Saturday, 4 January 2025

मनुष्यता के हत्यारे संग इतनी सहानुभूति! ‘तैमूर’ प्रशंसकों की मति ‘लंग’ है

जाते साल के साथ देश के जाने माने कवि डॉ. कुमार विश्वास ने एक कवि सम्मेलन के दौरान एक ऐसा सवाल उठाया, जिससे सोशल मीडिया पर भूचाल आ गया। कुमार विश्वास के परिवार को, उनकी बेटियों को, उन्हें, उनकी विचारधारा को, सबको टारगेट किया जाने लगा। मीम्स बनने लगे, गंदी और भद्दी बातें होने लगीं लेकिन इन सबके बीच असल मुद्दा तो कहीं दूर ही रह गया। असल मुद्दा वह था जो डॉ. कुमार विश्वास ने उठाया था।

क्या गलत कहा था कुमार विश्वास ने? यही तो कहा था- मायानगरी में बैठने वाले लोगों को समझना पड़ेगा कि देश क्या चाहता है। अब ये चलेगा नहीं कि लोकप्रियता हमसे लोगे, पैसा हम देंगे, टिकट हम खरीदेंगे, हीरो-हीरोइन हम बनाएंगे। फिर तुम्हारी तीसरी शादी से औलाद होगी तो उसका नाम तुम बाहर से आने वाले किसी आक्रमणकारी पर रखोगे। ये चलेगा नहीं, इतने नाम पड़े हैं यार, कुछ भी रख लेते तुम. रिजवान रख लेते, उस्मान रख लेते, यूनुस रख लेते, हुजूर के नाम पर कोई नाम रख लेते. तुम्हें एक ही नाम मिला। जिस बदतमीज, लंगड़े आदमी ने हिंदुस्तान में आकर हमारी मां-बहनों का रेप किया, आप लोगों को अपने बेटे का नाम रखने के लिए वो लफंगा ही मिला. अब अगर इसे हीरो बनाओगे तो इसे खलनायक तक नहीं बनने देंगे, ये याद रखना। ये नया भारत है।

क्या गलत था इसमें? क्यों इस बयान को ऐसे प्रस्तुत किया गया जैसे डॉ. कुमार विश्वास कट्टर हो गए हैं? क्यों इसे ऐसे पेश किया गया जैसे डॉ. कुमार विश्वास मुस्लिम विरोध की बात कर रहे हैं? क्या कुमार विश्वास ने यह कहा था कि उस बच्चे का नाम ‘राम स्वरूप’ या ‘शिवकुमार’ होना चाहिए था? उन्होंने तो यही कहा था कि भई, हुजूर के नाम पर रख लेते, उस्मान, यूनुस, रिजवान कुछ भी रख लेते। लेकिन उस बात पर बात ही नहीं की गई। 30 सेकेंड का वीडियो काटकर फिर से एक राष्ट्रवादी को मुस्लिम विरोधी दिखाने की कोशिश की गई। मजेदार बात यह है कि अपने खुद के इतिहास और अस्तित्व की हत्या करके बाहर से आई एक अवैज्ञानिक, असामाजिक, अनैतिक वैचारिकी के पोषक अपने बिलों से बाहर निकले और लग गए मानवता के एक हत्यारे के महिमामंडन में।  

एक पत्रकार के तौर पर, एक भारतीय पत्रकार के तौर पर मेरी मुखरतम आवाज इस विषय पर उठनी चाहिए कि एक शख्स जो दिल्ली को लूटने की नीयत से समरकंद से हिंदुकुश की पहाड़ियों के रास्ते देश में दाखिल हुआ, जिसने करीब एक लाख हिंदुओं को कटवा दिया, हमारे देश के नागरिकों को कटवा दिया, इंसानों को कटवा दिया, उस मनुष्यता के हत्यारे शख्स के नाम पर इस देश में छोड़िए, दुनिया में किसी भी चीज का नाम क्यों होना चाहिए?

दिल्ली में दाखिल होते ही जिसने अपने सैनिकों को खुली छूट दे दी कि जाओ और धन से लेकर महिलाओं की इज्जत तक की लूट करो, वह हमारा हीरो बनेगा? मोहम्मद क़ासिम फ़ेरिश्ता अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ़ द राइज़ ऑफ़ मोहमडन पावर इन इंडिया में' तैमूर के सैनिकों के आतंक के बारे में लिखते हैं, "हिंदुओं ने जब देखा कि उनकी महिलाओं की बेइज़्ज़ती की जा रही है और उनके धन को लूटा जा रहा है तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर अपने ही घरों में आग लगा दी। यही नहीं वो अपनी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर तैमूर के सैनिकों पर टूट पड़े।"

आपको शर्म नहीं आती कि किसी ने अपने बच्चे का नाम उस क्रूर आक्रांता के नाम पर रख लिया और आप खामोश बैठे रहे! तुम मुसलमान हो? तैमूर के सैनिकों ने एक मस्जिद पर हमला करके वहां पर शरण लिए एक-एक शख्स को मौत के घाट उतार दिया था। तैमूर के सैनिकों ने काटे हुए सिरों की मीनार खड़ी कर दी और कटे हुए शरीर के टुकडों को चील और कौवों को खाने के लिए छोड़ दिया। यह कत्लेआम लगातार तीन दिनों तक चला था। जिस शख्स ने तुम्हारे इबादतगाह तक की मर्यादा की हत्या कर दी, उसकी पवित्रता की हत्या कर दी, तुम उसका महिमामंडन करने में लगे हो!

सोचकर देखो, एक शख्स ने 15 दिन में इतनी तबाही मचा दी थी कि उससे उबरने में दिल्ली को 100 साल लग गए थे, और आप उस शख्स को लेकर यह कह रहे हैं कि वह दुनिया का सबसे ताकतवर शासक था! 

कुछ लोग हैं, जो कह रहे हैं कि नाम में क्या रखा है? अजब-गजब से तर्क दे रहे हैं कि किसी रमेश नामक शख्स ने किसी रमेश नामक शख्स का बलात्कार कर दिया हो तो क्या लोगों को ‘रमेश’ नाम से नफरत करनी चाहिए। अरे भई! इतनी समझदारी भरी बातें कर रहे हो तो हिंदू होकर रख लो अपने बेटे का नाम रावण, बेटी का नाम शूर्पणखा और मुस्लिम होकर रख लो अपने बेटे का नाम इब्लीस। नहीं रख पाओगे! क्योंकि तुम भी जानते हो कि नाम से बहुत कुछ होता है, तुम्हें बस एक अजेंडा सेट करना है। अजेंडा- जिसमें सनातन को, राष्ट्रवाद को पीछे खड़ा किया जा सके। लेकिन इस अजेंडे के साथ काम करने वाले नेता, अभिनेता, पत्रकार, एक्टिविस्ट याद रखें कि अब यह नहीं चलेगा। दरअसल इसे चलने नहीं दिया जाएगा। बात हिंदू-मुसलमान की ना कभी थी और ना कभी होगी, बात सिर्फ देश की है, बात इतिहास की है, बात सही और गलत के नजरिये की है।

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...