कॉलेज की तरफ से जामिया
मीलिया इस्लामिया में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की वाद विवाद प्रतियोगिता में कॉलेज का
प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला तो मन में बस एक ही प्रश्न था कि विषय क्या होगा?
हालाँकि किसी भी विषय पर बोलना मुश्किल नहीं था लेकिन यदि विषय मन का मिल जाए तो
बात ही कुछ और होती है....खैर कुछ समय के बाद विषय भी पता चल गया ,विषय था – ‘नैतिक
एवं सामाजिक मूल्यों के संरक्षण के लिए सेंसरशिप आवश्यक है’....मेरी इच्छा थी कि
मैं विषय के विपक्ष में बोलूं लेकिन कॉलेज के द्वारा चयनित दुसरे प्रतिभागी कि
इच्छानुरूप मेरा विपक्ष में बोलना तय हुआ..मुझे ख़ुशी थी कि एक राष्ट्रीय मंच से
मैं कुछ बोलूँगा लेकिन उससे ज्यादा ख़ुशी थी कि श्रोताओं में वो व्यक्ति भी होगा जिसके
उपस्थित होने मात्र से ही मुझमें ऊर्जा प्रवाह बढ़ जाता है....मेरी क्वीन (काल्पनिक
नाम) मेरी नजरों के सामने होगी यह सोचकर ही मैं अपने वक्तव्य के लिए तैयारी करने लगा...पिछले
5 सालों में पहली बार मैं भाषण के लिए तैयारी कर रहा था ...रात भर अनेकों वक्ताओं
को सुना ...2 दिनों कि मेहनत के बाद 7 पेज के नोट्स तैयार किए....शायद ये अपने लिए
नहीं,कॉलेज के लिए नहीं ,बस एक इन्सान को इम्प्रेस करने के लिए कर रहा था....
लेकिन हमेशा मन का चाहा
कहाँ होता है....प्रतियोगिता से पहले वाली रात मेरी क्वीन ने बताया कि वो नहीं आ
सकती शायद तबियत ख़राब थी उसकी या सच में तबियत ख़राब थी .....मुझे पता था अब मैं मन
से नहीं बोल पाउँगा लेकिन अपने नोट्स के साथ अगले दिन सुबह 8 बजे मैं जामिया मिलिया
इस्लामिया के परिसर में था....मैं बार बार अपने नोट्स पलट कर देख रहा था पता नहीं
क्यों एक अजीब सा डर था मन में....ये बात मैं किसी से भी नहीं कह सकता था...शायद
इस लिए क्यों कि मुझे लगता था कि शायद कोई समझ ही ना पाए....खैर शाम 5 बजे मेरे
कॉलेज का नंबर आया ...मैं अब मंच पर था और नीचे मेरे गुरुदेव....मंच पर पहुँचते ही
मेरे चेहरे पर हसीं तो थी लेकिन मैं खुश नहीं था ....मेरा दिमाग एकदम खाली हो चूका
था ....मेरा दिल बस यही कह रहा था कि काश मेरी क्वीन यहाँ होती ये जानते हुए कि ये
संभव नहीं था...मेरे विपक्षी वक्ता के वक्तव्य के बाद जब मैंने बोलना शुरू किया तो
बस वही बोला जो मन में आया....ये पहला मौका था जब मैं हताशा में बोल रहा था...5
मिनट पूरे होने के बाद जब मैं मंच से नीचे आया तो अचानक से एक बात की ख़ुशी हुई कि
चलो कुछ रटा रटाया नहीं बोला....
मैं अपनी मुहब्बत का शिकवा उससे कैसे कँरु, मुहब्बत तो
मैंने की है वो तो बेकसूर हो !
अगले दिन ना चाहते हुए भी
मै जामिया में था....अपने लिए नहीं किसी और के लिए....हां अपनी क्वीन के लिए...शाम
को जब विजेताओं की घोषणा होने का समय आया तो मुझे पता था कि वाद विवाद में कॉलेज
का कोई स्थान नहीं आने वाला...क्यों कि ये पुरुस्कार टीम (पक्ष + विपक्ष) को जाने
वाला था ,और ना मैं मन से बोल पाया था और ना ही मेरे विपक्षी वक्ता....मैंने पहली
बार अपने विपक्षी वक्ता रुपेश को नर्वस देखा था...हम दोनों ना एक दुसरे से संतुष्ट
थे और ना खुद से ....लेकिन अचानक घोषणा हुई कि तृतीय पुरस्कार हमारे कॉलेज को गया
है ....बिना उम्मीद के जब कुछ मिलता है तो ज्यादा ख़ुशी होती है....मंच पर ndtv के वरिष्ठ
पत्रकार अभिज्ञान प्रकाश थे...पुरस्कार लेकर मैं नीचे आया ....परिसर को उस
प्रतियोगिता में पहली बार कोई पुरस्कार मिला था....नीचे कुछ परिचित और कुछ अपरिचित
मित्र बधाई दे रहे थे....मेरे चेहरे पर बनावटी मुस्कराहट थी....अपनी सीट पर बैठ कर
जैसे ही मैंने अपना नेट ऑन किया तुरंत मेरी नजर watsapp पर आए संदेशों पर गई
....क्वीन का बधाई सन्देश था.....वो वहीं पर थी और ये सन्देश मुझे खुश करने के लिए
पर्याप्त था...
मैं उससे नहीं कह पाया कि
अगर एक दिन पहले भी वो वहां होती तो मैं ज्यादा अच्छा बोलता....उसका उस दिन वहां
ना होना शायद मेरे किसी बुरे कर्म का नतीजा था....
वो कहते हैं सोच लेना था प्यार करने से पहले। अब उनको कौन
समझाए सोच कर तो साजिश की जाती हैं प्यार नहीं...!!
जीवन में कुछ
शाश्वत सत्य ऐसे होते हैं जिनकी अनुभूति हम नहीं करना चाहते , क्यों की हम
जानते हैं की उनकी अनुभूति से पीड़ा होगी.....लेकिन समय की वीरता के आगे
हमारी एक नहीं चलती और नपुंसकों की भांति खड़े होकर एक नया अनुभव हम
प्राप्त करते हैं ....
झूठ अगर ये हैं की तुम मेरे हो, तो यकीन मानो
सच मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता.....
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