Saturday 20 August 2016

भारत मांगे आजादी, हम ले के रहेंगे आजादी

आजादी, हर एक व्यक्ति के लिए इस शब्द के अलग-अलग मायने हैं? जेल में कैद एक व्यक्ति के लिए जेल से बाहर निकलना आजादी है तो भारत के कुछ प्रगतिशील छात्रों के लिए ‘अफलज के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाना’ आजादी है। लेकिन इन सबके बीच भारत की बेटियां जब आजादी की बात करती हैं तो मन में सवाल उठता है कि आखिर उनके लिए ‘आजादी’ क्या है? यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि इस ‘आजादी’ की मांग करने वाली लड़कियां किसी पिछड़े गांव से ताल्लुक नहीं रखती हैं, जहां उन्हें जींस नहीं पहनने दी जाती है या जहां उन्हें पढ़ने से रोका जाता है या फिर जहां उन्हें ‘संस्कृति’ के नाम पर किसी लड़के से बात करने की भी मनाही होती है बल्कि इस आजादी की मांग वे लड़कियां करती हैं जिन्होंने देश की राजधानी दिल्ली में उच्चस्तरीय शिक्षा पाई है, जो अपने मन मुताबिक कपड़े पहन सकती हैं और किसी भी समय, किसी के भी साथ कहीं भी जा सकती हैं।

उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश में महिलाओं का एक ऐसा वर्ग भी है जिसे पढ़ने नहीं दिया जाता, जिसे सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन समझा जाता है और जो आज भी अपनी शादी से पहले अपने होने वाले पति से बात तक नहीं कर सकती। तो क्या करें? क्या महिलाओं यानी स्त्रियों को ‘आजादी’ दे दी जाए। बिल्कुल, मेरा मानना है कि महिलाओं को आजादी मिलनी चाहिए लेकिन उस आजादी की एक ‘परिधि’ होनी चाहिए ताकि स्वतंत्रता और स्वछंदता का अन्तर बना रहे। इस अंतर का बना रहना भी जरूरी है क्योंकि यदि यह अंतर समाप्त हो गया तो नारी का ‘स्त्रीत्व’ समाप्त हो जाएगा।

लेकिन क्या स्त्रीत्व का अर्थ सिर्फ बच्चे पैदा करना है? क्या महिला बच्चे पैदा करने की मशीन है? बिल्कुल नहीं। बच्चे पैदा करने से सिर्फ स्तनों में दूध आता है। तो फिर आखिर स्त्रीत्व के मायने क्या हैं? एक छोटी सी सच्ची घटना सुनाता हूं।

एक बार मेरी तबीयत बहुत खराब हो गई। घर के सभी लोग तीर्थ यात्रा पर गए हुए थे। सिर्फ पिता जी और मैं घर पर थे। मैं अपनी परीक्षाओं की वजह से और पिता जी अपने काम की वजह से परिवार के साथ नहीं जा सके थे। मेरा और मेरे पिताजी का संवाद बहुत अधिक नहीं होता था। मैं अपने बाबा-दादी जी के अधिक निकट था। माता जी के देहान्त के बाद मुझे मेरी दादी जी से मां का प्रेम मिला था। उस दिन जब मेरी तबियत खराब हुई तो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। आखिरकार मैंने पिता जी को फोन कर अपनी स्थिति बताई। वह कहीं बाहर थे तो उन्होंने घर के पास रहने वाली एक लड़की को फोन करके मेरे पास भेजा। वह लड़की मुझसे 4-5 साल बड़ी रही होगी। मैं उन्हें दीदी कहकर बुलाता था।

उस दिन जिस तरह से उन्होंने मुझे संभाला, मुझे लगा जैसे मेरी मां मेरे पास है। उनकी शादी नहीं हुई थी, उनके बच्चे भी नहीं थे और वर्तमान में वह भारतीय सेना में कार्यरत हैं। एक स्त्री के तौर पर उनमें क्या खास था? उनका वात्सल्य… यही उन्हें स्त्री बनाता था।

एक महिला और एक पुरुष में बहुत अंतर होता है। वह अंतर सिर्फ यह नहीं हो सकता कि महिला बच्चे पैदा करती है और पुरुष नहीं कर सकते। वह अंतर होता है, भाव का। मातृत्व भाव होने के लिए, वात्सल्य भाव होने के लिए बच्चे पैदा करना आवश्यक नहीं। लेकिन यदि आप हर वह काम करती हैं जो पुरुष करते हैं और आप में वात्सल्य भाव समाप्त हो गया है तो आप स्त्री कहां बचीं? फिर तो आप पुरुष ही हो गईं। शारीरिक बनावट तो कोई मायने रखती नहीं। क्या आप सिर्फ अपनी शारीरिक बनावट के आधार पर खुद को ‘खास’ बताना और जताना चाहती हैं? ऐसे में सिर्फ एक ही अंतर रह जाता है कि आपको ‘पीरियड्स’ आते हैं और मुझ जैसे पुरुषों को नहीं।

स्त्रीत्व मात्र एक भाव है जो आपको मुझसे श्रेष्ठ बनाता है। आपके समर्पण को प्रणाम करता हूं। परंतु यह समर्पण तब तक ही है जब तक आपमें स्त्रीत्व शेष है, आपमें वात्सल्य शेष है। आजादी के नाम पर यदि आप स्वछंदता चाहती हैं तो विश्वास मानिए आप मुझे या पुरुषों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रही हैं बल्कि आप मेरे ‘भारत’ की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं। माफ कीजिएगा लेकिन भले ही आपको आजादी के नाम पर अश्लीलता पसंद हो लेकिन यह तथाकथित आधुनिकता रूपी अश्लीलता मेरे देश के हित में नहीं है और मेरे साथ-साथ आपकी भी जिम्मेदारी है कि देश के प्रति, देश की संस्कृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।

मुझे गर्व है कि मेरे देश का प्रधानमंत्री आज बेटियों के लिए इतना कुछ कर रहा है। मुझे गर्व है कि मेरे देश की सरकार उनकी पढ़ाई के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए सरकारी योजनाएं ला रही है। लेकिन अगर आप चाहती हैं कि ‘फ्री सेक्‍स’ जैसी चीजों के लिए भी सरकार योजनाएं लाए तो मेरा करबद्ध निवेदन है कि बहुत से देश हैं जहां ये सब सामान्य है, वहां चली जाइए क्योंकि मेरा भारत और मेरे भारत की बेटियां ये नहीं चाहतीं।

यह मेरे देश का दुर्भाग्य है कि मेरे देश के कुछ लोग गरीबी, वंशवाद, रूढ़िवाद, परिवारवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद और पुरुषवाद से आजादी के नाम पर एक खास ‘विचार’ को देश पर थोपना चाहते हैं। इन सभी ‘वादों’ से आजादी मेरे भारत को भी चाहिए लेकिन वह आजादी अगर अपने साथ वैश्विकता और आधुनिकता के नाम पर एक कुत्सित मानसिकता लेकर आती है तो भले ही कुछ समय के लिए ‘आजाद’ हो जाएं लेकिन वह आजादी भारत की आत्मा को मार देगी।

मेरा भारत ‘आजादी’ चाहता है लेकिन अब वह आजादी किसी ‘वामपंथ’ के कंधे पर सवार होकर नहीं आनी चाहिए। उस आजादी को साथ चाहिए भारतीयता का, क्योंकि मेरे भारत का आधार भारतीयता है, वह भारतीयता जिसमें रिश्ते हैं, रिश्तों में मर्यादा है, मर्यादा में विश्वास है, विश्वास में प्रेम है और प्रेम में समृद्धता है। समृद्ध भारत के लिए ‘भारतीयता’ का बचा रहना बहुत जरूरी है इसलिए आइए और भारतीयता को केन्द्र में रखकर भारत को ‘आजाद’ कराएं।

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...