Sunday 6 December 2015

कैसे राम, और कैसा मंदिर?


दोस्तों, आज से 23 साल पहले बाबरी ढ़ांचे जिसे कुछ अज्ञानी मस्जिद भी कहते हैं, उसे देश की जनता के एक वर्ग ने गिरा दिया। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि एक स्वतंत्र देश में गुलामी की कोई निशानी नहीं होनी चाहिए। मैं यह नहीं कहता कि देश की सारी मस्जिदें तोड़ दो..अरे मस्जिद भी इस देश के नागरिकों की, हमारे भाइयों की इबादतगाह है, उसका सम्मान होना चाहिए। और इस देश के प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि इस देश के नागरिकों के पूजन स्थल की, इबादतगाह की सुरक्षा करे। अब संभव है कि आपके मन में सवाल उठे कि जब आप मानते हैं कि मस्जिद नहीं टूटनी चाहिए तो फिर बाबरी के गिरने को सही कैसे ठहरा सकते हैं? तो दोस्तों, मैं आपको बता दूं कि पहली बात तो यह कि यह देश राम का देश है, बाबर का नहीं...अब इसे यह मत कहना कि मैं मुस्लिम विरोधी हूं... मैं चाहता हूं कि इस देश के लोगों के बीच चर्चाएं बाबर पर नहीं बल्कि इस देश के सबसे बड़े मुसलमान, एपीजे अब्दुल कलाम पर चर्चा पर हो, अशफाक उल्ला खां पर चर्चा हो। उन पर कोई उंगली उठाएगा तो इस देश के मुसलमानों के साथ नहीं बल्कि उनसे आगे खड़ा होकर उनका विरोध करूंगा जो इस देश की एकात्मता के आधार कलाम जैसे मुस्लिमों पर उंगली उठाएंगे और मैं ऐसा इस लिए करूंगा क्यों कि कलाम साहब सिर्फ मुसलमानों के नहीं अपितु इस देश के प्रत्येक नागरिक के हैं। ठीक इसी प्रकार राम सिर्फ हिंदुओं के नहीं अपितु प्रत्येक हिंदुस्थानी के हैं।

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सांस्कृतिक आधार पर इस देश के मुसलमान जिन्ना के नहीं अशफाक उल्ला खां के वंसज हैं। जिनको इस भारत मां से प्यार नहीं था वे 1947 में ही यह देश छोड़कर जा चुके हैं। अब जो यहां पर हैं वे हमारे अपने हैं। अगर आप उन पर प्रश्नचिन्ह लगाना पूरी तरह से गलत होगा। मेरे इस कथन को इस रूप में ना लिया जाए कि मैं याकूब की शवयात्रा को निकालने वालों का समर्थन करता हूं। वे भटके हुए लोग हैं जो याकूब की शवयात्रा निकालते हैं। उन्हें सत्य से अवगत कराना होगा और वे यदि इस भारत भूमि के प्रति सम्मान ना रखें तो उन्हें पाकिस्तान मत भेजो बल्कि चौराहे पर खड़े करके गोली मार दो। राम तो हमारी अस्मिता के आधार हैं, राम तो वह हैं जो वनवास के समय जब दुनिया और मानवता के सबसे बड़े दुश्मन, रावण से युद्ध करने निकलते हैं तो एक राजकुमार होते हुए भी वे किसी राजा का साथ नहीं लेते बल्कि वंचितों को, वनवासियों को गले लगाते हैं।

राम का तो पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग राम की पूजा करते हैं। भारतीय मानस में राम का महत्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही शिष्टता पूर्वक किया। अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी उन्होंने खुद को बेहद गरिमा पूर्ण रखा। मैंने ने राम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि मैंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा।

दरअसल, राम की पूजा इसलिए नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं-मकान बन जाए, प्रमोशन हो जाए, सौदे में लाभ मिल जाए। बल्कि राम की पूजा हम उनसे यह प्रेरणा लेने के लिए करते हैं कि मुश्किल क्षणों का सामना कैसे धैर्य पूर्वक बिना विचलित हुए किया जाए। राम ने अपने जीवन की परिस्थितियों को सहेजने की काफी कोशिश की, लेकिन वे हमेशा ऐसा कर नहीं सके। उन्होंने कठिन परिस्थतियों में ही अपना जीवन बिताया, जिसमें चीजें लगातार उनके नियंत्रण से बाहर निकलती रहीं, लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह था कि उन्होंने हमेशा खुद को संयमित और मर्यादित रखा। आध्यात्मिक बनने का यही सार है।

संत कबीर कहते हैं कि
राम नाम जाना नहीं, जपा न अजपा जाप
स्वामिपना माथे पड़ा, कोइ पुरबले पाप


अर्थात राम नाम को महत्व जाने बिना उसे जपना तो न जपने जैसा ही है क्योंकि जब तक मस्तिष्क पर देहाभिमान की छाया है तब तक अपने पापों से छुटकारा नहीं मिल सकता।

इस संसार में चार राम हैं-

एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट घट में बैठा !
एक राम का सकल पसारा , एक राम है सबसे न्यारा !


संसार में चार राम हैं ! जिनमें से तीन को हम जगत व्यवहार में जानते हैं पर चौथा अज्ञात राम ही सार है । उसका विचार करना चाहिये । एक दशरथ पुत्र राम को सभी जानते हैं और एक जो प्रत्येक जीवात्मा के घट ( शरीर ) में विराजमान है तथा एक ये जो समस्त ( सकल ) दृश्य अदृश्य सृष्टि है , ये ( विराट पुरुष ) राम ही है - राम में ही है । लेकिन इन सबसे परे जो चौथा ( आत्मा ) राम है । वही हमारा और इन सबका सार है । अतः उसी को जानना उत्तम है।



इसलिए मैं उस राम का मंदिर चाहता हूं जो हिंदुओं के नहीं बल्कि प्रत्येक भारतीय के हैं। भाजपा ने तो हमारे राम को भरे बाजार बेच दिया और आज भी उन्ही राम पर राजनीति करना चाहती है, लेकिन यह देश सब समझता है। इस देश की जनता को जब मंदिर बनाना होगा, मंदिर बन जाएगा। मंदिर बनाने के लिए इस देश के 125 करोड़ भारतीयों को किसी 'दल' की जरूरत नहीं लेकिन हां 'दल' को अवश्य इस देश के लोगों की जरूरत होगी। जब इस देश का प्रत्येक 'भारतीय' यह कहेगा कि मंदिर बने तब मंदिर बनना चाहिए और जिसे राम स्वीकार नहीं उसे स्वयं को भारतीय कहलाने का भी अधिकार नहीं। शब्द पर ध्यान दीजिएगा मात्र प्रत्येक 'भारतीय'।

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वंदे भारती

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