Wednesday 22 October 2014

एक सन्देश अपने अनदेखे अनजाने मित्रों के नाम....

मित्रों आप सभी का प्यार मुझे मेरे लेखन की वजह से मिला ऐसा मैं नहीं मानता ....मेरे विचार आपके विचारों से मिलते हैं इसी नाते आप सभी मुझे पसंद करते हैं ....आप सभी के मेल मुझे मिलते रहते हैं लेकिन सभी को व्यक्तिगत रूप से उत्तर दे पाना संभव नहीं...इसलिए सार्वजनिक रूप से लिख रहा हूँ...नागपुर के अविरल जी , लखनऊ के शुशांत जी,भुवनेश्वर के कार्तिकेय जी का विशेष रूप से धन्यवाद् ....आप तीनों ने मुझे बहुत शक्ति प्रदान की ...मेरे मन के भावों को समझकर एक समाधान देने का प्रयास किया ...यदि ईश्वर ने चाहा तो एक बार आप से अवश्य मिलूँगा....
मित्रों मुझे पता है मैं बदल गया हूँ , पहले राष्ट्रवाद और सिर्फ राष्ट्रवाद की बात करने वाला व्यक्ति प्रेम पर कैसे लिखने लगा उसका एक मात्र कारण है कि 2 महींने में प्रेम को मुझे बहुत करीब से समझने का अवसर मिला लेकिन अपने लक्ष्य को मैं भूला नहीं हूँ...बल्कि और भी अधिक तन्मयता के साथ प्रयासरत हूँ ....प्रेम जीवन का एक ऐसा विषय है जिसमे सिर्फ थ्योरी की क्लास चलती है.....उसी क्लास में कुछ नया सीखने का प्रयास कर रहा हूँ.....

अभी कल एक अन्य मित्र वत्सल जी का मेल आया कि मैं दोस्ती पर अपने कुछ अनुभव शेयर करूँ....
पिछले तीन दिनों में मित्रता में कुछ अलग हुआ है मेरे साथ उसी को अपने अगले ब्लॉग में लिखने का प्रयास करूँगा....

एक अंतिम बात मैं शब्द नहीं भावनाएं लिखता हूँ इस नाते उन भावनाओं का आप सभी सम्मान करेंगे यही आशा और अपेक्षा है ....
वन्दे भारती

ई-मेल  ---   rss.gaurav@gmail.com

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