पिछले कुछ दिनों में
विभिन्न समाचार पत्रों में रेल मंत्री सुरेश प्रभु के कार्य की काफी
सराहना पढ़ने को मिली। ख़बरों को पढ़कर लगता था की मेरी अगली ट्रेन की यात्रा
शायद कुछ शानदार अनुभवों वाली होगी। कुछ पारिवारिक परेशानियों के चलते
पिछले कुछ दिनों से लखनऊ में था। इसी दौरान मध्य प्रदेश के रीवा जिले में
एक कार्यक्रम के लिए जाना हुआ। रीवा से वापसी के दौरान 31 जनवरी को
रीवा-आनंद विहार ट्रेन से दिल्ली जाते समय ट्रेन के स्लीपर कोच में जो कुछ
घटित हुआ वह कहीं ना कहीं रेलवे की व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगाता है।
उस यात्रा के दौरान जो कुछ घटित हुआ वह वास्तव में काफी दुःखद है।
मैं, ट्रेन के एस-5 कोच की 26 नंबर सीट पर
लेटा था। ट्रेन रीवा से जब इलाहाबाद पहुंची तो मेरे ठीक सामने वाली 31
नंबर साइड लोअर बर्थ पर तीन अधेड़ उम्र के लोग आकर बैठ गए। कुछ देर बाद वहां
से टिकट पर्यवेक्षक महोदय गुजरे।

उनमें
से एक व्यक्ति ने पर्यवेक्षक महोदय से कहा, ‘सर, हमारा वेटिंग टिकट है,
अगर कोई सीट हो तो दे दीजिए।’ पर्यवेक्षक महोदय ने तत्काल अपना मुंह खोला
और बोले, ‘एक सीट का 500 रुपए लगेगा।’ मैं चुपचाप लेटा था क्योंकि अगर
वेटिंग टिकट है तो थोड़ा सा तो झेलना ही होगा। लेकिन टीटीई की बात ने मुझे
सोचने पर मजबूर कर दिया। एक ओर जहां प्रभु की रेल भ्रष्टाचार मुक्ति के
बड़े-बड़े दावे कर रही है वहीं दूसरी ओर उनका एक कर्मचारी इलाहाबाद से अलीगढ़
के लिए 500 रुपए में सीट बेच रहा था। खुलेआम इस तरह की मांग की कल्पना
मैंने नहीं की थी।
एक पत्रकार होने के नाते मैंने उन लोगों
से पूरा विषय फिर से पूछा। नियमतः यदि ट्रेन में कोई सीट चार्ट बनने के बाद
भी खाली रह जाती है तो टिकट पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी है कि RAC वाले
व्यक्ति को पूरी सीट उपलब्ध कराए और यदि उसके बाद भी कोई सीट खाली रहती है
तो वेटिंग टिकट वाले को सीट दे और यदि फिर भी सीट खाली रहती है तो जनरल
टिकट के साथ आरक्षित डिब्बे में यात्रा कर रहे यात्रियों को पेनल्टी के साथ
सीट दे।
लेकिन
इस ट्रेन के हालात कुछ और ही थे। सहयात्री से पूरा विषय जानने के बाद मैं
उनके साथ टीटीई के पास गया। सामान्य तौर पर मैं कहीं पर यह नहीं बताता कि
मैं पत्रकार हूं। मैंने टीटीई से कहा कि आप 500 रुपये में सीट कहां से
देते और वो 500 रुपए कहां जाते? तो उनका जवाब था, ‘यह नेतागिरी कॉलेज तक ही
रखो और अगर तुमसे दुःख नहीं देखा जा रहा है तो अपनी सीट दे दो। मैं कुछ
नहीं जानता।’ इतना कहने के बाद वह मेरे सहयात्री से बोले, ‘तुमको वेटिंग
टिकट के साथ आरक्षित डिब्बे में बैठने का अधिकार नहीं है। वो तो मैंने
तुमको घुसने दिया है तो चुपचाप बैठ जाओ। ज्यादा नेताओं को लेकर आओगे तो
इनके साथ तुमको भी रात में अन्य यात्रियों को डिस्टर्ब करने के आरोप में
बंद करवा दूंगा।’ यह मेरे लिए एक आश्चर्यजनक स्थिति थी।
जितनी
आसानी से पर्यवेक्षक महोदय ने रात के 10:20 बजे यह बात बोली थी उतना ही
आसान मेरे लिए उनकी इस करतूत को आईना दिखाना था। मैंने तत्काल तय किया कि
इस स्थिति के विषय में ट्वीट के द्वारा माननीय रेल मंत्री महोदय को अवगत
कराऊंगा। लगभग 5 मिनट तक दो टिकट पर्यवेक्षक मुझे धमकी भरे अंदाज में नियम
कानून समझाते रहे। फिर मैंने उनको अपना परिचय देते हुए कहा कि आप अपना नाम
बता दीजिए तो वह बोले, ‘मीडिया बहुत अच्छा है क्या? मेरे पर्स में 20
पत्रकारों के कार्ड पड़े हैं। जाकर अपनी सीट पर सो जाओ नहीं तो समस्या में
पड़ जाओगे।’

तभी फतेहपुर स्टेशन आ गया। उन में से एक
टीटीई बाहर उतर गया। मैं चाहता तो बहस कर सकता था लेकिन मैं समझ गया था कि
इसका कोई मतलब नहीं निकलेगा। मैंने अपना स्मार्टफोन निकाल कर रेलमंत्री को
ट्वीट करने की कोशिश की लेकिन अंबानी के ‘रिलायंस’ ने मेरा साथ नहीं दिया।
नेटवर्क की समस्या के चलते मैं ना ही किसी को कॉल कर सकता था और ना ही
मेसेज। उन दोनों में एक टीटीई की उम्र मुश्किल से 26 के आस-पास रही होगी।
तय है कि अपने छात्र जीवन में उस युवा ने भी भ्रष्टाचार का सामना किया
होगा, और संभवतः उसे भी लगता होगा कि काश इस देश में भ्रष्टाचार ना होता।
लेकिन आज जब उसके पास जिम्मेदारी है, जब वह कुछ कर सकता है तब वह उसी
भ्रष्टाचार की गंदगी में फंस गया।
खैर मैं अपनी सीट पर आकर वापस लेट गया और अपनी सीट पर उनमें से एक अन्य को बैठाया। उस
व्यक्ति के मुंह से बस इतना ही निकला कि ‘काश! मोदी जी को यह पता होता’…
मैं उसकी सकारात्मक उम्मीद को देखकर हैरान था। कुछ ही देर में मुझे नींद आ
गई, फिर मेरी आंख खुली तब तक ट्रेन खुर्जा पहुंच चुकी थी। मैं एक बार फिर
से टीटीई का नाम जानने के लिए उसकी सीट पर गया लेकिन वह भी जा चुके थे। मैं
चुपचाप आकर अपनी सीट पर बैठ गया और आनंद विहार रेलवे स्टेशन के आने का
इंतजार करने लगा। मेरे मन में एक ही सवाल था कि बिना खुद को बदले क्या
हमारा ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ की उम्मीद करना ठीक है?
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