Tuesday 18 August 2015

संघ की मूल अनुभूति...


राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जिसे आर.एस.एस (R.S.S.) जाना जाता है ।मुझे नही लगता कि किसी को संघ की पहचान बताने की जरूरत है। आज यह कहना ही उचित होगा कि इसके आलोचक ही इसकी मुख्य पहचान है। जब आलोचक संघ की कटु आलोचना करते नज़र आते है तब तब संघ और मजबूत होता हुआ दिखाई पड़ता है। छद्म धर्मनिरपेक्षवादी लोगों को यही लगता है कि भारत उन्ही के भरोसे चल रहा होता है किन्‍तु जानकर भी पागलो की भांति हरकत करते है जैसे उन्‍हे पता ही न हो कि संघ की वास्‍तविक गतिविधि क्‍या है ?

संघ के बारे थोड़ा बताना चाहूँगा उन धर्मनिरपेक्ष बंदरो को जो अपने आकाओ के इसारे पर नाचने की हमेशा नाटक करते रहते है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्‍थापना सन् 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्‍थान पर डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर जी ने की थी। संघ के 5 स्‍वयंसेवको के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5 स्‍वयंसेवक आज करोड़ो स्‍वयंसेवको के रूप में हमारे समाने है। संघ की विचार धारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है। कुछ लोग संघ की सोच को राष्ट्र विरोधी मानते है क्‍योकि उनका काम ही है यह मानना, नही मानेगे तो उनकी राजनीतिक गतिविधि खत्‍म हो जाती है।



राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि 'एक देश में दो दप्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' बात सही भी है। जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र मे बाधा गया है तो धर्म के नाम पर कानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सामप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है। अगर देश के समस्‍त नागरिको के लिये एक नियम की बात करना साम्प्रदायिकता है तो मेरी नज़र में इस साम्प्रदायिकता से बड़ी देशभक्ति और नही हो सकती है।



संघ ने हमेशा कई मोर्चो पर अपने आपको स्‍थापित किया है। राष्ट्रीय आपदा के समय संघ का स्यंवसेवक यह नहीं देखता‍ कि आपदा मे फंसा हुआ व्‍यक्ति किस पूजा पद्धति को मानने वाला है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है कि आपदा मे फसा हुआ अमुख भारत माता का बेटा है। गुजरात में आए भूकम्प और सुनामी जैसी घटनाओं के समय सबसे आगे अगर किसी ने निःस्वार्थ भाव से कार्य किया तो वह संघ का स्‍वयंसेवक था। संघ के प्रकल्पों ने देश को नई गति दी है। दीन दयाल शोध संस्थान ने गांवों को स्वावलंबी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। संघ के इस संस्‍थान ने अपनी योजना के अंतगत करीब 80 गांवों में यह लक्ष्य हासिल कर लिया और करीब 500 गांवों तक विस्‍तार किया जाना है। दीन दयाल शोध संस्थान के इस प्रकल्प में संघ के हजारों स्‍वयंसेवक बिना कोई वेतन लिए मिशन मानकर अपने अभियान मे लगे हैं। सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र में संघ के विभिन्‍न अनुसांगिक संगठनों राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मजदूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित ऐसे संगठन कार्यरत है जो करीब 1 लाख प्रकल्‍पों को चला रहे है।



संघ की प्रार्थना भी भारत माता की शान को चार चाँद लगता है, संघ की प्रार्थना की एक एक लाईन राष्‍ट्र के प्रति अपनी सच्‍ची श्रद्धा प्रस्‍तुत करती है। संघ को गाली देने से संघ का कुछ बिगड़ने वाला नही है अप‍ितु गंदे लोगो की जुब़ान की गन्‍दगी ही परिलक्षित होती है।


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