Saturday 24 September 2022

'तुम पैसा मांगने आए हो, FIR करा दूंगा', पत्रकारों को ऐसी धमकियां क्यों मिल रही हैं?

 किसी कॉलेज में पत्रकारिता के विद्यार्थियों की क्लास लेने जाओ या इंटर्नशिप कर रहे युवाओं संग संवाद करने, एक सवाल अक्सर उठता है कि 'आज 'दिखने' वाले पत्रकार अधिकांशतः सोशल मीडिया पर किसी एक 'दल' के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। लेकिन जो ऐसा नहीं करते, उनमें आप भी हैं। इस तरह का काम करने के दौरान किस तरह से आपको रोका जाता है?'


इस सवाल का एक लाइन में जवाब होता है कि सच कहने से आपको कोई कभी नहीं रोक सकता। अवरोधक निश्चित रूप से मिलते हैं, लेकिन उन्हें पार करना ही फील्ड की पत्रकारिता की चुनौती है। यहां समझने वाली बात यह है कि फील्ड की पत्रकारिता का मतलब यह नहीं है कि आप माइक/डायरी-पेन लेकर घूमते हों, ऑफिस में बैठकर भी ग्राउंड से खबरें निकालने वाले पत्रकार भी ऐसी परेशानियों को झेलते हैं। आज इस पोस्ट में मैं एक ताजा मामला आपको बताता हूं। लेकिन उससे पहले एक वादा भी करता हूं। 12 फरवरी 2012 को पहली बार एक मीडिया संस्थान से जुड़ा था, 12 फरवरी 2023 को मेरे पत्रकारिता जीवन के 11 साल पूरे हो रहे हैं। इस दौरान एक छोटे से थाने के लेवल की रिपोर्टिंग से लेकर स्टेट लेवल की टीम संभाली। अपने 11 साल के अनुभवों के आधार पर अगले साल फरवरी तक एक किताब लिखूंगा। 

ऊपर से बहुत बड़े दिल के लगने वाले लोग अंदर से कितने छोटे होते हैं, ऑफिस में वैचारिक/सामाजिक द्वंद कैसा होता है, कैसे लोग सही का साथ देने के लिए खड़े हो जाते हैं, कैसे लोग गलत के खिलाफ बोलने/लिखने को मजबूर करते हैं, कैसे लोग आपके नौकरी के नाम पर शारीरिक शोषण का प्रयास करते हैं, ऐसे कई विषयों पर अपनी आंखों देखी के साथ अपने अनुभव साझा करूंगा। इन सबके साथ सबसे महत्वपूर्ण चीज कि पत्रकारिता पर दबाव किस तरह का रहता है, उसपर भी बात करूंगा। 

खैर, अभी आप पढ़िए एक ताजा किस्सा:

बीते 22 सितंबर को सुप्रिया श्रीवास्तव नाम की एक लड़की ने ICU में एडमिट अपने पिता का वीडियो ट्वीट किया। ट्वीट में सुप्रिया ने पिता के इलाज के लिए आर्थिक मदद की गुजारिश की थी। सुप्रिया ने अभिनेता सोनू सूद, आन्त्रप्रेन्योर निखिल श्रीवास्तव और पत्रकार हेमेन्द्र त्रिपाठी को मेंशन किया था। 2-4 दिन में ट्वीट वायरल हो गया। जाने-माने फिल्मकार मनीष मुंदड़ा, 'एमबीए चाय वाला' के फाउंडर प्रफुल्ल समेत कई लोगों ने ट्वीट में मदद का भरोसा दिलाया। चूंकि मामला वेरिफाइड नहीं था तो मामले को वेरिफाई करने की जिम्मेदारी स्थानीय पत्रकार हेमेन्द्र त्रिपाठी को दी गई। इस दौरान किसी ने मुझे भी ट्वीट में मेंशन किया तो मैंने हेमेन्द्र से बात की और कहा कि एक बार मामला पूरा पता कर ले।

शुक्रवार को हेमेन्द्र गोमती नगर में मंत्री आवास के सामने स्थित सन हॉस्पिटल गया और पीड़ित परिवार से बात की। वहां परिवार ने बताया कि किस तरह से एक महीने से हॉस्पिटल इलाज के नाम पर लगातार बजट बढ़ाता जा रहा है और पैसे की डिमांड कर रहा है। हेमेन्द्र ने वहां मौजूद हॉस्पिटल के मालिक अखिलेश पांडे से मामले के बारे में पूछा तो उन्होंने मामले में जानकारी देने से आनाकानी की। हॉस्पिटल के मालिक ने मामले को रफा दफा करने को भी कहा। जिसके बाद कई लोगों से सलाह लेने के बाद यह तय किया गया कि हॉस्पिटल के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर नहीं कराया जाएगा और मरीज को कहीं और शिफ्ट करा लिया जाएगा। 

शनिवार सुबह मैंने हेमेन्द्र से जानकारी ली तो पता लगा कि यह वही हॉस्पिटल है, जिसपर पहले भी कई बड़े आरोप लग चुके हैं। कोविड के दौरान जब मैं लखनऊ में था, तब इस हॉस्पिटल के कई कारनामे सामने आए थे। इसलिए मैंने भी सुझाव दिया कि मरीज को वहां से हटा लिया जाए, साथ ही मैंने हॉस्पिटल के मालिक से बात कराने को कहा। हेमेन्द्र हॉस्पिटल गया तो स्टाफ ने कहा कि मालिक मौजूद नहीं है। इसके बाद मैंने हॉस्पिटल मालिक को मैंने खुद फोन कर बात की। 

मैंने हॉस्पिटल मालिक से कहा कि मैं पेशेंट को जल्द किसी दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करा रहा हूं, तब तक उनके परिवार को परेशान ना किया जाए। फिर मैंने उन बातों का जिक्र किया, जो परिवार की ओर से बताई गई थीं। जैसे ब्लड/दवाइयां/इंजेक्शन जैसी चीजें जो मरीज का परिवार बाहर से आधे दाम पर लाता था, उसके बदले परिवार से हॉस्पिटल करीब दोगुने दाम वसूलता था। इन चीजों पर सवाल पूछा तो मालिक भड़क गया। गाली गलौच करने लगा और बोला कि तुमने मुझसे रंगदारी मांगने के लिए फोन किया है, इसकी एफआईआर कराऊंगा।

अब उसे तो पता नहीं था कि मैं हर कॉल रिकॉर्ड करता हूं। ऐसा पहले भी मेरे साथ कई बार हो चुका है। एक बार एक सरकारी राशन की दुकान पर हो रही घपलेबाजी पर सवाल पूछा तो वहां की कोटेदान ऑन कैमरा कहने लगीं कि तुम मुझसे पैसे मांगने आए थे, नहीं दिए तो झूठे आरोप लगाने लगे। मैंने वहीं पर ऑन कैमरा सीक्रेट कैमरे से रिकॉर्ड हो रही कोटे में एंट्री से लेकर आखिर तक की वीडियो उनको दिखाई और कहा कि यह पैंतरे बाजी नहीं चलेगी। फिर उस वीडियो के साथ एडीएम सप्लाई को शिकायत की तो मैडम का कोटा निरस्त हुआ। और भी कई बार ऐसा हुआ है, लेकिन हर बार 'बैकअप' प्लान की वजह से मेरी इज्जत बची रही।

आज इस मामले में भी वही हुआ। अब साहब को रिकॉर्डिंग वाली बात पता नहीं थी तो झोंके में आ गए और बोल गए। लेकिन जरा सोचिए, थर्ड पार्टी ऐप्स भी बंद हो गए हैं, नए फोन में रिकॉर्डिंग की सुविधा तो है लेकिन कॉल की शुरुआत में ही 'Your call has been Recording' सुनाई देता है, आईफोन में कॉल रिकॉर्डिंग नहीं है, ऐसे में अगर मोबाइल के चुनाव में मैंने रिकॉर्डिंग को प्राथमिकता ना देकर मॉडल/कैमरा/लुक/रैम वगैरह को महत्व दिया होता तो? 

तो क्या? अब तक मैं भी 'दलाल पत्रकार' की श्रेणी में आ गया होता। खैर, मामले की जानकारी डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक को दे दी गई है। हो सकता है कि वह मामले की गंभीरता समझें और कार्रवाई करें, या यह भी हो सकता है कि मामले को वह यूं ही जानें दें।

वैसे कार्रवाई की उम्मीद सरकार से क्या ही करें। क्योंकि यह अस्पताल और इसका मालिक कोई मामूली आदमी नहीं है। इसके दो-चार कारनामे देखिए:


1. कोविड का दौर याद है आपको? मई 2021 में जब जिंदगी के लिए जंग लड़ी जा रही थी, तब सन हॉस्पिटल के निदेशक अखिलेश पांडे ने हॉस्पिटल के कर्मचारियों के साथ मिलकर अस्पताल में ऑक्सीजन न होने की अफवाह फैलाकर मरीजों को भर्ती नहीं किया था। जो भर्ती थे, उनसे बाहर से ऑक्सिजन लाने का दबाव डाला गया था, जो नहीं ला पाए उनसे मनमाने तरीके से उगाही की गई। यहां तक की कई मरीजों का अडवांस जमा पैसा भी वापस नहीं किया। 

मामले में तत्कालीन डीएम अभिषेक प्रकाश के आदेश पर आपदा प्रबंधन की धारा 51, 52, महामारी अधिनियम 3, धारा 144 का उल्लंघन और अफवाह फैलाने का मुकदमा दर्ज किया गया था, लेकिन कार्रवाई क्या हुई?

2. कोविड के दौर में ही नितिन मिश्रा नामक एक पत्रकार ने सन हॉस्पिटल के मालिक पर आठ घंटे तक बंधक बनाए रखने, मारपीट करने और सोने की चेन-कैश छीन लेने का आरोप लगाया था। मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई थी। उस पत्रकार का कहना था कि सन अस्पताल के मालिक अखिलेश पांडे से जब कुछ सवाल पूछे तो उसने कहा कि वह उसपर जबरन विज्ञापन मांगने की एफआईआर करा देगा। इसके बाद जब नितिन ने विरोध किया तो उसको बंधक बनाकर मारपीट की गई। इसके बाद नितिन ने मारपीट, लूट, धमकी समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। गिरफ्तारी भी हुई थी, लेकिन फिर क्या हुआ, किसी को नहीं पता!

3. सुल्तानपुर से इलाज कराने आई एक मरीज आरती मिश्रा के परिजन उसे लोहिया अस्पताल लेकर गए थे जहां बेड खाली न होने के चलते वहीं से निजी अस्पताल की लगी वैन उन्हें गुमराह करके सन हॉस्पिटल ले गई। हालत बिगड़ती देख परिजनों ने 20 फरवरी को सन अस्पताल में भर्ती कराया। हॉस्पिटल में उससे कहा गया कि लगभग 30-35 हजार का खर्च आएगा, लेकिन वहां उनसे तीन दिनों के अंदर करीब तीन लाख पचास हजार रुपये इलाज के नाम पर वसूले गए। परिजनों ने मरीज को आराम नहीं मिलता देख वहां से डिस्चार्ज करने की बात कही और अपने मरीज की रिपोर्ट फाइल मांगी तो अस्पताल कर्मियों ने उन्हें रिपोर्ट नहीं दी और उनके साथ मारपीट कर डाली। लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं हुई!

4. मामले की शिकायत हुई तो स्वास्थ्य विभाग ने हॉस्पिटल पर छापा मारा और बिल रेकॉर्ड मांगा। उसमें अनियमितता मिली। दूसरी ओर लोहिया अस्पताल से दलालों का एक गुट पकड़ा गया। यह गैंग गंभीर मरीजों के परिवारीजनों को बरगलाकर प्राइवेट अस्पताल में जल्द और आसानी से इलाज दिलवाने का हवाला देता था। अपनी बातों में फंसाकर एंबुलेंस से मरीज को प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती करवा देते थे। यही नहीं, भर्ती करवाने के बाद इलाज के नाम पर पूरी रकम भी जमा करवा लेते थे। उसमें से एक दलाल सन हॉस्पिटल के मालिक अखिलेश पांडेय का करीबी था। मामले में इसकी शिकायत सीएमओ से की गई। पुलिस ने अस्पताल संचालक पर दर्ज मुकदमों का रिकॉर्ड खंगाला। पूरे मामले की फाइल तैयार कर डीएम को भेजी।  पुलिस ने डीएम से अस्पताल के संचालन पर रोक लगाने की लेकिन सात महीने से अधिक का वक्त हो गया, कोई कार्रवाई नहीं हुई!

5. सन हॉस्पिटल का निदेशक अखिलेश पांडे कितना बड़ा लतखोर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि जब पुलिस ने इसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो इसने एक वीडियो जारी कर विभूतिखंड थाने के इंस्पेक्टर पर महीने की 50,000 रुपये वसूली के आरोप लगा दिए। मजेदार बात यह है कि पुलिस अफसर कार्रवाई कर रहे थे, कार्रवाई की सिफारिश कर रहे थे और यह साहब वसूली के आरोप लगा रहे थे। बिलकुल वैसे ही, जैसे एक पत्रकार ने इनसे सही तरह से काम करने को कहा तो उसपर रंगदारी मांगने का आरोप लगा दिया।

सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश पांडे के खिलाफ 25 से अधिक मामले दर्ज हैं और मरीजों से वसूली की सैकड़ों शिकायतें आ चुकी हैं। अब गेंद योगी सरकार के खाते में है। लोगों की फिक्र है तो जिंदगी का सौदा करने वाले इन दलालों पर सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। 

पत्रकारों के लिए सीख

आपके साथ भी ऐसा हो सकता है। बेहद जरूरी है कि अगर आप कहीं भी ऐसी स्टोरी के लिए जा रहे हैं तो एक बैकअप प्लान जरूर रखें। सोशल मीडिया के इस दौर में आपकी छवि कभी भी खराब हो सकती है। इसलिए कम से कम किसी जगह पर जाएं तो शुरुआत से लेकर आखिर तक सीक्रेट कैमरे से अडिशनल वीडियो जरूर बनाएं। फोन पर किसी से बात करें तो रिकॉर्डिंग जरूर रखें। याद रहे, सत्य की लड़ाई में परेशानियां आती हैं, लेकिन सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।

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