Friday 31 July 2015

हां मैं पत्रकार हूं, और राष्ट्रवादी हिन्दू भी...

आज मेरे पास एक वरिष्ठ पत्रकार महोदय का फोन आया, संभवतः उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर फेसबुक से लिया होगा (उनकी बातों से अनुमान लगाया)। उन्होंने मुझसे पहला प्रश्न पूछा कि विश्व गौरव जी आपने अपना फेसबुक पेज कब बनाया था। मैनें उनसे कहा महोदय पहले अपना परिचय दीजिए..तब उन्होंने कहा कि वो एक निजी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं...इतना बताने के बाद उन्होंने फिर से अपना प्रश्न दोहरा दिया...उनके प्रश्न को सामान्य रूप से लेते हुए मैंने बताया कि 6 साल पहले बनाया था...मेरे जवाब देने के बाद वो बोले अच्छा अच्छा उस समय छात्र जीवन में रहे होंगे...मैंने कहा हां...तो उन्होंने कहा विश्व गौरव जी अब तो आप व्यावसायिक जीवन में आ चुके हैं फेसबुक पेज का नाम तो नहीं बदल सकता लेकिन फेसबुक प्रोफाइल से राष्ट्रवादी शब्द हटा दीजिए...उनके इतना कहते ही मुझे उनके पूरा विषय समझ आ गया दरअसल में उनके अन्दर मेरे पेज पर मेरे नाम के साथ राष्ट्रवादी हिन्दू देखकर सेक्लुरिज्म का कीड़ा जाग उठा था। 



मित्रों जब मैंने वो फेसबुक पेज बनाया था उस समय मेरी उम्र 18 साल थी लेकिन इस का मतलब ये नहीं मैंने राष्ट्रवादी हिन्दू शब्द का प्रयोग भावावेश में किया था। मैंने पूरे विवेक के साथ उस शब्द को अपने नाम के साथ जोड़ा था। मैंने उन पत्रकार महोदय से 1 घंटे तक बात की तब वो मेरे विषय से सहमत हुए। मुझे लगा कि ऐसे विषय पर ब्लाग लिखना चाहिए जिससे कि यदि कोई मुझे ऐसी राय दे तो मैं अपना समय व्यर्थ नष्ट न करते हुए अपने ब्लॉग का लिंक देकर अपना विषय स्पष्ट कर सकूं।

मित्रों मेरे लिए राष्ट्रवादी और हिन्दू दोनों शब्दों के मायने थोड़े अलग हैं... भारत के अतरिक्त किसी भी अन्य देश का व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं हो सकता लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह देशभक्त नहीं हो सकता। राष्ट्रवाद की मूल परिकल्पना को समझने के लिए देश, राज्य तथा राष्ट्र की परिकल्पना को अलग अलग समझना आवश्यक है। 
देश एक भौगोलिक ईकाई है तथा राज्य देश का राजकीय अथवा शासकीय घटक है । देश मे एक अथवा एक से अधिक राज्य भी हो सकते है । जबकि राष्ट्र एक सांस्कृतिक ईकाई है , जिसके लिए मात्र भूमि ,लोगो ,एवं शासन पर्याप्त नहीं है अपितु सांस्कृतिक एकता की अनुभूति आवश्यक है । देश राष्ट्र के शरीर का एक भाग हो सकता है ,जबकि संस्कृति राष्ट्र की आत्मा है । राष्ट्र स्थिर व चिरंतर है जबकि राज्य अस्थिर हो सकता है अथवा बदल भी सकता है । 

अपने देश एवं उनकी परंपराओं के प्रति , उसके ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रति , उसकी सुरक्षा एवं समृद्धि के प्रति जिसकी अव्यभिचारी एवं एकांतिक निष्ठा हो वही लोग राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रवादी कहे जाते हैं। 

मैंने अभी लिखा कि भारत के अतरिक्त किसी भी अन्य देश का व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं हो सकता वो इस लिए क्योंकि किसी भी अन्य देश के पास उनकी स्थायी संस्कृति ही नहीं है। इस लिए वो अपनी भौगोलिक ईकाई के प्रति समर्पित तो हो सकते हैं लेकिन उनसे राष्ट्रवादी होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मेरे लिए भौगोलिक संरक्षण से अधिक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संरक्षण है, क्योंकि मुझे पता है कि परम पवित्र भारतवर्ष का आधार यहां की संमृद्ध संस्कृति है ।

ये विषय तो हो गया राष्ट्रवादी शब्द के मूल भाव का अब विषय आता है हिन्दू शब्द का....

हमारे पौराणिक ग्रन्थों में कहीं हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है।पुराणों में कर्इ कथाएं हैं, पर किसी कथा में हिन्दू धर्म की व्याख्या नहीं की गयी है। रामायण और महाभारत संसार के वहृततम और श्रेष्ठतम महाकाव्य है, जिनके महानायक राम और कृष्ण हैं, किन्तु इनकी महता देवताओं के रुप में नहीं की गयी हैं। इन्हें विष्णु का मनुष्य रुप में अवतार माना गया है। भग्वदगीता को धर्म का चश्मा उतार कर पढ़ने से इसमें छुपा हुआ गूढ आध्यात्मिक अर्थ समझ में आता है। भग्वद गीता धर्म, दर्शन और आध्यात्म का अनुपम ग्रन्थ है, जो हमारी राष्ट्रीय निधि  है। शताब्दियों पूर्व लिखा गया यह ग्रन्थ विश्व का पहला और अंतिम ऐसा ग्रन्थ हैं, जैसा न कभी लिखा गया था और न लिखा जायेगा। किन्तु गीता के किसी श्लोक में हिन्दू, हिन्दु धर्म और हिन्दुत्व की व्याख्या नहीं की गयी है।

हिन्दू और हिन्दुत्व शब्द को सियासत मे लपेट कर जो व्याख्या की जा रही है, वह जानबूझ कर वातावरण को विषाक्त करने का प्रयास है। हमारा राष्ट्र भारत था, भारत है और भारत ही रहेगा। मुगलो ने इसे हिन्दुस्तान बनाया और अंग्रेजों ने इंड़िया। अंग्रेज इंड़िया में रहते थे, किन्तु अपने आपको ब्रिटिश कहते थे, किन्तु मुगल हिन्दुस्तानी कहते थे, क्योंकि हिन्दुस्तान को ही वे अपना मुल्क मानते थे। उन्हें हिन्दू शब्द से न तो घृणा थी और न ही इस विशेषण को अपनी पहचान के आगे लगाने से अपने आपको अपमानित महसूस करते थे। पाकिस्तान बनने के पहले सारे मुसलमान हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाते थे, किन्तु अब वे पाकिस्तानी और हिन्दुस्तानी कहलाते हैं। स्पष्ट है, हिन्दु धर्म नहीं, पहचान है, फिर इसे धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है ?

हमारी संस्कृति शांति और सहिष्णुता का पाठ पढाती है। हमने तलवार के बल पर नहीं, दिलों को जोड़ कर दुनिया जीती हैं । पूरी दक्षिण -पूर्वी ऐशिया में हज़ारों वर्षों से हमारी सांस्कृतिक विरासत आज भी अक्षुण्ण हैं। हमने हिंसा से नहीं, शांति के पाठ से संसार को बोद्धमय बनाया। कभी खून खराबे से दुनिया को जीतने की योजनाएं नहीं बनायी। इतिहास गवाह है कि जो तलवार ले कर दुनिया फतह करने निकले थे, वे मिट गये, किन्तु हमारी धर्म पताका विश्व में आज भी फहरा रही है।

सामान्य शब्दों में यदि समझें तो अटक से कटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति जो गाय, गंगा ,गीता और गायत्री का सम्मान करता है भले ही वह किसी भी पूजा पद्धति को मानता हो, हिन्दू है।जो व्यक्ति श्री राम की मूर्ति के सामने बैठकर पूजा करता हो किन्तु गायत्री के रहस्य को न जानता हो वह हिन्दू नहीं हो सकता और जो भले ही नमाज अदा करता हो लेकिन गंगा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हो वह हिन्दू है।

राष्ट्रवादी तथा हिन्दू शब्द की मूल परिकल्पना को यदि हमने समझकर स्वीकार कर लिया तो निश्चय ही हमारी 90 प्रतिशत समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

वन्दे भारती

Tuesday 28 July 2015

आज देश रो दिया.....कलाम को प्रणाम

कल शाम देश ने अपने एक मजबूत स्तंभ को खो दिया,देश के लिए यह एक अपूर्णीय क्षति है। व्यक्तिगत रूप से कलाम जी मेरे जीवन को आधार देने वाले एक मजबूत स्तंभ थे। उनको पढ़कर और सुनकर मैनें अपने जीवन में बहुत कुछ सीखा है। मैं बचपन से ही संघ से जुड़ा रहा हूं। एक स्वयंसेवक के रूप में अपने प्रथमिक दौर में मेरे विचार एक हिन्दूवादी के थे। वो एक ऐसा समय था जब मैं ना ही संघ के मूल विचार को समझता था और ना ही हिन्दू शब्द की मूल परिकल्पना को। उस दौर में मेरे मन के एक हिस्से में मुस्लिमों के प्रति दुर्भावना बसी हुई थी। उस समय मेरी उम्र मुश्किल से 16 साल रही होगी।


उसी दौरान एक दिन मेरे बाबा जी ने मुझे कलाम साहब की जीवनी पढ़ने को दी, वो मेरे विचारों में परिवर्तन के लिए एक पर्याप्त थी। उस जीवनी के एक वाक्य को मैंने अपने जीवन में अनुपादित किया। 'अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं. मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे...' राष्ट्रभाषा के प्रति उनके समर्पण को देखकर उनके उद्देश्य को मूर्त रूप देने के लिए मैंने अपने स्तर पर प्रयास शुरू किया और सभी कार्य हिंदी में करने का प्रयास करने लगा।
जब उम्र थोड़ी ज्यादा हुई तो धीरे धीरे संघ और हिन्दुत्व का मूल विचार भी समझ में आया। और 20 की उम्र के बाद जब कुछ ऐसे लोगों से चर्चा होती थी जो खुद को कट्टर हिन्दू कहते थे तो उनसे मेरा पहला प्रश्न होता था कि क्या कलाम साहब के योगदान को आप नहीं मानेंगे।

जो व्यक्ति गीता और कुरान दोनों का अध्ययन करता हो उसे एक संप्रदाय विशेष से जोड़ना कहीं न कहीं बेईमानी लगता है। अपने व्यक्तिगत जीवन में मैंने भारत को परमाणु संपन्न बनाने वाले डॉक्टर अब्दुल कलाम से बहुत कुछ सीखा है...उनके कुछ विचार आपके जीवन में भी परिवर्तन ला सकते हैं....

Be more dedicated to making solid achievements than in running after swift but synthetic happiness.
 कृत्रिम सुख की बजाये ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये.

English is necessary as at present original works of science are in English. I believe that in two decades times original works of science will start coming out in our languages. Then we can move over like the Japanese.
अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं. मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओँ में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे.

I was willing to accept what I couldn’t change.
मैं हमेशा इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता.

Great dreams of great dreamers are always transcended.
महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं.

Let us sacrifice our today so that our children can have a better tomorrow.
आइये हम अपने आज का बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके.

Man needs his difficulties because they are necessary to enjoy success.
इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने कि लिए ये ज़रूरी हैं.

No religion has mandated killing others as a requirement for its sustenance or promotion.
किसी भी धर्म में किसी धर्म को बनाए रखने और बढाने के लिए दूसरों को मारना नहीं बताया गया.

Tell me, why is the media here so negative? Why are we in India so embarrassed to recognise our own strengths, our achievements? We are such a great nation. We have so many amazing success stories but we refuse to acknowledge them. Why?
 मुझे बताइए , यहाँ का मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है? भारत में हम अपनी अच्छाइयों, अपनी उपलब्धियों को दर्शाने में इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं? हम एक महान राष्ट्र हैं. हमारे पास ढेरों सफलता की गाथाएँ हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं स्वीकारते. क्यों?

You have to dream before your dreams can come true.
इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे .


इस व्यक्तित्व को भावभीनी श्रद्धांजलि.....

Monday 27 July 2015

"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"

विदेशी कंपनियों से सामान खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से देश बेचने वाला व्यक्ति पूछता है
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*दीवार पर पेशाब करता व्यक्ति पूछता है,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*बिजली चोरी करता व्यक्ति पूछता है, "अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*यहाँ-वहाँ कचरा फैंकता व्यक्ति पूछता है,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*कामचोर कर्मचारी पूछता है,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*टेक्स चोरी करता व्यक्ति पूछता है,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*नौकरी पर देरी से व जल्दी घर दौड़ता कर्मचारी पूछता है,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*लड़कियों से छेड़खानी करता व्यक्ति पूछता है,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?
"वंदे मातरम् के समय बातें करते स्कूलों के कुछ लोग पूछते हैं,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"

*स्कूल में बच्चों को न भेजने वाले लोग पूछते हैं,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*सड़क पर रेड सिग्नल तोड़ते लोग पूछते हैं,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*किताबों से दूर भागते विद्यार्थी पूछते हैं,
"अच्छे दिन कब आयेँगे...?"
*कारखानों में हराम खोरी करते लोग पूछते हैं,
"अच्छे दिन कब आयेँगे........!!

अच्छे दिन आएंगे लेकिन उनको लाने वाले पीएम साहब नहीं होंगे....हम अगर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और अपने जीवन में प्रत्येक काम यह सोचकर करेंगे कि मेरे प्रत्येक कार्य से देश पर प्रभाव पड़ रहा है, तो निश्चित ही अच्छे दिन आ जाएंगे। सड़क पर कचरा नरेन्द्र मोदी नाम का व्यक्ति नहीं फेंकता है, अपने बच्चों को यो-यो टाईप नरेंद्र मोदी नहीं बनाता....हमें करना होगा स्वयं में परिवर्तन यदि हम वास्तव में अच्छे दिनों की परिकल्पना को साकार करना चाहते हैं तो....

वन्दे भारती

एक मांग पीएम मोदी के नाम

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के समय चलने वाले सिक्कों पर ॐ हुआ करता था क्योंकि उनको पता था कि भारत का आधार भारत की संस्कृति है तथा भारत की संस्कृति का आधार आध्यात्म है। कंपनी की सरकार ने अपनी महारानी की फोटो के भी सिक्के चलाए लेकिन श्री राम, हनुमान और गणेश जी से दूर नहीं हो पाए।


एक बार कल्पना करिए कि आज के समय में अगर सिक्कों पर भगवान् श्रीराम लक्ष्मण जानकी जी और हनुमान जी के चित्र हों तो देश में क्या होगा। देश की तथाकथित स्वतंत्रता के बाद हमने अपनी विरासत को गंवाया और तो और हमने देश की सत्ता उनके हाथों में दी जिनको इस देश की संस्कृति से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था।

कभी कभी लगता है ऐसी आज़ादी से तो अच्छा था कि हम गुलाम रहते लेकिन फिर सोचता हूं कि देश की ऐसी स्थिति के लिए मूल रूप से तो हम ही जिम्मेदार हैं, हम ही तो चुनते हैं सरकार.... हम ही तो चलाते हैं सिस्टम....

मात्र नेताओं को गाली देने से कुछ नहीं होगा..हमें बोलना पड़ेगा....हमें ये बताना पड़ेगा कि हम चाहते हैं कि देश फिर से विश्व गुरू बने...पिछले लोकसभा चुनाव में एक उम्मीद के साथ हम सभी ने देश की सत्ता का संचालन एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में दिया जो कहता था कि देश नहीं झुकने दिया जाएगा, इतनी जल्दी उसका विरोध करना  भी ठीक नहीं। लेकिन हमारा शांत बैठना भी तो ठीक नहीं है।

मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं कि 1000 रुपए के नोट पर महात्मा गांधी का चित्र रहता है, निश्चित रूप से देश हित में उनका भी योगदान रहा है...लेकिन मेरा मूल विषय यह है कि यदि 1000 रुपए के नोट पर महात्मा गांधी का चित्र हो सकता है तो 500 रुपए के नोट पर चन्द्रशेखर आजाद का , 100 रुपए के नोट पर भगत सिंह का, 50 रुपए के नोट पर रानी लक्ष्मीबाई का चित्र क्यों नहीं हो सकता। क्या देश की स्वतंत्रता में इनका कोई योगदान नहीं था? और यह प्रश्न मैं आज अपने इस ब्लॉग के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री महोदय से पूछना चाहता हूं। हो सकता है भगवान् श्रीराम को आप एक वर्ग विशेष का मानते हों, हो सकता है कि तथाकथित सांप्रदायिक सौहार्द के संरक्षण के लिए आप श्रीराम का चित्र सिक्कों पर न छपवा सकते हों लेकिन मैं इतना तो मानकर चल रहा हूं कि आप कांग्रेस सरकार की भांति हमारे शहीदों को आतंकवादी तो नहीं मानते होंगे.....

वन्दे भारती

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...