Monday, 1 June 2015

वजह तुम हो

सिर्फ तुम ही तो हो जो जान सकती हो कि मैं कैसे जी रहा हूँ
आखिरकार तुमने ही दिया है ये रूप मेरे जीवन को 
तुम्हीं से पाई मैंने बेजोड़ कला 
अपने सच को झूठ में बदल देने की !
सब तुम्हारी सौगातें ही तो हैं मेरे पास 
ये आंसू , ये आहें ये गुमनाम राहें
और आज हैरत में हूँ दुनिया का सबसे खूबसूरत असत्य पढ़कर 
तुम कर रही हो खुदकुशी किश्तों में ! बेजार हो जीवन से !! 
जबकि हकीकत ये है के तुम खेल रही हो खुशियों से
 और हम डूब गए हैं आहों में .......
एक सवाल है तुमसे अगर कभी बात चली गुनाहगारों की तो तुमसे आईना कैसे देखा जाएगा ?
कैसे तुम उस वक्त खुद से नजर मिला पाओगी

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