Sunday 25 December 2016

सानिया के लिबास पर सवाल, एक शायर का घटिया ख़याल

sania 2
टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा ने कुछ साल पहले पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी की। कैसा लगा था आपको? एक भारतीय के रूप में अपनी सोच को एक सीमित दायरे में रखकर यदि आप सोचेंगे तो आपको यही लगेगा कि नहीं! सानिया मिर्जा को ऐसा नहीं करना चाहिए था। अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो मैं आपसे सहमति नहीं रखता। क्योंकि मैं मानता हूं कि प्यार को देश की सीमाओं में नहीं बंधना चाहिए और हम किसी के प्यार को सीमाओं में बांधने वाले कोई नहीं होते। हालांकि जब सानिया की शादी की खबर आई थी तो मुझे भी ‘गुस्सा’ आया था। क्योंकि मुझे लगता था कि सानिया को ‘सानिया’ भारत ने बनाया है, भारत के लोगों की मोहब्बत ने उन्हें पहचान दी और वह शादी के लिए ‘दुश्मन’ देश के साथ चली गईं। मुझे लगता था कि जिसका शौहर पाकिस्तानी हो, वह मन से भारतीय कैसे रह सकती है? मैं सोचता था कि अब सानिया भारत के लिए नहीं खेलेंगी… लेकिन समय ने मेरी सोच को गलत साबित किया। सानिया उसी शिद्दत के साथ भारत के लिए खेलती रहीं। विंबल्डन से लेकर ओलिंपिक तक सानिया भारत के प्रतिनिधि के तौर पर खेलीं और विश्व स्तर पर भारत के मस्तक को ऊंचा किया। ना सिर्फ उन्होंने भारत के मस्तक को ऊंचा किया बल्कि ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की मूल अवधारणा को भी प्रतिस्थापित किया। 2015 में जब देश के सिलेब्रिटीज भारतीय सेना के साथ खड़े होकर देश का मनोबल बढ़ा रहे थे तो उस पाकिस्तानी बहू ने भी अपना राष्ट्रीय दायित्व निभाते हुए भारतीय सेना के त्याग के लिए धन्यवाद दिया।


saniaआप सोच रहे होंगे कि मैं ये सारी बातें क्यों कह रहा हूं? चलिए, एक बार कल्पना करिए कि किसी भारतीय पुरुष सिलेब्रिटी ने किसी पाकिस्तानी महिला सिलेब्रिटी से शादी/निकाह किया होता और वह महिला किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तान का नेतृत्व करती तो? तो, भारत के फर्जी राष्ट्रवादी उन दोनों को जीने नहीं देते। कल्पना करिए वही महिला यदि पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर पाकिस्तानी सेना के समर्थन में ट्वीट करती तो? तो क्या होता मुझे बताने की जरूरत नहीं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि पाकिस्तान में रहने वाले लोग सानिया मिर्जा को लेकर क्या-क्या कहते होंगे? सब छोड़िए! एक बार उस पाकिस्तानी शौहर के बारे में सोचिए जो खुलेआम कहता है कि उसकी भारतीय पत्नी पाकिस्तान के खिलाफ भारत का समर्थन करेगी। यहां क्लिक कर पढ़ें खबर।

चलिए अब मूल बात पर आते हैं। ऐसी महिला के बारे में एक व्यक्ति कहता है कि सानिया मिर्जा उसकी मां को इसलिए पसंद नहीं क्योंकि उसके सिर पर दुपट्टा नहीं है। और वह व्यक्ति अपनी मां की इस सोच को बहुत गर्व के साथ बताता है। क्यों कहता है वह ऐसा? क्योंकि इस्लाम पर्दाप्रथा का हिमायती है।

क्या कहेंगे आप इस पर? मुझे नहीं पता आप क्या कहेंगे लेकिन मेरा मानना है कि ऐसे लोग ‘देशभक्ति’ के नाम पर एक महिला की स्वतंत्रता का हनन कर रहे हैं। खास बात यह है कि ऐसी बातें करने वाले इमरान प्रतापगढ़ी के जेएनयू और भारत के बड़े-बड़े वामपंथियों से बहुत ही नजदीकी संबंध हैं। लेकिन वे लोग इमरान को अपना ‘नारीवादी’ पाठ क्यों नहीं पढ़ाते हैं, यह सोच का विषय है। यह वही इमरान हैं जिन्हें अपनी ऐसी ही बातों को शायरी के रूप में पिरोने के कारण उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा सम्मान ‘यश भारती’ दिया जाता है। उसे 11 लाख रुपए और प्रतिमाह 50,000 रुपये की पेंशन प्रदेश सरकार उसकी बातों के लिए देती है।

सिर्फ इतना ही नहीं, इमरान प्रतापगढ़ी नामक यह तथाकथित शायर उस किशन बाबूराव (अन्ना) हजारे पर भी सवाल उठाते हैं। उस अन्ना हजारे पर जिसने 60 सालों से सोए हुए देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ जगाया, जिसने देश को लड़ना सिखाया। इमरान अन्ना के अनशन को बीमारी और नाटक बताते हैं।

उनकी समस्या यह है कि जिस संजीव भट्ट नाम के एक पूर्व आईपीएस अफसर के बारे में गुजरात में सन 2002 में हुए दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाया गया विशेष जांच दल (एसआईटी) कहता है कि उन्होंने गुजरात सरकार को बदनाम करने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए, जिस संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट फटकार लगाते हुए कहता है वह पाक-साफ नहीं है, उसे जेल भेजे जाने पर अन्ना हजारे क्यों कुछ नहीं बोलते? क्या गजब का तर्क है इमरान साहब का?

बड़ी बात यह नहीं है कि इमरान यह सब बोलते हैं। वह तो नादान हैं, अभी विद्यार्थी हैं लेकिन जब अन्ना हजारे को नौटंकीबाज बताने वाले व्यक्ति को कुमार विश्वास जैसा व्यक्ति अपना भाई बताते हुए उसकी बातों का समर्थन करता है, तो सवाल कुमार विश्वास की सोच पर उठना लाजमी है, जब ऐसा वैचारिक विद्वेष फैलाने वाले व्यक्ति को साहित्य के नाम पर हमारे-आपके द्वारा दिए गए टैक्स के पैसे से आजीवन पेंशन दी जाती है तो सवाल अखिलेश सरकार पर उठाना एक भारतीय होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बनती है। लेकिन मेरे सवालों का कोई अर्थ नहीं क्योंकि वोटबैंक के लिए तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कुमार विश्वास को यह सब करना ही पड़ेगा, नहीं?

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...