Tuesday 20 August 2013

ये कानून अब क्यों?- भाग.3






इंडियन सिटिजनशिप एक्ट हम और आप भारत के नागरिक हैं इस बात को प्रमाणित करने के लिए अंग्रेजों ने कुछ नियम और कायदे बनाए थे। इन नियम और कायदों को एक कानून के माध्यम से लागू किया गया था । उस कानून का नाम था इंडियन सिटिजनशिप एक्ट। अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था जिससे कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें। इसी कारण इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति (पुरुष या महिला) एक विशेष अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंग्लादेशी शरणार्थी)। लेकिन हमने इसमें आजादी के 66 सालों के बाद भी कोई संशोधन नहीं किया। इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है। ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ?
 
दुनिया के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है। आप अमेरिका जाएंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा। ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है। दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देशों को छोड़ कर हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है । कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है और उसमें ये व्यवस्था है। क्या आपको लगता है ऐसे कानून के रहते हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ?

इंडियन एडवोकेट्स एक्ट- हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वह काला टोपा लगाते थे और उस पर नकली बालों का विग लगाते थे। ये व्यवस्था आजादी के कई सालों बाद तक चलती रही थी। हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वह इसी कानून के आधार पर है। आपको पता होगा कि काला कोट गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता। इंग्लैंड में वर्ष में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं, इसका कारण मुझे आज तक समझ में नहीं आया।

भारत का मौसम गर्म है और वर्ष में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक चला जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, हम काला रंग की जगह कोई और रंग भी तो चुन सकते थे, लेकिन नहीं। हमारे देश में आजादी के पहले के जो वकील हुआ करते थे वह ज्यादा हिम्मत वाले थे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया।

इंडियन ऐग्रीकल्चर प्राइस एक्ट- ये भी अंग्रेजों के जमाने का कानून है। पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले कर मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे। अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को समाप्त करने के लिए ये कानून लागू किया और किसानों को उनकी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया। अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वह किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वह तय करते थे।

आप हर वर्ष समाचारों में सुनते होंगे कि सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया। ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, मतलब किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है। इस आजाद भारत में किसानों को अपने उपजाए अनाजों का मूल्य तय करने का अधिकार आज भी नहीं है । उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है और आज दिल्ली के एसी कमरों में बैठ कर वह लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वह अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते।

1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, ये कानून अंग्रेजों ने भारत को 1000 वर्ष गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना।

ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है इसलिए यहीं विराम देता हूँ। इन कानूनों की किताब बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ कर आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स के पुस्तकालय से लिया गया हैं। अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ।

अजीब अजीब कानून है इस देश में। आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे और समाप्त भी किया था, मेरे कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाए थे वह अपने फायदे और हमारे नुकसान के लिए बनाए थे और हमें आजादी के बाद इसे समाप्त कर देना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों के गुलामी की निशानियों को हम आज भी ढो रहे हैं।

हर वर्ष स्वयं को मूर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराते है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं। स्वतंत्रता का मतलब होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था। ये स्वतंत्रता है या परतंत्रता? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है आजादी के इतने सालों में? अगर झंडा फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम आजाद हो गए थे। स्वतंत्रता का मतलब है अपनी व्यवस्था जिसमें आप गुलामी की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे गुलामी आई थी, वह तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि आजादी अभी अधूरी है, इस अधूरी आजादी को पूर्ण आजादी में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा।

हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी। जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमें कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गई, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए। भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिए और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं।

वन्दे भारती

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