Saturday 20 August 2016

श्रीराम-रावण मंदिर से ज्यादा भी कुछ है क्या?

मैं फिलहाल गौतमबुद्ध नगर जिले में रहता हूं। मेरे ही जिले में स्थित बिसरख गांव के गणेश मंदिर, राम परिवार मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, मां दुर्गा मंदिर, हनुमान मंदिर, शनि मंदिर और साथ में रावण मंदिर बनने की चर्चाएं नैशनल मीडिया में होती रहती हैं। सामान्य बात थी हमारे लिए, बचपन से सुनते थे कि श्रीलंका में रावण की पूजा होती है। बस यही सोचते थे कि वहां का राजा था, वहां के लोगों के लिए तो अच्छा किया ही होगा। प्रत्येक अच्छे राजा के रूप में उसने भी अपना धर्म निभाया होगा और अपनी जनता को खुश रखा होगा। लेकिन एक बार वास्तविक निष्पक्ष होकर उन चरित्रों का विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं, जिनकी मूर्तियां इस देश में बन रही हैं। दो चरित्र जो समकक्ष हैं, वे हैं राम-रावण। राम वह जिनकी पत्नी का अपहरण हो गया था और रावण वह जिसमें बहुत सी अच्छाइयां थीं लेकिन बस एक गलती हो गई कि सीता जी का अपहरण कर लिया। ऐसा सोच रहे हैं क्या आप?

या फिर यह कि आखिर रावण तो रावण था, उसने अपहरण किया तो श्रीराम ने दंड दे दिया, सृष्टि का विधान है कि इसी जन्म में दंड मिलता है तो मिल गया। अब चूंकि श्रीराम अच्छाई के प्रतीक हैं और उन्होंने कालांतर में रावण का वध किया था तो रावण का मंदिर नहीं बनना चाहिए लेकिन राम मंदिर तो बनवा के रहेंगे। अयोध्या में श्रीराम का मंदिर तो इन्हीं पांच सालों में बनवा लेंगे या फिर अगले चुनाव के बाद फिर उन्हीं पुराने लोगों को इन कुर्सियों पर बैठा देंगे। हम तो गोडसे का मंदिर बनवाएंगे, यही हमारी आजादी है। ऐसा सोचते हैं क्या आप?
या फिर एक बड़े ‘बुद्धिजीवी’ के रूप में सोचकर कहेंगे, ‘राम वह जिनकी पत्नी का अपहरण हो गया था और रावण वह जिसमें बहुत सी अच्छाइयां थीं लेकिन बस एक गलती हो गई कि सीता जी का अपहरण कर लिया। हम उसमें भी अच्छाई देखेंगे। उसमें ज्ञान था, उसने अपनी बहन के लिए जो किया-वह किया, वह एक अच्छा भाई था, शिव भक्त था…और भी बहुत कुछ। इसलिए उसी अच्छाइयों के आधार पर राम के साथ रावण ‘जी’ की भी मूर्ति होनी चाहिए। हम अच्छाई-बुराई का अंतर समाप्त कर देंगे। आप लोग पूजा करते हो राम के साथ रावण की क्यों नहीं कर सकते?’

अगर आप आज इस ब्लॉग को पढ़ते समय इनमें से किसी रूप में भी सोच रहे हैं तो आप इस देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। आज देश एक नई दिशा में अग्रसर है। जिस विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित होने का स्वप्न भारत की वीर हुतात्माओं ने देखा था, आज लग रहा है हम वह बन सकते हैं। विश्व के सबसे युवा देश को भावी भविष्य अपनी बांहों में भरने के लिए तैयार खड़ा है। अब या तो हम यहां राम मंदिर-रावण मंदिर के लिए लड़ लें या फिर अपने अधिकारों के साथ-साथ दयित्वों का निर्वहन करते हुए नए ‘डिजिटल भारत’ को विश्व पटल पर प्रतिस्थापित करने के लिए अपने स्तर पर योगदान दें। निर्णय हम पर निर्भर करता है। मुझे अपने विवेक के आधार पर लगता है कि अभी भारत इस स्थिति में नहीं है कि वह श्रीराम जैसे मर्यादा का प्रतीक माने जाने वाले चरित्र के मंदिर का बोझ झेल सके।

मैं यह नहीं कहता कि हम अपनी संस्कृति से विमुख होकर मंदिर निर्माण करना या पूजा करना बंद कर दें लेकिन मैं इतना जरूर कह रहा हूं कि उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग पैसे देकर मंदिर में अपने खड़े होने की जगह तय करते हैं। उस देश में श्रीराम मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां आप राम के मूल चरित्र के विपरीत जाकर मंदिर में ही तोड़फोड़ करते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग गौ रक्षा के नाम पर अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी निभातें हों या व्यक्तिगत कुंठा निकालते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग एक जाति को ऊंचा और दूसरी को नीचा समझ कर उसी राम को ठुकरा देते हों जिसके मंदिर के लिए वे तलवारें लेकर तैयार रहते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग एक कौम को सिर्फ इसलिए आतंकवाद से जोड़ देते हैं क्योंकि उसी इबादत पद्धति में तथाकथित विश्वास रखने वाले कुछ लोग आतंकवाद के रास्ते पर हैं। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग मानवाधिकार के नाम पर एक आंतकवादी का जनाजा निकालते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग बुराई के प्रतीक माने जाने व्यक्ति को ‘दलितों’ का मसीहा बताकर उसके नाम पर ‘महिषासुर दिवस’ मनाते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग नारीवाद और आधुनिकतावाद के नाम पर स्वछंदता का समर्थन करते हों।

उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग अपनी मर्यादा भूलकर अपने शब्दों और अपनी भाषा शैली पर नियंत्रण न रख सकें। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग पूरी दुनिया से उल्टा चलते हों और हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजतें हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकते हों। उस देश में मंदिर का कोई अर्थ नहीं जहां लोग किसी परमशक्ति के न होने के अंधविश्वास में अपने नश्वर शरीर को ही परमशक्तिशाली मानते हों।

आज आवश्यकता है कि राम-रावण के मंदिर के झगड़े में न पड़कर अपने दायित्व का निर्वहन करें। पहले राम के मूल चरित्र को अपनाएं। हां, अब हो सकता है कि कोई कहे कि हम तो रावण के चरित्र को मानेंगे, वह भी तो ज्ञानी था। ठीक है साहब! अच्छाई ही माननी है तो मानो, लेकिन अभी मंदिर वगैरा के मामले में मत फंसाओ सबको। अभी सिर्फ भारत बनाने दो। मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा-चर्च इत्यादि बाद में बैठकर तय कर लेंगे, हमारे घर के अंदर का मामला सुलझा लेंगे। मंदिर इत्यादि बनने का समय आने तक हमें इन चरित्रों के विश्लेषण का मौका दीजिए और आप भी एक बार निष्पक्ष होकर एक चरित्र के रूप में ठीक से इन चीजों का अध्ययन करिए। और हां, इस अध्ययन के दौरान इस तस्वीर में जिन महान लोगों की तस्वीरें लगी हैं, उनका इतिहास पता कर लें तो शायद आपके आधे से अधिक भ्रम खत्म हो जाएं।
बैनर रावण मंदिर(1)

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