Thursday 22 December 2016

नोटबंदी: लंबी लाइनों से छुटकारे का यही एक रास्ता

देश में एटीएम और बैंकों के बाहर लाइनें छोटी होने का नाम नहीं ले रही हैं। इन लाइनों से कैसे निपटा जाएगा? 8 नवंबर की शाम को पीएम नरेंद्र मोदी ने देश से वादा किया था कि दिसंबर अंत तक सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन अभी तक का माहौल देखकर तो नहीं लगता कि इतनी जल्दी सबकुछ सामान्य हो पाएगा। आपको क्या लगता है कि सरकार नोट छापती जाएगी और फिर सरकार ने जिस उद्देश्य के साथ विमुद्रीकरण का फैसला लिया था, वह उद्देश्य पूरा हो जाएगा? बिलकुल नहीं। सरकार जितने ज्यादा नोट छापेगी, उससे नुकसान हमें और आपको होगा। क्योंकि यदि पुरानी मात्रा में ही नोट छपते गए तो फिर उनका भंडारण शुरू हो जाएगा और स्थिति जैसी थी, उससे भी बदतर हो जाएगी, क्योंकि अब तो 2000 का नोट भी है।
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किसी से भी पूछो कि भाई विमुद्रीकरण का फैसला कैसा है? जवाब यही मिलता है कि फैसला बहुत अच्छा है लेकिन सरकार को नोट ज्यादा छापने चाहिए, सरकार ने तैयारियां नहीं की। लेकिन जब उनसे कहो कि इसमें हम क्या कर सकते हैं तो वे मौन हो जाते हैं। हमने व्यक्तिगत रूप से देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी के बारे में कभी सोचा ही नहीं। हम तो यह मानकर बैठे हैं कि सरकार तो है ही सबकुछ करने के लिए लेकिन हमें समझना होगा कि सरकार तब तक कुछ नहीं कर सकती जब तक हम खुद सरकार के साथ खड़े होकर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।

RBI के अनुसार 31 मार्च 2016 तक भारत में 16.42 लाख करोड़ रूपये मूल्य के नोट बाजार में थे जिसमें से करीब 14.18 लाख रुपये 500 और 1000 के नोटों के रूप में थे। RBI की रिपोर्ट के अनुसार देश में तब तक मौजूद कुल 9026 करोड़ नोटों में करीब 24 प्रतिशत नोट (करीब 2203 करोड़ रुपये) ही प्रचलन में थे।

एक अनुमान के अनुसार देश की कुल मुद्रा प्रसार में 25 प्रतिशत तक नकली करंसी है। इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट और नैशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी की ओर से किये गए संयुक्त अध्ययन में यह पाया गया कि लगभग 70 करोड़ रुपये की नकली मुद्रा हर साल चलन में आ जाती है। इसमें से सिर्फ एक तिहाई जाली मुद्रा ही पकड़ी जाती है और बाकी हमारी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन जाती है। इन सबसे नुकसान किसका होता है? सिर्फ और सिर्फ हमारे देश की अर्थव्यवस्था का? नहीं…. हमें समझना होगा कि इससे अप्रत्यक्ष रूप से हमारा नुकसान होता है और इस नुकसान से बचने के लिए हमें अपनी जिम्मेदारी तय करनी ही होगी।

आज जरूरत है कि हम कैशलेस इकॉनमी की ओर चलने की कोशिश करें। सरकार के इनकम टैक्स का बड़ा स्त्रोत नौकरीपेशा वाला वर्ग है जबकि कारोबारी समुदाय अपनी आय छिपाने में काफी हद तक कामयाब हो जाते हैं। जब लोगों के आय-व्यय की जानकारी ऑनलाइन हो जायेगी तो निश्चित ही सरकार के राजस्व में बड़ी बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा भी कैशलेस इकॉनमी के बहुत से फायदे हैं।

हम जितना अधिक कैश का उपयोग करते हैं, ब्लैकमनी के जमा होने की संभावना उतनी ही अधिक रहती है। ब्लैकमनी से हमारी अर्थव्यवस्था के समानांतर एक और अर्थव्यवस्था तैयार हो जाती है, जिसका सरकार के पास कोई हिसाब नहीं होता। ऐसे में टैक्स चोरी भी काफी ज्यादा होती है। यदि हमारी अर्थव्यवस्था कम से कम कैश वाली होगी तो सरकारी कोष में टैक्स के रूप में अधिकतम पैसा पहुंचेगा और उसका सीधा फायदा हमें यानी आम आदमी को होगा।

कैशलेस व्यवस्था अपनाने से नोट छापने पर होने वाला खर्च बचेगा, नकली नोट का व्यापार खत्म होगा, कागज की बचत होगी, भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी, आतंकवाद और नक्सलवाद कम होगा। इसके अलावा इस व्यवस्था को अपनाने से हमें और भी कई फायदे होंगे।

मैं मानता हूं कि भारत एक झटके में कैशलेस नहीं हो सकता क्योंकि असली भारत तो गांव में बसता है। भारत में वे लोग भी हैं जो इंटरनेट छोड़िए, मोबाइल चलाने भी नहीं जानते। लेकिन हम तो उस श्रेणी में नहीं आते। हम तो मोबाइल, इंटरनेट का भरपूर उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं। क्या हम व्यक्तिगत स्तर पर यह प्रयास कर सकते हैं कि अपने परिवार में, अपने परिचितों में और दैनिक जीवन में मिलने वाले लोगों को कम से कम कैश प्रयोग करने के तरीके और उसके फायदे बता सकें? क्या हम अपने व्यक्तिगत जीवन में यह संकल्प कर सकते हैं कि जहां तक संभव होगा बिना कैश के ही जीवन जीने का प्रयास करेंगे? विश्वास मानिए, पिछले 43 दिनों के अनुभव के आधार पर बता रहा हूं कि यह बहुत आसान है।

भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली जी ने भी कह दिया है कि बैन की गई करंसी के बराबर की रकम के नोट दोबारा से नहीं छापे जाएंगे। यहां क्लिक कर पढ़ें जेटली का पूरा बयान। ऐसे में पहले जैसी स्थितियां कभी नहीं आने वालीं। इन लंबी लाइनों से निपटने का एक रास्ता है कि हम मिनिमम कैश का प्रयोग करें। कैश को घर में संचित करके ना रखें। क्योंकि अगर आपने ऐसा किया तो इसका सीधा नुकसान उसे हो रहा है जो दिन भर मजदूरी करके शाम को उसी पैसे से रोटी खरीदता है, उसके पास ना ही बैंक अकाउंट है और ना ही मोबाइल। अब जरूरत है कि हम अपनी जिम्मेदारी समझें और यह मानकर चलें कि आज आप गरीबों के लिए कुछ करने की स्थिति में आए हैं।

मेरे बहुत से परिचित हैं जिन्होंने लाखों रुपये के नए नोट जमा करके रखें हैं। हालांकि वह पूरी तरह से पाक-साफ पैसा है लेकिन फिर भी कैश को संग्रहित करना व्यक्तिवादिता और ‘सिर्फ मैं’ की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। वे पढ़े-लिखे भी हैं लेकिन अपना पूरा काम कैश से ही कर रहे हैं। समस्या बस इतनी है कि हमने कभी अपनी जिम्मेदारी समझी ही नहीं। हम गरीबी हटाओ के नारे तो लगाते रहे लेकिन कभी इस बारे में सोचने की कोशिश नहीं की कि हम गरीबों और पिछड़ों के लिए क्या कर सकते हैं।

आज हर एक पढ़े-लिखे व्यक्ति के पास एक मौका है कि वह पिछड़ों के लिए कुछ कर सके। कम से कम इतना तो जरूर कि लोगों को ऑनलाइन और कैशलेस व्यवस्था के बारे में जागरुक करें…साथ ही अपनी आर्थिक यात्रा को लेस कैश से कैशलेस तक ले जाएं…. इन लंबी-लंबी लाइनों से निपटने का और कोई रास्ता नहीं…

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