(मेरी जीवन की सत्य घटनाओं पर आधारित मेरे द्वारा लिखे जा रहे उपन्यास का एक अंश)
एक किताब की तरह पढ़ना चाहता हूँ ,तुम्हें धूप में छत पर लेटे लेटे पन्ने आगे पीछे कर के कहानी को अपने तरीके से बनाना चाहता हूँ,
हाँ शब्दों में तुम्हारी तस्वीर बनाकर उसे देखना चाहता हूँ जब मन चाहे और अकेले बैठ तुम्हें सोच के मुस्कुराना चाहता हूँ
जैसे किताब को सीने पर रख कर सो जाता हूँ कई बार ठीक वैसे ही तुम्हारे पास आना चाहता हूँ
क्या लगती हो तुम मेरी ये सब को बताना चाहता हूँ हाँ मेरी किताब मेरी कहानी मेरा सब कुछ सच ही है
लेकिन ये झूठ है की मैं तुमको पाना चाहता हूँ
मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हे तनहा ना कर दे, रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते है।!!!!!!
एक किताब की तरह पढ़ना चाहता हूँ ,तुम्हें धूप में छत पर लेटे लेटे पन्ने आगे पीछे कर के कहानी को अपने तरीके से बनाना चाहता हूँ,
हाँ शब्दों में तुम्हारी तस्वीर बनाकर उसे देखना चाहता हूँ जब मन चाहे और अकेले बैठ तुम्हें सोच के मुस्कुराना चाहता हूँ
जैसे किताब को सीने पर रख कर सो जाता हूँ कई बार ठीक वैसे ही तुम्हारे पास आना चाहता हूँ
क्या लगती हो तुम मेरी ये सब को बताना चाहता हूँ हाँ मेरी किताब मेरी कहानी मेरा सब कुछ सच ही है
लेकिन ये झूठ है की मैं तुमको पाना चाहता हूँ
मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हे तनहा ना कर दे, रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते है।!!!!!!
रोज रात को अपनी नींद के साथ सुलह करके
सोता हूँ... इसी आस में कि कल सुबह मुझे तुम फिर
से दिखोगी... मुझसे मिलोगी, मुझसे बातें करोगी... तुम फिर से उसी प्यारी सी मुस्कान के साथ कैंपस में मुझसे नजरें चुराओगी ... वही चेहरे पे
भोलापन साथ लिए... छुप छुप के तुझे देखा करते है जैसे कोई
गुनाह किया हो हमने... पर गुनाह तो हमने कर दिया तुमसे प्यार जो हमने कर लिया... अगर ये गुनाह
है तो हमे सजा भी मंजूर है, तेरी ख़ुशी के लिए तुझसे दूर जाने कि सजा भी कबूल कार ली हमने ... अगर मैं गलती
से तुझे छु भी लूँ तो ऐसे लगता है मंजिल छु ली हो... क्या पता तुम्हें कि तुम खुद क्या चीज हो, शीशे में नहीं कभी मेरी आँखों में देखना... तुम्हें खुद के लिए ही खुद की इज्जत
और बढ़ जाएगी... अब तुझे रोज न देखूं तो घुटन सी
होती है... अब तेरी आदत जो हो गयी है... और ये आदत ही
मेरी आदत बन गयी है... जब तू मुझे देखती है मुझे लगता
है मैं दुनिया में सबसे खास हूँ... क्योकि वो
कोई खास ही होगा जिस किसी पे
नजर तेरी पड़ेगी... सच कहूँ तो
आजकल मुझे मंदिर जाने की जरुरत नहीं पड़ती... तुझे देखता हूँ तो खुदा दिख जाता है वही सजदा कर लेता हूँ... मुझको
जिन्दगी से कोई शिकवा गिला नहीं है... क्योकि जिसने मुझे चाहा उसका मैं हो
ना सका... और जिसको मैंने चाहा वो मेरा हो न
पाया..!
कुछ खास नही बस इतना ही कहूँगा कि हर रात का आखरी खयाल और हर सुबह की पहली सोच
हो तुम..,!!
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था के वो रोक
लेगी, मना लेगी, दामन के दामन पकड़कर बिठा लेगी, मेरे कदम ऐसे अंदाज़
से उठ रहे थे कि जैसे वो आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने न रोका ,न मनाया, न दामन ही
पकड़ा, न मुझको बिठाया, न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया,
मैं आहिस्ता
आहिस्ता बढ़ता ही आया यहाँ तक के उससे जुदा हो गया
मैं ..
बस इतना ही कहूँगा कि
अब सज़ा दे ही चुके हो तो मेरा हाल ना पूछना, अगर मैं
बेगुनाह निकला तो तुम्हे अफ़सोस बहुत होगा
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