Wednesday 25 June 2014

मैं और मेरी चाहत का सच

विश्व गौरव

मेरा यह लेख मेरी विधा से हटकर है ...लोग कहते हैं की मैं दोहरा जीवन जीता हूँ .गंभीर चिंतन के बाद मुझे  भी अहसास हुआ की वास्तव में मैं दोहरा जीवन जीता हूँ ....समाज के बीच में सामाजिक और घर पर व्यक्तिगत ...और ऐसा जीवन लगभग सभी मनुष्य जीते हैं ...फिर मेरे उपर ही ऐसे आरोप क्यूँ ...शायद इस लिए की मैं अपने व्यक्तिगत जीवन का भी कोई भाग समाज से नहीं छिपाता ...और इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए एक नया अनुभव आप सभी से बाँट रहा हूँ ..

ये कोई कहानी नहीं मेरी भावनाएं हैं एवं इसको लिखने का एक मात्र स्पष्ट उद्देश्य यही है की मेरी ये भावनाएं किसी भी प्रकार से उस इन्सान तक पहुँच जाएँ ....क्यों कि शायद ये बातें मैं कभी उस इन्सान को अपनी बातों से समझा नहीं पाऊंगा ....
प्रेम ----- एक ऐसा शब्द है  जिसके मायने तो लोगों के लिए अलग हो सकते हैं लेकिन भावना एक ही होती है....माँ गंगा के जल की भांति शाश्वत , निर्मल , निच्छल , पावन एवं पवित्रता के साथ मन में जो भावना होती है वही प्रेम का मूल रूप है ...वर्त्तमान परिस्तिथियों के व्यावहारिक रूप  को देखते हुए लोग इसकी विभिन्न परिभाषाएं दे सकते हैं लेकिन उस पक्ष को मूल पक्ष मान लेना गलत होगा ....
शरीर की सुन्दरता के जाल में फंसकर कभी प्रेम नहीं होता उसे वासना कहा जाता है...वासना शरीर का मिलन है परन्तु प्रेम आत्मा का मिलन है ...और आत्मा का मिलन कभी अनुमति नहीं मांगता...दो मित्रों का एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता हो जाना ही प्रेम है। एक-दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकारना जिस रूप में वह हैं। दोनों यदि एक-दूसरे के प्रति सजग हैं और अपने साथी का ध्यान रखते हैं तो धीरे-धीरे प्रेम विकसित होने लगेगा।
अंतत: देह और दिमाग की सारी बाधाओं को पार कर जो व्यक्ति प्रेम में स्थित हो जाता है सच मानो वही सचमुच का प्रेम करता है। उसका प्रेम आपसे कुछ ले नहीं सकता आपको सब कुछ दे सकता है। तब ऐसे में प्रेम का परिणाम संभोग को नहीं करुणा को माना जाना चाहिए।

"इश्क" महसूस' करना भी ...इबादत से कम नहीं,
ज़रा बताइये.... 'छू कर' ईश्वर को किसने देखा है

बिना किसी अपेक्षा के किसी एक विशेष इन्सान के विषय में लगातार सोचना ही प्रेम है...प्रेम कोई दिखावा नहीं एक अनुभूति है....उस अनुभूति में इश्वर की छवि दिखती है...और वास्तव में वहीं ईश्वर होता भी है ....और वास्तविक प्रेम दिखावा नहीं होता.....प्रेम का वास्तविक  आनंद तो तब ही है जब उसे बिना कहे चुपचाप उसके ख्यालों में खोए रहो और उसकी हर उस हरकत को ऐसे महसूस करो जैसे वो उसी समय हो रहा है ....
उसको बिना प्रेम का इजहार किए अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए उसका ख्याल रखना प्रेम है ....बिना उसे देखे अपने मन में उसकी तस्वीर को बसा कर उसी में अपने राम को देखना प्रेम है ....खुद खाने से पहले उसके खाने का ध्यान आ जाना प्यार है ....खुद के बारे में सोचने से पहले उसके बारे में सोचना प्रेम है ....वो पास आए ना आए उसे हर पल अपनी धड़कन में महसूस करना प्यार है ....खुद के चेहरे में उसकी अनुभूति करना प्यार है ...प्रेम कभी शर्तों पर नहीं होता और ना ही प्रेम का अर्थ अधिकार जताना होता है....किसी पर आधिपत्य करने की सोच यदि मन में आई तो उसका मतलब हैकी प्रेम की हत्या हो गयी ...

प्रेम के सम्बन्ध में अभी कुछ समय पहले अपने एक परम मित्र से चर्चा हो रही थी तो उन्होंने कहा की जिससे प्रेम हो उससे कभी शादी नहीं करनी चाहिए....हमने भी उत्सुकतावश पुछा की मित्र ऐसा क्यूँ ?
तो उन्होंने कहा कि किसी अन्य से शादी के बाद जब पत्नी से झगडा होगा तब शराब के एक गिलास के साथ उस इन्सान के साथ जिससे आप प्रेम करते हैं बिताया गया एक एक लम्हा आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगा ...मैं उनके इस वाकया से सहमत नहीं हुआ क्यूँ की मेरा मानना है की प्रेम में किसी भी प्रकार की प्रकार की अपेक्षा नहीं होती यहाँ तक की आनंद की भी नहीं ....प्रेम कभी आत्मसंतुष्टि नहीं दे सकता ....क्यूँ की किसी से प्यार एक बार नहीं होता ....उसी एक इन्सान से बार बार प्यार होना ही प्रेम है ...
मेरे ये विचार सिर्फ मेरे व्यावहारिक जीवन के नाते हैं .....हमने भी जीवन में बहुत सी गलतियाँ की हैं लेकिन करते समय वो गलतियाँ नहीं लगीं ....अब समझ में आया है इसी नाते अपनी चिर परिचित विधा से हटकर पहली बार ऐसे किसी विषय पर लिखने का प्रयास किया है ....मेरा प्रेम शाहजहाँ जैसा नही की अपनी प्रेमिका के लिये एक पूजन स्थल को कब्रगाह बना दिया जाए ...मेरा प्रेम तो श्री राम जैसा है कि उसकी रक्षा के लिए पानी में भी पत्थर तैरने लगें और समुद्र पर पुल बन जाए ....

सुना है बहुत पढ़ लिख गयी हो तुम................
कभी वो लफ्ज भी पढ़ लिए होते जो हम कभी कह नहीं पाए .......

2 comments:

Ankit Dwivedi said...

bilkul shi kha bhaisahab aapne prem do sariron ka milan nhi hai balki do aatmaon ka milan hai ........

Aanchal Seth said...

Awseom lines.... agar kisi ko janna h ki pyr kya h to usse ye zarur padhna chahiye..!! Pyr dil se hona chahiye bhavnao se hona chahiye na ki kisi ki surat se ya uske sharir se....

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

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