Monday 27 August 2018

कहानी अपने उस एकलौते 'दोस्त' की...

कल अचानक फेसबुक पर कॉलेज में जूनियर रहे एक मित्र ने मेसेज किया, 'भैया, आपको जामिया में सुना था। आपने और आपकी टीम के दूसरे भैया ने बहुत अच्छा बोला था। आप विषय के विपक्ष में थे और वह पक्ष में लेकिन आप दोनों में से किसी ने भी एक बात भी ऐसी नहीं बोली जो सामने वाले की किसी बात की विरोधाभासी हो। उसके बाद आप लोगों को फेसबुक पर सर्च किया तो पता लगा कि आप दोनों पुराने दोस्त हैं और खास दोस्त हैं। अगर दिल से नजदीकियां ना हों तो किसी के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग नहीं हो सकती, लेकिन पिछले 2-3 साल से आप दोनों की साथ में एक भी तस्वीर नहीं देखी। कहां चले गए आप दोनों, एक साथ ज्यादा अच्छे लगते थे...'

यह मेसेज देखा तो जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, आखिर बताता भी तो क्या? लेकिन इस सवाल के बाद यह लिखने का ख्याल जरूर आया...

'दांत काटी दोस्ती' से भी कहीं आगे थी हमारी दोस्ती, विचारधारा एक जैसी, कार्यशैली एक जैसी, वाकपटुता एक जैसी, परिवार एक जैसा, परिवार का अनुशासन एक जैसा, परिवार के संस्कार एक जैसे, कुल मिलाकर कहूं तो 'फिजिक' छोड़कर सबकुछ एक जैसा... विश्वविद्यालय की क्लासरूम पॉलिटिक्स से लेकर नैशनल लेवल पर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करने तक, हम हमेशा साथ रहे और सबसे आगे रहे... अपनी प्रेम कहानी सुनाई तो वह रोया, उसकी प्रेमकहानी का बचपना सुनकर मैं हंसा... होली पर मैं उसके घर गया तो मेरी शादी के लिए जब लड़की वाले आए तो वह मेरे साथ ही मेरे घर आया... संबंध क्लासरूम से निकलकर घर की रसोई तक पहुंच गए थे।

सब अच्छा चल रहा था, जिंदगी में दोस्ती को सिर्फ एक शॉर्ट टर्म फीलिंग समझने वाला मैं, दोस्ती को एक आजीवन चलने वाला रिश्ता समझने लगा था। लेकिन इन सबके बीच उसकी अपनी लाइफ थी और मेरी अपनी, हम एक-दूसरे की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं करते थे। फिर भी हमारे दिन के लगभग 16 घंटे साथ में बीतते थे। लेकिन जौसा सुना था कि लोग आपकी खुशियां नहीं देख सकते, वैसा अब हमारे साथ होने वाला था।

हम अपनी जिंदगी का अधिकतर समय साथ में बिताते थे तो उसकी तथाकथित गर्लफेंड को लगने लगा कि मेरी वजह से वह उसे टाइम नहीं देता है। आखिर उसने चाल चली और मेरे बारे में उसे काफी कुछ कहा... बहुत कुछ ऐसा भी जो पता लगने के बाद मैं शर्म से रोया... कुछ ऐसा भी जिससे मेरी निष्ठा पर प्रश्नचिह्न लग गया लेकिन उसने मुझसे कभी जिक्र नहीं किया कि उससे कोई मेरे बारे में कुछ गलत कह रहा है, हां दूरियां बढ़ाने की कोशिश जरूर की।

इधर उस लड़की ने मुझसे भी काफी कुछ कहा। उस समय वह लड़का कुछ पारिवारिक कष्ट में था और अपने घर गया था। मैं 15 दिनों तक झेलता रहा और आखिर एक दिन चेतनाशून्य होने के बाद उसे फोन लगाकर कह दिया कि उसकी गर्लफ्रेंड उसके लिए ठीक नहीं है। मैं विश्वास में था, या शायद अंधविश्वास में कि मेरा दोस्त और मेरी दोस्ती, एकलौती दोस्ती बची रहेगी लेकिन प्रेम के मोहपाश में वह इस कदर फंसा हुआ था कि उसे लगा कि मैं उसे दूर कर रहा हूं। जब कुछ समय तक मैंने देखा कि वह नहीं बदल रहा तो मैंने भी किनारा करने की ठान ली और दूर हो गया।

कहते हैं कि जब रिश्ते में दूरियां बढ़ जाती हैं तो 'प्रेम' लगभग खत्म ही हो जाता है, शायद यह सच है... क्योंकि मैं उसे जी रहा हूं। आज वह लड़की उसके साथ नहीं है क्योंकि सच उसके सामने है लेकिन मैं हारा हूं क्योंकि मैंने वह रिश्ता निभाने की कोशिश की जिसमें मैं अंधविश्वास चाहता था लेकिन वह अर्धविश्वास बनकर रह गया। मैं उसकी जगह किसी और को नहीं दे सकता क्योंकि मैं फिर हारना नहीं चाहता....

कोई है जो शायद उसकी जगह ले सके... लेकिन उसमें वह बात नहीं है... या शायद वह उससे बेहतर है और मैं डर रहा हूं उसे, 'उससे' बेहतर जगह देने में... डर है कि कहीं फिर हार ना जाऊं, पूरा 3 साल दे चुका हूं, उस रिश्ते को भूलने की कोशिश में, शायद इससे जल्दी तो कोई अपनी 'एक्स' को भी भूल जाता है लेकिन मैं वैसा नहीं हूं यार... बच्चे की तरह हूं... जो मिले, वो पूरा मिले... बस....

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

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