Monday 27 July 2015

एक मांग पीएम मोदी के नाम

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के समय चलने वाले सिक्कों पर ॐ हुआ करता था क्योंकि उनको पता था कि भारत का आधार भारत की संस्कृति है तथा भारत की संस्कृति का आधार आध्यात्म है। कंपनी की सरकार ने अपनी महारानी की फोटो के भी सिक्के चलाए लेकिन श्री राम, हनुमान और गणेश जी से दूर नहीं हो पाए।


एक बार कल्पना करिए कि आज के समय में अगर सिक्कों पर भगवान् श्रीराम लक्ष्मण जानकी जी और हनुमान जी के चित्र हों तो देश में क्या होगा। देश की तथाकथित स्वतंत्रता के बाद हमने अपनी विरासत को गंवाया और तो और हमने देश की सत्ता उनके हाथों में दी जिनको इस देश की संस्कृति से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था।

कभी कभी लगता है ऐसी आज़ादी से तो अच्छा था कि हम गुलाम रहते लेकिन फिर सोचता हूं कि देश की ऐसी स्थिति के लिए मूल रूप से तो हम ही जिम्मेदार हैं, हम ही तो चुनते हैं सरकार.... हम ही तो चलाते हैं सिस्टम....

मात्र नेताओं को गाली देने से कुछ नहीं होगा..हमें बोलना पड़ेगा....हमें ये बताना पड़ेगा कि हम चाहते हैं कि देश फिर से विश्व गुरू बने...पिछले लोकसभा चुनाव में एक उम्मीद के साथ हम सभी ने देश की सत्ता का संचालन एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में दिया जो कहता था कि देश नहीं झुकने दिया जाएगा, इतनी जल्दी उसका विरोध करना  भी ठीक नहीं। लेकिन हमारा शांत बैठना भी तो ठीक नहीं है।

मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं कि 1000 रुपए के नोट पर महात्मा गांधी का चित्र रहता है, निश्चित रूप से देश हित में उनका भी योगदान रहा है...लेकिन मेरा मूल विषय यह है कि यदि 1000 रुपए के नोट पर महात्मा गांधी का चित्र हो सकता है तो 500 रुपए के नोट पर चन्द्रशेखर आजाद का , 100 रुपए के नोट पर भगत सिंह का, 50 रुपए के नोट पर रानी लक्ष्मीबाई का चित्र क्यों नहीं हो सकता। क्या देश की स्वतंत्रता में इनका कोई योगदान नहीं था? और यह प्रश्न मैं आज अपने इस ब्लॉग के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री महोदय से पूछना चाहता हूं। हो सकता है भगवान् श्रीराम को आप एक वर्ग विशेष का मानते हों, हो सकता है कि तथाकथित सांप्रदायिक सौहार्द के संरक्षण के लिए आप श्रीराम का चित्र सिक्कों पर न छपवा सकते हों लेकिन मैं इतना तो मानकर चल रहा हूं कि आप कांग्रेस सरकार की भांति हमारे शहीदों को आतंकवादी तो नहीं मानते होंगे.....

वन्दे भारती

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...