Sunday 11 October 2015

अरे मामा जी, प्रणाम!


कक्षा 6 में एक कहानी पढ़ी थी, कहानी आज के परिदृश्य में बिलकुल प्रासंगिक लगती है। कहानी कुछ इस तरह थी कि एक सज्जन बनारस पहुँचे। वह स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता हुआ आया और मामाजी ! मामाजी का संबोधन करते हुए लपक कर चरण छूते हुए बोला, 'मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे ? मुन्ना ? वे सोचने लगे। हाँ, मुन्ना। भूल गये आप मामाजी!'




सज्जन थोड़े संतुष्ट हुए और सोचने लगे कि चलो अनजाना ही सही कोई तो मिल गया जो बनारस घुमाएगा। अपनी किस्मत पर मन ही मन प्रसन्न होते हुए सोचने लगे कि शायद इसे कोई गलतफहमी हुई है लेकिन कोई बात नहीं, कोई ना हो इससे बेहतर है कि कोई तो हो। वह यह सोच ही रहे थे कि वह लड़का फिर से बोला, 'मामा जी, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये। मैं आजकल यहीं हूँ।' प्रसन्नतापूर्वक मामाजी अपने भांजे के साथ बनारस घूमने लगे। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुँचे गंगाघाट और बोले कि सोच रहा हूँ, नहा लूँ !
इतना सुनते ही मुन्ना बोला, ' बिलकुल नहाइए मामा जी। बनारस आए हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है ?' भांजे का अश्वासन मिलते ही मामाजी ने गंगा जी में हर-हर गंगे बोलते हुए डुबकी लगाई और उसके बाद जैसे ही बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब ! लड़का... मुन्ना भी गायब!


मुन्ना... ए मुन्ना ! बोलते हुए वह नदी से बाहर निकले। मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वह तौलिया लपेट कर खड़े हैं और लोगों से पूछ रहे हैं कि क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है ? किसी ने पूछा- कौन मुन्ना ? तो वह सज्जन बोले-वही जिसके हम मामा हैं। वह तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला। ठीक उसी प्रकार... भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के रुप में हमारी यही स्थिति है ! चुनाव के मौसम में हर कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है और कहता है, 'मुझे नहीं पहचाना? मैं चुनाव का उम्मीदवार। होने वाला विधायक'

आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया। समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं — क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया ? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं। 5 साल बाद अगले चुनावी स्टेशन पर पहुंचते पहुंचते सारी पुरानी बातें भूलकर आपको लगता है कि पुराना वाला भांजा बुरा था, यह अच्छा होगा, लेकिन स्थिति जस की तस ही रहती है।

अपने विवेक के आधार पर मतदान करें। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत से भांजे मिलेंगे लेकिन अगर फिर से उनके चक्कर में फंसे तो याद रखिएगा ये भांजे आपके पास बनारस से घर जाने के पैसे भी नहीं छोड़ेंगे।


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