Monday 10 October 2016

...इसलिए जरूरी है चीनी सामान का बहिष्कार

एक तर्क दिया जा रहा है कि चीनी सामानों का बहिष्कार इसलिए ना करें क्योंकि बहुत से लोगों ने बिजनस के लिए इनसे अपने गोदाम भर लिए हैं, उनको नुकसान हो जाएगा। बहुत अच्छी बात है, समाज के बारे में सोचना चाहिए। हमारी जिम्मेदारी है कि हम किसी भी पक्ष का समर्थन करते समय समाज के अंतिम व्यक्ति तक की सुरक्षा एवं लाभ के विषय में चिंतन करें। लेकिन…

विश्व गौरव
इस ‘लेकिन’ के मायने क्या हैं, इस बात पर चिंता करने की आवश्यकता है। समाज के अंतिम व्यक्ति तक के बारे में सोचना हमारी जिम्मेदारी है लेकिन उसके साथ-साथ एक जिम्मेदारी राष्ट्र के प्रति भी है, देश के प्रति भी है, उन लोगों के प्रति भी है जो बिना अपनी जान की परवाह किए इसलिए सरहद पर खड़े रहते हैं ताकि आप दीवाली की रात अपने घर में पटाखों के शोर के बीच हाथ में शराब का गिलास लेकर गरीबों पर ज्ञान बांट सकें, उन परिवारों के प्रति भी हमारी कुछ जिम्मेदारी है जो हर दिवाली की रात बस एक ही दुआ मांगते हैं कि उनका बेटा सरहद पर खड़ा रहे।

आज देश में ऐसा माहौल बना है कि लोग कह रहे हैं कि कुछ महंगा सही लेकिन स्वदेशी सामान ही खरीदेंगे। इन परिस्थितियों में जब देश को स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता की सर्वाधिक आवश्यकता है, कुछ लोग कह रहे हैं कि जिन्होंने सामान खरीद कर गोदाम भर लिए हैं, उनका नुकसान हो जाएगा।

chineseबहुत स्पष्ट सी बात है कि हम सामान खरीदेंगे लेकिन वह किसी और से खरीदेंगे। अगर दिवाली पर चाइनीज लाइट्स की जगह मिट्टी के दीपक खरीदेंगे तो एक गरीब परिवार को आर्थिक लाभ भी होगा, उसकी भी दिवाली बन जाएगी और स्वदेशीकरण भी होगा। संभव है कि ऐसे में हमारे घर के पड़ोस में गुप्ता इलेक्ट्रिकल्स वालों का चाइनीज लाइट न बिकने के कारण कुछ नुकसान हो जाए लेकिन इस डर से क्या हम उन लोगों के बारे में भी ना सोचें जो धूप में बैठकर दिए बनाते हैं।

हमारा धन किसी जरूरतमंद के पास ही जा रहा है। और अगर कोई है जो सिर्फ यह चाहता है कि उसके घर में दिए नहीं बल्कि इलेक्ट्रिक लाइट्स ही जलें, तो वह भारतीय इलेक्ट्रिक लाइट्स का उपयोग भी कर सकता है। ऐसा नहीं है कि ये चीजें भारत में बनती नहीं हैं। संभव है कि वे थोड़ा सा महंगी पड़ें लेकिन राष्ट्र निर्माण में, राष्ट्र की आत्मनिर्भरता के लिए, राष्ट्र को फिर से विश्वगुरु के पद पर प्रतिस्थापित करने के लिए, गरीब और ‘बिछड़ों’ में उनके कार्य के प्रति आत्मविश्वास पैदा करने के लिए हम इसे अपने हिस्से का टैक्स मान सकते हैं।

हम इतना संघर्ष क्यों करें? यह सवाल मन में उठना लाजमी है। मैं बताता हूं आपको कम से कम शब्दों में….
lightsएक देश है जो उन लोगों को पाल रहा है, जो सीमा पार करके हमारे घर में घुसकर हमारे बेटों को मार कर चले जाते हैं। हम बहुत ही सहिष्णु देश हैं, हम पर बहुत दबाव है, युद्ध से हमें भी नुकसान होगा। इतना सब होने के बावजूद भी सत्ता का संचालन करने वाले लोगों को इस बात की चिंता तो करनी ही होगी कि इस बिगड़ैल देश का इलाज कैसे किया जाए। करनी भी चाहिए। सरकार ने कूटनीतिक चाल चलकर उस देश को दुनिया से ‘अलग-थलग’ करने का प्रयास किया। बड़े स्तर पर उसे सफलता भी मिली और इसके लिए उसकी पीठ भी ठोंकनी चाहिए कि उसने भारतहित में एक अच्छी विदेशनीति अपनाई। लेकिन इन सबके बीच एक देश है जो उस देश के साथ खड़ा दिख रहा है जिसकी आतंकवादियों के प्रति नीतियां, हमारे देश के बेटों की शहादत के लिए जिम्मेदार हैं। जो विश्व मंच पर सिर्फ एक ही ‘जुगाड़’ में लगा रहता है कि भारत को कैसे हराएं, ऐसे देश को हमें जवाब देना होगा। अगर वह देश ‘आतंक रहित विश्व’ रूपी भारत के स्वप्न को साकार होने में अड़ंगा लगा रहा है तो उसे जवाब देना ही होगा। और देना भी चाहिए।

इस बीच एक बात और बता दूं कि हमने चीन से सकारात्मक संबंध बनाने की बहुत कोशिश की, उनके प्रधान के साथ हमारे प्रधान ने चाय पी, झूला भी झूले। लेकिन उसने सोचा कि भारत पर कब्जा तो कर नहीं सकते, इसलिए पाकिस्तान पर ‘कब्जा’ करके उसे अपने हिसाब से चलाया जाए। चीन यह बात जानता है कि विश्व शक्ति बनने के लिए सबसे पहले उसे एशिया पर राज करना होगा और उसका यह स्वप्न तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक भारत को विश्व शक्ति बनने की दौड़ से न हटाया जाए। अपने सपने को साकार करने के लिए वह पाकिस्तान का सहारा ले रहा है।

अब आते हैं कि चीन को जवाब कैसे दिया जाए। युद्ध हम कर नहीं सकते क्योंकि हमारे देश के आंतरिक हालात वैसे नहीं हैं। ऐसे में चीन को जवाब देने का एक ही तरीका है कि चीन को आर्थिक स्तर पर कमजोर किया जाए। चीन को आर्थिक स्तर पर कमजोर करने का एक ही तरीका है कि उसके सबसे बड़े मार्केट को तहस-नहस कर दिया जाए। यदि भारतीय व्यक्ति चीनी सामान न खरीदकर भारतीय सामान खरीदेगा तो चीन का सबसे बड़ा बाजार बंद हो जाएगा। और उसके बाद चीन को पाकिस्तान का साथ छोड़ना ही होगा। लेकिन यह तभी संभव है जब हम इस काम को पूरी जिम्मेदारी के साथ एक राष्ट्रीय दायित्व के रूप में लें।

विश्वास मानिए, परिवर्तन हो रहा है। आज से 5 साल पहले तक भारत का प्रधान अपनी संसद में कहता था कि हम शांति चाहते हैं। लेकिन आज भारत कहता है कि हम आतंक को जवाब देते समय गोलियां नहीं गिनेंगे और पाकिस्तान का प्रधान कहता है, ‘हम शांति चाहते हैं।’ तो संकल्प करें कि आसानी से जितना संभव होगा, भारतीय सामान का ही उपयोग करेंगे। हो सकता है कि थोड़ी सी कठिनाई आए लेकिन मुझे लगता है कि राष्ट्रहित में इतना तो कर ही सकते हैं।

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