Friday 14 August 2015

क्या करें ऐसी आजादी का...

" हुआ हुक्म जब फांसी का तो भगत सिंह यूँ मुस्काया
बोला माँ अब गले लगा लो मुद्दत में मौक़ा आया
तख़्ते फाँसी कूंच पेजब क़दमों की आहट आती थी
तो दीवारें भी झूम-झूम कर वंदेमातरम् गाती थीं
चूम के फाँसी का फन्दा जब इंक़लाब वो बोला था
काँप उठी थी वसुंधरा अंग्रेज़ी शासन डोला था
आख़िर बोला यही वसीयत ऐ रखवाले करता हूँ
माँ की लाज बचा लेना अब तुम्हे हवाले करता हूँ
आओ तुमको इंक़लाब की ताक़त मैं दिखलाता हूँ
छोड़ दिए तुमने जो पन्ने उनकी याद दिलाता हूँ ।"
-शहनाज हिन्दुस्तानी


एक बार फिर देश तैयार है 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस की एक और वर्षगांठ मनाने के लिए। हम सिर्फ यह कह-सुन कर आपस में खुश हो लेते हैं कि हम आजाद हैं, लेकिन सच में हम कितना आजाद हैं, यह तो हमारा दिल ही जानता है। यही वजह है कि आजादी का आंदोलन देख चुकी हमारी बुजुर्ग पीढ़ी बड़े सहज भाव में कहती सुनाई देती है कि इससे तो अंग्रेजों का राज अच्छा था।



वस्तुत: हमारी आजादी आधी अधूरी ही है। इसकी वजह ये है कि हम 15 अगस्त 1947 को अग्रेजों की दासता से तो मुक्त हो गए, मगर जैसी शासन व्यवस्था है, उसमें अब हम अपनों की ही दासता में जीने को विवश हैं। आज हम किस बात पर गर्व करें, सत्ता के सिंहासन के पैर की जूती बन चुकी व्यवस्था पर या अंग्रेजों द्वारा भारत को बर्बाद करने के लिए बनाए गए कानूनों पर जो आज भी हमारे गले में लटके हुए हैं, या इस बात पर कि इस देश का युवा को 14 नवंबर और 30 जनवरी तो याद है लेकिन 27 सितंबर नहीं।

मित्रों आज एक बार फिर रोने का मन कर रहा है। बहुत से लोग अधिकारों की बात करते हुए दिख जाते हैं। हमारे संविधान ने हमको बहुत से अधिकार दे रखे हैं, जैसे.....
1. किसी के भी मुंह पर कालिख फेंकने की आजादी
2. किसी के भी ऊपर जूता फेंकने की आजादी
3. किसी को भी गलियां देने की आजादी
4. कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा फहराने देने की आजादी
5. आतंकवादियों को अपने दामाद की तरह पूरी सुरक्षा और इज्ज़त के साथ रखने की आज़ादी
6. सरबजीत जैसे देशभक्त को आतंकवादी बताने और अफजल गुरु जैसे आतंकवादी को फांसी नहीं होने देने की आजादी
7. शांति और अहिंसक तरीकों से आन्दोलन करने वालो को बिना कारण के जेलों में ठूंसने की आजादी
8. अरबों रुपयों का भ्रष्टाचार करके सीना तान के खड़े रहने की आजादी
9. भारत के साधू संतो और भगवानों का अपमान करने की आजादी
10. सिख जैसी देशभक्त कौम पर गंदे गंदे चुटकुले बनाने की आजादी
11. सरकारी दफ्तरों मैं काम नहीं करने और आराम से रिश्वत लेकर काम करने की आजादी
ऐसी बहुत सी आजादी हमें हमारे संविधान ने दे रखी हैं।
क्या हमारे महान क्रांतिकारियों ने ऐसे भारत के लिए कुर्बानियाँ दी थी ???

दरअसल, अब हम एक ऐसी परंतत्रता में जी रहे हैं, जिसके खिलाफ अब दोबारा संघर्ष की जरूरत है। हमें अगर पूरी आजादी चाहिए, तो हमें एक और स्वाधीनता संग्राम के लिये तैयार हो जाना चाहिये। यह स्वाधीनता संग्राम जमाखोरों, कालाबाजारियों के खिलाफ होना चाहिए। यह संग्राम भ्रष्टाचारियों से लड़ा जाना चाहिए। यह संग्राम चोर, उचक्कों, लुटेरों और ठगों के खिलाफ छेड़ा जाना चाहिये। यह संग्राम देश को खोखला कर रहे सत्ता व स्वार्थलोलुप नेताओ के विरुद्ध लड़ा जाना चाहिए।
हर भारतीय की इच्छा है कि आजादी केवल किताबों और शब्दों में ही नहीं, बल्कि धरातल पर भी दिखनी चाहिये। हमें भगत सिंह के सपनों का भारत चाहिए। हमें देश के महान क्रांतिकारियों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है। विडंबना यह है कि हम आजादी के पर्व पर इन तथ्यों पर जरा भी चिंतन नहीं करते। हम सिर्फ इस दिन रस्म अदायगी करते हैं। सुबह झंडा फहरा कर और बड़े-बड़े भाषण देकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और दूसरे ही दिन पुराने ढर्ऱे वाली आपाधापी में व्यस्त हो जाते हैं।

देश तो बनता है संस्कृति ,परंपराओं और देश के निवासियों की असंदिग्ध निष्ठा से, पर देश के निवासियों में सर्वप्रथम निष्ठा तो जाति धर्म के प्रति प्रतीत होती है। सांस इस देश में भरते है गुणगान विदेश का करते हैं। ये कैसा राष्ट्र प्रेम है? इस मनोदशा को बदलना होगा समृद्धशाली और सामर्थ्यवान भारत की रचना करनी होगी। स्वतंत्र भारत के 69 सालों के बाद भी गौरवमयी इतिहास पर खून के धब्बे आज भी विराजमान हैं, कुछ कराहते हैं, आज भी जीवनयापन के साथ आत्मसम्मान के लिये संघर्षरत हैं, जिनकी कराह देश की नींद में दाखिल है परंतु सत्ताधीशों की नींद नहीं टूट रही है।

महोदय अब मत करिए कुछ ऐसा कि खुद से भी नजर मिला पाओ। देश के लिए सिर्फ एक दिन ही नहीं है, हर दिन, हर पल है देश के लिए और देशवासियों के लिए...
अपने अधिकार ही नहीं कर्तव्यों को भी समझें
देश को तोड़ने वाले तत्त्वों से बचें और आजादी की उड़ान भरें अपने आजाद विचारों के साथ...
वन्दे भारती

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