Wednesday 21 October 2015

ऐसे शरियत की भारत को जरूरत नहीं

मित्रों, अभी अभी एक खबर देखी कि मुंबई के वरली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक हाजी अली दरगाह में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। इस खबर को पड़कर मेरी इच्छा हुई कि इस दरगाह के विषय में जाना जाए, लेकिन कुछ खास जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी लेकिन वर्तमान समय में जो मामला चल रहा है उसके विषय में पूर्ण जानकारी अवश्य मिल गई।

सोमवार को हाजी अली दरगाह के ट्रस्टियों ने मीटिंग में फैसला लेकर मुंबई हाईकोर्ट को एक पत्र के जरिए यह जानकारी दी है कि वे दरगाह में किसी महिला को घुसने नहीं देंगे। इससे पहले कुछ महिलाओं तथा महिला संगठनों ने इस बात की याचिका दाखिल की थी कि इस दरगाह में महिलाओं के प्रतिबंधित प्रवेश को तत्काल बहाल किया जाए। हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली महिलाओं के वकील राजू मोरे ने अदालत में दलील दी थी कि अन्य दरगाहों या धार्मिक स्थलों पर महिलाओं की एंट्री बैन नहीं है फिर हाजी अली दरगाह में पाबंदी क्यों है।

जस्टिस वी.एम.कानडे की खंडपीठ को हाजी अली दरगाह के कमिटी मेंबर्स ने जो पत्र दिया है। उसमें कहा गया है कि मुस्लिम संत के मजार के करीब महिलाओं का प्रवेश महापाप है। दरगाह कमिटी ने अदालत को बताया कि उसने इस संबंध में निर्णय लेने का जो आदेश दिया था उसके तहत दरगाह के ट्रस्टियों की दोबारा मीटिंग बुलाई गई थी। जिसमें एक बार फिर से सर्वसम्मति से महिलाओं को दरगाह के गर्भगृह में प्रवेश नहीं देने का निर्णय लिया गया है। दरगाह के ट्रस्ट ने अपनी बात के समर्थन में हाईकोर्ट के समक्ष एक दलील और पेश की है। जिसमें कहा गया है कि संविधान के कानून और विशेषकर अनुच्छेद 26 के तहत ट्रस्ट को अपने धार्मिक मामलों को अपने मूलभूत अधिकारों के तहत चलाने की आजादी मिली हुई है। और इसमें किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप अनुचित है।
मित्रों , किस देश में जी रहे हैं हम और कैसे लोगों के साथ। जिस देश में अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा होती है, जिस देश में नारी को पूज्या माना गया है, जिस देश में ऐसे मंदिर हैं जहां बिना पत्नी के आप ईश्वर के दर्शन नहीं कर सकते, जिस देश में बिना विवाह के मोक्ष की कल्पना नहीं की जाती है, उस देश के अन्दर आज भी ऐसे लोग हैं जो नारी को सजदा तक नहीं करने देते।

मेरे इस विषय को हिंदू- मुसलमान से जोड़कर ना पढ़ें। मैं मानता हूं कि हिंदुओं में भी कुछ लोग नारियों को पुरुष के बराबर नहीं समझते। वे लोग लड़कियों को पढ़ने से या अन्य कई कामों से रोकते हैं लेकिन हमें यह विचार करना होगा कि क्या यह हमारी मूल संस्कृति थी। इस देश के अन्दर गार्गी जैसी विद्युषी हुई है जो याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती देती है। यह देश रानी लक्ष्मीबाई, रानी चेन्नमा, बेगम हजरत महल का देश है, यहां पर ऐसे लोगों का कोई स्थान नहीं जो लिंग भेद को बढ़ावा दे रहे हैं।

कल शाम की ही बात है कि एक चैनल की डीबेट में एक मोहतरमा शरियत कानून की वकालत कर रही थीं। मुझे समझ नहीं आता कि ऐसे लोगों को हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर क्यों बरदाश्त कर रहे हैं। क्यों उन्हें यह मौका दिया जाता है कि वे भेदभाव करने वाले कानून को लागू करके देश तोड़ने वालों का समर्थन करें।
यदि मेरे इस विषय का किसी के पास कोई जवाब है तो कृपया बताएं...
वन्दे भारती

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