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सांस्कृतिक आधार पर इस देश के मुसलमान जिन्ना के नहीं अशफाक उल्ला खां के वंसज हैं। जिनको इस भारत मां से प्यार नहीं था वे 1947 में ही यह देश छोड़कर जा चुके हैं। अब जो यहां पर हैं वे हमारे अपने हैं। अगर आप उन पर प्रश्नचिन्ह लगाना पूरी तरह से गलत होगा। मेरे इस कथन को इस रूप में ना लिया जाए कि मैं याकूब की शवयात्रा को निकालने वालों का समर्थन करता हूं। वे भटके हुए लोग हैं जो याकूब की शवयात्रा निकालते हैं। उन्हें सत्य से अवगत कराना होगा और वे यदि इस भारत भूमि के प्रति सम्मान ना रखें तो उन्हें पाकिस्तान मत भेजो बल्कि चौराहे पर खड़े करके गोली मार दो। राम तो हमारी अस्मिता के आधार हैं, राम तो वह हैं जो वनवास के समय जब दुनिया और मानवता के सबसे बड़े दुश्मन, रावण से युद्ध करने निकलते हैं तो एक राजकुमार होते हुए भी वे किसी राजा का साथ नहीं लेते बल्कि वंचितों को, वनवासियों को गले लगाते हैं।
राम का तो पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग राम की पूजा करते हैं। भारतीय मानस में राम का महत्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही शिष्टता पूर्वक किया। अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी उन्होंने खुद को बेहद गरिमा पूर्ण रखा। मैंने ने राम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि मैंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा।

संत कबीर कहते हैं कि
राम नाम जाना नहीं, जपा न अजपा जाप
स्वामिपना माथे पड़ा, कोइ पुरबले पाप
अर्थात राम नाम को महत्व जाने बिना उसे जपना तो न जपने जैसा ही है क्योंकि जब तक मस्तिष्क पर देहाभिमान की छाया है तब तक अपने पापों से छुटकारा नहीं मिल सकता।
इस संसार में चार राम हैं-
एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट घट में बैठा !
एक राम का सकल पसारा , एक राम है सबसे न्यारा !
संसार में चार राम हैं ! जिनमें से तीन को हम जगत व्यवहार में जानते हैं पर चौथा अज्ञात राम ही सार है । उसका विचार करना चाहिये । एक दशरथ पुत्र राम को सभी जानते हैं और एक जो प्रत्येक जीवात्मा के घट ( शरीर ) में विराजमान है तथा एक ये जो समस्त ( सकल ) दृश्य अदृश्य सृष्टि है , ये ( विराट पुरुष ) राम ही है - राम में ही है । लेकिन इन सबसे परे जो चौथा ( आत्मा ) राम है । वही हमारा और इन सबका सार है । अतः उसी को जानना उत्तम है।
इसलिए मैं उस राम का मंदिर चाहता हूं जो हिंदुओं के नहीं बल्कि प्रत्येक भारतीय के हैं। भाजपा ने तो हमारे राम को भरे बाजार बेच दिया और आज भी उन्ही राम पर राजनीति करना चाहती है, लेकिन यह देश सब समझता है। इस देश की जनता को जब मंदिर बनाना होगा, मंदिर बन जाएगा। मंदिर बनाने के लिए इस देश के 125 करोड़ भारतीयों को किसी 'दल' की जरूरत नहीं लेकिन हां 'दल' को अवश्य इस देश के लोगों की जरूरत होगी। जब इस देश का प्रत्येक 'भारतीय' यह कहेगा कि मंदिर बने तब मंदिर बनना चाहिए और जिसे राम स्वीकार नहीं उसे स्वयं को भारतीय कहलाने का भी अधिकार नहीं। शब्द पर ध्यान दीजिएगा मात्र प्रत्येक 'भारतीय'।
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वंदे भारती
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