Wednesday 27 July 2016

एक साल पहले कलाम की मौत पर इसलिए रोया था पूरा देश

आज से ठीक एक साल पहले देश ने अपने एक मजबूत स्तंभ को खो दिया था, देश के लिए यह एक अपूर्णीय क्षति थी। आज आपको अपने जीवन का एक अनकहा सच बताने जा रहा हूं। मेरे जीवन में एक दौर ऐसा भी था, जब मन के एक हिस्से में मुस्लिमों के प्रति दुर्भावना बसी हुई थी। यह दुर्भावना मेरे अध्ययन की कमी और कुछ हद तक कुसंगति के कारण थी। उस समय मेरी उम्र मुश्किल से 15-16 साल रही होगी। वह एक ऐसा समय था जब मैं ना ही उस संगठन के मूल विचार को समझता था जिससे मैं जुड़ा था और ना ही मैं हिन्दू शब्द की मूल परिकल्पना को समझता था। मैं अपने परिवार का एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो इस तरह की सोच रखता था। मेरी इस तरह की सोच के लिए पूरी तरह से मैं ही जिम्मेदार था क्योंकि मैं इस्लाम का प्रतिनिधि उन आतंकवादियों को मानने लगा था जो निर्दोषों की जान लेते हैं। 
उसी दौरान एक दिन मेरे बाबा जी ने मुझे कलाम साहब की जीवनी पढ़ने को दी, वह मेरे विचारों में परिवर्तन के लिए पर्याप्त थी। सिर्फ 3 दिन में मेरे विचारों में अद्भुत परिवर्तन आया। मेरे विचार बदल चुके थे, मेरे लिए इस्लाम की परिभाषा बदल चुकी थी और साथ ही उसका प्रतिनिधित्व करने वाले भी बदल चुके थे। मदरसे से पढ़कर निकला एक व्यक्ति राष्ट्र निर्माण में अपना अभूतपूर्व योगदान किस तरह से दे सकता है, इस बात को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्रमाणित किया था। तमिलनाडु जैसे स्थान पर रहने के बावजूद कलाम साहब शाकाहारी बन गए। यह कोई सामान्य बात नहीं है क्योंकि हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां कुछ मांसाहारी लोग यह तक कहते हैं कि जीव-जंतु तो खाने के लिए ही बने हैं और घास-फूस इंसानों के लिए नहीं बल्कि जानवरों के लिए है। अगर वे किसी ऐसे स्थान पर रह रहे होते जहां शाकाहारी भोजन की सुविधा उपलब्ध नहीं होती तो समझ में आता है लेकिन दिल्ली जैसी जगह पर ऐसी बातें करके वे क्या जताना चाहते हैं यह समझना मेरे जैसे ‘नासमझ’ के लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। खैर, यह उनकी व्यक्तिगत ‘चॉइस’ है लेकिन कलाम साहब ने जो किया उसे सामान्य श्रेणी में तो नहीं रखा जा सकता।
कलाम साहब की जीवनी में मैंने एक वाक्य पढ़ा। उस एक वाक्य को मैं अपने जीवन में प्रतिस्थापित करने का प्रयास कर रहा हूं। वाक्य था, ‘अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं। मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के मूल काम हमारी भाषाओं में आने शुरू हो जायेंगे, तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे…’ राष्ट्रभाषा के प्रति उनके समर्पण को देखकर उनके उद्देश्य को मूर्त रूप देने के लिए मैंने अपने स्तर पर प्रयास शुरू किया और अपने सभी कार्यों को हिंदी में करने का प्रयास आज भी करता रहता हूं।
डॉ. कलाम के व्यक्तित्व में आपको एक बच्चे की ईमानदारी, एक वयस्क की ऊर्जा, एक वयस्क की परिपक्वता और एक बुजुर्ग का अनुभव दिखाई देगा। भारत में राष्ट्रपति का पद, एक ऐसा पद होता है जिसका चुनाव सीधे आम जनमानस के द्वारा नहीं होता लेकिन संपूर्ण भारत में शायद ही कोई ऐसा हो जो कलाम साहब का विरोध करने की क्षमता और मानसिकता रखता हो। वह चाहते थे कि भारत विश्व पटल पर एक विशिष्ट पहचान के साथ विश्व शक्ति बनकर खड़ा हो, भारत ज्ञान के शक्ति पुंज के रूप में उभरे यानी भारत पूर्व की भांति विश्वगुरु के पद पर पुनः प्रतिस्थापित हो। उनको सच्ची श्रद्धांजलि देने की इच्छा रखने वालों के लिए अनिवार्यता है कि वे डॉ कलाम के स्वप्न को यथार्थ रूप देने के लिए एक साथ मिलकर राष्ट्रीय एकात्मता को आधारभूत स्तंभ मानते हुए एकजुट हों।
लेकिन इसमें एक समस्या है, हमारे समाज में, हमारे बीच में एक ऐसा वर्ग भी है जो भारत को ‘गाली’ देता है… उसे भारतीय संस्कृति और भारतीय परंपराओं में सिर्फ कमियां और खामियां नजर आती हैं। अब ऐसे लोगों की नकारात्मक सोच के साथ एक सकारात्मक स्वप्न को मूर्त रूप देना कैसे संभव हो पाएगा? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुताबिक, डॉ कलाम में दम (आत्म नियंत्रण), दान और दया का अनूठा संगम व्याप्त था। लेकिन संभव है कि वह ‘खास’ वर्ग इस बात का विरोध मात्र इसलिए करने लगे क्योंकि यह बात एक स्वयंसेवक राजनेता ने कही है। हमारा वह वर्ग कहता है कि संघ के प्रचारक अगर शादी करके बच्चे पैदा करते तो शायद देश के लिए ज्यादा बेहतर कर पाते लेकिन कलाम साहब ने भी तो बच्चे नहीं पैदा किए, तो क्या उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया? क्या सच में भारत और भारतीय संस्कृति के पास ऐसा कुछ भी नहीं था जिसके कारण लोग यहां शिक्षा और ज्ञान की लालसा के साथ आते थे? कुछ तो जरूर रहा होगा, उस ‘कुछ’ को तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। साहब, कलाम साहब ने भारत को ‘अग्नि’ संपन्न बनाया, उन्होंने भारत को उस स्थिति में ला दिया जहां से भारत विश्व शक्तियों की नजर से नजर मिलाकर बात कर सकता है, जहां से भारत पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिस्थापित होने के लिए प्रथम कदम बढ़ा रहा है।
जमीन से जुड़े उस व्यक्ति को, जिसने भारत को रॉकेट सफर करने का हौसला दिया, उसे मैं राष्ट्रवादी मानता हूं। मेरे राष्ट्रवाद की परिभाषा डॉ. कलाम से शुरू होकर उन पर ही समाप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति ने गीता और कुरान दोनों का अध्ययन किया हो उसे एक संप्रदाय विशेष से जोड़ना कहीं न कहीं बेईमानी लगता है। अपने व्यक्तिगत जीवन में मैंने भारत को परमाणु संपन्न बनाने वाले डॉक्टर अब्दुल कलाम से बहुत कुछ सीखा है और मैं चाहता हूं कि भारत का मुसलमान जाकिर नाईक ने समर्थन में खड़े होने से पहले एक बार डॉ. कलाम को अनिवार्य रूप से पढ़ें।

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