Saturday, 20 June 2015

कुछ लिखते लिखते भटक गया

20 जून, मेरी ज़िन्दगी का बेहद खास दिन
एक ऐसा दिन जब मैं इस धरती पर आया।कभी कभी मैं सोचता हूँ कि उस दिन से आज तक कितना कुछ सिखा दिया इन 23 सालों ने।

मेरे लिए 20 जून से ज्यादा 19 की रात महत्त्व रखती है। क्यों कि उस रात किसी न किसी ऐसे व्यक्ति का फोन जरूर आता है जिससे आपको अपेक्षा न हो।
हो सकता है कि आपके साथ ऐसा न होता हो लेकिन मेरे साथ होता है।

इस बार भी 19 की रात कुछ खास बन जाए बस यही सोच रहा था और अपने सबसे अच्छे दोस्त को याद कर रहा था कि आज पहली कॉल उसी की आएगी। लेकिन सच कुछ और होने वाला था । मैं शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त नही कर सकता कि आज मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ।और ऐसी स्थिति का कारण भी है वो कारण ये कि 28 अगस्त की रात को मैं जो महसूस कर रहा था वो शायद कभी नहीं कर पाउँगा।उस रात मैं खुद रोते हुए किसी को हँसाने की कोसिस कर रहा था।और 19 जून की रात कोई मुझसे सामने खड़े होकर बात करने वाला भी नहीं था।
क्या किया था 28 की रात को उसे सोचकर आज भी रो देता हूँ।
खैर यही तो नए नए अनुभव मिले अब तक के जीवन में।सुबह या यूँ कहें अभी ये सोचा कि ये सब मैं क्यों लिख रहा हूँ और क्यों अपने दिमाग को उन बातों तक ले जा रहा हूँ? क्यों सोचता हूँ इसका जवाब तो नहीं है लेकिन एक सच ये भी है कि क्या अपने स्वाभिमान और सिद्धांतों से समझौता करते हुए उस व्यक्ति से बात करना मैं पसंद करूँगा।
नहीं मैं नहीं चाहता कि वो अब मुझसे बात करे। क्यों कि उस श्रेणी के लोगों को मैं अपने जीवन में स्थान देना नहीं चाहता।
मुझे ऐसा लग रहा है आज उसने इस विषय में चर्चा अवश्य की होगी लेकिन यदि ईश्वर ने नहीं चाहा है तो उससे बात करना भी मेरे सिद्धांतों से समझौता करना होगा।

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