Saturday 28 March 2015

मेरे होने की वजह तुम हो....

अपने परिवार एवं उस लड़की को समर्पित जिसने मुझे सही रास्ते पर ला दिया
“इंडियाज डॉटर को बनाना नारीत्व का अपमान है” विषय पर दिल्ली के सत्यवती कॉलेज में आयोजित वाद विवाद प्रतियोगिता में सदन के समक्ष अपना विषय रखने के बाद अपने जीवन में कुछ बातें पहली बार समझ में आयीं....हमेशा कि तरह मैंने अपना विषय रखने के लिए कुछ नोट्स बनाए लेकिन हमेशा कि तरह ही मैं बस वो बोल पाया जो दिल में आया....
आज मुझे एहसास हुआ कि आखिर मेरी इस स्थिति में अहम् योगदान किस-किसका है....
मुझे याद है बचपन में जब मैं 5 साल का था तब मेरे घर में गाय थी मुझे मेरी माँ कहती थी कि बेटा गाय हमारी माता है जाओ और उसके पैर छुवो...बिना गौ माता के चरण स्पर्श के मुझे कुछ भी खाने को नही दिया जाता था....मेरे घर में मात्र रविवार को मुझे टीवी देखने दी जाती थी जब सुबह श्री कृष्णा आता था....उस समय एक कार्यक्रम आता था चित्रहार....मेरी बुआ जी उस कार्यक्रम की बहुत शौक़ीन थी लेकिन मुझे कभी गाने नहीं सुनने दिए गये ....मुझे फ़िल्में नहीं देखने दी जाती थी....कभी कभी चोरी छुपे मैं दूसरों के घर पर फिल्म देखने चला जाता था लेकिन यदि घर पर पता लग जाता था तो मार भी पड़ती थी....मैंने 15 साल कि उम्र तक कोई फिल्म पूरी नहीं देखी....उस समय बहुत बुरा लगता था जब मेरे घर पर मेरे बाबा जी मुझे विभिन्न धारावाहिक एवं फ़िल्में देखने से मना करते थे लेकिन आज मुझे लगता है कि यदि मेरे पिता जी ने भी मुझे फिल्मे दिखाई होती तो मैं भी आज के समय के यो-यो टाइप कूल डूड्स कि तरह कमर के नीचे से जींस पहनकर और गर्दन पर टैटू गुदवाकर घूम रहा होता....
जब मैं छोटा था तो माँ ने सिखाया था कि किसी लड़की के अगर, पैर लग जाए तो तुरंत उसके पैर छूना, क्योंकि लड़की देवी, का रूप होती है ! जब माँ दोनों नवरात्रों में कन्यायों को बुलाकर, उनके पैर पूजती थी तो उसकी सिखाई बात अन्दर तक चली जाती थी ! पड़ोस की सब औरतें हमारे लिए चाची, ताई, बुआ और दादी, हुआ करती थीं ! शिशु मंदिर में पढने गए तो वहां भी सब लड़कियां, बहनें थीं जो राखी भी बांधती थीं ! बड़े हुए तो घर में दूरदर्शन पर रामायण जैसा धारावाहिक देखने, को मिलता था, ना कि चिकनी चमेली और फेविकोल ! बाबा जी रोज शाम को धर्म, अध्यात्म और नैतिकता की चर्चा, करते थे जिससे संस्कार मन में बैठते चले गए ! मर्यादा का पाठ घर में हर रोज ही पढाया जाता था ! परिणाम ये हुआ कि स्त्री का सम्मान जीवन का भाग बन गया, जिसके लिए अलग से कुछ सोचने की जरुरत नही पड़ती थी ! शाखा में मिले संस्कारों ने घर के संस्कारों को और प्रगाढ़ किया ! कई बार पूछते थे घर पर कि इतने नियम कायदे क्यों तो, जवाब मिलता था कि ये मर्यादाएं हैं जिनका पालन करना ही, होगा क्योंकि हम भारत में रहते हैं, इंग्लैण्ड में नहीं ! सच में यही भारत था, जहाँ संस्कार कूट कूट कर भरा जाता था , बचपन से ! इसका गाँव या शहर से नहीं बल्कि मूल्यों के, होने या ना होने से सम्बन्ध है ! पर अब हम वहां आ गए हैं, जहाँ ना भारत की बात की जा सकती है और ना मर्यादा की, और जो ऐसा करता है, वो पिछड़ा, दकियानूसी, रूढ़िवादी और जाहिल है ! स्वागत है आपका इंडिया में जहाँ मर्यादायों की नहीं, नंगई की बात की जाती है...
ये सब पढ़कर बिलकुल भी ये मत सोचियेगा कि मैं बचपन से आज तक ऐसा ही रहा....कक्षा 12 के बाद मेरे जीवन में बहुत सी लड़कियां आयीं शायद  इस लिए कि मैं लखनऊ कि चकाचौंध में अपने संस्कारों को भूल गया था....लेकिन एक बार फिर मुझे संभाला गया....निर्देशित रूप से नहीं....जी हाँ बिना रोक टोक के अचानक से मझे स्वयं से लगा कि मैं वो क्यों बनूँ जैसे दुसरे हैं....ऐसा तब हुआ जब मुझे प्यार हुआ....वो प्यार जो सिर्फ एक एहसास होता है....मुझे नहीं पता कि वो मेरे विषय में क्या सोचती है लेकिन उसके प्रति पता नहीं कैसे मेरे मन में ऐसा समर्पण आया कि किसी और के विषय में सोचने की इच्छा ही नहीं हुई....प्रत्येक लड़की में अपनी बहन के स्वरुप को देखकर अपनी मानसिकता को एक बार फिर अपने संस्कारों से जोड़ दिया ....
मेरे परिवार के संस्कारों को अनजाने में ही सही लेकिन उन्हें ठीक प्रकार से पुष्पित और पल्लवित करने में तुम्हारा भी अहम् योगदान रहा है......

मुझे पता है मैंने अपने जीवन में कुछ अक्षम्य गलतियाँ की हैं लेकिन आज मैं जो कुछ भी बोलता हूँ उसको पहले स्वयं पर लागू करता हूँ ......एक बार फिर से मुझे ऐसा विशिष्ट जीवन देने वाले पूज्य परिवार के सभी सदस्यों एवं मेरी क्वीन को धन्यवाद् ...

तेरे जाने का असर कुछ इस कदर हुआ मुझ पर 
कि तुझे ढूंढते ढूंढते खुद को पा लिया।

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