इस समय देश में एक
नई बहस चल पड़ी है कि कला की सीमाएं होती हैं अथवा नहीं? यदि कोई देश कुछ
गलत करता है या गलत का समर्थन करता है तो उस देश के कलाकारों को अन्य
स्थानों पर काम करने का अधिकार है अथवा नहीं? एक कलाकार का कला के प्रति
समर्पण का पैमाना क्या होना चाहिए?
इस पूरी बहस में मेरा स्पष्ट मत है कि कला
की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन इसके साथ-साथ एक शाश्वत सत्य यह भी है कि एक
कलाकार की कला के प्रशंसक भी बिना किसी राजनीतिक सीमा के होते हैं। वे
प्रशंसक उस कलाकार में स्वयं को खोजने लगते हैं। वे उस कलाकार के रोने पर
दुखी होते हैं और उसी कलाकार के हंसने पर खुश होते हैं। जब वह कलाकार अपने
असल जीवन में हॉस्पिटल में ऐडमिट हो जाता है तो वे प्रशंसक अपना खाना
छोड़कर भगवान के मंदिर में घंटों उसकी सलामती की दुआएं मांगते हैं।
धूप नामक फिल्म में जब कोई कलाकार एक शहीद
के पिता का किरदार निभाता है तो दर्शक के मन में उस कलाकार की छवि वैसी ही
बन जाती है जैसा वह पर्दे पर दिखता है। जब कोई कलाकार पर्दे पर गर्व नामक
फिल्म में एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाता है तो पुलिस में जाने
की तैयारी कर रहा नौजवान उसी आभासीय किरदार को प्रेरणा मान लेता है। लेकिन
समस्या यह है कि वह नौजवान दर्शक उस कलाकार की कला का नहीं बल्कि उस
व्यक्ति विशेष का प्रशंसक बन जाता है।
एक कलाकार से अपेक्षा की जाती है कि उसमें
मानवीय भावना का स्तर आम जनमानस से अधिक होगा क्योंकि उसने पर्दे पर कई
किरदार जिए होते हैं। उसने एक फौजी का, एक पुलिसकर्मी का, एक एक आम आदमी तक
का किरदार जिया होता है।
हमने तो यही सुना है कि कोई अच्छा अभिनय तभी कर पाता है जब वह अपने आभासीय
किरदार में पूरी तरह से उतर जाए। इसी आधार पर हम यह अपेक्षा करते हैं कि
एक शहीद के पिता का दर्द, एक आम आदमी का दर्द, एक सैनिक की परिवार से दूर
रहने की तड़प, सब कुछ वह हमसे बेहतर तरीके से महसूस कर सकता है। और इसी
आधार पर हम यह भी अपेक्षा करते हैं कि जब किसी आतंकी हमले में देश का कोई
बेटा शहीद होता है तो उसके पिता की तरह तो नहीं लेकिन हमसे बेहतर तरीके से
एक कलाकार उस परिवार के दर्द को महसूस कर सकता है। वह सही मायने में कला का
पुजारी तभी माना जाएगा जब वह सभी सीमाओं को तोड़कर प्रत्येक अमानवीय घटना
की निंदा करने की क्षमता रखता हो।
निश्चित ही कला की कोई सीमाएं नहीं होतीं
लेकिन दुर्भाग्य से देश की सीमाएं होती हैं। एक कलाकार की प्राथमिक पहचान
उसका देश ही होता है। और यदि कोई ऐसा है जो कला को सच में अपने देश से पहले
मानता हो तो उसे उस जगह पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देना चहिए, जहां उसे
मोहब्बत मिल रही हो, जहां उसकी कला का सम्मान होता हो। और ऐसी जगह पर उसे
वहां के कानून के मुताबिक सम्मानपूर्वक रहना चाहिए। भारत के वे लोग जो मेरी
तरह ही इस बात को मानते हैं कि हमारे लिए, हमारी खुशी तथा शांति के लिए
अपने घर से दूर रहकर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले हमारे शहीद का
बलिदान, कला से भी बड़ा है, वे लोग एक बात को कभी मन में ना आने दें कि
‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के सिद्धान्त पर सिर्फ ‘हिंदू’ ही चल रहे हैं।
उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अनुपम खेर और नाना पाटेकर के साथ नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी आपकी लड़ाई उनके बीच लड़ रहे हैं।
यही सलमान खान कुछ महीने पहले जब मोदी के
साथ पतंग उड़ा रहे थे तो बड़े राष्ट्रवादी थे, बजरंगी भाईजान लाए तो कहा कि
अरे देखो मुसलमान होकर ‘बजरंगी’ नाम रखा। और आज उसी ‘राष्ट्रवादी’ ने कुछ
कह दिया तो वह देशद्रोही और पाकिस्तान परस्त हो गया। क्यों?
यह सवाल पूछिएगा अपने आप से…
सच तो यह है कि राष्ट्रवाद और ‘राष्ट्र
सर्वोपरि’ के सिद्धान्त के व्यावहारिक रूप का व्यापक चिंतन आपके वर्तमान
‘राष्ट्रद्रोही’ लोगों ने किया ही नहीं था और आप भी इन्हीं में फंसे रह गए,
इस नाते आप भी नहीं कर पाए। उनको राष्ट्रवाद नहीं पता और आपका तो कहना ही
क्या? आप तो ‘राष्ट्रवाद’ पहचान ही नहीं पाते… सलमान, शाहरुख या ओम पुरी को
एक झटके में राष्ट्रद्रोही करार देना पूरी तरह से गलत है।
हर एक कलाकार के दिल में उसका मुल्क रहता है लेकिन वह कलाकार जिसको हमने
स्टार बनाया, जिसके गानों और गजलों को सुनकर पता नहीं कितने युवा भारतीयों
की मोहब्बत परवान चढ़ी, जिसके ‘मुल्क’ की परवाह किए बिना हम उसके ‘डायलॉग’
पर तालियां बजाते रहे, हूटिंग करते रहे, उससे हम यह अपेक्षा तो करते ही हैं
कि जब इस देश के 18 बेटों की हत्या हो तो वह कलाकार इस अमानवीय कुकृत्य की
खुले मन से निंदा कर सके। और यह अपेक्षा, हमारा अधिकार भी है। एक
कलाप्रेमी के रूप में मानवीयता से परिपूर्ण हृदय रखने के कारण, एक मानव
होने के कारण मुझे दुख होता है। और इसी आधार पर जब पेशावर में आतंकी हमला
होता है तो भी हमें दुख होता है और हम अपनी फेसबुक टाइमलाइन को आंसुओं और
दर्द से भर देते हैं। एक कलाकार होकर भी उनका दिल उड़ी पर क्यों नहीं
पसीजा… या उनके लिए कला, उनके मुल्क की सीमाओं में बंधी है?
No comments:
Post a Comment