Sunday 25 December 2016

ऐसे 'निष्पक्ष' हिंदुस्तान पर शर्मिंदा हूँ!


मिलाद-उन-नबी के अगले दिन कोलकाता से 28 किलोमीटर दूर स्थित हावड़ा के धूलागढ़ में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों के द्वारा एक मंदिर पर बम फेंके गए, हिंदुओं की दुकानें जला दी गईं, उनके घरों में घुसकर मारपीट की गई। पुलिस और धूलागढ़ के मुस्लिमों का कहना है कि मुस्लिमों के जुलूस पर कुछ हिन्दुओं ने घात लगाकर हमला किया और जुलूस को बाधित करने की कोशिश की जिसके जवाब में अगले दिन प्रतिक्रिया स्वरूप दंगे भड़के। इसमें गलती किसकी? निश्चित तौर पर प्रशासन की... लेकिन आज बात करते हैं मीडिया की...

इस मामले में एक समाचार संस्थान यह तो लिखता है कि मोहम्मद साहब के जुलूस पर हमला हुआ लेकिन वह ये लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि वहां हिंदुओं के घर और दुकानें जलाए जा रहे हैं, वह यह नहीं लिख पाता कि हिंदू मंदिर तोड़े गए। एक अन्य प्रतिष्ठित समाचार चैनल ने अपनी वेबसाइट पर यह तो बताया गया कि मोहम्मद साहब के जुलूस पर हमला किया गया लेकिन उसके बाद किस समुदाय के लोगों ने बम तक से हमला किया।

कोलकाता में रहने वाले कुछ परिचितों से बात की तो उनका साफ तौर पर कहना है कि टीएमसी, सीपीएम और बीजेपी, किसी भी पार्टी से जुड़ा हिंदू हो, वह सिर्फ हिंदू होता है और उन्हें दंगाइयों के आक्रोश को झेलना ही पड़ता है। निष्पक्षता का बाजा बजाने वाले लोगों में तो इतनी भी हिम्मत नहीं है कि वे खुलकर ऐसी घटनाओं के बारे में बता सकें कि किस समुदाय विशेष से जुड़े लोगों ने किस समुदाय विशेष के लोगों को अपना निशाना बनाया। क्योंकि अगर वे बता देंगे कि मुस्लिमों ने हिंदुओं को मारा है तो वे सांप्रदायिक हो जाएंगे और उनकी निष्पक्षता खतरे में पड़ जाएगी। क्या आपको शर्म नहीं आती कि आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहां का मीडिया भी निष्पक्षता के नाम पर तुष्टीकरण करता है?

इन सबके बीच एक सवाल मन में यह भी आता है कि जिस पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित 350 हिंदू और 20 मुस्लिम परिवारों वाले कांगला पहाड़ी गांव में हिंदुओं को दुर्गा पूजा की अनुमति नहीं दी जाती है। उसी पश्चिम बंगाल के हिंदुओं में इतनी हिम्मत कहां से आएगी कि वे मुस्लिमों के जुलूस पर घात लगाकर हमला करें। क्या वे सीएम साहिबा की 'मुस्लिम ममता' से अनजान थे? क्या उन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि यदि वे लोग ऐसा कुछ भी करेंगे तो उसके परिणामस्वरूप उन्हें क्या भुगतना पड़ेगा। मेरे मन में यह सवाल इसलिए भी उठा क्योंकि कोलकाता के आसपास के हिस्से में 2 साल पहले मैं एक सप्ताह रहकर आया और वहां जाने का उद्देश्य भी यही था कि वहां कि सांप्रदायिक स्थिति को समझा जाए। मैंने वहां मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा को देखा है।

जानी-मानी अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अमेरिकन थिंकर नामक पत्रिका में 'The Muslim Takeover of West Bengal'  शीर्षक से लिखे गए लेख में लेखिका ने 2013 के उस दौर का जिक्र भी किया था जब पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी थी। उसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर तथा दुकानें लूटी गईं और कई मंदिरों को तोड़ दिया गया। ममता बनर्जी पर आरोप भी लगा था कि सरकार की तरफ से ऑर्डर दिया गया था कि दंगाई मुसलमानों पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। आरोप के मुताबिक, ममता को डर था कि मुसलमानों को रोका गया तो वे नाराज हो जाएंगे और वोट नहीं देंगे। इस आरोप में सच्चाई इसलिए नजर आती है क्योंकि उन दंगों के आरोपियों को अब तक किसी तरह की सजा नहीं हुई है।

जेनेट ने लेख में बताया गया था कि पश्चिम बंगाल के जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है वहां पर वे हिंदू कारोबारियों का बॉयकॉट करते हैं। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते। इसी कारण बड़ी संख्या में हिंदुओं को घर और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ा। ये वो जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। लेकिन इन विषयों पर ना तो हमारी मीडिया बोलेगी और ना ही हमारे नेता...

जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नामक प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी के सह-संस्थापक को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा भेजा। उस पर आरोप था कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वे बांग्लादेश में दंगे भड़का सके। हसन इमरान के खिलाफ अभी एनआईए और सीबीआई की जांच चल रही है। हालांकि प्राथमिक रिपोर्ट में जांच एजेंसियों ने कहा है कि उनकी अब तक की जांच में ऐसा कोई लिंक नहीं मिला है और आगे की जांच जारी है। इसके अलावा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी उसके रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं। क्या ऐसे लोगों को राज्यसभा भेजने वाली पार्टी और उस पार्टी की कार्यपद्धति पर सवाल उठाने की जिम्मेदारी मीडिया की नहीं है?


इन सबके बावजूद अगर मैं किसी एक समुदाय को गालियां दूं तो गलत होगा। क्योंकि मेरा हिंदुस्तान मंदिरों में तोड़फोड़ करने वाले मुस्लिमों और कथित तौर पर जुलूसों पर हमला करने वाले हिंदुओं से नहीं बनता। मेरा हिंदुस्तान तो तब बनता है जब सुबह घर में बजने वाले राधा के भजन को शकील बदायुनी द्वारा लिखा जाता है, उसी भजन को नौशाद साहब द्वारा संगीत दिया जाता है, मोहम्मद रफी साहब उसे अपनी आवाज देते हैं और जब फिल्माने की बारी आती है तो उसे युसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार पर फिल्माया जाता है।

मेरा हिंदुस्तान तो तब बनता है जब ईद उल मिलाद के जुलूस के दौरान हिंदू परिवार बाहर निकल कर मुस्लिम भाईयों को पानी और चाय पिलाते हैं। हां! मुझे शर्म आती है कि मैं एक ऐसे देश में रहता हूं जहां मजहब के नाम पर वोट तो लिए जाते हैं लेकिन मजहब की बुराईयों के बारे में बोलने से डर लगता है। लेकिन इस शर्म के बीच मुझे एक गर्व भी होता है कि मैं एक ऐसे देश में रहता हूं जहां पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में स्थिति धारन गांव में वर्षों से बंद पड़ी दुर्गा पूजा को वहां के बहुसंख्यक मुस्लिम यह कहकर शुरू करवाते हैं कि वे दुर्गा पूजा के दौरान हिंदू भाइयों के दुखी चेहरे नहीं देख पा रहे।

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