Thursday 28 April 2016

लॉकेट में उतरे केजरीवाल, ऐसा विकास करेंगे हम?

kejri-locketकुछ दिन पहले बुध बाजार जाना हुआ। मार्केट घूमते-घूमते अचानक मेरी नजर वहां बिक रहे एक लॉकेट पर गई। वह लॉकेट था दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का, पहली नजर उस लॉकेट पर पड़ने के बाद मुझे लगा कि शायद उस दुकान पर नेताओं के लॉकेट ही मिलते हों। उत्सुकतावश मैं उस दुकान पर जाकर अन्य लॉकेट देखने लगा। वहां पर श्रीराम, श्रीकृष्ण और श्री हनुमान के साथ अरविंद केजरीवाल जी के लॉकेट रखे हुए थे। किसी भी देश की राजनीति और नेता उस देश का स्तर तय करते हैं। यह अच्छी बात है कि किसी देश का सामान्य नागरिक अपने गले में किसी नेता का लॉकेट डाल कर उसका अनुसरण करें। लेकिन क्या सच में जिस व्यक्ति की तस्वीर उस लॉकेट में थी उसका स्तर इतना ऊंचा हो गया है कि लोग गले में अपने ईष्ट के स्थान पर उन्हें डाल कर घूमे? मुझे लगता है कि आजाद भारत में अभी तक इस स्तर का कोई नेता नहीं हुआ जो श्रीराम, श्री कृष्ण, ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां शारदे अथवा भक्त शिरोमणि श्री हनुमान जी का स्थान ले सके। मुझे ख़ुशी होती अगर उस दुकान पर भगत सिंह, एपीजे अब्दुल कलाम, वीर अब्दुल हमीद और वीर विनायक दामोदर सावरकर के लॉकेट दिखते।
kejri-locket-1वैसे मैं उम्मीद करता हूं कि जल्द ही ऐसा समय भी आएगा जब कोई भारतीय किसी अन्य देश में जाएगा तो कहेगा कि मैं उस देश से आया हूं, जहां राम जैसा राजा हुआ जिसने ऐसा राजधर्म निभाया कि एक सामान्य नागरिक मात्र की संतुष्टि के चलते अपनी धर्मपत्नी से सहर्ष दूरी स्वीकार की, कृष्ण जैसा योगी हुआ जिसने गीता जैसे ज्ञान से समाज को व्यवहारिकता का पाठ पढ़ाया, पन्ना जैसी राजभक्त नारी हुई जिसने राष्ट्र रक्षा हेतु अपने बेटे का बलिदान करने में भी संकोच नहीं किया, युवा हुआ तो भगत सिंह जैसा जिसने देश की स्वतंत्रता हेतु युवाओं को खड़ा होने की शक्ति देने के लिए अपने जीवन को न्योछावर कर दिया, क्रांतिकारी हुआ तो सावरकर जैसा जिसने साम्राज्यवाद के गढ़ में घुसकर उसकी जड़ें हिला दीं, सैनिक हुआ तो हमीद जैसा जिसने दुश्मन को नाकों चने चबवा दिए, वैज्ञानिक हुआ तो अब्दुल कलाम जैसा जिसने भारत को इस लायक बनाया कि आज हम दुनिया भर के दादाओं से नज़र मिला कर बात कर पाते हैं और नेता हुआ तो… जैसा जिसने भारत को सबसे पहले माना और भारत को आधुनिक विश्वगुरु बनाया। जिसने भारत को भेदभाव रहित बनाया, जिसने इस देश के सामान्य नागरिक के मन से राष्ट्रीय सम्पदा के दोहन का विचार निकाल दिया। वैसे इन सब के पीछे एक सत्य यह भी है कि सामान्य नागरिक को भी सहयोग करना होगा। इस देश की राजनीति और सामान्य नागरिक से मां भारती को अपेक्षा है कि उपरोक्त रिक्त स्थान को जल्द भरने का प्रयास करे।
राजनीति कोई बुरी चीज नहीं है। एक अजन्मे बच्चे के भविष्य से लेकर मृत व्यक्ति तक के भविष्य का निर्धारण राजनीति करती है। राजनीति बुरी चीज है, यह कहकर यदि हम इससे बचने का प्रयास करेंगे तो भविष्य में लिखा जाने वाला इतिहास हमें ‘डरपोक’ और ‘कर्तव्यविमूढ़’ कहेगा। मैं मानता हूं कि राजनीति में कुछ बुराइयां आ गई हैं लेकिन उन बुराइयों को अपने स्तर पर दूर करने का प्रयास करने की जिम्मेदारी भी तो हमारी ही है। राजनीति की परिभाषा को बदलना होगा। नेताओं के साथ-साथ सामान्य जनमानस को भी समझना होगा कि ‘राज करने की नीति’ को राजनीति नहीं कहते बल्कि ‘राजकीय व्यवस्था को ठीक प्रकार से चलाने की नीति’ राजनीति कहलाती है। विचारधाराओं में मतभेद आवश्यक हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए क्योंकि यदि मनभेद हो गए तो यह संभव है कि इस कोई सामान्य व्यक्ति सीएम या पीएम की कुर्सी पर बैठ कर नेता बन जाए लेकिन वह राजनेता नहीं बन पाएगा। यदि भारत को परम् वैभव पर ले जाने स्वप्न को साकार करना है तो विचारधाराओं के दुशाले उतार कर फेंकने होंगे और देश के विपक्ष को उचित समय पर सत्ता का सहयोग करना होगा। साथ ही सत्ता पक्ष को भी विपक्ष के सुझावों पर ध्यान देना होगा।

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