Wednesday 13 June 2018

रमजान में बेटी की 'कुर्बानी', इस मूर्खता के लिए जिम्मेदार कौन?


राजस्थान के जोधपुर जिले के पीपाड़ कस्बे में नवाब अली नामक शख्स ने अपनी चार साल की बेटी की हत्या (मजहबी लोग 'कुर्बानी' पढ़ें) कर दी। अली ने रमजान के पाक महीने में अल्लाह को खुश करने के लिए, उनकी रहमत पाने के लिए ऐसा किया। 'कुर्बानी' देने से पहले अली अपनी बेटी रिजवाना को मार्केट ले गया, उसे मिठाई दिलाई और फिर कुरान की आयतें पढ़ने के बाद धारदार हथियार से गला रेत दिया। पुलिस ने अली को गिरफ्तार कर लिया है। सोशल मीडिया पर बहुत से लोग अली को हत्यारा और भी न जाने क्या-क्या कह रहे हैं। लेकिन जरा सोचिए, आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? 

इस्लाम के मुताबिक, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया। हजरत इब्राहिम ने जब गहराई से सोचा तो पाया कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली, जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने बेटे को अपने सामने जिन्‍दा खड़ा हुआ देखा, बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (साउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है। लेकिन कुर्बानी अब अपनी सबसे प्यारी चीज की नहीं दी जाती है बल्कि किसी जानवर की दी जाती है, किसी बेजुबान जानवर की, उस जानवर की जिसकी कोई गलती नहीं। 

शायद ऐसा ही कुछ सोचकर अली ने अपनी 'सबसे प्यारी चीज' को कुर्बान कर दिया। लेकिन क्या हजरत इब्राहिम से जुड़ी घटना का उद्देश्य यही संदेश देना था? किसी भी बात को समझने के तरीके होते हैं। हजरत इब्राहीम की उस कुर्बानी में जो संदेश छिपा है, उसे समझने की जरूरत है। संदेश यह है कि इंसान पर अगर कभी ऐसी परीक्षा आ जाए, तो उसे हर कुर्बानी के लिए तैयार रहना चाहिए, उस समय उसके कदम लड़खड़ाएं नहीं। कुर्बानी की यह परीक्षा ईश्वर आपसे कहीं भी ले सकता है, चाहे वह परिवार के लिए हो, समाज के लिए हो, अपने देश के लिए हो या फिर किसी गैर के लिए ही क्यों न हो। और वैसे भी कुर्बानी का असल मतलब तो यही है ना कि दूसरों के लिए अपने सुखों का त्याग। लेकिन यहां तो जानवरों के परिवार को बर्बाद कर दिया जाता है, क्या उन्हें दुख नहीं होता, क्या उन्हें दर्द नहीं होता?

गोश्त, खून जैसी चीजें अल्लाह तक नहीं पहुंचतीं और ना ही उनसे किसी का फायदा होता है। हां, जानवरों को तकलीफ जरूर होती है। कुर्बानी के बाद गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इनमें एक हिस्सा गरीबों का भी होता है। क्या सारे गरीब मांसाहारी होते हैं? क्या उनका पेट किसी और चीज से नहीं भर सकता? परंपरा के नाम पर किसी जानवर की जान ले लेना किसी भी कुतर्क के साथ जायज नहीं ठहराया जा सकता। हजरत इब्राहिम से जुड़ी घटना से सीखने की जरूरत है, उस घटना में जो मेसेज छिपा है, उसे समझने की जरूरत है। 

राजस्थान के अली ने अपनी प्यारी बेटी की हत्या कर दी लेकिन क्या हजरत इब्राहीम के बेटे की तरह रिजवाना को उसका परिवार जिंदा देख पाएगा? मुसलमान ही क्यों, हिंदुओं में भी अगर वैदिककालीन किसी घटना को आधार बनाकर वैसा ही किया जाए तो क्या उसे सही मान लिया जाएगा? मान लीजिए, एक व्यक्ति बात सुनकर एक पति के रूप में श्रीराम ने माता सीता का परित्याग कर दिया। ऐसे ही अगर किसी के कह देने भर से, कोई निराधार आरोप लगा देने भर से कोई पति अपनी पत्नी को छोड़ दे तो क्या उसे सही ठहराएंगे? ऐसा करने पर क्या वह व्यक्ति 'राम' के समतुल्य हो जाएगा। इन कथानकों के पीछे छिपे रहस्य और तत्कालीन कर्मों का आज के लिए क्या संदेश देने का उद्देश्य था, उसे समझना होगा। 

अली ने उस मासूम के साथ जो किया, उसमें जितनी गलती उसकी है, उससे कहीं ज्यादा गलती उन लोगों की है जो इस्लाम के ठेकेदार बनते हैं। अली से ज्यादा गलती उन मुल्ला, मौलवी और इमामों की है जिनपर आम लोगों को 'इस्लाम' समझाने की जिम्मेदारी है। इस घृणित और मानवताविहीन कुकृत्य के लिए जितना बड़ा अपराधी अली है, उतना ही बड़ा अपराध इस्लाम के ठेकेदारों का भी है और उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

वह समय दूसरा था, आज का समय अलग है। अगर कुर्बानी देनी है तो अपने उस सर्वाधिक प्रिय दुर्गुण की दीजिए जिससे दूसरों को समस्या होती है, परेशानी होती है। अपना अहंकार छोड़िए, महिलाओं को पैर की जूती समझना बंद करिए, लोगों को उनके हिसाब से जीने दीजिए, अपने फैसले को दूसरों पर थोपना बंद करिए, अपनी जीभ के स्वाद के लिए दूसरों की जान लेना बंद करिए, और तब कहिए कि कुर्बानी दी है...

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...