Sunday 10 May 2015

माँ....बहुत याद आती है आपकी

मां.... एक दिन के लिए नहीं। हर क्षण के लिए।
इस उम्र में हर दिन कुछ न कुछ संघर्ष किया है। प्रकार बदले, पैमाने बदले, संघर्ष नहीं बदला।
मैं उन नौ महीनों की कल्पना ही कर सकता हूं जब मैं बिना संघर्ष तुम्हारी कोख में आया और रत्तीभर संघर्ष नहीं करना पड़ता था। तुम्हारी कोख में सबसे सुरक्षित था मैं। संघर्ष का दूर-दूर तक नाता नहीं था।
उसके बाद बाहर की दुनिया देखी और संघर्ष शुरू हो गया। आंखे खोलने का संघर्ष, सांस लेने का संघर्ष, खाने-पीने का संघर्ष..... और दिनों दिन संघर्ष का दायरा बढ़ता गया..बढ़ता गया।
निश्चित ही उस संघर्ष से मैं हार मान लेता... लेकिन आप कब मुझे हारते देख पातीं।
सब कुछ सिखा दिया। मैं गलती करता गया,,,,, आप सिखाती गईं।
हर संघर्ष में जीतना सिखाती गईं।
अक्षर सिखाए....शब्द सिखाए.... बोलना सिखाया।
पीना... खाना... चलना और दौड़ना सिखाया।
रुठना, मनाना, गुस्सा करना, जिद करना और प्यार करना भी सिखा दिया।
.... इस दुनिया में खड़े रहना और जूझना सिखा दिया।
फिर आपकी आदत लग गई,मेरा डर समाप्त हो गया क्यों कि पता था कि जब कभी मैं गिरने वाला हुआ आप मुझे संभाल लोगी।मुझे जीतने की आदत आपसे लगी।और जब मैं इस लायक हुआ कि दुनिया की साथ चलूँ तब आप मुझे छोड़ कर चली गईं। और तब मुझे बताया गया कि आपको श्री राम जी ने बुला लिया है और मेरा विश्वास श्री राम जी पर अटल हुआ।जीवन के यथार्थ सत्य के भाग में जब मेरा गमन हुआ जीवन के उस भाग में, मैं गिरने वाला हुआ तो मुझे किसी ने नहीं संभाला लेकिन फिर मेरे जीवन को संभाला श्री राम जी ने।
माँ,

मैं हँसता तो हूँ लेकिन खुश रही रहता क्यों कि आप मेरे साथ नहीं हो।

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