Wednesday 6 April 2016

पूनम, तुम मरकर भी वेमुला न हुई


ना ही वो किसी वामपंथी संगठन की कार्यकर्ता थी, ना ही किसी टीवी सीरियल की ऐक्ट्रेस। वो थी तो बस एक सीधी- साधी पढ़ी लिखी लड़की जो अपने पैरों पर खड़े होकर अपने और अपने परिवार के लिए कुछ करना चाहती थी। उसकी कुछ ख्वाहिशें थीं, वो चाहती थी कि जिससे वह प्यार करती है उसके साथ अपनी जिंदगी को खुशी के साथ बिताए। उसके लिए जाति-संप्रदाय के कोई मायने नहीं थे, उसके लिए यह बात कोई महत्व नहीं रखती थी कि उसके रिश्ते के लिए घरवाले तैयार होंगे या नहीं, उसे विश्वास था तो अपने प्यार पर या यूं कहें उसे विश्वास था अपने विश्वास पर। लेकिन उसका विश्वास टूटा और जिस लड़के से वह मोहब्बत करती थी, उसने उसे छोड़ दिया। उस लड़की ने इसके लिए उस लड़के की पूरी कौम को दोषी ठहराया। अपनी जगह पर वह गलत नहीं थी क्योंकि उसके लिए उस पूरी कौम का प्रतिनिधित्व वही करता था। और भी मुस्लिम उसके संपर्क में रहे होंगे लेकिन जितना करीब वह था उतना कोई अन्य नहीं हो सकता।

वह लड़का किसी भी संप्रदाय का हो सकता था लेकिन दुर्भाग्यवश वह मुसलमान था और लड़की दलित। अगर वह लड़का कोई हिंदू सवर्ण होता तो शायद आज देश का राष्ट्रीय मीडिया उसे अपनी टीआरपी का साधन बना चुका होता लेकिन गेम उल्टा हो गया और लड़का मुसलमान निकल गया। मीडिया अगर इस मामले को उठाती तो सांप्रदायिक हो जाती, कोई नेता अगर उस लड़की के घर चला जाता तो उसे दंगाई करार दिया जाता। खैर नेता और मीडिया ने अपने चरित्र को साफ सुथरा रखते हुए दायित्व का बखूबी निर्वहन किया साथ देश को हिंदू-मुसलमान में बांटने वालों को इसमें लव जेहाद दिखने लगा और एक लड़का जिसको शायद कुरान की चार आयतें भी याद नहीं होंगी, उसके दुष्कृत्य की वजह से पूरी कौम निशाने पर आ गई।

लेकिन क्या किसी ने सोचा कि इस पूरे मामले में किसने क्या खोया और किसने क्या पाया? मैं बताता हूं, एक लड़की ने अपने सपने खोए, उसने अपनी जिंदगी खोई, उसके मां-बाप ने अपना विश्वास खोया, समाज में मोहब्बत फिर शर्मसार हुई और देश तोड़ने वालों को मिला गया एक मुद्दा। एक ऐसा मुद्दा जिसे लेकर वे आगामी कई सालों तक जब टीवी डिबेट में तर्कहीन हो जाएंगे तो कहेंगे, 'पूनम भारती की जिंदगी से खेलने वाले को मदरसे से ट्रेनिंग मिली थी।'

यह इस देश का दुर्भाग्य है कि धोखा, फरेब और मौत का भी मजहबीकरण कर दिया जाता है। बिहार के जहानाबाद के शास्त्रीनगर मुहल्ले में रहने वाली पूनम भारती के सुसाइड नोट के मुताबिक, वह जहानाबाद के राजाबाजार मुहल्ले के रहने वाले मुस्लिम युवक जहांगीर अंसारी से प्रेम करती थी। पूनम की मोहब्बत इस कदर परवान चढ़ी कि उसने अपना सब कुछ जहांगीर को सौंप दिया। पूनम मां भी बनने वाली थी लेकिन जहांगीर ने उस बच्चे को पैदा होने से पहले ही मार दिया। आप कह सकते हैं कि पूनम कमजोर थी, वह जिंदगी से हार गई थी, उसे लड़ना चाहिए था लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि यह सब एक दिन में नहीं होता। उसे पूंजीवाद, मनुवाद, संघवाद या ब्राह्मणवाद ने नहीं मारा और अगर वह इनमें से किसी भी 'वाद' से तथाकथित तौर पर संपर्क रखने वाले लड़के ने पूनम के साथ ऐसा किया होता तो शायद आज धृतराष्ट्र की मुद्रा में बैठा मीडिया सबसे पहले पीएम मोदी को निशाना बनाता और विपक्ष शायद यह कहता कि सुरेश प्रभु को इस्तीफा देना चाहिए क्योंकि उसने ट्रेन से कूदकर आत्महत्या की थी। इस देश को खतरा सिर्फ ऐसे लोगों से ही नहीं है जो हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश की एकता, अखंडता, एकात्मता और अस्मिता को खंडित कर रहे हैं बल्कि देश को खतरा उन मीडिया वालों और नेताओं से भी है जो स्वयं में हजारों चरित्र समाहित किए हुए हैं।




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