Monday 9 June 2014

बदायूँ की घटना पर

कल तक वो मासूम परी, जिस पेड़ पर झूला करती थी....
आज उसी पेड़ पर उसकी, निर्मल काया झूल रही....
कहकर निकली थी अम्मा से, जल्दी घर आ जाऊंगी....
क्या गुनाह था, क्या गलती थी, जिसकी उसको सजा मिली....
बाबा ने सपने देखे थे, उसका ब्याह रचाने के....
भाई भी दिनभर ढूंढता था, मौके उसे सताने के....
जाने कौन बाँधेगा राखी, अब उस छोटे भाई को....
रक्षापर्व पर आँसू बहेगा, देख देख कलाई को....
बिटिया की शादी की अक्सर, माँ को चिँता रहती थी....
ढूंढ लाओ कोई अच्छा रिश्ता, बाबा से वो कहती थी....
माँ बाबा की सारी चिँता, चिता मेँ जलकर भस्म हुयी....
बेटी की बिदाई की, जाने ये कैसी रस्म हुयी....
ना जाने किन हैवानोँ ने, लूट ली अस्मत बिटिया की....
कोई मुझे बतलाए जरा, क्या गलती थी उस गुड़िया की....
माँ बाबा के सपनोँ की अब, कौन करेगा भरपाई....
किसको अब आवाज लगाए, बाबुल की सूनी अंगनाई....

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

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