दो दिन पूर्व फ्रेंडशिप डे के विरोध में एक ब्लॉग लिखा, जिन्होंने उसे पढ़ा उन्होंने उसका समर्थन किया, लेकिन एक बुद्धजीवी वर्ग ऐसा भी था जिसने बिना ब्लॉग पढ़े, अथवा आंशिक रूप से पढ़कर आधारहीन तथा तथ्यहीन मैसेज करना शुरू कर दिया। मेरा विषय स्पष्ट था कि मित्रता का व्यापार नहीं होना चाहिए और मैंने मात्र फ्रेंडशिप डे का विरोध नहीं किया था अपितु 'चॉकलेट-डे', 'टेडी-डे', 'फादर्स-डे', 'मदर्स-डे', 'वेलेन्टाइन-डे, आदि फालतू के दिनों का विरोध किया था।
जिन वामपंथी एवं पाश्चात्य सभ्यता के संवाहक मित्रों ने मेरे विषय का विरोध किया उनके बेकार के संदेशों का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मुझे मूल पीड़ा हुई उन लोगों के संदेशों से जो स्वयं को संस्कृति का संवाहक कहते थे, खुद को संघ का बहुत बड़ा स्वयंसेवक कहते थे। उन लोगों ने फ्रेंडशिप डे की शुभकामनाएं न देकर मैत्री दिवस/ मित्रता दिवस की शुभकामनाएं दीं। वो संस्कृति के तथाकथित संवाहक एक दिन पहले 1 अगस्त को लोकमान्य बाल गंगाधर की पुण्यतिथि पर एक शोक संदेश भी न भेज पाए। पीड़ा इस बात की नहीं वो मैत्री दिवस अथवा मित्रता दिवस की शुभकामनाएं दे रहे थे, पीड़ा इस बात की है वो परम पवित्र भारत वर्ष को स्वतंत्र करने वाले, देश में स्वदेशी आंदोलन के जनक को फ्रेंडशिप डे की तैयारियों के कारण भूल गए।
और तो और वो मित्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने वाले पिंगली वेंकैय्या का जन्मदिन भी भूल गए। धन्य हैं ऐसे राष्ट्रवादी जो विदेशी षड़यंत्रों का हिंदी अनुवाद कर स्वयं को राष्ट्रवादी कहते हैं।
और मेरा विरोध सिर्फ ऐसे तथाकथित ग्लोबल त्योहारों से नहीं है अपितु देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए रक्षाबंधन पर विदेशी राखियों का भी विरोध करता हूं, दीपावली पर विदेशी दीपकों तथा मोमबत्तियों और चायनीज पटाखों का भी विरोध करता हूं, होली पर विदेशी रंगों का भी विरोध करता हूं। और मैं ऐसा इसलिए करता हूं कि जब मुझसे कोई ये कहे कि आपने देश के लिए क्या किया है तो मैं खुद से नजर मिला कर जवाब दे सकूं कि स्वदेशी संरक्षण में एक हिस्सा मेरा भी है।
अगर मैं ईद पर जीव हत्या का विरोध करता हूं तो दीपावली पर पटाखों पर व्यर्थ पैसे बर्बाद करने का भी विरोध करता हूं, अगर मैं चर्च में मोमबत्ती जलाने का विरोध करता हूं तो शिवलिंग पर दूध बहाने का भी विरोध करता हूं।
ऐसे विषयों को किसी संप्रदाय विशेष से न जोड़कर देखें अपितु राष्ट्र सर्वप्रथम की भावना के साथ ऐसे विषयों पर चिंतन करें।
वन्दे भारती

और तो और वो मित्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने वाले पिंगली वेंकैय्या का जन्मदिन भी भूल गए। धन्य हैं ऐसे राष्ट्रवादी जो विदेशी षड़यंत्रों का हिंदी अनुवाद कर स्वयं को राष्ट्रवादी कहते हैं।
और मेरा विरोध सिर्फ ऐसे तथाकथित ग्लोबल त्योहारों से नहीं है अपितु देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए रक्षाबंधन पर विदेशी राखियों का भी विरोध करता हूं, दीपावली पर विदेशी दीपकों तथा मोमबत्तियों और चायनीज पटाखों का भी विरोध करता हूं, होली पर विदेशी रंगों का भी विरोध करता हूं। और मैं ऐसा इसलिए करता हूं कि जब मुझसे कोई ये कहे कि आपने देश के लिए क्या किया है तो मैं खुद से नजर मिला कर जवाब दे सकूं कि स्वदेशी संरक्षण में एक हिस्सा मेरा भी है।
अगर मैं ईद पर जीव हत्या का विरोध करता हूं तो दीपावली पर पटाखों पर व्यर्थ पैसे बर्बाद करने का भी विरोध करता हूं, अगर मैं चर्च में मोमबत्ती जलाने का विरोध करता हूं तो शिवलिंग पर दूध बहाने का भी विरोध करता हूं।
ऐसे विषयों को किसी संप्रदाय विशेष से न जोड़कर देखें अपितु राष्ट्र सर्वप्रथम की भावना के साथ ऐसे विषयों पर चिंतन करें।
वन्दे भारती
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