मित्रों आज 27 जून है।बहुत से लोगों के जीवन का सामान्य सा दिन- लेकिन इस सामान्य से दिन के पीछे एक विशिष्टता है।ये विशिष्टता है वैचारिक स्वतंत्रता, अब एक सवाल उठता है कि वैचारिक स्वतंत्रता का अर्थ क्या है? ऐसे करते करते ये प्रश्नों की श्रृंखला बहुत लंबी होती जाती है। मैं ये सारी बातें आज इस लिए कर रहा हूँ क्यूँ कि आज कुछ खास है और दुर्भाग्य ये है कि हमको पता ही नहीं है कि आज क्या खास है।
खैर कोई बात नहीं मैं बताता हूँ आपको कि खास क्या है आज।
मित्रों इस देश के स्वतंत्रता समर में लगभग 6 करोड़ लोगों ने अपनी जान दी।6 करोड़ मतलब 150 के संघर्ष में 6 करोड़ लोग।ये एक बड़ी संख्या है शायद हमारे मन में ये भी प्रश्न उठे कि यार 125 करोड़ तो हम अभी हैं तो 6 करोड़ उस समय मरे होंगे ये थोडा सा अजीब लगता है।लेकिन यही शंका हमारे पतन का कारण है।ये शंका हमें हमारे इतिहास को समझने नही देती।6 करोड़ लोगों की अंग्रेजों द्वारा जान ली गई मतलब हमारे आपके परिवार के लोगों ने भी शायद अपनी जान दी हो लेकिन हमारे पास समय नहीं है कि हम पता करें कि हमारे अपने परिवार से देश के लिए बलिदान होने वालों में एक का नाम क्या था? हमको मतलब ही नहीं है लोगों ने क्या क्या झेल कर इस देश को आजाद कराया।
एक गीत जिसको गाते हुए इस देश के क्रांतिकारियों ने अपना जीवन न्योछावर कर दिया उस गीत के विषय में हमें कुछ नहीं पता। वंदे मातरम् जिसकी रचना बंकिम चंद चट्टोपाध्याय ने की आज उनका जन्मदिवस है और हमें कुछ नहीं पता।
और हम गाते क्या हैं एक गीत जिसको अंग्रेजों के राजा जार्ज पंचम के स्वागत में लिखा गया उस गीत को तिरंगे के सामने के सामने खड़े होकर गाते हैं।हमको फर्क नहीं पड़ता कि जन-गण-मन का अर्थ क्या है बस हम गाने लगे।
मेरे अपने स्वाभिमान को किनारे रखकर बहुत शौक से हमने उसे अपना राष्ट्रीय गान बना लिया।
और आज भी हम उस तथाकथित राष्ट्रगान को ढो रहे हैं। हमारे देश की संसद और विधानसभाओं में चर्चा होती है कि लोग भूख से मर रहे हैं।
दुर्भाग्य देखिए कि ऐसे विषयों पर 1947 से मात्र चर्चाएं हो रही हैं। और एक बार सोचिए ब्रिटेन की संसद में चर्चाएं क्या होती आई हैं।वहां 1942 में एक कानून पास किया जाता है 'इन्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट' इस कानून के आधार पर भारत को तथाकथित आजादी मिली। हमारी आजादी के लिए भी वो कानून पास करते हैं और हम बस संसद में चर्चाएं करते हैं, एक दूसरे को गालियां देते हैं, आरोप प्रत्यारोप की राजनीती करते हैं, धर्म जाति संप्रदाय के नाम पर तोड़ने का प्रयास करते हैं। हमारी भौतिक गुलामी तो चली गई लेकिन मानसिक गुलामी आज भी हावी है।
खैर अंत में बस इतना ही कहूँगा कि हम सर्वश्रेष्ठ थे,अपने आधार की वजह से और हमारा आधार था आध्यात्म।लेकिन हम वो सब छोड़ कर चले पश्चिमी सभ्यता की जूठन को ढोने।और आज भी वही कर रहे हैं।
यदि आपकी सोच ये है कि पश्चिम बहुत अच्छा है तो यहाँ तक कोई समस्या नहीं है समस्या है जब आपने ये सोचना शुरू कर दिया कि पश्चिम ही सब कुछ है हम तो निम्न दर्जे के व्यक्ति है।
थोडा इतिहास पढ़िए और उस पर विश्वास करना सीखिए।
वंदे मातरम्