Monday 21 December 2015

'निर्भया' हम शर्मिंदा हैं....

दोस्तों, 16 दिसम्बर 2012, इस तिथि को सुनते ही आत्मा काँप गई ना। जी हाँ, मेरी भी कुछ हालत ऐसी ही हो जाती है। बहुत सी यादें जुड़ी हैं इस तिथि से....

2012 के अंत से लेकर एक लंबे समय तक बहुत सी लाठियां खाईं। छात्रसंघ चुनाव लड़ने की तैयारी के बीच अचानक सब कुछ छोड़ कर चला गया जीपीओ स्थित गांधी प्रतिमा पर प्रदर्शन करने, कालीदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पर जाकर नारेबाजी शुरू की तो लाठियां चलने लगी। सब झेला सिर्फ इस लिए कि शायद कुछ ऐसा हो जाए कि देश की सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोगों को एहसास हो कि इस देश का युवा चाहता कि भारत की प्रतिष्ठा का सम्मान बना रहे लेकिन आज सब कुछ छलावा लग रहा है। पिछली बातों को याद करके बस आंखों में नमी सी छाने लगने लगती है।

दोस्तों, वह एक ऐसा आंदोलन था जिसमें मैं पूरी शिद्दत से लगा था। मेरे जीवन का सबसे बड़ा किंतु असफल आंदोलन... 22 दिसंबर को जब इस देश के युवाओं ने आजादी के बाद के 65 सालों के इतिहास को बदलते हुए देश के प्रथम व्यक्ति के रायसीना हिल्स स्थित घर के दरवाजे पर सुबह सुबह लात मारते हुए कहा कि उठो और इस देश की बेटी के साथ हुए कुकृत्य का जवाब दो तो इस देश की सत्ता और प्रशासनिक व्यवस्था यह तय नहीं कर पा रही थी कि इन युवाओं को क्या कहकर रोका जाए।  उसके ठीक अगले दिन सुबह लखनऊ में जब हम सब मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो पुलिसवालों का चेहरा बता रहा था कि वो हमें रोकना नहीं चाह रहे थे। उनकी अनचाही नाकाम कोशिश के बाद जब हम मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो सुबह से शाम हो गई लेकिन कोई नहीं आया लेकिन लखनऊ के युवाओं ने भी बता दिया कि वो अपनी 'बहन' के लिए कुछ भी कर सकते हैं। फिर शाम 6 बजे भारी ठंड में राजनीति ने अपनी गंदी चालों को  चलना शुरू किया। हमें वहां से हटाने के लिए तत्कालीन जिला न्यायाधीश अनुराग यादव आए और बोले कि आप सब धरना स्थल चलिए वहां हम आपसे बात करेंगे। जब हम नहीं माने तो वे हमारे साथ पैदल धरना स्थल पर गए। सात किलोमीटर की उस पदयात्रा के दौरान ठंड के बीच उनके चेहरे का पसीना बता रहा था कि वे मजबूरी में पैदल चल रहे हैं। अंत में धरना स्थल पर हम सबको अश्वासनों की मीठी गोली दे दी गई। 1 महीने तक मैं और मेरे कई साथी सुबह के समय धरना स्थल पर बैठते थे तो रात में कैंडिल मार्च करते थे। नेताओं के आश्वासनों ने हम सबको अपनी झूठी चालों में फंसा लिया।

पढ़ें: नारी और हमारे समाज की विकृत मानसिकता

आज जब उस घृणित अपराध को अंजाम देने वाले व्यक्ति को नाबालिक करार देते हुए छोड़ दिया गया तो बस मन में यही आया कि क्या से क्या हो गए हैं हम? जिस देश में नारी को पूज्या समझा जाता था और जिस देश में नारी के सम्मान की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने समुद्र पर पुल बना दिया था उस देश में नारी के साथ ऐसा व्यवहार... बातें राम मंदिर की हो रही हैं...कैसा राम मंदिर यार, जब आप अपने सम्मान की रक्षा नहीं कर पा रहे तो क्या राम आएंगे....नहीं, हमें ही राम बनना होगा...बदलनी होगी यह व्यवस्था... आफरोज जैसे रावणों के वंशजों को हमें ही समाप्त करना होगा और अगर हम इस व्यवस्था को नहीं बदल सकते तो हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम किसी श्रीराम मंदिर की बात करें.... देवताओं का वास तो वहां होता है, जहां महिलाओं का सम्मान होता है।

कल मेरे एक अनुज पंकज ने एक ब्लॉग लिखा...(पंकज के ब्लॉग को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।) उसके अलावा कई छोटे भाई प्रदीप तिवारी जैसे कई लोग फेसबुक पर लगातार लिख रहे हैं कि देश संवेदनाओं से नहीं कानून से चलता है। मैं प्रदीप तथा पंकज की बातों से सहमत नहीं हूं। मेरा मानना है कि यह देश आज भी संवेदनाओं से चल रहा है। इस राष्ट्र का आधार संवेदना है। हम इंग्लैंड में नहीं रहते हैं जहां रिश्ते कानून आधारित होते हों। मेरा इनसे बहुत ही सीधा सा प्रश्न है कि क्या इनकी मां और पिता का रिश्ता कानून यानी लॉज आधारित है? मुझे पता है इसका जवाब नहीं ही होगा। जब इस देश में रिश्ते कानूनन नहीं बनते तो इस देश की बेटी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने वाले को छोड़ने के पीछे कानून की दुहाई क्यों दी जा रही है, यह मेरी समझ से परे है। और सबसे बड़ी बात कि जो व्यक्ति बलात्कार जैसा कुकृत्य कर सकता है उसे नाबालिग किस आधार पर कहा जा रहा है।

सिर्फ एक यही मामला नहीं है, हाल ही में देश में अपराध दर पर एक रिपोर्ट आई है जो बताती है कि पिछले दस साल में नाबालिगों द्वारा किए गए संज्ञेय अपराधों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जहां 2003 में नाबालिगों द्वारा किए गए अपराध के 17,819 मामले दर्ज किए गए, वहीं 2014 में यह संख्या बढ़ कर 38,586 हो गयी। दस साल पहले रेप के 466 मामले सामने आए थे, जबकि पिछले साल दर्ज हुए मामलों में 2,144 बलात्कार के हैं। अकेले दिल्ली में ही संख्या 140 रही।

आज जब इस देश के माननीय प्रधानमंत्री महोदय विश्व पटल पर बहुत ही गर्व से यह कहते हैं कि भारत एक युवा देश है तो उसका आधार होता है कि इस देश में लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या 18 की उम्र से कम है। तो क्या यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि 'भारत एक नाबालिग देश है।'

पढ़ें: आखिर क्यों होते हैं बलात्कार?

बलात्कार गंदी और निम्न स्तर सोच के कारण होते हैं। वह सोच उम्र नहीं देखती। भारत के बहुविध समाज में स्त्रियों का विशिष्ट स्थान रहा हैं। पत्नी को पुरूष की अर्धांगिनी माना गया हैं। वह एक विश्वसनीय मित्र के रूप में भी पुरूष की सदैव सहयोगी रही हैं। कहा जाता हैं कि जहां नारी की पूजा होती हैं वहीं देवता रमण करते है। नारी नर की खान है। वह पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील और विश्व के लिए करूणा संजोने वाली महाकृति है। एक गुणवान स्त्री काँटेदार झाड़ी को भी सुवासित कर देती हैं और निर्धन से निर्धन परिवार को भी स्वर्ग बना देती हैं।

भारतीय समाज में नारी का देवी स्वरूपा स्थान है। एक आदर्श नारी धैर्य, त्याग, ममता, क्षमा, स्नेह,समर्पण, सहनशीलता, करूणा, दया परिश्रमशीलता आदि गुणों से परिपूर्ण हैं। महादेवी वर्मा ने कहा है कि 'नारी केवल एक नारी ही नहीं अपितु वह काव्य और पे्रम की प्रतिमूर्ति हैं। पुरूष विजय का भूखा होता हैं और नारी समर्पण की' वास्तव में भारतीय नारी पृथ्वी की कल्पलता के समान हैं।

मैं मानता हूं कि मात्र उस बलात्कारी हत्यारे को सजा देने से बलात्कार जैसे अपराध नहीं रुकेंगे लेकिन दोस्तों, एक कठोर सजा देने से समाज में यह संदेश तो जरूर जाता कि यह देश ऐसे अपराधों के लिए माफी देने वाला शांतिप्रिय देश नहीं बल्कि अपने शरीर को छोड़ चुके लोगों भी को न्याय देने वाला न्यायप्रिय चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के सिद्धान्तों का अनुपालक है। एक बात और ऐसे घृणित अपराधों के लिए मैं शरियत का समर्थन करता हूं और मुझे लगता है कि ऐसे बलात्कारियों को बस इस्लाम सजा दे सकता है।


 उस आंदोलन की कुछ तस्वीरें...




तत्कालीन जिलाधिकारी अनुराग यादव जी....

मेरी सहपाठी एवं एबीवीपी की कार्यकर्ता के लगी चोट...

तब लगा था जीत जाऊंगा....लेकिन....

सीएम आवास के अंदर पहुंचने के बाद कुछ ऐसी खुशी थी... 
आंदोलन के इतिहास में अभूतपूर्व परिवर्तन...
 
बच्चों से लेकर महिलाएं...सब छोड़कर आ गईं थी साथ...

पुलिस ने रोकने की कोशिश तो बहुत की लेकिन नहीं रोक लके....


छात्रनेता नितिन मित्तल के सवालों का जवाब तक नहीं था डीएम साहब के पास

सबके साथ...सब जगह...बस एक ही मांग...'हत्यारों को फांसी दो'

वंदे भारती

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