आज कुछ लोगों को
रावण का चरित्र स्वयं से भी अच्छा लग रहा है। उनका तर्क है कि लंबे समय तक
माता सीता को अपने यहां रखने के बावजूद रावण ने माता सीता का बलात्कार नहीं
किया।
वे
लोग यह मान बैठे हैं कि रावण ने एक महिला से प्रेम किया, उसका अपहरण किया,
लेकिन जबरन उसका शरीर हासिल करने की कोशिश नहीं की। वाह! क्या सभ्यता
थी रावण की…. अब जरा इसको आज के परिप्रेक्ष्य में समझने की कोशिश करते हैं।
मुझसे किसी ने एक विवाहित महिला के
शारीरिक सौन्दर्य का बखान किया। मैं स्वयं में विवाहित हूं। ऐसे में यदि मेरा
चरित्र ‘अच्छा’ होगा तो क्या मुझे उस महिला से प्रेम हो जाएगा। और मान लीजिए कि
उस महिला के सौन्दर्य का बखान करने वाले की संप्रेषण क्षमता मंत्रमुग्ध कर
देने वाली भी है तो क्या मैं अपने विवेक को प्रयोग ना करके उस महिला को
किडनैप कर लूंगा। यदि मैं ऐसा करता हूं तो क्या मेरी सभ्यता को अनुकरणीय
मान लिया जाएगा?
विश्व गौरव |
इस बात में दो राय नहीं कि आज रावण दहन के
लिए मुख्य अतिथि बनकर आए लोगों में अधिकतम का चरित्र रावण से भी गिरा है,
लेकिन क्या इस तर्क के आधार पर रावण का महिमामंडन करना ठीक है? निश्चित ही
आज रावण जलाने वालों के चरित्र पर सवाल उठाना न्यायसंगत है, लेकिन रावण का
महिमामंडन करना हमारी छोटी सोच का परिचायक है। मैं
राम, सीता, लक्ष्मण, रावण, कृष्ण, कंस, द्रौपदी को मात्र एक चरित्र के रूप
में लेता हूं। मैं मानता हूं कि हर एक चरित्र में कुछ अच्छाइयां होती हैं
और कुछ बुराइयां। हमें जहां से भी अच्छाई मिले, उसे अंगीकार करना चाहिए।
रावण में अगर किसी को अच्छाई दिख रही है, तो उसे आत्मसात करे। लेकिन इसके
साथ-साथ इस बात पर भी चिंतन करना अनिवार्य हो जाता है कि रावण के समकालीन
जो अन्य चरित्र थे क्या उनमें कुछ भी ‘अच्छा’ नहीं था।
जब कभी मेरे मुंह से अचानक ‘श्रीराम’
निकलता है, तो मेरे कुछ मित्र हैं जो कहते हैं कि राम ने तो ‘यह किया था,
वह किया था’ फिर ऐसे व्यक्ति का नाम लेने का क्या मतलब है। मुझे समझ में
नहीं आता कि रावण के विषय में तो वे लोग बहुत ही सकारात्मक सोच रखते हैं,
लेकिन श्रीराम का नाम आते ही उनकी नकारात्मकता अपने चरम पर पहुंच जाती है।
मैं
रावण को नहीं मानता क्योंकि मैंने रावण के चरित्र अध्ययन के दौरान यह भी
पढ़ा है कि रावण ने बलपूर्वक कभी माता सीता को हाथ नहीं लगाया तो इसलिए
नहीं कि वह बहुत संयमी था, बल्कि उसने माता सीता को बलपूर्वक इसलिए हाथ
नहीं लगाया क्योंकि उसे कुबेर के पुत्र नलकुबेर ने श्राप दिया था कि यदि
रावण ने किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध छुआ या अपने महल में रखा तो
उसे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। इसी डर के कारण रावण ने ना तो सीता को कभी
बलपूर्वक छूने का प्रयास किया और ना ही उन्हें अपने महल में रखा।
मैं रावण को नहीं मानता क्योंकि उसने अपनी
बहन के अपमान का बदला लेने के लिए माता सीता का हरण नहीं किया था, बल्कि
उसने शूर्पनखा द्वारा किए गए माता सीता के सौन्दर्य चित्रण पर कामांध होकर
सीता का हरण किया था। मैं ऐसे कामान्ध व्यक्ति में किसी भी कुतर्क के सहारे
अपना आराध्य नहीं तलाश सकता। मैंने रावण के विषय में यह भी पढ़ा है उसने
कई महिलाओं का शील भंग किया था। मैं रावण को नहीं मानता क्योंकि रावण
विद्वान जरूर था, लेकिन उसने अपने ज्ञान को कभी व्यवहारिक जीवन में नहीं
उतारा। उसने लाखों ऋषियों की हत्या की, कई यज्ञों को ध्वंस किया और कई
महिलाओं का बलात्कार किया। रावण ने रंभा नामक अप्सरा से भी दुराचार किया
था। रावण ने वेदवती नाम की एक ब्राह्मणी के रूप से प्रभावित होकर उसके बाल
पकड़ अपने साथ चलने के लिए कहा था। तब वेदवती ने आत्मदाह कर रावण को श्राप
दे दिया था।
किसी के चरित्र का इतना गिरा स्तर जानने के बाद मुझमें हिम्मत नहीं है कि मैं उसमें कुछ ‘अच्छा’ खोज सकूं। इसके
बावजूद जो लोग रावण के विषय में संपूर्ण जानकारी किए बिना उसकी अच्छाइयां
देखते हैं तो वे उसी से प्रेरणा लें, लेकिन एक छोटा सा निवेदन है कि अपने
अल्पज्ञान के आधार पर रावण को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के समकक्ष ना
रखें। रावण के महिमामंडन से हमें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला, बल्कि हम
कहीं ना कहीं बुराई के प्रतीक का समर्थन ही कर रहे हैं। बेहतर होगा कि
निष्पक्ष रूप से एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ दोनों चरित्रों का विश्लेषण
करके जिसमें अच्छाइयां ज्यादा हैं, उस चरित्र को आत्मसात करें और अपना
आदर्श बनाएं। मन में छिपकर बैठे रावण को मारें। अनुचित को किसी भी तर्क के
सहारे उचित नहीं प्रदर्शित किया जा सकता।
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