Thursday 31 December 2015

उस साल की वो आखिरी रात...

31 दिसंबर 2006, की सुबह 10 बजे मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा आयोजित प्राथमिक शिक्षा वर्ग (ITC) पूर्ण करके घर पहुंचा। 8 दिनों तक बिना किसी बाहरी संपर्क के बस 283 लोगों के साथ अपना एक अलग समाज बन गया था। वर्ग स्थल से निकलते समय आंखों में आंसू थे लेकिन घर पहुंचते पहुंचते सब सामान्य हो गया। घर पहुंचते ही सबसे पहले मोबाइल ऑन किया और उसे चार्जिंग पर लगाया। उन दिनों संघ के कैंप में मोबाइल पूरी तरह से प्रतिबंधित था और मेरे पास Bird का मोबाइल हुआ करता था जिसमें एयरटेल का सिम था। 1.99 रुपए कॉलरेट के उस दौर में पिता जी महीने में 50 रुपए का रिचार्ज कराते थे यानि बात करने के लिए मिलते थे 21 मिनट। उनके अनुसार मुझे कहीं बात करने की जरूरत ही नहीं थी क्यों कि परिवार के सभी सदस्य मेरी कॉल को काट कर कॉल बैक करते थे। मिसकॉल के उस दौर में मैंने शाम पांच बजे उसे कॉल की तो उसकी मां ने फोन उठाया। उसकी मां से मैंने कहा कि मुझे राहुल से बात करनी है तो उन्होंने रॉन्ग नंबर कहते हुए फोन काट दिया। उसी कॉल के साथ मेरा बैलेंस भी खत्म हो गया।






उन दिनों जब भी उसकी मां या पापा फोन उठाते थे तो मन में जो भी नाम आता था उसे ले लेता था। क्या प्यार था, यही सोचता था कि अगर उसका नाम लिया तो उसके सामने कई सवाल खड़े हो जाएंगे। पिछले 5 महीने में ऐसा पहली बार हुआ था जब मैं उससे लगातार 8 दिन मिला नहीं था। मिलना तो छोड़िए उसकी आवाज भी नहीं सुनी थी। 31 की शाम को शाखा पर अंग्रेजी नववर्ष और वर्ष प्रतिपदा (भारतीय नववर्ष) पर एक लंबा चौड़ा भाषण दिया और शाखा खत्म होते ही अपनी अंग्रजी की ट्यूशन पढ़ने के लिए निकला लेकिन वहां ना जाकर उसके घर के नीचे खड़ा हो गया इस उम्मीद के साथ कि शायद वह बॉलकनी में आ जाए और उसका चेहरा मुझे दिख जाए लेकिन 1 घंटे के इंतजार के बाद भी वह नहीं आई। बैलेंसहीन मोबाइल होने की वजह से मिसकॉल भी नहीं कर सकता था। अंधेरा भी काफी हो गया था और पिताजी का फोन भी आ चुका था तो वापस जाना ही बेहतर समझा। वापस पहुंचने पर उसकी पसंदीदा फिल्म मोहब्बतें लगाई और देखने लगा।

मेरे घर पर रात 9 बजे के बात टीवी देखने की अनुमति नहीं थी। उस दिन भी दादी जी ने आकर कहा कि अब इसे बंद करके खाना खा लो तो मैंने कहा कि आप सब लोग खाकर सो जाओ मैं देर से खाऊंगा क्यों कि 8 दिनों तक टीवी से दूर रहा हूं तो आज देखने की बहुत इच्छा है। क्या बहाने थे...खैर.... रात में फिल्म खत्म होने के बाद दुबारा से लगा ली। कई सारी शंकाएं मन में आ रही थीं कि कहीं ऐसी कौन सी वजह है जिसकी वजह से वह बात नहीं कर रही? कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हो गई, कहीं वह नाराजगी के चलते हमेशा के लिए बात करना ना बंद कर दे... यही सब सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं लगा। अगली सुबह बाबा जी ने 5 बजे जगाया लेकिन नींद पूरी ना होने के कारण मैं सर दर्द का बहाना बनाकर फिर से सो गया। उस दौरान शीतकालीन अवकाश चल रहा था तो कॉलेज की परेशानी भी नहीं थी

सुबह साढ़े 10 बजे नींद पूरी हुई... तो फ्रेश होने के बाद मोबाइल चेक किया तो देखा कि उसके नंबर से 3 मिसकॉल पड़ी हैं। अब बैलेंस ना होने की वजह से ना ही मैं कॉल कर सकता था और ना ही मेरे पास पैसे थे। और अचानक किसी नई किताब के लिए भी पैसे नहीं ले सकता था तो एक नया बहाना बनाया। मैंने घर पर कहा कि मैम का फोन आया है आज अभी ट्यूशन पढ़ने जाना है और नीचे जाकर साइकल की हवा निकाल दी फिर वापस आकर बाबा से कहा कि बाबा साइकल पंचर है और कोचिंग जाना बहुत जरूरी है तो 10 रुपए देकर बोले कि जाओ रास्ते में साइकल सही कराकर चले जाना। मैंने उनसे पैसे लिए और रास्ते में जाकर खुद से हवा भरी। रास्ते भर क्वाइन बॉक्स वाला पीसीओ ढ़ूढता रहा सिससे कि 1 रुपए में बात हो जाए। उसकी कॉलोनी के पास में ही एक पीसीओ मिला। वहां से मैंने उसे डरते डरते कॉल की। उसने जैसे ही फोन उठाकर हेल्लो बोला... ऐसा लगा जैसे दुनिया कि सारी खुशियां मिल गईं। उस दौर में मैं यह नहीं समझता था कि ऐसी खुशियां क्षणिक होती हैं जिनमें कोई स्थायित्व नहीं होता।

जब मैंने हेलो बोला तो उसने कहा, 'गौरव कहां हो तुम? मैं कब से तुम्हें कॉल कर रही हूं... ऐसा कौन सा कैंप होता है जहां बात भी नहीं की जा सकती।' मैं कुछ बोलता इससे पहले ही उसने कहा, 'सब लोग न्यू ईयर पर 1 घंटे में चंद्रिका देवी मंदिर जा रहे हैं.. तुम घर आ जाओ.. हम लोग बैठ कर ढ़ेर सारी बातें करेंगे।' यह सुनते ही लगा जैसे रात को मेरी आंखों में आई नमी को मेरे श्रीराम ने महसूस कर लिया।

मैं तुरंत वापस गया और कपड़े बदलने लगा। बाबा ने पूछा कि क्या हुआ तो मैंने बोला कि ठंड लग रही थी इस लिए सोचा कि एक स्वेटर और पहन लूं। कुछ ही मिनटों में मैं उसके गेट पर था। बेल बजाने पर उसने दरवाजा खोला और अंदर आकर बैठने को कहा और खुद पानी लेने चली गई... कुछ पलों के बाद सोफे पर मेरे ठीक बगल में वह बैठी थी। मैं उठकर उसके सामने बैठ गया और उससे कहा कि, आज मैं तुम्हें जी भरकर देखना चाहता हूं।

वह बार-बार बालकनी ले नीचे अपने मां-पापा को देखने जा रही थी। हम लोग एक साथ लगभग 3 घंटे बैठे रहे। उसने कई सवाल पूछे लेकिन मेरे पास किसी का जवाब नहीं था। मैं उसे नहीं बस उसे देखता जा रहा था। मैं उसे 'संघ' समझाने की स्थिति में नहीं था। मैं उसे यह नहीं बता सकता था कि मैं इतने दिनों तक कहां था। मैं उसमें खोया था कि अचानक सीढ़ियों पर किसी के चढ़ने की आवाज आई, वह दौड़कर बालकनी में गई और वापस आकर बोली कि गौरव सब लोग आ गए, अब क्या होगा। मैं तुरंत उठा और उसके घर के ऊपर वाले फ्लोर पर चला गया। फिर लगभग 10 मिनट के इंतजार के बाद नीचे आकर देखा तो उसके घर का दरवाजा बंद था। सबसे सुकून भरा दिन था वह... ऐसा लगा जैसे उन 3 घंटों में सारी जिन्दगी जी ली हो। उसके साथ बिताए उन लम्हों के बारे में सोचते सोचते मैं घर पहुंचा और फिर से 'मोहब्बतें' लगा कर देखने लगा लेकिन इस बार वह फिल्म कुछ अलग लग रही थी। मेरे लिए 2007 की इससे बेहतर शुरुआत नहीं हो सकती थी।

पिछले साल 31 दिसंबर 2014 को मैं अपने दोस्तों के साथ 'क्वीन ऑफ हिल्स' कहे जाने वाली मसूरी में था। उन हसीन वादियों में अपनी क्वीन के बारे में सोच रहा था कि काश वह भी हमारे साथ होती। 31 की रात तो दीपक, सिद्धार्थ, शशिकांत और उत्कर्ष के साथ बीत गई लेकिन मैं अपनी जिन्दगी के नए साल यानी 2016 की शुरुआत अपनी क्वीन की आवाज सुनकर करना चाहता था। मैंने उसे कॉल किया लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। पूरी रात सुबह के इंतजार में बीत रही थी। मैं अपने साथ-साथ अन्य दोस्तों को भी जागने पर मजबूर कर रहा था। उनको लग रहा था कि मैं उन लोगों के साथ नए साल के मजे लेना चाहता था लेकिन सच तो कुछ और ही था। मैं बस इतना चाहता था कि जल्दी से सुबह हो जाए और मैं उसे कॉल करके उसकी आवाज सुनूं। सुबह के 6 बजते-बजते सब सो गए और मैं होटल के बाहर टहलने निकल गया। सुबह का 8 बजा और उसका फोन भी... उसने फोन उठाते ही कहा 'इतनी रात में कॉल क्यों किया था?' मेरे पास कोई जवाब नहीं था, मेरा काम हो गया था। नए साल की शुरुआत में उसके द्वारा इस तरह के प्रश्न की अपेक्षा नहीं थी.... लेकिन आवाज सुन ली तो मन को सांत्वना दे दी कि यह साल बहुत ही बेहतर जाने वाला है... और सच में पिछला साल बहुत ही बेहतर गया... बहुत से चेहरे बेनकाब हो गए... उन बेनकाब चेहरों में एक चेहरा उसका भी था...

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