Wednesday 30 December 2015

30 दिसंबर का एक यशस्वी सत्य

दोस्तों, आज 30 दिसंबर है, क्या आपको पता है कि हमारे इस परम पवित्र भारत वर्ष के लिए इस दिन का क्या महत्व है? शायद नहीं...संभव है कि आप इस दिन अगले दिन की तैयारियों में व्यस्त रहते हों...लेकिन इस तिथि के मायने कुछ और भी हैं। इस दिन क्या हुआ था इस बात पर चर्चा करने से पहले मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। क्या आप जानते हैं कि भारत का प्रथम स्वतंत्रता दिवस कब मनाया गया? निश्चित तौर पर आप 15 अगस्त 1947 ही कहेंगे लेकिन मैं उसे स्वतंत्रता दिवस नहीं मानता क्यों कि उस दिन तो मात्र हमारे देश में सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। हमारा देश से उससे 4 साल पहले ही आजाद हो चुका था। जी हां, आजादी का अर्थ होता है मानसिक आजादी, 30 दिसंबर 1943 को हमारे मन में स्वतंत्रता का भाव जागृत हो चुका था। इस दिन भारत के एक हिस्से को पूर्ण स्वतंत्रता मिली थी, लेकिन कौन सा भाग था वह, किसके सहयोग से आजादी मिली, किसने उस स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया, किसने आजादी के बाद उस क्षेत्र को संभाला, ये सारी बातें आपको नहीं पता होंगी, क्यों कि हमें यह सब पढ़ाया ही नहीं गया। हमारा पाठ्यक्रम अकबर और औरंगजेब के आसपास ही घूंता रहा। भारत के मूल इतिहास को पढ़ाने की किसी ने जरूरत ही नहीं समझी।

दोस्तों, 30 दिसंबर 1943 को सुभाष चन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज ने, जापानी सेना के सहयोग से अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को ब्रिटिश शासन से आजाद कराकर, इसे भारत का प्रथम स्वाधीन प्रदेश घोषित किया था। इसी दिन मां भारती के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता का जयघोष करते हुए पोर्ट ब्लेयर में, तिरंगा फहराकर वहां अपने मुख्यालय की स्थापना की थी। दीप समूह पर आजाद हिन्द फौज के कब्जे के बाद, सिंगापुर से भारत की अस्थायी सरकार के प्रमुख सुभाष चन्द्र बोस जी ने भारत की आजादी की घोषणा की और भारत की जनता से आजादी की रक्षा करने का आह्वान किया था।

इस आधार पर हमारा पहला स्वतंत्रता दिवस 30 दिसंबर, 1943 को मनाया गया। उस दिन नेता जी ने एक घोषणा पत्र जारी किया था, जिसमें उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, प्रथम विदेश मंत्री और प्रथम राज्य प्रमुख के रूप में भारत के प्रति निष्ठा की शपथ ली थी।

उनके घोषणा पत्र के अनुसार वह शपथ कुछ इस प्रकार थी-

मैं 'सुभाष चन्द्र बोस', ईश्वर को साक्षी मानकर ये पवित्र शपथ लेता हूं, कि -
मै सदैव भारत का एक दास रहूंगा,
अपने 38 करोड़ भाई-बहनों के कल्याण का ध्यान रखना, मेरा सर्वोच्च कर्तव्य होगा
मैं स्वतंत्रता के इस पवित्र युद्ध को अपने जीवन की अंतिम साँस तक जारी रखूंगा
मैं पूर्ण आज़ादी मिलने के बाद भी, भारत की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए, अपने रक्त की आखरी बूंद बहाने के लिए सदैव तत्पर रहूंगा
लेकिन आजादी की लड़ाई की इतनी महत्वपूर्ण घटना को भी, सत्ता की ताकत से नेहरू ने दबा दिया। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह जिसकी पहचान दो आजन्म कारावास की सजा पाने वाले, काला पानी जेल के नायक 'वीर सावरकर' और 'सुभाष चन्द्र बोस' से होनी चाहिए, उसे सत्ता के मद में चूर नेहरू सरकार ने काला पानी की सजा दे दी। क्या कसूर था उन वीरों का? सिर्फ इतना कि वे निःस्वार्थ भाव से मां भारती की सेवा में लगे हुए थे। उस द्वीप के बंदरगाह का नाम भी नेहरू के नाम पर ही है। इतिहास आज फिर दुनिया के सामने आने के लिए प्रतीक्षारत है। अपने यशस्वी इतिहास को लेकर आप कितने सजग हैं यह बात हमारी अगली पीढ़ी प्रमाणित करेगी।

वंदे भारती

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