्रभाव होगा और जब उनसे पूछो कि कितने रुपए लगे? तो उत्तर मिलता है कि ज्यादा नही , बस 3499। अरे कोई उन मूर्खों से पूछो कि जिस देश में 70 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रूपए कमाने की स्थिति में न हों उस देश में 3499 रूपए बालों पर खर्च कर देना कहां की समझदारी  है। जब उनसे पूछो कि  अच्छा ये बता इस बार देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? तो उत्तर देते हैं कि मिलेगा कि अरे यार ये फालतू के लोगों का काम है मुझे ये सब बिल्कुल पसन्द नहीँ है। उनसे आगे पूछो कि अच्छा देश के लिए तू क्या सोचता है ? तो कहते हैं कि छोड़ ना यार क्या देश का रोना लगा रखा है और आज वैसे भी मेरा मूड खराब है मेरी जानू ने मेरे मैसेज  का रिप्लाई नहीँ किया।

ये स्थिति मात्र लड़कों की ही नहीं है पहले की लड़कियां लक्ष्मीबाई जैसी होती थीं और आज
 हे भगवान ! प्रोफाइल पिक चेंज किए 2 मिनट हो गए और अभी तक एक भी लाइक नहीं मिला। ऐसी हो गई हैं हमारे देश की नारियां। मेरे लिए समस्या ये नहीं है कि देश कैसे चलेगा ?अपितु मेरे लिए मूल समस्या ये है कहीं देश ऐसे ही ना चलता रहे।

जिस देश के लड़के भारत मां की स्वतंत्रता हेतु अपना जीवन न्यौछावर करने वाले वीर विनायक दामोदर सावरकर को भूलकर अश्लील माँ बहन की गाली को गाना बनाकर गाने वाले हनी सिंह को आदर्श मानने लगें और जिस देश की लड़कियां भारतीय मर्यादा को शर्मसार करने वाली वेश्या सनी लियोनी, पूनम पांडे और शर्लिन चोपड़ा को आइकॉन बना लें तो उस देश की लडकियों की उनकी कोख से कोई भगत सिंह जैसा देशभक्त या स्वामी विवेकानंद जैसा धर्मवीर पैदा नहीं हो सकता।
 मेरी शिकायत मात्र इस देश के लड़के अथवा लड़कियों से ही नहीं है अपितु मेरी शिकायत उनके परिवार के अन्य बड़े सदस्यों से भी है जो बेटी के बाहर निकलने पर कहते हैं कि छोटे कपडे पहन कर मत जाओ लेकिन बेटे से कभी नहीं कहते कि नज़रों मैं गंदगी मत लाओ।
बेटी से कहते हैं कि कभी घर कि इज्जत खराब मत करना पर बेटे से नहीं कहते कि किसी के घर कि इज्जत से खिलवाड़ मत करना।
किसी लड़के से बात करते देखकर जो भाई अपनी बहन को हड़काता है वो ही भाई अपनी गर्लफ्रेंड के किस्से घर में हंस हंस कर सुनाता है।
बेटा घूमे गर्लफ्रेंड के साथ तो कहते हैं अरे बेटा बड़ा हो गया है और बेटी अगर अपने  दोस्त से भी बातें करें तो कहते हैं कि बेशर्म हो गई है।
पहले शोषण घर से बंद करना होगा तब समाज से शिकायत करने वाले स्तर पर पहुंचेंगे। आज वह समय आ गया है जब इस देश की युवा तरुणाई एकजुट होकर कहे कि सत्तालोभियों उठो और भागो यहाँ से क्योंकि हम अर्थात देश के कर्णधार जाग चुके हैं। ये देश एक बार फिर क्रान्ति चाहता है लेकिन वह क्रांति खून की नहीं ,विचारों की हो। उस वैचारिक क्रान्ति के लिए आवश्यक है एकात्मवाद। वह एकात्मवाद जो मानवीयता की बात करता है, वह एकात्मवाद जो राष्ट्र सर्वप्रथम की बात करता है, वह एकात्मवाद जो मातृभूमि के वंदन की बात करता है। आज इसी को आधार बनाकर हम स्वयं को पुनः विश्वगुरू के पद पर प्रतिस्थापित कर सकते हैं।

Wednesday 11 March 2015

कितना अच्छा होता .. अगर हर दिन की समाप्ति पर... जिंदगी पूछती...... Save changes ?

(मेरी जीवन की सत्य घटनाओं पर आधारित मेरे द्वारा लिखे जा रहे उपन्यास का एक अंश)

एक किताब की तरह पढ़ना चाहता हूँ ,तुम्हें धूप में छत पर लेटे लेटे पन्ने आगे पीछे कर के कहानी को अपने तरीके से बनाना चाहता हूँ,
 हाँ शब्दों में तुम्हारी तस्वीर बनाकर उसे देखना चाहता हूँ जब मन चाहे और अकेले बैठ तुम्हें सोच के मुस्कुराना चाहता हूँ 
जैसे किताब को सीने पर रख कर सो जाता हूँ कई बार ठीक वैसे ही तुम्हारे पास आना चाहता हूँ 
क्या लगती हो तुम मेरी ये सब को बताना चाहता हूँ  हाँ मेरी किताब मेरी कहानी मेरा सब कुछ सच ही है
 लेकिन ये झूठ है की मैं तुमको पाना चाहता हूँ



मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हे तनहा ना कर दे, रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते है।!!!!!!

रोज रात को अपनी नींद के साथ सुलह करके सोता हूँ... इसी आस में कि कल सुबह मुझे तुम फिर से दिखोगी... मुझसे मिलोगी, मुझसे बातें करोगी... तुम फिर से उसी प्यारी सी मुस्कान के साथ कैंपस में मुझसे नजरें चुराओगी ... वही चेहरे पे भोलापन साथ लिए... छुप छुप के तुझे देखा करते है जैसे कोई गुनाह किया हो हमने... पर गुनाह तो हमने कर दिया तुमसे प्यार जो हमने कर लिया... अगर ये गुनाह है तो हमे सजा भी मंजूर है, तेरी ख़ुशी के लिए तुझसे दूर जाने कि सजा भी कबूल कार ली हमने ... अगर मैं गलती से तुझे छु भी लूँ तो ऐसे लगता है मंजिल छु ली हो... क्या पता तुम्हें कि तुम खुद क्या चीज हो, शीशे में नहीं कभी मेरी आँखों में देखना... तुम्हें खुद के लिए ही खुद की इज्जत और बढ़ जाएगी... अब तुझे रोज न देखूं तो घुटन सी होती है... अब तेरी आदत जो हो गयी है... और ये आदत ही मेरी आदत बन गयी है... जब तू मुझे देखती है मुझे लगता है मैं दुनिया में सबसे खास हूँ... क्योकि वो कोई खास ही होगा जिस किसी पे नजर तेरी पड़ेगी... सच कहूँ तो आजकल मुझे मंदिर जाने की जरुरत नहीं पड़ती... तुझे देखता हूँ तो खुदा दिख जाता है वही सजदा कर लेता हूँ... मुझको जिन्दगी से कोई शिकवा गिला नहीं है... क्योकि जिसने मुझे चाहा उसका मैं हो ना सका... और जिसको मैंने चाहा वो मेरा हो न पाया..!
कुछ खास नही बस इतना ही कहूँगा कि हर रात का आखरी खयाल और हर सुबह की पहली सोच हो तुम..,!!
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था के वो रोक लेगी, मना लेगी, दामन के दामन पकड़कर बिठा लेगी, मेरे  कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे कि जैसे वो  आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको 
मगर उसने न रोका ,न मनाया, न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया, न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया,
मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं ..



बस इतना ही कहूँगा कि 
अब सज़ा दे ही चुके हो तो मेरा हाल ना पूछना, अगर मैं बेगुनाह निकला तो तुम्हे अफ़सोस बहुत होगा

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...