Tuesday 26 August 2014

दशरथ के तीन विवाहों का सत्य



ये बात उन दिनों की है जब प्रथ्वी पर रावण का डंका बज रहा था और हर तरफ़ उसका जलजला कायम हो चुका था . रावण ने तमाम देवताओं को बन्दी बनाकर लंका के कारागार में डाल दिया था और भांति भांति से अत्याचार करने में लिप्त था . तब देवता अक्सर आपस में चर्चा करते और कहते कि अब अयोध्या के राजा दशरथ का विवाह होगा..फ़िर उनके घर भगवान राम का जन्म होगा..राम इस दैत्य रावण को मार देंगे और हम मुक्त हो जायेंगे..यही भविष्यवाणी है यही होना है . रावण के कारागार गुप्तचर इस बात की सूचना रावण को दे देते .आखिरकार रावण ने तय किया कि वह दशरथ का विवाह ही नहीं होने देगा तो राम का जन्म कैसे होगा . जन्म नहीं होगा तो उसे मारेगा कौन ? अपने इस प्रयास हेतु उसने कुछ गुप्तचर अयोध्या में भी तैनात कर रखे थे . दशरथ युवावस्था में थे जव उनके लिये प्रथम विवाह का प्रस्ताव कैकय देश की राजकुमारी कैकयी का आया

.जो लोग नहीं जानते उन्हें बताना आवश्यक है कि कैकयी बेहद सुन्दर , सुशील और अतिरिक्त गुणवान युवती थी उसका सौन्दर्य अप्सराओं को लजाने वाला था . जाहिर था कि वह हर तरह से दशरथ के योग्य थी लेकिन जब राजपुरोहितों ने कैकयी की कुन्डली का दशरथ की कुन्डली से मिलान किया तो उनके
माथे पर चिंता की लकीरें पङ गयीं और उन्होने कहा कि महाराज इस कन्या से आपने विवाह कर लिया तो ये आपका समूल नाश कर देगी ऐसा योग बनता है . लिहाजा जीती मक्खी कौन निगलता अतः वो विवाह प्रस्ताव ठुकराकर वापिस कर दिया गया . इस बात को कैकय देश की तमाम जनता ने अपनी निजी बेइज्जती के रूप में लिया क्योंकि कैकयी किसी द्रष्टि से अस्वीकार करने योग्य नहीं थी . रावण ने चैन की सांस ली .कुछ दिनों के बाद दशरथ के लिये कौशल्या का प्रस्ताव आया..फ़िर कुन्डली मिलायी गयी और अबकी बार पुरोहितों ने कहा कि ये कन्या हर तरह से दशरथ के लिये उत्तम है लिहाजा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया..और कार्यवाही आगे की तरफ़ बङने लगी..उधर लंका के कारागार में बन्द देवताओं ने कहा देखा हम कहते थे कि इस रावण के अन्त का समय निकट आ रहा है अब कुछ ही दिनों में दशरथ का विवाह होगा..फ़िर उनके घर भगवान राम का जन्म होगा..राम इस दैत्य रावण को मार देंगे और हम मुक्त हो जायेंगे..यही भविष्यवाणी है यही होना है . रावण ने गुप्तचरों से इस खबर की वास्तविकता पता लगाने को कहा तो बात सौलह आने सच थी. उसने एक महाबली दैत्य को आदेश दिया कि दशरथ का विवाह हो इससे पहले ही तू कन्या ( कौशल्या ) का हरण करके मार डालना . दैत्य इस आग्या को मानकर चला गया . उधर दशरथ की बारात दरबाजे पर पहुँची और इधर मायावी दैत्य ने कौशल्या का अपहरण कर लिया लेकिन बाद मैं उसे दया आ गयी सो उसने
कौशल्या को मारने की बजाय एक बङे बक्से में बन्द करके समुद्र में फ़ेंक दिया . उधर जब वैवाहिक कार्यक्रमों हेतु कौशल्या की तलाश की गयी तो सब दंग रह गये .कौशल्या गायब थी और बारात दरबाजे पर खङी थी अब क्या किया जाय . तब घर के बङे लोगों ने विचार किया कि कौशल्या का मामला बाद में देखेंगे फ़िलहाल इज्जत बचायी जाय . सो उन्होने तुरन्त छोटी बहन सुमित्रा को कौशल्या के विकल्प के रूप में तैयार किया और गुपचुप तरीके से आपस के लोगों को समझाकर सुमित्रा का (कौशल्या की जगह) विवाह दशरथ के साथ कर दिया . दशरथ या उनके पक्ष का या उस राज्य के लोग इस बात को न जान सके..कुछ गिने चुने परिवार के लोगों तक ही यह बात सीमित रही .इस तरह ये विवाह निर्विघ्न हो गया . तब लंका में बन्द देवता कहने लगे . रावण ज्यादा अक्लमंद बनता है देखो दशरथ का विवाह हो गया अब राम का जन्म....रावण को बेहद हैरत हुयी . उसने फ़िर सच्चाई पता की तो बात एकदम सच थी जिस दैत्य को कौशल्या को मारने भेजा था उससे जबाब तलब किया तो उसने शपथपूर्वक कहा कि उसने कौशल्या को मारकर समुद्र में फ़ेंक दिया..इस बात को वह छुपा गया कि उसने कौशल्या को मारा नहीं बल्कि जिन्दा ही फ़ेंका है . खैर तब दशरथ की बारात समुद्र मार्ग से बङी बङी नौकाओं में आ रही थी..रावण ने एक दूसरे दैत्य को आदेश दिया कि समुद्र में तूफ़ान उठाकर सारी बारात को तहस नहस कर दे और बारात को डुबोकर मार डाले...इस दैत्य ने ऐसा ही किया..सारी नावें उलट पुलट हो गयी कोहराम मच गया..और लोग इधर उधर जान बचाने की कोशिश करने लगे..दशरथ और सुमित्रा एक टूटे बेङे पर बैठे हुये विशाल सागर में भगवान की दया पर बेङे के साथ बहने लगे अन्य बारात का कोई पता नहीं था . दूसरे दिन दोपहर के समय उनका बेङा एक टापू से जा लगा .तब दशरथ ने राहत की सांस ली . लेकिन वे इस वक्त किस स्थान पर हैं इसका उन्हें पता नहीं था और
दशरथ को अभी तक ये भी नहीं मालूम था कि उनके साथ बैठी वधू कौशल्या नहीं सुमित्रा हैं . इस तरह दो दिन बिना खाये पीये गुजर गये . न कोई नाविक आता दिखा और न ही कोई अन्य सहायता ..तब शाम के समय सुमित्रा को एक बक्सेनुमा कोई चीज टापू के पास से जाती हुयी दिखायी दी..दोनों ने मिलकर उसे खींचा कि शायद कोई खाने की चीज या कोई अन्य उपयोगी चीज प्राप्त हो जाय..दोनों ने मिलकर बक्से को जतन से खोला अन्दर से सजी सजायी हुयी एक नववधू प्रकट हुयी जिसे देखते ही सुमित्रा ने बेहद आश्चर्य से कहा..अरे जीजी आप..कैसे..?
दशरथ भौंचक्का होकर दोनों को देख रहे थे..तब सुमित्रा ने इस राज पर से परदा उठाया और बताया कि वास्तव में कौशल्या तो ये है ...कौशल्या ने भी आपबीती सुना दी अब ये दो से तीन हो गये..और टापू पर किसी सहायता की आस में दिन गुजारने लगे..उधर देवताओं ने फ़िर कहा..रावण पागल हो गया है..दशरथ को कुछ नहीं हुआ वह अपनी दोनों पत्नियों के साथ टापू पर किसी सहायता के इन्तजार में है अब उनके घर भगवान राम का जन्म होगा..राम इस दैत्य रावण को मार देंगे और हम मुक्त हो जायेंगे..यही भविष्यवाणी है यही होना है .
अबकी रावण क्रोधित हो उठा उसने एक महाशक्तिशाली दैत्य को तीनों की हत्या के लिये टापू पर भेजा और प्रमाण स्वरूप तीनों की आंखे निकालकर लाने की आग्या दी. महामायाबी ये दैत्य जिस समय टापू पर पहुँचा उसका सामना सुमित्रा से हुआ क्योंकि ये मानव के रूप में था अतः सुमित्रा ने बेहद मासूमियत से इसे भैया के सम्बोधन से पुकारा और धर्म भाई बनाते हुये उसकी कलाई पर चीर बान्ध दिया..दैत्य के सामने धर्मसंकट उत्पन्न हो गया..अब अगर वह तीनों में किसी का बध करता तो उसे भारी दोष पाप लगता..और वैसे भी उसने सोचा कि रावण अकारण ही इन निर्दोषों को मारना चाहता है..ये भला उसका क्या अहित कर सकते हैं..अतः उन्हें मारने का विचार त्यागकर उसने हिरन आदि जीवों की आंख रावण को दिखा दी और कहा कि उसने काम पूरा कर दिया .
इधर लगभग पाँचवे दिन एक नाविक उधर से गुजरा..दशरथ ने ऊँचे स्वर में कहा..ए नाविक मैं अयोध्या का राजा दशरथ हूँ और यहाँ एक आकस्मिक मुसीवत में फ़ंस गया हूँ यदि तुम किसी उचित थलीय स्थान पर हमें पहुँचा दोगे तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूँगा..उसने व्यंग्य से कहा..श्रीमान फ़िर से अपना परिचय तो देना..दशरथ ने दिया..

उसने कहा..आओ तुम तीनों मेरी नाव में बैठो..तुम्हें समुद्र में डुबोकर मेरा बहुत पुन्य होगा..बङे आये इनाम देने वाले...घमन्डी राजा अच्छा हुआ तुमने अपना परिचय दे दिया तुम्हें कोई सहायता करना तो दूर नाव पर चढने भी नहीं दूँगा...? दशरथ को बेहद आश्चर्य हुआ...उन्होने अत्यंत विनम्रता से कहा कि ..हे नाविक तुम कौन हो..मुझसे तुम्हारी क्या दुश्मनी है..आदि..आदि..नाविक ने कहा कि मैं उसी कैकय देश का नागरिक हूँ जिसकी राजकुमारी कैकयी की तुमने भारी बेइज्जती की..मैं क्या पूरा कैकय देश दशरथ के नाम से नफ़रत करता है ..तब तीनों ने मिलकर जब उसे काफ़ी समझाया तो वह एक शर्त पर तैयार हुआ कि दशरथ उसे वचन दें कि यहाँ से उसके साथ ही वह तीनों कैकय जायेंगे और कैकयी से विवाह करेंगे..तो उनके देश से बेइज्जती का दाग दूर होगा...तो वह सहायता कर सकता है..वे तीनों टापू पर अधमरे से हो चुके थे..किसी सहायता की कोई आस नजर नहीं आ रही थी अतः दशरथ ने वचन दे दिया...और वचन के अनुसार पहले कैकय देश जाकर कैकयी से विवाह किया...इस तरह अनोखे घटनाक्रम से दशरथ के तीन विवाह हुये ..

शिवलिंग रहस्य- जरूर पढ़ें


लिंग का संस्कृत में चिन्ह ,प्रतीक अर्थ होता है…

" शिवलिंग " शब्द में ' लिंग ' शब्द दो शब्दों से बना है, " लीन + गा (गति) " अर्थात, शिव में लीन होकर ही मनुष्य को गति प्राप्त होता है; यानी, शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है।
तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है, शिवलिंग! शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा - आत्म-लिंग का द्योतक है। शिवलिंग शाश्वत-आत्मा का स्वरूप है, जो न जल से प्रभावित होता है, न अग्नि से, न पृथ्वी से, न किसी अस्त्र-शस्त्र से... जो अजित है, अजेय है! शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है, शिवलिंग।

पुरुषलिंग का अर्थ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ है ..नपुंसक का प्रतीक —-

अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये 'स्त्री लिंग' के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए…और खुद अपनी औरतो के लिंग को बताये फिर आलोचना करे—-
”शिवलिंग”’क्या है।
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है ना ही शुरुआत |
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है।

शिवलिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंग बना कर उनका विधि-विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है। शिवलिंग का सविधि पूजन करने से मनुष्य सन्तान, धन, धन्य, विद्या, ज्ञान, सद्बुद्धि, दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है। जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा होती है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदा शिवलिंग का पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका बाह्य और अंतकरण शुद्ध हो जाता है। दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है।

तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्। नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥

लिंग का अर्थ उस आदि से प्रकट होने वाली अंडाकार ज्योति से है, जिसने सब संसार को प्रकट किया है | यही आकृति संसार का उपादान  का कारण है, वह ज्योतिर्लिंग कहलाता है, “यथा हि तदण्डमभवदैॄमं सहस्त्रांशुभमप्रमम् ”

मनु द्वादश ज्योतिर्लींगो का तात्पर्य यही है की, शिवजी के उपासको को परम भक्ति से द्वादश​ स्थानो में ज्योति: – स्वरूप का दर्शन होता है

“”मनसो लिडॄ़ंम्, आत्मनो लिडॄ़ंम्, अडॄं।रलिडॄों अग्नि :””

यह मान की पहचान है, ये आत्मा की पहचान है , अंगार अग्नि का चिन्ह है,

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...